Sunday, January 11, 2009

इस्लामी हमले की जद में चिकेन नेक


गौतम चैधरी सन् 1947 के विभाजन के बाद पाकिस्तान ने भारत के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष युद्ध प्रारंभ कर दिया। छोटी मोटी लडाई को छोड दिया जाये तो दोनों देषों के बीच अभी तक तीन बड़ी लडाइयां हो चुकी है। जब आमने सामने की लडाई में पाकिस्तान नहीं जीत पाया तो पाकिस्तानी हुक्मरानों ने भारत के खिलाफ छद्मयुद्ध की रणनीति अपनाई और भारत को कमजोर करने के लिए उसने 70 के दषक में प्ररोक्ष युद्ध प्रारंभ कर दिया। सन् 1965 की लडाई में पराजय के बाद से ही पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ छद्मयुद्ध का ताना-बाना बुनना प्रारंभ कर दिया था। पराजय के बाद पाकिस्तान ने अपनी सामरिक और विदेष नीति में आमूलचूल परिवर्तन किया। पाकिस्तान के जिस जासूसी संगठन का काम मात्र आन्तरिक राजनीति पर नजर रखना था उसके कद का विस्तार किया गया और इन्टर सर्विसेज इन्टेलिजेंस को विदेषी मामले में भी दखल की छूट दे दी गयी। खासकर भारत के खिलाफ आॅपरेषन में पाकिस्तान ने आईएसआई का खूब उपयोग किया। आईएसआई ने पाकिस्तानी सामरिक चिंतन से तीन कोड शब्द लिए और उस पर काम करना प्रारंभ कर दिया। यह कूट शब्द है, के - 01, के - 02 और के - 03 । क्रमषः पहले कूट शब्द का अर्थ कष्मीर में चलाये जा रहे पाकिस्तानी अभियान से है। दूसरे का संबंध खालिस्तानी आॅप्रेषन से है और तीसरे के - 03 का अर्थ है किसनगंज आॅप्रेषन। याद रहे कष्मीर और खालिसतानी आपरेेषन से कही ज्यादा खतरनाक किसनगंज का मामला है। किसनगंज पर पाकिस्तान का ध्यान केन्द्रित है। पाकिस्तान किसनगंज के गलियारे पर अपना आधिपत्य चाहता है। किसनगंज के गलियारे पर पाकिस्तानी कब्जे से जहां एक ओर पूर्वोतर के सात राज्यों का शेष भारत से संपर्क टूट जाएगा, वहीं दूसरी ओर बांग्लादेष और नेपाल पर भी पाकिस्तान का दबदबा कायम हो जाएगा। इस योजना में पाकिस्तान के साथ न केवल चीन है अपितु पूर्वोत्तर में ईसाई एप्रोच के कारण अमेरिकी सामरिक हित भी यहा टकरा रहा है। पाकिस्तानी सामरिक दस्तावेज में के - 03 का स्थान अहम है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि के - 03 का मतलब किसनगंज में चलाए जा रहे पाकिस्तानी आपरेषन से ही है। इसका खुलासा गायसल ट्रेन दुर्घटना से समय हुआ। सन् 1998 में गायसल स्टेषन के पास भयानक ट्रेन हादसा हुआ था। यह दुर्घटना संयोग नहीं था अपितु एक साजिस थी। इस साजिस के पीछे भी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का ही हाथ था। ट्रेन दुर्घटना में लगभग 2 हजार भारतीय सेना के जवान मारे गये थे। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी सन् 1970 में सिलीगुडी के पास अपना नेटवर्क स्थापित किया। इस नेटवर्क के माध्यम से पाकिस्तान ने किसनगंज और इस्लामपुर के बीच बडी सख्या में अपने एजेंटों की बहाली की। इसी दौरान योजनाबद्ध तरीके से बडी संख्या में पुर्वी पाकिस्तानी मुस्लमानों को भारत में प्रवेष भी दिलाया गया। केवल भारत में ही नहीं भारत से सटे नेपाल के झापा जिले में भी मुस्लमानों को प्रवेष दिलाया गया। सन 70 से लेकर आज तक पाकिस्तान ने इस इलाके में अपनी नेटवर्किंग मजबूत कर ली है। भौगोलिक दृष्टि से देखा जाये तो बिहार के किसनगंज से लेकर पष्चिम बंगाल के इस्लामपुर तक का कुल 32 किलो मीटर के इस इलाके की चैड़ाई मात्र 10 से 20 किलो मीटर है। यहां नेपाल और बांग्लादेष की अन्तर्राष्टीय सीमा टकराती है। दोनों ही देष आज की तारीख में भारत का हितचिंतक नहीं है। हालांकि बांग्लादेष को भारत ने ही आजादी दिलाई लेकिन फिलवक्त बांग्लादेषी अवाम पाकिस्तान की सरपरस्ती में लगा है। बांग्लादेषी घुसपैठियों के कारण भारत के कई राज्यों का जनसंख्यात्मक भूगोल बदलने लगा है। भारत में हो रहे आतंकी आक्रमणों में बांग्लादेषियों की भूमिका भी संदिग्ध है। फिर नेपाल भी भारत विरोधी खेमें की ओर बढ रहा है। नेपाल की राजनीति में माओवादी बढत के बाद नेपाल में चीनी नीति हावी हाती जा रही है। नेपाल भारत से ज्यादा चीन को महत्व देने लगा है। नेपाल के चीनी खेमें में जाने और बांग्लादेष में हो रहे लगातार परिवर्तन से संकेतों से लगने लगा है कि 32 किलोमिटर वाला गलियारा जिसे चिकेन नेक के नाम से भी जाना जाता है पर भारत अविलंब कोई समर्थ एवं सामरिक रणनीति नहीं अपनाया तो भारत का एक और विभाजन कोई रोक नहीं सकता है। इस गलियारे के सामरिक महत्व को समझना जरूरी है। और इस पर रणनीति भी बननी चाहिए। किसनगंज से इस्लामपुर तक नेपाल और बांग्लादेष के बीच भारत का 32 किलो मीटर तक का गलियारा अति संवेदनषील हो गया है। याद रहे इसी गलियारे के इर्दगिर्द नेपाल का झापा और भारत का नक्सलबारी है। नेपाल में पहली बार झापा में माओवादी आन्दोलन हुआ था। उसी प्रकार भारत में भी पहली बार नक्सलबारी में माओवादी चरमपंथियों ने अभियान चलाया था। इसके अलाावा इस गलियारे पर बांग्लादेषी दबाव भी बढता जा रहा है। नेपाल के झापा और मोरग में अन्य भाग की अपेक्षा मुस्लमानों की संख्या ज्यादा है। इस इलाके में बांग्लादेषी मुस्लमानों की संख्या भी बढ रही है। मुस्लमानों के सहयोग से ही झापा में माओवादी किसान विद्रोह हुआ था। नेपाल की माओवादी सरकार मुस्लिम सहयोग की अपेक्षा के कारण झापा में आ रहे बांग्लादेषियों के खिलाफ कार्रवाई से परहेज कर रही है। नेपाल में माओवादी सरकार के सत्ता में आने से चिकेन नेक कहा जाने वाला गलियारा समरिक दृष्टि से और संवेदनषील हो गया है। बग्लादेषी दबाव और माओवादी हरकत के कारण चिकेन नेक पर भारतीय सुरक्षा की पकड कमजोर परने की संभावना है। चिकेन नेक सामरिक दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शेष भारत से पूर्वोतर के राज्यों को जोडने वाला एक मात्र रास्ता या इसे गलियारा भी कहा जा सकता है यही है। इस क्षेत्र की चैड़ाई मात्र 10 से 20 किलो मीटर की है। अब इस क्षेत्र में माओवादी और मुस्लिम गतिविधियों के बढने के कारण चीन की भी नजर चिकेन नेक पर है। विगत कुछ दिनों से चीन की साम्यवादी सरकार बांग्लादेष के डेल्टाई क्षेत्र में सामरिक महत्व के बंदरगाह को विकसित कर रही है। चीन की नजर बंगाल की खाडी पर है। बंगाल की खाडी को चीन अपने गिरफ्त में लेना चाहता है। चीन पाकिस्तान को भी अपना सामरिक दोस्त बना रहा है। चीन कराची के बंदरगाह को भी सामरिक तरीके से बना रहा है। चीन सामरिक योजना के तहत भारत की घेरेबंदी में लगा है। चीन चाहता है कि सियाचीन के रास्ते सडक मार्ग बनाकर कराची के बंदरगाह तक पहुंचा जाये और ल्हासा से सडक मार्ग के द्वारा बंगाल की खाडी में प्रवेष किया जाये। अरब सागर में चीन के प्रवेष का रास्ता साफ हो चुका है लेकिन बंगाल की खाडी में चीन का प्रवेष द्वार भारत से होकर गुजरता है। चीन यह मान कर चलता है कि निकट भविष्य में पूरा नेपाल चीनी साम्राज्यवाद का अंग हो जाएगा। फिर भारत पर दबाव डालकर चिकेन नेक वाले इलाके को अपने कब्जे में लेकर बंगाल की खाडी में प्रवेष किया जा सकता है। इस प्रकार चीन और नेपाल के साथ ही साथ बांग्लादेष तथा पाकिस्तान का संयुक्त सामरिक हित चिकेन नेक पर आकर एक हो जा रहा है। इसके अलावे चिकेन नेक के कट जाने से पूर्वातर के सात राज्य शेष भारत से कट जाएगा। यही नहीं चीन की एक योजना और है। लाल गलियारे की बात जो की जाती है उसका भी रास्ता वही से निकलता है। चीन ने नेपाल में भारतीय सीमा तक सामरिक दृष्टि से सडक का निर्माण कराया है। इस सडक का उपयोग चीनी जासूस भारत में अपने एजेंट को भेजने के लिए भी कर रहे हैं। चीन की नजर भारत के अंदर की अपार खनिज संपदा और जंगल पर है। चीन की योजना झारखंड, छतीसगढ, उडीसा और आन्ध्र प्रदेष को भारत से काट कर एक अलग वामपंथी देष बनाने की है। इस योजना में भारत और नेपाल के माओवादी एक साथ मिल कर काम कर रहे हैं और चीन उनको न केवल प्रोत्साहित कर रहा है उपितु चरमपंथियों को आयुद्ध तकनीक और सैन्य प्रषिक्षण भी मुहैया करा रहा है। किसनगंज गलियरे का नाम चिकेन नेक इस लिए रखा गया है कि वह भाग मुर्गे के गले के समान दिखाई देता है। पूर्वोत्तर के सातों राज्यों को अगर मुर्गे का सिर मान लिया जाये तो शेष भारत मुर्गे के शरीर की तरह दिखता है। इस दोनों भूभाग को जोडने वाला भाग बिल्कुल पतला है। नक्षे पर यह भाग मुर्गे के गले के समान विल्कुल नाजुक सा प्रतीत होता है। यही कारण है कि इस भूभाग को चिकेन नेक के नाम से जाना जाता है। इस भूभाग के मामले में भारतीय हुक्मरानों ने कोई ठोस रणनीति नहीं अपनाई तो दुष्मन की नीति सफल हो जाएगी। चिकेन नेक को काट दिया जाएगा तथा भारत के कई टुकडे हो जाएंगे।

Thursday, January 8, 2009

गुलदार बढ़ने से प्राणी प्रेमी खुश


वन प्राणियों को चाहने वालों के लिए उत्तराखण्ड की वादियां अपने आप ही आकर्षित कर रही हैं वहीं गजराजांे व विभिन्न जातियों के जंगली जानवरों के साथ गुलदारों को देवभूमि का जंगल भा गया है तभी तो एक वर्ष में करीब 70 गुलदारों के मरने के बावजूद इनके कुनबे में करीब साढ़े तीन सौ का इजाफा हुआ है। इस साल के अंत में कराई गई गणना के मुताबिक इनकी संख्या 2343 हो गई है। जंगली जानवरों में सबसे खतरनाक और फुर्तीले माने जाने वाले गुलदारों की संख्या तो वैसे सभी वन वृत्त क्षेत्रों में पाई गई है। लेकिन आंकड़ों को देखकर यही कहा जा सकता है कि उत्तरी कुमाऊं वृत्त में आने वाला जंगल इनको कुछ अधिक ही सुरक्षित व सुहावना लगा है। तभी तो इस क्षेत्र में इनकी संख्या सर्वाधिक 514 पाई गई है। जबकि सबसे कम संख्या यमुना वृत के जंगलों में देखने को मिली है। गौरतलब है कि अब तक वन्य जीवों की गणना द्विवार्षिक होती थी, लेकिन इनकी संख्या घटने की खबरों से परेशान प्रबंधकों ने अब हर साल गणना कराने का निर्णय लिया है ताकि प्रबंधन में जहां भी चूक हो उसे तत्काल दुरूस्त किया जा सके। इसी बीच बीते साल में वन्य जीवों में सबसे अधिक मौत गुलदारों की ही होने की खबर ने वन्य जीव प्रबंधन से जुडे वनअधिकारियों को बेचैन कर दिया था, लेकिन जब उनकी गणना कराई गई तो इनकी संख्या में इजाफे से अधिकारियों को राहत पहुंची है। बीते माह में ही पूरी हुई गणना में सबसे अधिक गुलदार उत्तरी कुमाऊं वृत्त में पाये गए हैं। यहां पर इनकी संख्या 514 है, जिसमें से 229 नर व 215 मादा और 70 बच्चे हैं, जबकि दूसरे नम्बर पर है भागीरथी वृत्त, जहां पर गुलदारों की संख्या 516 है। इनमें नर 218 व 164 मादा व बच्चे 122 हैं जबकि 12 गुलदारों के श्रेणी का पता नहीं लग पाया है। गुलदारों की संख्या के लिहाज से गढ़वाल वृत्त तीसरे पायदान पर है जहां कुल 383 गुलदार मिले हैं। इनमें 106 नर, 110 मादा, 62 बच्चे और 105 अज्ञात शामिल हैं। राजाजी राष्ट्रीय पार्क चैथे स्थान पर है जहां 247 गुलदारों में से 108 नर, 118 मादा, 20 बच्चे और एक गुलदार अज्ञात मिले हैं। इसमें गोविन्द वन्य जीव विहार की संख्या भी शामिल है। शिवालिक वृत्त में भी 178 गुलदार पाए गए हैं, जिनमें से नर मादा की संख्या 28-28 है और 9 बच्चे व एक अज्ञात है। जबकि नंदा देवी बायोस्फियर रिजर्व में 176 गुलदार मिले हैं जिनमें 33 नर व 62 मादा के अलावा 29 बच्चे और 52 अज्ञात शामिल हैं। उधर कार्बेट रिजर्व में इनकी संख्या जरूर कम है। यहां पर सिर्फ 130 गुलदार पाए गए हैं। इनमें से 48 नर, 66 मादा, 9 बच्चे और 7 अज्ञात हैं। मैदानी व तराई क्षेत्र में पड़ने वाले पश्चिमी वृत्त में तो 47 नर व 48 मादा और 4 बच्चों को मिलाकर इनकी संख्या मात्रा 99 ही पाई गई है। जबकि दक्षिणी कुमांऊ वृत्त नैनीताल के जंगलों में मात्रा 66 गुलदार मिले हैं, जिनमें से 27 नर व 30 मादा के अलावा 9 बच्चे पाए गए हैं। इसी प्रकार यमुना वृत्त देहरादून के जंगलों में मात्र 34 गुलदारों की पहचान की गई है। इनमें से नर की संख्या मात्रा 5 व मादा की 4 व बच्चे 3 और अज्ञात 22 शामिल हैं। प्रदेष के मुख्य वन्य जीव संरक्षक श्री कांत चन्दोला ने प्रदेष के जंगलो ंमें गुलदारों की बढ1ती संख्या पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा है कि यह सब वन्य जीवों के प्रति लोगों के नरम व्यवहार का ही नतीजा है।