Thursday, February 26, 2009

जल विद्युत परियोजना स्थगित करने के आदेश पर हाईकोर्ट की रोक


राजेन्द्र जोशी नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तरकाशी जिले में निर्माणाधीन लोहारीनाग पाला जल विद्युत परियोजना को स्थगित करने के केंद्र सरकार के 19 फरवरी के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है । न्यायमूर्ति पीसी पंत तथा न्यायमूर्ति बीएस वर्मा की संयुक्त खंडपीठ में देहरादून की संस्था रूरल लिटीगेशन एंड इंटाइटिलमेंट केंद्र रूलेक की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने 19 फरवरी को एक आदेश जारी कर उत्तरकाशी में चल रही लोहारीनाग पाला जल विद्युत परियोजना का कार्य रोक दिया। पूर्व में एक उच्चस्तरीय कमेटी ने परियोजना का कार्य चालू रखने की संस्तुति दी थी। तब भी सरकार ने परियोजना का कार्य रोक दिया। परियोजना से गंगा की अविरल धारा प्रभावित नहीं हो रही है और न ही इससे पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। याचिका में परियोजना पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद सरकार द्वारा उसे स्थगित करने को जनहित के खिलाफ बताते हुए न्यायालय से सरकार के 19 फरवरी के आदेश को निरस्त करने की मांग की गई। याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायालय की संयुक्त पीठ ने परियोजना स्थगित करने के केन्द्र सरकार के 19 फरवरी के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी। मामले में न्यायालय ने केंद्र एवं राज्य सरकार से छह सप्ताह के भीतर प्रतिशपथ पत्र पेश करने के निर्देश दिए हैं। उल्लेखनीय है कि रूलेक प्रदेश सरकार द्वारा दो अन्य जलविद्युत परियोजनाओं पाला मनेरी 480 मेगावाट तथा भैंरोघाटी 381 मेगावाट की परियोजनाओं के बन्द किये जाने को लेकर भी नैनीताल उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर चुकी है।

Wednesday, February 25, 2009

जवाब दें ये तथाकथित गंगा प्रेमी व पर्यावरणविद ?





जलविद्युत परियोजनाओं को बंद कराने से आखिर किसे होगा फायदा ?

या केवल पुरस्कार पाने तक ही सीमित है ये ड्रामा?


राजेन्द्र जोशी

उत्तराखण्ड की गंगा घाटी में निमार्णाधीन जलविद्युत परियोजनाओं को बंद कराने के पीछे किन्ही लोगों का क्या उद्देश्य है? कहीं ये लोग उत्तराखण्ड की आर्थिक रीढ़ बनने जा रही इन परियोजनाओं को रोक कर इस नये राज्य को भिखारी तो नहीं बना देना चाहते या ये लोग कहीं विकास विरोधी तो नहीं ? गंगा का प्रवाह भला कोई रोक सकता है? ऐसे-ऐसे प्रश् आज आम उत्तराखण्डी नागरिकों के जेहन में कौंध रहे हैं। उन्हे लगता है गंगा की सफाई की जरूरत तो हरिद्वार से गंगा सागर तक के बीच होनी चाहिए न कि गोमुख से हरिद्वार के बीच। हां गंगा की पवित्रता का ध्यान यहां के लोगों को भी रखना होगा लेकिन विकास की कीमत पर गंगा पर बन रही जलविद्युत परियोजनाओं को यहां के लोग रोकना ठीक नहीं मानते। अब इन तथाकथित पर्यावरविदों तथा गंगा बचाओं के नाम पर पुरस्कार पाने वालों के खिलाफ एक आन्दोलन की जरूरत महसूस की जा रही है जो इस प्रदेश को अंधेरी सुरंग की ओर धकेलने का प्रयास कर रहे हैं। अखिर देश तथा प्रदेश की जनता की गाढ़ी कमाई का करोड़ों रूपया खर्च करने के बाद इन परियोजनाओं को रोकने का क्या मकसद है। इन परियोजनाओं पर देश तथा प्रदेश के हजारों रोजगार पा रहे लोगों को बेरोजगार कर क्या ये तथाकथित ''गंगाप्रेमी''े भीख का कटोरा इन बेरोजगार हुए लोगों के हाथों में थमाना चाहते हैं?

ण एक के बाद एक बंद हो रही निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं के कारण जहां प्रदेश की आर्थिकी प्रभावित हो रही है वहीं ऊर्जा के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर विद्युत उत्पादन को भी भारी हानि उठानी पड़ रही है। पर्यावरण तथा गंगा बचाओ आन्दोलनों के नाम पर हो रहे खेलों के कारण जहां इन परियोजनाओं की कीमत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है वहीं इन परियोजनाओं के बंद होने से हजारों लोग बेराजगारी की मार झेलने को मजबूर हैं। जानकारों का मानना है कि विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को किसी भी परियोजना के शुरू किये जाने से पहले जांचा-परखा जाना चाहिए था। ताकि करोड़ों खर्च होने के बाद परियोजनाओं के बंद किए जाने की नौबत ही न आये। अब ऐसे में परियोजनाओं के बंद होने के कारण होने वाली करोड़ों की क्षति के लिए भी जवाबदेही तय की जानी चाहिए ताकि आमजन के पैसे का दुरपयोग न हो।

उल्लेखनीय है कि गंगा बचाने के नाम पर अब तक राज्य सरकार की दो महत्वाकांक्षी जल विद्युत परियोजनाओं में से 480 मेगावाट की पाला मनेरी जिसकी लागत दो हजार करोड़ रूपये आंकी गयी थी और इस पर सरकार ने 80 करोड़ रूपये खर्च भी कर दिये थे बीती जून माह में बंद कर दी गयी वहीं 381 मेगावाट की भैरोंघाटी योजना जिस पर निर्माण की अनुमानित लागत भी लगभग दो हजार करोड़ आंकी गयी थी को भी बंद करने के आदेश प्रदेश सरकार प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के पहले उत्तरकाशी तथा बाद में दिल्ली में अनशन पर बैठने के कारण पहले ही बंद की जा चुकी हैं और अब एनटीपीसी बनायी जा रही 600 मेगावाट की लोहारी नागपाला जलविद्युत परियोजना जिसकी लागत 22सौ करोड़ रूपये आंकी गयी थी, पिछले तीन साल को निर्माणाधीन है, तथा जिसका लगभग 30 से 35 फीसदी निर्माणकार्य पूरा भी हो चुका है और इस पर एनटीपीसी लगभग 600 करोड़ रूपए खर्च हो चुके हैं, पर भी केन्द्र सरकार ने 20 फरवरी को बंद करने का निर्णण ले लिया है। जहां तक पाला मनेरी तथा भैंरोघाटी परियोजनाओं का सवाल है इन परियोजनाओं के पूर्ण होने के बाद इनसे प्रदेश को पूरी की पूरी बिजली मिलनी थी और जो प्रदेश को जहां ऊर्जा के क्षेत्र में स्वावलम्बी बनाती वहीं इससे प्रदेश को अतिरिक्त आय भी होती लेकिन गंगा बचाओं अभियान की भेंट ये योजनाऐं चढ़ गयी। साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भी बिजली की मांग को पूरा करने में मददगार होती। जहां तक लोहारी नागपाला योजना की बात की जाय इसे भले ही केन्द्र सरकार का उपक्रम एनटीपीसी ही क्यों न बना रहा है लेकिन इससे प्रदेश को 13 फीसदी बिजली मुफ्त में मिलनी थी। सवाल मुफ्त में बिजली मिलने का नहीं सवाल है नये राज्य की आर्थिकी का भी और सवाल है देश तथा राज्य के उन लोगों का जिनको इन योजनाओं के बंद होने के कारण बेरोजगार होना पड़ा है।

गंगा बचाओं तथा पर्यावरण आन्दोलनों के कारण टिहरी परियोजना का भी कमोवेश यही हाल हुआ। 1972 में 196 करोड़ की लागत से बनने वाली यह परियोजना पूर्ण होने पर 6500 करोड़ तक जा पहुंची है। जिससे निर्माण में जहां लागत बढ़ी है वहीं देश मिलने वाली बिजली में भी देरी हुई है उस वक्त भी पर्यावरण और समाज सेवा से जुड़े होने का दावा करने वाले लोग विकास में आम जनता की नजर में बाधक बनते दीख रहे थे। इनमें से कुछ को राष्ट्रीय सम्मान तक भी प्रदान किया गया। गंगा तथा पर्यावरण के नाम पर रोज-रोज इन बांधों के खिलाफ आन्दोलनों से अखिर किन लोगों को इसका फायदा पहुंच रहा है इसके भी जांच किए जाने की आवश्यकता है। परियोजनाओं के लगातार विरोध के बाद अब स्थानीय लोग भी इन तथाकथित गंगा बचाओ तथा पर्यावरण बचाओ के नाम पर आन्दोलन कर रहे लोगों के खिलाफ मुखर होने लगे हैं। क्योंकि पिछले अनुभवों के आधार पर टिहरी बांध निर्माण को लेकर आन्दोलन करने वालों के समय के साथ हुए बदलाव की मानसिकता के वाकिफ हैं। अब आम जनता इन लोगों को चिन्हित कर चुकी है। चार धाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष सूरतराम नौटियाल के अनुसार अकेली लोहारी नागपाला परियोजना से प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 1500 से ज्यादा बेरोजगार जुड़े हुए हैं। केन्द्र सरकार ने परियोजना को रोक कर जहां पूरे देश का आर्थिक नुकसान किया है वहीं युवाओं को भी बेराजगार कर दिया है। क्षेत्र के तमाम बुद्धिजीवियों तथा समाजसेवियों का कहना है यदि इसी तरह देश तथा प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ बनने जा रही इन परियोजनाओं का इस तरह विरोध होता रहा तो देश के तथा प्रदेश के सामने संकट पैदा हो जाएगा। वहीं इनका कहना है कि गंगा क ो साफ रखने की जो लोग सोच रहे हैं उन्हे हरिद्वार से लेकर गंगा सागर तक गंगा की दशा पर सोचना होगा न कि गंगोत्री से हरिद्वार तक के बारे में। इनका कहना है गंगोत्री से लेकर हरिद्वार तक गंगां वैसी भी साफ है और यहां से बह रहे पानी का उपयोग देश तथा राज्य क ो मिलने वाली ऊर्जा परियोजनाओं में किया जाना चाहिए।

कैलाश मानसरोवर यात्रा जोशीमठ- मलारी मार्ग से शुरू करने को लेकर बहस शुरू



 राजेन्द्र जोशी

धारचूला -गंूजी मार्ग के बंद हो जाने बाद अब कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए प्रदेश के ही जोशीमठ- मलारी मार्ग से भी यात्रा शुरू करने को लेकर बहस शुरू हो गई है। जिसे उत्तरपथ कहा जाता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग को मोक्ष का रास्ता भी कहा जाता रहा है। स्कंध पुराण में भी इस यात्रा का वर्णन मिलता है। धारचूला से कैलाश मानसरोवर तथा मलारी से कैलाश मानसरोवर मार्ग का प्रयोग आजादी के 15 सालों तक हुआ करता था। 1962 में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के बाद ये दोनों मार्ग बंद कर दिये गये थे । जिन पर पुन: 1981 में चीन की रजामंदी के बाद यात्रा शुरू हो पायी। जबकि मलारी से तिŽबत के तुंन जेन ला तक इस उत्तरपथ से भी व्यापार होता रहा था, और यह मार्ग भी कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सबसे सुगम बताया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस उत्तरपथ से भारत तथा तिŽबत के बीच व्यापारिक रिश्ते काफी पुराने थे लेकिन तिबबत में अशांति के बाद यह मार्ग लगभग बंद सा हो गया है। हालांकि अभी भी भारत तथा तिŽबत के बीच धारचूला के लिप्पूलेख दर्रे से व्यापार की अनुमति है लेकिन यह अनुमति केवल 18 चीजों के लिए ही है। जिसमें ऊन तथा भेड़ का व्यापार प्रमुख है। जबकि आजादी के 15 सालों तक मलारी मार्ग से तिŽबत के लिए भेड़ो तथा याक से नमक,तेल तथा ऊन सोना आदि का व्यापार हुआ करता था। जिससे क्षेत्र के लोगों की आर्थिकी मजबूत तो थी ही साथ ही उन्हे रोजगार भी मिलता रहा था। इतना ही नहीं इन दोनों देशों के बीच इतनी व्यापारिक प्रगाढ़ता थी कि कभी उत्तराखण्ड के सीमावर्ती गमशाली तो कभी तुन जेन ला में व्यापारिक मेले आयोजित किये जाते थे जिसमें वे एक दूसरे के यहां की वस्तुओं की खरीद फरोख्त किया करते थे। गमशाली गांव में रह रहे 87 वर्षीय मोहन सिंह के अनुसार वे कई बार अपने पिता व अन्य रिश्तेदारों के साथ तिŽबत की यात्रा अपनी जवानी के दिनों में कर चुके हैं। उस समय को याद कर उनकी अंश्रुपूरित आंखों में यह साफ दिखाई देता है कि उस समय यह क्षेत्र धन-धान्य से कितना परिपूर्ण रहा होगा। उनके अनुसार आज उनका गांव वीरान हो चुका है गांव के कई परिवार मलारी,जोशीमठ तथा देहरादून तक जा बसे हैं। उनके अनुसार इस क्षेत्र में विकास कार्य तो हुए हैं लेंकिन लोगों में वो सौहार्द अब नहीं दिखाई देता। वहीं इसी क्षेत्र के रहने वाले उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड के पूर्व पर्यटन मंत्री व वर्तमान में बदरीनाथ क्षेत्र के विधायक केदार सिंह फोनिया के अनुसार जोशीमठ से मलारी होते हुए सुमना तक अब सडक़ मार्ग 86 किमी का बन चुका है यहां से पैदल बाड़ाहोती होते हुए तुन जेन ला पहुंचा जा सकता है जो कि प्राचीन भारत तथा तिŽबत का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र रहा था। यहां से लगभग 60 किमी पर मानसरोवर तथा कैलाश परिक्रमा पथ है। उनके अनुसार इस मार्ग को एक बार फिर विकसित कर इससे भी यात्रा शुरू किये जाने की योजना थी लेकिन यह कार्यरूप में परिणित नहीं हो पाई। जबकि प्रदेश के पर्यटन मंत्री प्रकाश पंत के अनुसार इन दोनों मार्गो से दोनों देशों के बीच व्यापारिक संम्बध एक बार फिर मजबूत किए जा सकते हैं। जबकि उनका कहना है कि अभी केवल धारचूला मार्ग से ही यात्रा की स्वीकृति चीन द्वारा दी गयी है। उनके अनुसार अभी भीे केवल 18 चीजों पर ही व्यापार की अनुमति है जो दोनों देशों के व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नाकाफी है उनके अनुसार इस नियंत्रण से दोनों देशों का व्यापार चौपट हो गया है। उल्लेखनीय है कि समुद्र तल से लगभग 22 हजार 28 फीट की ऊंचाई पर स्थित कैलाश पर्वत क ा परिक्रमा पथ 32 मील है। हिन्दु आस्था के प्रतीक कैलाश को मोक्ष का मार्ग मानते हैं वहीं जैन इसे अष्टïपाद मेरू तथा बौद्घ इसे पवित्र कांग रिन पोचे के रूप में मानते हैं । यहीं से सिंधु, सतलज तथा ब्रह्मïपुत्र जैसी पवित्र नदियों का उद्गगम भी बताया गया है। वर्तमान में यहां तक पहुंचने के लिए तिŽबत के ल्हासा के अलावा नैपाल तथा उत्तराखण्ड के धारचूला के मार्ग जो अब चीन क्षेत्र से होकर गुजरते हैं से पहुंचा जा सकता है। वर्तमान में धारचूला के पास के कई गांवों के भूस्खलन तथा इसके बाद काली नदी में इसका मलवा आ जाने के बाद प्राचान इस मार्ग से एक बार फिर यात्रा शुरू करने को लेकर बहस शुरू हो गयी है। यह तो समय ही बताएगा कि इस मार्ग से यात्रा शुरू हो भी पाती है या नहीं लेकिन इस बहस ने इस मार्ग को जरूर चर्चा में ला दिया है।

Thursday, February 19, 2009

चुनाव की आहट के चलते होर्डिंग युद्घ शुरू

राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 17 फरवरी । लोकसभा चुनाव को देखते हुए प्रमुख्य राजनैतिक दल चुनाव प्रचार में जुट गए हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं के सम्मेलन के बहाने कांग्रेस जहां मतदाताओं में पहुंच बनाने की कोशिश कर रही है वहीं कार्यकर्ताओं में भी जोश का संचार करने का प्रयास कर रही है। ठीक यही स्थिति भारतीय जनता पार्टी की भी है। भाजपा सरकार जनता के द्वार कार्यक्रमों के जरिये जनता के बीच जाकर इस पार्टी के मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक जनता दरबार लगा कर जनता के बीच पैठ बनाने क ी कोशिश करने में जुटे पड़े हैं। यही नहीं कांग्रेस के अभी उम्मीदवार ही घोषित नहीं हुए हैं लेकिन कांग्रेस ने तो होर्डिंग के जरिये पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों को जनता के बीच पहुंचाने का अभियान शुरू कर दिया है। राजधानी देहरादून के विभिन्न स्थानों पर इस तरह की होर्डिंग देखी जा सकती है। इसमें भाजपा भी पीछे नहीं है। उसने प्रत्याशियों की उमीदवारी तय होने के बाद पार्टी आलाकमान को धन्यवाद देते हुए शहर के विभिन्न मुख्य मार्गो पर होर्डिंग लगायी है।
गौरतलब हो कि भाजपा ने प्रदेश के विभिन्न शहरों कस्बों से लेकर विकासखण्ड स्तर तक करोड़ो रूपयों की लागत से हजारों होर्डिंग तथा रोडवेज की बसों तथा अड्डïों पर तक सरकार के कार्यक्रमों से लेकर उपलŽिधयों तक के बैनरों से पाट दिया है इतना ही भाजपा ने तो लोकसभा चुनाव को देखते हुए प्रदेश के तेरहों जिलों की जिला पंचायतों से लेकर राज्य की 78 तहसीलों ,95 विकास खण्डों 670 न्याय पंचायतों, 7541ग्राम पंचायतों से लेकर राज्य के 16826 गांवों तक सरकार की उपलŽिधयों तथा योजनाओं के लिफाफे बनाकर भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसमें भी लाखों रूपये व्यय किये जा रहे हैं। इसी के तहत मुख्यमंत्री ने पीठ में दर्द की शिकायत के बावजूद आजकल जहां सरकार जनता के द्वार कार्यक्रम की शुरूआत कुमांयूं मण्डल के पिथौरागढ़ जिले से घोषणाओं तथा लोकार्पण कार्यक्रमों से शुरू की वहीं आज चौथे दिन वे अब गढ़वाल क्षेत्र के दौरे पर चल निकले हैं। इतना ही प्रदेश सरकार के मंत्री भी इसी कार्यक्रम के तहत विभिन्न जनपदों में जाकर जनता दरबार लगा क्षेत्र की जनता की समस्याओं से जहां रूबरू हो रहे हैं वहीं वे सरकार की दो साल की उपलŽिधयों का बखान भी जनता के सामने कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर भाजपा ने ही पूर्व मुख्यमंत्री तथा राज्य सभा संासद भगत सिंह कोश्यारी को चार राज्यों का प्रभारी बनाए जाने पर बधाई देते हुए भी दिखाया है।

भाजपा के इस होर्डिंग तथा बैनर युद्घ से प्रमुख्य विपक्षी दल कांग्रेस कहां पीछे रहता उसने भी शहर के प्रमुख्य मार्गो पर कांग्रेस की नीतियों तथा कार्यक्रमों के साथ ही जनता से अच्छी सरकार चुनने का निवेदन किया इन होर्डिंग के द्वारा किया है। इतना ही केन्द्र सरकार ने तो राजग सरकार के कार्यक्रमों तथा उपलŽिधयों को लेकर विज्ञापन बाजी भी शुरू कर दी है। कांग्रेस ने तो इस चुनाव में युवाओं को निशाना बनाते हुए युवा नेता राहुल गंाधी को ”अतीत की नींव पर भविष्य का निर्माण , भविष्य का साथ दें कांग्रेस का साथ देंÓÓ जैसे नारे लिखे होर्डिंग लगाए हैं। वहीं कहीं पर प्रधानमंत्री के साथ सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी को होर्डिंग पर दिखाया गया है।
कुल मिलाकर भाजपा तथा कांग्रेस में लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले ही होर्डिग तथा बैनरों का युद्घ शुरू हो गया है। दोनों ही दलों में कोई अपनी केन्द्र सरकार की तारीफों तथा उसकी उपलŽिधयों का बखान इसके जरिये कर रहा है तो कोई प्रदेश सरकार की उपलŽिधयों की। प्रदेश की जनता चुनाव से पहले का यह नजारा देख अभी चुपचाप है