Friday, October 22, 2010

डा-निशंक-बने-उत्तराखण्ड के ‘रेसक्यू मैन‘ मुख्यमंत्री

पीडितों की जान बचाना बनाया अपना मकसद
खराब मौसम का जोखिम लेकर पहुंचाते रहे पीडितों तक
क्षतिग्रस्त मार्ग, मूसलाधार बारिश नहीं बनी पग बाधा

राजेन्द्र जोशी

देहरादून । देश केे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को जैसे मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता है ठीक वैसे ही उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डा0 निशंक को प्रदेशवासी रेसक्यू मैन के रूप में जानने लगे हैं। यह नाम उन्हे मिला प्रदेश में आपदा के दौरान राज्य के प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को उनके गंतव्यों तक पहुंचाने पर, इन क्षेत्रों में आपदा की मार से घायल हुए लोगों को अस्पताल पहुंचाने पर। विगत सौ सालों के इतिहास में पहली बार उŸाराखण्ड में इतनी भीषण तबाही देखी गई। जन, धन लहलहाती फसलें, खेत खलिहान व दुधारू गाय-भैंस पलक झपकते ही प्राकृतिक तांडव की भेंट चढ गए। प्रदेश के अवस्थापन विकास का सारा ढांचा चरमरा गया, हजारों-हजार किलोमीटर सडकें विद्युत लाइन, पेयजल लाइनें ध्वस्त हो गई। विकास की राह में निर्वाध गति से आगे बढते नवोदित राज्य उŸाराखण्ड पर मानों किसी की नजर लग गई। संकट की इस घडी में जब किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था तब प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक की साक्रियता ने दैवीय आपदा से प्रभावित लोगों में एक नव जीवन का संचार किया। मुख्यमंत्री ने जहां एक ही दिन में 6-7 जनपदों का सघन व तूफानी दौरा किया वहीं दुर्गम व क्षतिग्रस्त राहों की बाधाओं को पार करते हुए कई-कई किलोमीटर पैदल चलकर एक नया रिकार्ड भी कायम किया। आज किसी गांव में तबाही की खबर आती तो मुख्यमंत्री उसी क्षण वहां नजर आते। हवाई मार्ग, सडक मार्ग, पैदल जहां जैसे भी तत्काल पहुंचा जा सके मुख्यमंत्री डा. निशंक बिना समय गवांएं पीडित परिवारों के दुख बांटते नजर आए। इस प्राकृतिक आपदा के दुष्प्रभाव को कम करने में डा. निशंक की सक्रियता ने जहां अहम भूमिका निभाई वहीं उनकी त्वरित निर्णयात्मक क्षमता ने मौत के आगोश में समा रहे लोगों को जीवन दान भी दिया। प्रदेश की लगभग सारी सड़कें जगह-जगह क्षतिग्रस्त हो गई थी। प्रभावित इलाकों तक पहुंचना बहुत ही दुश्कर हो चुका था। मौसम किसी भी तरह साथ नहीं दे रहा था।लगातार हो रही झमाझम मूसलाधार बारिश ने पीडितों तक पहुंचने के सारे रास्ते अवरूद्ध कर दिए थे मुख्यमंत्री डा. निशंक ने खराब मौसम की परवाह किए बगैर प्रभावित लोगों तक पहुंचने की यथासंभव कोशिश की इन्हीं कोशिशों के चलते कई बार उनके हेलीकाप्टर को आपातकालीन लैंडिगं भी करनी पड़ी। विपरीत मौसम मंे डा. निशंक ने जान जोखिम में डालकर आपदा पीडितों की आंखों के आसूं पोंछकर उनके दर्द को कम करने की लगातार कोशिश की। आपदा में अपने परिजनों को खो चुके लोगों को ढांढस बाधंते हुए डा. निशंक प्रभावित लोगों के बीच पहुंचते तो कई बार खुद अपने आंसू रोक नहीं पाए लोगों के असहस दुख को देखकर उनकी आंखें छलछला जाती लेकिन तत्समय ही वे अपने आप काबू पाते हुए पीडितों को ढांढस बांधते नजर आए। भीषण तबाही ने जहां कई लोगों का जीवन लील लिया वहीं जिंदा बचे लोगों की उम्मीदें राहत के लिए राज्य सरकार पर टिकी थी, प्रदेश के सह्रदय व संवेदनशील मुख्यमंत्री डा. निशंक ने आपदा की इस घडी में अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया और आपदा पीडितों को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए आपदा ग्रस्त क्षेत्र अल्मोडा, नैनीताल, टिहरी, हरिद्वार, पिथौरागढ, पौडी, चमोली आदि जनपदों के प्रभावित स्थानों का स्थलीय निरीक्षण किया। मुख्यमंत्री निशंक जहां खुद प्रभावित इलाकों का लगातार दौरा करते रहे वहीं उन्होंने सभी जिलाधिकारियों को आपदाग्रस्त क्षेत्रों में हुए नुकसान का आकलन करने व प्रभावितों को राहत व पुनर्वास के कड़े निर्देश दिए। वीडियों कान्फ्रेसिंग के जरिए राहत व पुनर्वास कार्यों की लगातार समीक्षा करते रहे। कपकोट सुमगढ में हुई हदय विदारक तबाही के मंजर ने मुख्यमंत्री डा. निशंक के अन्तस तक को झकझोर दिया उन्होंने स्वयं जहां अपने सार्वजनिक जीवन के इतिहास में इतनी विभत्स व लोमहर्षक घटना उन्होंने पहली बार देखी। रूह कंपा देने वाली इस भीषण आपदा में 18 मासूम बच्चों को अपनी जान गवानी पडी, जिन मासूमांे को दुनियादारी के बारे में अभी कुछ पता ही न था वे जिंदा दफन हो गए। डा. निशंक विपरित व विषम परिस्थितियों में कई किलोमीटर पैदल चलकर घटनास्थल तक पहुंचे और अपने मासूम नौनिहालों को आपदा में खो चुके लोगों के जख्मांे पर मरहम लगाने की कोशिश की। प्राकृतिक आपदा में घायल लोगों को हेलीकाप्टर से देहरादून लाया गया, मुख्यमंत्री जब किसी प्रभावित क्षेत्र में जाते वहां से किसी घायल का जीवन खतरे में देख उसे हेलीकाप्टर में अपने साथ बिठाकर देहरादून ले आते उŸारकाशी जनपद नैटवाड़ के 22 वर्षीय आहाराम, पुरोला के 65 वर्षीय लालचंद, वहीं काण्डियाल गांव के 4 वर्षीय बालक धर्मेन्द्र समेत दर्जनों लोग अन्तिम सांसें गिन रहे थे उन्हें मुख्यमंत्री डा. निशंक ने अपनी सक्रियता के चलते नया जीवन दिया। 18 सितम्बर 2010 को प्रदेश में दैवीय आपदा से हुए भारी नुकसान को देखते हुए मुख्यमंत्री ने तत्काल जिलाधिकारियों और शासन के वरिष्ठ अधिकारियों को राहत और बचाव कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए। 19 सितम्बर 2010 को रविवार होने के बावजूद मुख्यमंत्री सचिवालय पहुंचे और शासन के शीर्ष अधिकारियों के साथ आपातकालीन बैठक की। वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से सभी जिलाधिकारियों के साथ आपात स्थिति की समीक्षा करते रहे। प्रदेश जब प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा था तब मुख्यमंत्री डा. निशंक पल-पल की स्थितियों पर नजर रखे हुए थे वे प्रभावितों तक पहुंचने का यत्न करते रहे शायद ही कोई ऐसा दिन बचा हो जिस दिन उन्होंने कुमाऊं, गढवाल के प्रभावित क्षेत्रों का दौरा न किया हो। अल्मोडा में प्रकृति के कहर को देखकर मुख्यमंत्री अपने आसंू नहीं रोक पाए प्रभावित गांवों का दौरा कर मुख्यमंत्री ने पीडितों के दुख दर्द को साझा करने की कोशिश की। मुख्यमंत्री ने कहा हमारा मकसद हर हाल मंे जीवन को बचाना है। बाड़ी-बाल्टा क्षेत्र में जहां 13 लोग मौत के आगोश में समा गए थे वहां के लोगों से मिलने मुख्यमंत्री पैदल गए और अतिवृष्टि व भूस्खलन से हुई क्षति को देखा गांव वासियों से मुलाकात कर उनका दर्द जाना। अल्मोडा जिले में प्राकृतिक आपदा में 33 से अधिक लोग काल कवलित हो गए थे देवली में 6, बाडी-बाल्टा में 13, पिल्खा में 4, जोस्याणा में 2, नौला मंे 2, असगोली कडा 1, सदीलैण (सल्ट) 1। तिमिला चनौली (भिकियासैण) 1। स्पोंतरा (भिकियासैण) 2। शव मिले, इन गांवों मंे मुख्यमंत्री डा. निशंक ने पैदल जाकर लोगों के असहस दुख में शरीक होने की कोशिश की। कई प्रभावित क्षेत्रों में मुख्यमंत्री स्थानीय जनप्रतिनिधियों से पहले पहुंच गए। टिहरी बांध की झील का जलस्तर 820 मीटर से उपर बिना शासन की अनुमति से भरे जाने पर मुख्यमंत्री ने टीएचडीसी अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई उन्होंने चिन्यालीसौड़ के डूबने के लिए टीएचडीसी अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया। मुख्यमंत्री ने टीएचडीसी के सीएमडी समेत शीर्ष अधिकारियों को सचिवालय स्थित मुख्यमंत्री कार्यालय में तलब कर उनसे पूछा। लोगों की जान पर खेलने की इजाजत टीएचडीसी को किसने दी? 42 वर्ग किमी में फैली विशालकाय टिहरी बांध झील का जलस्तर आर एल 825 तक भरा जिससे भागीरथी घाटी में भारी संख्या में लोगों के खेत, खलिहान, मकान, दुकान आदि को भारी क्षति हुई। मुख्यमंत्री ने पुनर्वास अधिकारियों की गलत सूचना पर उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही के निर्देश दिए। इस प्राकृतिक आपदा में निर्दोष, मासूूूम लोगों को जहां अपनी जान गंवानी पड़ी वहीं हजारों घायलों को तत्काल उपचार देकर मौत के भयावह व विभित्स आंकडों को बढने से रोका गया, मुख्यमंत्री डा. निशंक की सक्रियता, तेजी, त्वरित निर्णयात्मक क्षमता, तीक्षण मेधा से जहां असहाय घायल लोगों को पुनर्जन्म मिला वहीं मुख्यमंत्री के व्यक्तित्व की सह्रदयता संवेदनशील व जोखिमांे से लडने की इच्छा शक्ति ने उन्हें पीडित लोगों को संकट मोचक बना दिया। पीडितों के बहुमूल्य जीवन बचाने का मकसद लेकर मुख्यमंत्री हर सुबह प्रभावित क्षेत्र में जाते और किसी की सांस उखडने से बचा लेते। प्राकृतिक आपदा के तांडव में यह ‘रेसक्यू मैन‘ मुख्यमंत्री अपनी जान की परवाह किए बगैर खराब मौसम व क्षतिग्रस्त सडकों की पग बाधाओं को पार करते हुए पीडितों के बीच पहुंचता रहा।

Saturday, October 9, 2010

विध्वंस से सृजन का संकल्प




उत्तराखण्ड में आई तबाही ने जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। बादल कहर बनकर बरसे। तमाम खेतों को बहा ले गये। मकान जमींदोज हुए। सड़कों के पुश्ते सरक गये-मलबा आने से मार्ग बंद हो गये। पाइप लाइनें टूट गईं। बिजली के खम्भे गिर गये। तराई में आई बाढ़ ने हजारों एकड़ खेत-फसल लील लिया। भारी धन-जन की हानि हुई। पहली बार प्राकृतिक आपदा की त्रासदी प्रदेश के सम्पूर्ण हिस्से में झेलनी पड़ी। बुनियादी जरूरतों की चीत्कार सुनाई दी। बिजली, पानी, संचार, संपर्क, खाद्यान्न, दवाओं का अभाव। प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में लोग मुख्यालय से कट गये। चारों ओर तबाही का मंजर। विपदा से घिरे लोग टापू पर खड़े होकर मदद की गुहार लगा रहे थे। ऐसे कुदरती दुर्दिन में प्रदेश सरकार ने पूरी संजीदगी दिखाई। मुख्यमंत्री ख्ुाद जान जोखिम में डालकर दूर-दराज आपदाग्रस्त क्षेत्रों में पहुंचे। विषम परिस्थियों में भी मुख्यमंत्री राहत एवं बचाव कार्यों की निगरानी करने सभी क्षेत्रों में गये। उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी, विधायकगण, दायित्वधारी एवं अन्य जनप्रतिनिधियों ने भी आपदा की इस घड़ी में अपने-अपने क्षेत्रों में पहुंचकर राहत एवं बचाव कार्यो को और तेजी दी, और शासन एवं प्रशासन के साथ पूरा तालमेल रखकर प्रभावितों को हर सम्भव सहायता पहुंचाने में कर्मठता से जुटे।
लगातार भारी बारिश की वजह से गांव के गांव तबाह हो गये, खेत-खलिहान, सड़क, पानी सभी नष्ट हो गये। ऐसे मेें प्रत्येक उत्तराखण्डवासी को उम्मीद राज्य सरकार से राहत मिलने की थी। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक संवेदनशील हैं। इसी कारण जब प्रदेश में इस प्रकार से दैवीय आपदा आई, तो वे हेलीकाप्टर, मोटर बोट, नाव से और दूर-दराज क्षेत्रों में पैदल चलकर आपदाग्रस्त क्षेत्र में पहुंचे। मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने प्रभावित क्षेत्रों का व्यापक हवाई एवं स्थलीय निरीक्षण कर राहत एवं बचाव कार्यों का जायजा लिया। पीड़ितो से मिलकर आपदा की घड़ी में उनके साथ खड़े रहने का भरोसा दिया। आपदा राहत कार्यों को और तेजी से संचालित कराया।
मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने राज्य की परिस्थितियों एवं दैवीय आपदा को देखते हुए केन्द्र से 21 हजार करोड़ रुपये की सहायता तथा उत्तराखण्ड को आपदाग्रस्त राज्य घोषित करने का अनुरोध किया है, साथ कि राहत कार्यो में सहयोग हेतु सैन्य बलों को भेजने की बात भी कही। भारी वर्षा, बाढ़ एवं भू-स्खलन के कारण राज्य में उत्पन्न हुई विकट स्थिति से नई दिल्ली में भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृहमंत्री श्री लालकृष्ण आड़वाणी, लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमती सुषमा स्वराज ने राज्य के पक्ष को प्रधानमंत्री के समक्ष मजबूती से रखा। मुख्यमंत्री डॉ. निशंक के इन प्रयासों का ही परिणाम है, जो केन्द्र सरकार द्वारा तत्काल 100 एन.डी.आर.एफ. के जवान उत्तराखण्ड के लिए रवाना करने के साथ ही भूस्खलन एवं आपदा में मृत लोगों के परिजनों के लिए एक-एक लाख रुपये तथा घायलों को 50-50 हजार रुपये की सहायता के साथ ही तात्कालिक राहत के तौर पर 500 करोड़ रुपये की धनराशि की भी स्वीकृति दी है।

मुख्यमंत्री ने पूरी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए राज्य स्तर से आपदा राहत राशि में अभूतपूर्व वृद्धि की है। अब दैवीय आपदा में मृत लोगों के परिजनों को 1 लाख रुपये के स्थान पर दो लाख रुपये, अपंगता पर 35 हजार रुपये के स्थान पर 75 हजार रुपये, पूर्ण अपंगता होने पर 50 हजार रुपये की धनराशि को बढ़ाकर 1 लाख रुपये किया गया है। इसके साथ ही गम्भीर चोट के उपचार हेतु पूर्व में अनुमन्य धनराशि साढ़े सात हजार हजार रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये और साधारण चोट के उपचार की धनराशि 2500 रुपये से बढ़ाकर 4 हजार रुपये की गई है। आपदा में पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुए पक्के मकान के लिए पूर्व में दिए जा रहे गृह अनुदान की धनराशि 35 हजार रुपये से बढ़ाकर 50 हजार रुपये, कच्चे मकान हेतु 10 हजार रुपये से बढ़ाकर 15 हजार रुपये तथा अन्य श्रेणी के क्षतिग्रस्त मकानों को दी जाने वाली अनुदान राशि में भी दोगुनी वृद्धि की गई है। इसी तरह से कृषि भूमि में मलवा आ जाने पर प्रति हेक्टेयर राहत राशि 6 हजार रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये, भू-स्खलन एवं नदी के कटाव के कारण भूमि की क्षति पर दी जाने वाली अनुदान राशि 15 हजार रुपये से बढ़ाकर 25 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर तथा अन्य श्रेणी के कृषि अनुदान में भी वृद्धि की गई है। प्रदेश सरकार ने आपदा में होने वाली पशु हानि हेतु दी जाने वाली सहायता राशि को भी बढ़ाया है।
13 अगस्त, 2010 को उत्तरकाशी स्थित भटवाड़ी की मुख्य सड़क 10 मीटर नीचे धंस गयी। स्थानीय बाजार, सड़के, भवन एवं दुकान सभी क्षतिग्रस्त हो गये। मुख्यमंत्री डॉ. निशंक 24 घंटे के अन्दर ही 14 अगस्त, 2010 को खराब मौसम में ही हैलीकाप्टर से चिन्यालीसौड जाकर स्वयं ही भटवाड़ी का पैदल भ्रमण किया। मुख्यमंत्री ने मौके पर ही जिला प्रशासन को निर्देश दिये कि राहत शिविरों में प्रभावितों की समस्याओं का समाधान करें।
16 अगस्त, 2010 को जनपद अल्मोड़ा-नैनीताल बार्डर पर झड़गांव/ पेसिया के पास बस पर मलवा आने के कारण हुई दुर्घटना में 10 लोगों की मौके पर ही मलबे में दबने से हुई मृत्यु का समाचार पाकर सुबह खराब मौसम के बावजूद वे हैलीकाप्टर से झड़गांव पहुंचे और घटनास्थल का मौका मुआयना किया।
19 अगस्त, 2010 को मुम्बई जाने का कार्यक्रम निर्धारित था। सुमगढ़, बागेश्वर के सरस्वती विद्या मंदिर में 18 अगस्त, 2010 को एक अनहोनी घटना हो गयी, जिसमें 18 स्कूली बच्चों की मृत्यु हो गई। इस घटना की खबर से प्रत्येक प्रदेशवासी दुःखी हो गया। ऐसे में प्रदेश के सहृदय मुख्यमंत्री भी अपने आपको रोक न सके और सभी कार्यक्रम निरस्त करते हुए प्रतिकूल मौसम के बावजूद 19 अगस्त, 2010 को रात्रि को देहरादून से रेल के माध्यम से सुमगढ़ के लिए रवाना हुए। अगले दिन काठगोदाम स्टेशन पहुंचे और वहां से सड़क मार्ग से रवाना हुए। 20 अगस्त, 2010 को देर सायं 7 बजे गांव में पहुंचे और 10 बजे रात्रि तक वहीं पर प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया, प्रभावित लोगो से मिले और दुःख की इस घड़ी में उन्हें सांत्वना दी। 20 अगस्त, 2010 को रात्रि 1.30 बजे रात्रि अल्मोड़ा पहुंचे।
20 अगस्त, 2010 की प्रातः ही अल्मोड़ा मंे शक्तिफार्म (ऊधमसिंहनग) में बाढ़ की सूचना मिलते मुख्यमंत्री सड़क मार्ग से प्रातः 6 बजे शक्तिफार्म के लिए रवाना हो गये और शक्तिफार्म पहुंचक कर नाव के माध्यम से प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया।
14 सितम्बर, 2010 को चिन्यालीसौड़ क्षेत्र टिहरी बांध के बढ़ते जल स्तर से डूब गया। साथ ही झील के समीपवर्ती कई अन्य गांवों के भी डूबने का संकट पैदा हो गया था। इसकी सूचना मिलते ही मुख्यमंत्री चिन्यालीसौड पहुंचकर स्थिति का जायजा। मुख्यमंत्री स्वयं मोटर वोट पर बैठक कर भागीरथीपुरम तक आये और बांध से प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण किया। टिहरी झील से हुए नुकसान को देखकर मुख्यमंत्री ने मौके पर ही जिला प्रशासन और टिहरी बांध के अधिकारियों को निर्देश दिये कि राहत एवं बचाव कार्यों के साथ ही पुनर्वास के लिए ठोस कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिये।

18 सितम्बर, 2010 को सूचना मिली की इब्राहिमपुर (रूड़की) में मकान ढहने से एक परिवार के 3 लोगो की मृत्यु हो गयी। मुख्यमंत्री हैलीकाप्टर से रूड़की गये और घ्ज्ञटनास्थल पर प्रभावित परिवार को सांत्वना दी। हरिद्वार में निचले क्षेत्रों में बाढ़ का सर्वे करने के बाद उन्होंने पूरे प्रदेश में रेड अलर्ट जारी करने के निर्देश जारी किये।
19 सितम्बर, 2010 को मुख्यमंत्री स्वयं सचिवालय पहंुचे और शासन के सभी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से सभी जिलाधिकारियों के साथ चर्चा की। मुख्यमंत्री ने जिलाधिकारियों को निर्देश दिये कि वे बचाव एवं राहत कार्यों में तेजी लायें। साथ ही केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री से बांध के बढ़ते जल स्तर पर दूरभाष से चर्चा की तथा केन्द्र से तत्काल एन.आर.डी.एफ. के जवान भेजने का अनुरोध किया। इस पर केन्द्र ने मात्र 10 घंटे के अन्दर ही 19 सितम्बर, 2010 को 3 बजे एन.डी.आर.एफ. का 100 सदस्यीय दल हरिद्वार पहुंच गया।
20 सितम्बर, 2010 को मौसम थोडा साफ होने पर मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने हैलीकाप्टर से टिहरी बांध झील का दौरा कर जलस्तर में हुई बढ़ोतरी व इससे आस-पास के गांवों को हो रहे नुकसान का जायजा लिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार अतिवृष्टि से बेघर हुए लोगों व टिहरी बांध प्रभावितों को हर संभव सहयोग करेगी। टिहरी बांध के बढ़ते जलस्तर से सुरक्षा के सभी प्रबन्ध मुख्यमंत्री ने समय से सुनिश्चित कराये। मुख्यमंत्री ने हरिद्वार जिले के बाढ़ग्रस्त लक्सर क्षेत्र का हेलीकॉप्टर से और हरिद्वार में क्षतिग्रस्त हिल बाईपास व बाढ़ग्रस्त सतीघाट का निरीक्षण सड़क मार्ग से किया। इसके बाद अल्मोड़ा जिले में मुख्यमंत्री सेना के हैलीपैड से सीधे पपरसली गए और फिर पैदल बाड़ी (बल्टा) के उस स्थान पर पहुंचे, जहां वर्षा के कहर ने तीन परिवारों का नामोनिशान मिटा दिया है। उन्होंने प्रभावित परिवारों के नाते-रिश्तेदारों से मुलाकात कर उन्हें सांत्वना दी। मुख्यमंत्री ने देवली, पिल्खा, लमगड़ा व अन्य प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण किया। इसके अगले दिन मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने नैनीताल जनपद का भी भ्रमण किया और सूखाताल प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया। उन्होंने आपदाग्रस्त क्षेत्रों में न्याय पंचायत स्तर पर उपजिलाधिकारी व जिलाधिकारी को कैम्प कर राहत कार्यो में तेजी लाने की व्यवस्था भी दुरुस्त कराई।
मुख्यमंत्री डॉ. निशंक के इस दौरे से प्रभावित क्षेत्र के लोगों ने काफी राहत महसूस की। उन्हें इससे काफी सन्तुष्टि मिली कि उनकी समस्याओं को जानने के लिए मुख्यमंत्री स्वयं पैदल चलकर उनके पास आये है। मुख्यमंत्री डॉ. निशंक भ्रमण के दौरान अल्मोड़ा और अन्य प्रभावित क्षेत्रों के लोगो से व्यक्तिगत रूप से मिले और उन्हें ढांढस बंधाया लोगो में आशा जगी, साथ ही जिला प्रशासन भी हरकत में आया और प्रभावितों को तत्काल सहायता पहुंचाने में और तेजी आयी। राहत एवं बचाव कार्यों के लिए पंतनगर और देहरादून में एक-एक एम.आई-17 तथा चेतक हैलीकाप्टर की भी व्यवस्था सुनिश्चित कराई गई, जिनके द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री पहुंचाने के साथ ही लोगों को सुरक्षित निकालने का कार्य कराया जा रहा है। हैलिकाप्टरों द्वारा प्रदेश के कई इलाकों में फंसे हुए विदेशी पर्यटकों को भी सुरक्षित देहरादून लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया गया। मुख्यमंत्री भी अपने दौरों के दौरान प्रदेश के कई इलाकों से बीमार लोगों को हैलीकाप्टर से देहरादून लाए और उनको बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई।
मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने 24 सितम्बर, 2010 को पौड़ी जनपद के थलीसैण, पाबो, पैठाणी और सांकरसैण क्षेत्रों का दौरा किया तथा प्रभावित लोगो से मुलाकात की। इसके बाद जनपद पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और पौड़ी जनपदों के प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। पिथौरागढ़ के मुनस्यारी के सीमांत गांव जिमिया क्वीरी पहंुचने पर मुख्यमंत्री ने स्थलीय निरीक्षण तथा स्थानीय लोगो और स्कूली बच्चों से बातचीत की। दैवीय आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में बीमार लोगों को हैलीकॉप्टर से देहरादून लाने की व्यवस्था की गई।
25 सितम्बर, 2010 को उत्तरकाशी-यमुनोत्री क्षेत्र में बड़कोट तथा नौगांव में प्रभावित लोगो से मुलाकात की। इसके बाद खरसाली व पुरोला में मुख्यमंत्री लोगो से मिले तथा उनकी समस्याओं को सुना। पुरोला में मलबे में दबे होने से घायल एक नवयुवक, जिसका मार्ग अवरूद्ध होने के कारण उपचार नही हो पा रहा है, उसे मुख्यमंत्री स्वयं अपने साथ हैलीकाप्टर से देहरादून लाये।
उत्तरकाशी जनपद के नैटवार से 22 वर्षीय आशाराम, पुरोला से 65 वर्षीय लालचंद तथा पुरोला के ही ग्राम कण्डियाल से गम्भीर रूप से बीमार 4 वर्षीय बालक धर्मेन्द्र को हेलीकाप्टर से देहरादून पहुंचाया गया। जहां उन्हें उपचार के लिए दून चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। बड़कोट में राहत सामग्री लेकर गये हैलीकॉप्टर द्वारा 13 लोगों को देहरादून पहुंचाया गया, जिनमें सात फ्रान्सीसी पर्यटक है। इसके साथ ही अन्य लोगों में एक गर्भवती महिला और एक बीमार बच्चा भी सम्मिलित है। पुरोला से सात लोगों को और चिन्यालीसौढ़ से 22 लोगों को हैलीकाप्टर से सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया है। मानसरोवर यात्रा के 16वें समूह के 31 पुरुष एवं छः महिला समेत कुल 37 यात्रियों को गुन्जी से धारचूला पहुंचाया गया। गुन्जी में फंसे कैलाश मानसरोवर यात्रा के 37 यात्रियों को वायु सेना के एमआई-17 हैलीकॉप्टर द्वारा तीन चक्रों में सुरक्षित धारचूला तक लाया गया है।
सड़क बंद होने के कारण नौकाओं द्वारा भी सैकड़ों यात्रियों एवं स्थानीय लोगों को उनके गन्तव्य स्थलों तक पहुॅचाया गया। मुख्यमंत्री के निर्देश पर चिन्यालीसौढ़ में चार अतिरिक्त नौकाएं लगा दी गई है और प्रारम्भिक चरण में लगभग 80 लोगों को सुरक्षित स्थान पर लाया गया है। मुख्यमंत्री ने जनपद चमोली के नारायणबगड़ विकास खण्ड के अन्तर्गत हरमनी और त्यौला गांव तथा जनपद देहरादून के अतिवृष्टि प्रभावित डोईवाला क्षेत्र के दुधली ग्राम पंचायत तथा उसके निकटवर्ती गांवों खट्टा पानी, कैमूरी तथा सिमलास ग्रांट में कई किलोमीटर पैदल भ्रमण कर राहत एवं बचाव कार्यों का जायजा लिया।
दैवीय आपदा पर किसी का बस नहीं। लेकिन आपदा आने पर जिस तरह से प्रदेश सरकार ने अपनी सहृदयता दिखाई, वह सराहनीय है। सरकार ने प्रशासनतंत्र को सक्रिय किया। अधिकारीगण दुर्गम क्षेत्रों में भी दिन-रात राहत एवं बचाव कार्य में लगे रहे। मंत्रीगण प्रभावित क्षेत्रों में दौरा कर पीड़ितों के आंसू पोंछे, राहत कार्य को तेज किया। सूबे के मुखिया खुद राहत और बचाव कार्यो की निगरानी करते रहे। इसी का फल है कि धीरे-धाीरे सभी बंद सड़के खोली जा रही हैं, धीरे-धीरे जन-जीवन सामान्य हो रहा है। लोग बिपदा की घड़ी से उबर कर राहत की सांस ले रहें हैं। और प्रदेश सरकार द्वारा युद्ध स्तर पर त्वरित गति से किये गए राहत एवं बचाव कार्यो की सराहना कर रहे हैं।




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हजारों लोगो की बचाई जान
25 सितम्बर, 2010
पश्चिम बंगाल के 9 तीर्थ यात्रियों को बड़कोट से सुरक्षित निकाला गया।
गुजरात के 15 तीर्थ यात्रियों को चिन्यालीसौड से देहरादून पहुंचाया गया।
ब्राजील के 28 पर्यटकों को उत्तरकाशी से देहरादून पहुंचाया गया।
गुंजी में फंसे कैलाश मानसरोवर यात्रा के 37 तीर्थयात्रियों को धारचूला तक लाया गया।
बड़कोट में फंसे 13 लोगो को दून लाया गया।
पुरोला से 7 तथा तमिलनाडू, केरला, गुजरात के 22 तीर्थ यात्रियों को चिन्यालीसौढ़ से टिहरी पहुंचाया गया।
26 सितम्बर, 2010
चिन्यालीसौड से उत्तरकाशी तक 48 लोगों को लाया।
नेपाल, भूटान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, सिक्किम, गुजरात, झारखण्ड, राजस्थान, पश्चिम बंगाल के 469 तीर्थयात्रियों को बचाया गया।
प्रतापनगर के भेगवो गांव से कोटी तक 04 बीमार लोगों को बचाया गया।


27 सितम्बर, 2010
गुंजी में फंसे मीडिया के 5 लोगो को धारचूला तथा 3 लोगों को हल्द्वानी सुशीला तिवारी चिकित्सालय पहुंचाया गया।
मरतोली में फंसे 01 व्यक्ति को मुनस्यारी लाया गया।


29 सितम्बर, 2010
उत्तरकाशी से धूमधारीकंडी में पर्वतारोहण के 6 लोगांे को उत्तरकाशी पहुंचाया गया।