Sunday, July 25, 2010

अनुशसित जनरल का डगमगाया अनुशासन



राजेन्द्र जोशी
देहरादून। सैन्य पृष्ठ भूमि से ताल्लुक रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूडी भले ही अनुशासन प्रिय होने का स्वांग रचते हो लेकिन हालिया स्थिति इसके विपरीत नजर आती है। पार्टी का एक धड़ा उन्हें अनुशासनहीन कहने से भी परहेज नहीं कर रहा है। मामला ताजे-ताजे प्रदेश प्रभारियों के पदों पर हुई नियुक्ति को लेकर है। चर्चाओं पर यदि विश्वास किया जाय तो पूर्व मुख्यमंत्री खंडूडी तमिलनाडू के प्रभारी का पद लेने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि वे बीते दो दिनों से दिल्ली में डेरा डाल कर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी सहित भाजपा के आला नेता आडवाणी सहित अरूण जेटली व कई अन्यों से अपनी ताजपोशी को लेकर नाखुशी जाहिर कर चुके हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने जनरल खंडूडी के इस आचरण पर गंभीर रूख अपनाते हुए उन्हें पार्टी के नीति-रीति और अनुशासन कायम रखने की नसीहत दी है।
उल्लेखनीय है कि निशंक सरकार के बनने के बाद से ही पूर्व मुख्यमंत्री खंडूडी एक माह चुप रहने के बाद सरकार के खिलाफ गाहे-बगाहे बयान ही नहीं देते रहे बल्कि उन्होंने प्रदेश संगठन और सरकार के मुखिया के दौरों के समानान्तर दौरे कर सरकार और संगठन को कई बार परेशानी में डाला। सच्चाई तो ये भी थी कि जनरल खंडूडी मुख्यमंत्री पद से पद्योच्चित होने के बाद भी पद का लोभसंवरण नहीं कर पाये और आये दिन सरकार और संगठन को उनके द्वारा दिये गये बयानों व प्रदेश भर में किये गये तूफानी दौरों से नई मुसीबत का सामना करना पड़ा। जनरल खंडूडी के सत्ता के समानान्तर अपने को खड़ा करने के कारण सरकार और संगठन स्वयं को असहज महसूस कर रहे थे। सूबे के मुखिया डा. रमेश पोखरियाल निशंक हर मौके पर खंडूडी का मान-मनोब्बल करते रहे केवल इसलिए कि सरकार और संगठन की छवि धूमिल न हो पाये। अब जबकि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने जनरल खंडूडी की इन गतिविधियों का संज्ञान लिया तो उन्हें तमिलनाडू का प्रदेश प्रभारी बनाया गया। लेकिन बावजूद इसके जनरल खंडूडी प्रदेश की राजनीति का मोह नहीं त्याग पा रहे हैं। जनरल खंडूडी ने मीडिया में सरकार के विरूद्ध दुष्प्रचार करने का बीड़ा उठा रखा है। अपनी नाराजगी संगठन और सरकार के शीर्ष नेतृत्व के समक्ष रखने के बजाय मीडिया में रखते रहे हैं। जिससे भाजपा जैसी अनुशासित कहे जाने वाली पार्टी की छिछालेदारी हो रही है।
चर्चा तो यहां तक है कि जनरल खंडूडी को अपने इस अनुशासनहीन आचरण के लिए केंद्रीय नेतृत्व के सामने मुहं की खानी पड़ी है। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उन्हें पार्टी अनुशासन का पाठ पढाते हुए सौंपे गये दायित्व का निर्वहन करने के कड़े निर्देश दिये हैं, साथ ही चेतावनी भी दी है कि भारतीय जनता पार्टी की आचार सहिंता को दृष्टिगत रखते हुए संगठन की मजबूती के लिए वे काम करें। विगत एक वर्ष से निशंक सरकार के समक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जनरल खंडूडी ने कई बार ऐसी स्थितियां पैदा कर दी कि शीर्ष नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ा। माना ये भी जा रहा है कि खंडूडी की इन्हीं हरकतों के कारण उन्हें उत्तराखंड से दूर सुदूर दक्षिण भारतीय राज्य में भेजा गया है। जहां पर कि भाजपा का अभी कोई खासा जनाधार तक नहीं है। अब यहां ये देखना है उत्तराखंड में कुर्सी के लिए हायतौबा मचाने वाले खंडूडी तमिलनाडू में भाजपा को किस ऊंचाई तक पहुंचाने में सफल हो पाते हैं साथ ही वहां की राजनीतिक परिस्थितियां उनकी राजनीतिक कद काठी भी तय करेगी।

Saturday, July 24, 2010

जैन से छूट़ा पिंड प्रदेश भाजपा को राहत

जैन से छूट़ा पिंड प्रदेश भाजपा को राहत
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 24 जुलाई। भारतीय जनता पार्टी ने केंद्रीय स्तर से भले ही उत्तराखंड के प्रभारी का दायित्व थावर चंद गहलोत को सौंप दिया हो। केंद्र के इस निर्णय से सूबे के भाजपा के नेताओं ने प्रदेश सह प्रभारी से उनका पिंड छुडाये जाने पर खुशी जाहिर की है। मामला चाहे खंडूडी सरकार का रहा हो अथवा वर्तमान निशंक सरकार का। चर्चाओं के अनुसार प्रदेश सह प्रभारी ने इन दोनों नेताओं की साख पर बट्टा लगाने पर कोई कोर-कसर नहीं छोडी। मामला चाहे ऋषिकेश के चर्चित स्टर्डिया कैमिकल फैक्ट्री के पुर्नजीवन का रहा हो अथवा जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन सहित काशीपुर के प्राग फार्म का। चर्चाओं के अनुसार भाजपा के प्रदेश सह प्रभारी इन सभी मामलों में जहां प्रत्यक्ष रूप से जुडे रहे वहीं कुछ मामलों में उन्होंने अपनी पत्नी वंदना जैन व मां सहित अपने मित्रों तक को लाभ पहुंचाने की कोशिश की।
सूत्रों की मानें तो पूर्व प्रदेश सह प्रभारी उत्तराखंड राज्य का पूर्ण प्रभार लेने के लिए ऐडी-चोटी का जोर लगाये हुए थे। लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेताओं तक जब उनका काला चिट्ठा पहुंचा तो उन्होंने भी अपने हाथ पीछे खींच लिये। इसे भाजपा आलाकमान के दूरदर्शी निर्णय के रूप में भी देखा जा रहा है। भाजपा के वर्ग का मानना है कि खांटी आरएसएस कैडर आये थावर चंद गहलोत के आने से प्रदेश भाजपा में चल रही गुटबाजी को जहां विराम लगेगा वहीं केंद्र के इस निर्णय को भाजपा के लोग तरूप के पत्ते के रूप में भी देख रहे हैं। इस वर्ग का कहना है कि कंेंद्र ने प्रदेश में दलित कार्ड खेलकर इसे भाजपा की 2012 की तैयारी भी माना जा सकता है। वहीं सूबे के दो बडे़ नेताओं को तमिलनाडू और झारखंड की जिम्मेदारी सौंप कर प्रदेश में चल रही गुटबाजी को भी खत्म करने का काम किया है। जहां एक ओर पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य सभा सांसद भगत सिंह कोश्यारी को झारखंड की जिम्मेदारी दी है तो वहीं पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूडी को तमिलनाडू का दायित्व दिया गया।

Friday, July 23, 2010

निशंक के तरकश से निश्छल फैसले



राजेन्द्र जोशी
देहरादून । मुख्यमंत्री द्वारा मंगलवार को बुलायी गयी कैबिनेट की बैठक में जो निर्णय लिये गये उन्हे निशंक सरकार द्वारा एक तीर से दो निशाने के रूप में देखा जा रहा है। इस निर्णय से निशंक ने जहां एक ओर बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के रास्ते खोले हैं तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश में काबिज भाजपा को इसक ा लाभ 2012 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी मिलना तय है।
उल्लेखनीय है कि बीते दिन निशंक मंत्रिमंडल की बैठक में दो ऐसे महत्वपूर्ण तथा बहुप्रतीक्षित निर्णय लिये उनकी प्रदेश भर के लोगों में सराहना की जा रही है। प्रदेशवासी जो अलग राज्य बनने के बाद भी रोजगार की तलाश में पहाड़ों से पलायन के लिए मजबूर थे उनके लिए निशंक सरकार ने अपने ही प्रदेश में रोजगार का रास्ता खोल दिया है। इतना ही नहीं उत्तराखण्ड मेें यह आशंका घर कर रही थी कि उन्हे राज्य बनने का कोई लाभ नहीं मिला और वे राज्य बनने के बाद भी अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे थे कि उनकी पहुंच नहीं है अथवा वे प्रदेश में रोजगार नहीं पा सकते, सरकार के इस निर्णय से ऐसे लोगों में व्याप्त हताशा को भी विराम लगा है। प्रदेश सरकार का यह निर्णय राज्य वासियों के लिए रोजगार के अवसर लेकर तो आया है। राजनीतिक विश£ेषकों का कहना है कि सरकार के इस निर्णय से जहां उत्तराखण्ड राज्य की अवधारणा को बल मिला है वहीं इस निर्णय से कांग्रेस में बेचैनी भी साफ देखी जा रही है।
जहां तक राजनैतिक दलों के निणयों में स्वार्थ की बात की जाए तो शायद ही ऐसा कोई राजनीतिक दल होगा जो अपने भविष्य को संवारने और राजनीति में टिके रहने के लिए ऐसा कोई राजनीतिक फैसला न ले जो उसे दूरगामी परिणाम न दे। सो निशंक सरकार ने भी ऐसा ही किया उसके इस निर्णय से जहां बेराजगारों में रोजगार को लेकर संभावनायें बढ़ी है वहीं आगामी 2012 में प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को इससे महत्वपूर्ण उपलब्धि मिलने से कोई नहीं रोक सकता। इसे मुख्यमंत्री निशंक की राजनीतिक दूरदर्शिता अथवा उनके मंत्रिमंडल की राजनीतिक परिपक्वता ही कहा जाएगा कि उसने यह निर्णय किया।
जहां तक प्रदेश सरकार के दूसरे निर्णय की बात की जाए तो इसमें भी राज्य सरकार ने दूरदर्शिता तथा बेरोजगारों का ध्यान तो रखा ही है साथ ही सरकार ने पुरानी घिसे-पिटे रास्ते पर न चलते हुए प्रदेश के युवाओं के लिए राज्य में चल रहे आईटीआई, पालिटेक्रिक तथा बीटेक के पाठ्यक्रमों में भी नयापन लाने की कोशिश की है। इससे पहले प्रदेश में आजादी के बाद से वही घिसे-पिटे पाठ्यक्रम चलाए जा रहे थे जिनकी आज के आधुनिक समय में कोई आवश्यकता नहीं रह गयी थी अथवा वे पाठ्यक्रम आउटडेटेड हो गये थे। सरकार ने इन संस्थानों में आठ नये पाठ्यक्रम भी चलाये जाने को मंजूरी दे दी है। सरकार के इस निर्णय से प्रदेश पर कोई अतिरिक्त आर्थिक भार भी नहीं पडऩे वाला है।
कुल मिलाकर निशंक मंत्रिमंडल ने वह कदम उठाया है तो राज्य बनने से लेकर आज तक प्रदेश में काबिज कोई भी सरकार नहीं उठा पायी। राजनीतिक विश£ेषक निशंक सरकार द्वारा उठाये गये इस कदम को सही वक्त पर सही कदम बता रहे हैं।

Monday, July 19, 2010

आखिर निशंक की नीयत पर सवाल क्यों ?

भाजपा के ‘‘नीलकंठ’’ हैं निशंक
देहरादून । प्रदेश के मुख्यमंत्री की तुलना यदि शिव से की जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जिस तरह भगवान शिव ने विश्व कल्याण तथा देवताओं को राक्षसों से बचाने के लिए विषपान कर नीलकंठ कहलाए ठीक उसी तरह निशंक ने पूर्व मुख्यमंत्री खंण्डूड़ी सहित भाजपा संगठन के तमाम अपयशों को अपने उपर लेकर शिवजी जैसा ही काम कर दिया है।
प्रदेश में भले ही आजकल राजनीतिक दलों के साथ ही प्रदेश में काबिज भाजपा सरकार में शामिल कुछ लोग निशंक को ही कसूरवार मानते हों लेकिन इन सभी मामलों की गहरायी से छानबीन की जाय तो उन पर जितने भी आरोप लगाये जा रहे हैं वे सभी कार्य उनके अपने कार्यकाल के तो नहीं हैं बल्कि ये तो पूर्व मुख्यमंत्री खंण्डूड़ी के कार्यकाल के थे। भाजपा का ही एक वर्ग का मानना है कि यदि निशंक ये कार्य नहीं करते तो उन्हे प्रदेश की सत्ता से दूर किये गये पूर्व मुख्यमंत्री की नाराजगी झेलनी पड़ती। चर्चाओं पर यदि भरोसा किया जाय तो मामला चाहे जलविद्युत परियोजनाओं के आवंटन का हो अथवा स्टर्डिया मामले का ये दोनों ही मामले पूर्व मुख्यमंत्री के शासन काल के थे जिन्हे वे सत्ता में रहते हुए पूरा नहीं कर पाये। सबसे पहले उत्तराखंण्ड में बनने वाली जलविद्युत परियोजनाओं के मामले को ही लें तो इस मामले में सेल्फआईडेंटीफाईड परियोजनाओं के लिए खंण्डूड़ी सरकार ने ही प्रदेश की ऊर्जा नीति व विज्ञापन जारी किया था। इसमें देशभर से लगभग 757 लोगों ने आवेदन किया जिसमें से 56 परियोजनाओं को खंण्डूड़ी सरकार ने ही अंतिम रूप से स्वीकार किया था इतने में पूर्व मुख्यमंत्री खंण्डूड़ी की कुर्सी जाती रही और इस पर सिर्फ मुहर निशंक सरकार से लगाने की बात थी, इस समूचे प्रकरण में प्रदेश में काबिज अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में रही है जिसमें सबसे ज्यादा विवादास्पद जलविद्युत निगम के पूर्व सीएमडी योगेन्द्र प्रसाद रहे। जिन्हे निशंक सरकार द्वारा मामले के संज्ञान में आते ही हटाया जा चुका है। वहीं ऊर्जा विभाग का कार्य देख रहे एक प्रमुख सचिव को भी प्रदेश से बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। इतना ही नहीं निशंक सरकार ने इस समूचे प्रकरण पर उठ रही उंगलियों को देखते हुए कठोर प्रशासनिक क्षमता का परिचय देते हुए समूचे मामले को ही रद्द कर दिया है।
जहां तक ऋषिकेश के चर्चित स्टर्डिया फैक्ट्री का मामला है इस मामले में भी पूर्व खंण्डूड़ी सरकार ही कठघरे में दिखायी देती है। यह समूचे प्रकरण में पूर्व मुख्यमंत्री तथा भाजपा के ही एक प्रदेश सह प्रभारी की भूमिका प्रथम दृष्टया सामने आयी है। चर्चा है कि यह समूचा प्रकरण भी राजनीति से प्रेरित बताया गया है। जहां तक वर्तमान मुख्यमंत्री के इस मामले में हस्तक्षेप की बात की जाय उन्होने इस मामले के संज्ञान में आते ही निर्माण कार्य पर रोक लगाने के आदेश काफी पहले ही जारी कर दिये हैं। जिस पर शासन ने अमल करा दिया है।
जहां तक इन मामलों में प्रदेश मुखिया निशंक की बात की जाय तो यह लगभग साफ सा है कि उनका इन दोनों मामलों से कोई लेना देना नहीं रहा। यदि विपक्ष के आरोपों पर विश्वास भी किया जाय तो वर्तमान मुख्यमंत्री इन मामलों में लिप्त भी होते तो वे क्यों इन मामलों पर इतना कठोर कदम उठाते हुए इन्हे रद्द तक करने जैसे कदम उठाते। इन प्रकरणों को देखने से तो प्रदेश की जनता समझ चुकी है कि नाहक ही निशंक की साफ छवि को दागदार बनाये जाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। वह अब न तो विपक्ष के ही लच्छेदार भाषणों पर ही विश्वास कर रही है और न ही भाजपा में मौजूद उनके विरोधियों क ी कानाफूसी पर।

Sunday, July 11, 2010

निशंक के नेतृत्व में होंगे 2012 के विधानसभा चुनाव : गडकरी



देहरादून .. राजधानी में शुक्रवार सुबह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी तथा राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक एक साथ पत्रकारों से बातचीत करने पहुंचे तो साफ हो गया कि सब कुछ ठीक ठाक है। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने राज्य सरकार पर लगे आरोपो को खारिज करते हुए न सिर्फ मुख्यमंत्री को क्लीन चिट दी बल्कि उनकी कार्य प्रणाली की भी जमकर सराहना की।
देहरादून पहुंचे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने मुख्यमंत्री बदले जाने की अटकलों पर विराम लगा दिया है। गडकरी ने कहा कि मीडिया निशंक को मुख्यमंत्री पद से हटाने की अफवाह फैला रहा है जबकि पार्टी ने इस तरह का कोई फैसला लेने पर कभी विचार ही नहीं किया। उन्होंने कहा कि निशंक राज्य में सर्वाधिक स्वीकार्य नेता है। उनके नेतृत्व में सरकार तथा संगठन बेहतर काम कर रहा है। गडकरी ने कहा कि उन्होंने मंत्री मण्डल के सदस्यों, विधायकों तथा दायित्वधारियों से अलग-अलग मिलकर बात की है। सभी निशंक के नेतृत्व में सराहनीय कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि निशंक पर कांग्रेस द्वारा लगाये गये आरोप बेबुनियाद है। खुद उन्होंने उन आरोपों की जांच की है। गडकरी ने निशंक के कार्यो की सराहना करते हुए कहा कि उनके कार्यो का लोहा मानते हुए योजना आयोग ने उन्हें एक हजार करोड़ रूपये बोनस तथा राज्य की वार्षिक योजना में 1250 करोड़ रूपये का इजाफा किया है। गडकरी ने कहा कि निशंक के राज में उत्तराखण्ड उतरोत्तर विकास कर रहा है। इसलिये निशंक को बदले जाने का सवाल ही नहीं उठता।

मुगालते में न रहें मंत्री व विधायक, कट सकता है टिकट

देहरादून । जनाक्रोश रैली में शिरकत करने देहरादून पहुंचे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने निशंक मंत्री मंडल की जमकर क्लास ली। गडकरी ने साफ किया कि मंत्री हो या विधायक इस मुगालते में न रहेें कि उनका टिकट पक्का हैै। गुटों में बंटे विधायकों को भी गडकरी ने साफ कर दिया कि गुट नहीं पार्टी के कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देने पर ही टिकट मिल सकता है। उन्होंने यह भी साफ किया कि पांच बार सर्वे करने के बाद पास होने वाले विधायकों और मंत्रियों को ही टिकट दिया जायेगा।
जनाक्रोश रैली को संबोधित करने के बाद राज्य सरकार के मंत्रीमंडल तथा विधायकों से वन टू वन भेंट कर पार्टी के मुखिया ने मंत्रियों तथा विधायकों की कई गलत फहमियां दूर की। गडकरी ने निशंक की टीम को सख्त हिदायत दी कि इस गलत फहमी में न रहे कि उनका टिकट पक्का हैै। पार्टी और जनता के लिए काम करने वाले नेताओं को ही पार्टी टिकट देगी। आकाओं के सहारे टिकट पाने वाले नेताओं को गडकरी ने कहा कि ऐसा करने वाले आकाओं को ही किनारे कर दिया जायेगा। गुटों में बंटें रहने वाले नेताओं के लिए भी गडकरी की क्लास काफी कडक़ रही। गडकरी ने चेताया कि पार्टी की बजाय गुटों में रहने वाले नेताओं पर भी अब गाज गिरेगी। ऐसे नेताओं के खिलाफ पार्टी सख्त कदम उठायेगी। गडकरी ने टिकट पाने के लिए लक्ष्मण रेखा खींचते हुए कहा कि अब टिकट पाने के लिए कई मानकों पर खरा उतरना पडेगा। गडकरी ने मंत्रियों और विधायकों के लिए टिकट पाने की जो शर्त रखी है। उसमें उनकी कार्यप्रगति, कार्यकर्ताओं के प्रति व्यवहार, कार्यप्रणाली, अपने विधानसभा क्षेत्रों में लोक प्रियता, उपस्थिति, पार्टी के प्रति सर्मपण तथा जनता का उनके बारे में धारणा जैसे विषय शामिल है।
पार्टी प्रमुख ने कहा कि मंत्री और विधायकों की कार्य प्रगति पर पांच बार सर्वे करने के बाद ही टिकट दिया जायेगा। इसके लिए सभी सर्वेक्षणों में पास होना जरूरी होगा। मुख्यमंत्री को सहयोग नहीं करने वाले मंत्री और विधायकों को आंखे दिखाते हुए गडकरी ने कहा कि मुख्यमंत्री के मिशन की राह में रोडे अटकाने वाले मंत्री या विधायक को बाहर का रास्ता दिखा दिया जायेगा। गडकरी ने राजनैतिक अस्थिरता का माहौल बनाने वाले पार्टी से जुडे पदाधिकारियों को भी साफ कर दिया कि निशंक अपना कार्यकाल ही पूरा नहीं करेंगे बल्कि 2012 का विधानसभा चुनाव भी उन्हीं के नेतृत्व में लडा जायेगा।