आखिर निशंक की नीयत पर सवाल क्यों ?
भाजपा के ‘‘नीलकंठ’’ हैं निशंक
देहरादून । प्रदेश के मुख्यमंत्री की तुलना यदि शिव से की जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जिस तरह भगवान शिव ने विश्व कल्याण तथा देवताओं को राक्षसों से बचाने के लिए विषपान कर नीलकंठ कहलाए ठीक उसी तरह निशंक ने पूर्व मुख्यमंत्री खंण्डूड़ी सहित भाजपा संगठन के तमाम अपयशों को अपने उपर लेकर शिवजी जैसा ही काम कर दिया है।
प्रदेश में भले ही आजकल राजनीतिक दलों के साथ ही प्रदेश में काबिज भाजपा सरकार में शामिल कुछ लोग निशंक को ही कसूरवार मानते हों लेकिन इन सभी मामलों की गहरायी से छानबीन की जाय तो उन पर जितने भी आरोप लगाये जा रहे हैं वे सभी कार्य उनके अपने कार्यकाल के तो नहीं हैं बल्कि ये तो पूर्व मुख्यमंत्री खंण्डूड़ी के कार्यकाल के थे। भाजपा का ही एक वर्ग का मानना है कि यदि निशंक ये कार्य नहीं करते तो उन्हे प्रदेश की सत्ता से दूर किये गये पूर्व मुख्यमंत्री की नाराजगी झेलनी पड़ती। चर्चाओं पर यदि भरोसा किया जाय तो मामला चाहे जलविद्युत परियोजनाओं के आवंटन का हो अथवा स्टर्डिया मामले का ये दोनों ही मामले पूर्व मुख्यमंत्री के शासन काल के थे जिन्हे वे सत्ता में रहते हुए पूरा नहीं कर पाये। सबसे पहले उत्तराखंण्ड में बनने वाली जलविद्युत परियोजनाओं के मामले को ही लें तो इस मामले में सेल्फआईडेंटीफाईड परियोजनाओं के लिए खंण्डूड़ी सरकार ने ही प्रदेश की ऊर्जा नीति व विज्ञापन जारी किया था। इसमें देशभर से लगभग 757 लोगों ने आवेदन किया जिसमें से 56 परियोजनाओं को खंण्डूड़ी सरकार ने ही अंतिम रूप से स्वीकार किया था इतने में पूर्व मुख्यमंत्री खंण्डूड़ी की कुर्सी जाती रही और इस पर सिर्फ मुहर निशंक सरकार से लगाने की बात थी, इस समूचे प्रकरण में प्रदेश में काबिज अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में रही है जिसमें सबसे ज्यादा विवादास्पद जलविद्युत निगम के पूर्व सीएमडी योगेन्द्र प्रसाद रहे। जिन्हे निशंक सरकार द्वारा मामले के संज्ञान में आते ही हटाया जा चुका है। वहीं ऊर्जा विभाग का कार्य देख रहे एक प्रमुख सचिव को भी प्रदेश से बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। इतना ही नहीं निशंक सरकार ने इस समूचे प्रकरण पर उठ रही उंगलियों को देखते हुए कठोर प्रशासनिक क्षमता का परिचय देते हुए समूचे मामले को ही रद्द कर दिया है।
जहां तक ऋषिकेश के चर्चित स्टर्डिया फैक्ट्री का मामला है इस मामले में भी पूर्व खंण्डूड़ी सरकार ही कठघरे में दिखायी देती है। यह समूचे प्रकरण में पूर्व मुख्यमंत्री तथा भाजपा के ही एक प्रदेश सह प्रभारी की भूमिका प्रथम दृष्टया सामने आयी है। चर्चा है कि यह समूचा प्रकरण भी राजनीति से प्रेरित बताया गया है। जहां तक वर्तमान मुख्यमंत्री के इस मामले में हस्तक्षेप की बात की जाय उन्होने इस मामले के संज्ञान में आते ही निर्माण कार्य पर रोक लगाने के आदेश काफी पहले ही जारी कर दिये हैं। जिस पर शासन ने अमल करा दिया है।
जहां तक इन मामलों में प्रदेश मुखिया निशंक की बात की जाय तो यह लगभग साफ सा है कि उनका इन दोनों मामलों से कोई लेना देना नहीं रहा। यदि विपक्ष के आरोपों पर विश्वास भी किया जाय तो वर्तमान मुख्यमंत्री इन मामलों में लिप्त भी होते तो वे क्यों इन मामलों पर इतना कठोर कदम उठाते हुए इन्हे रद्द तक करने जैसे कदम उठाते। इन प्रकरणों को देखने से तो प्रदेश की जनता समझ चुकी है कि नाहक ही निशंक की साफ छवि को दागदार बनाये जाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। वह अब न तो विपक्ष के ही लच्छेदार भाषणों पर ही विश्वास कर रही है और न ही भाजपा में मौजूद उनके विरोधियों क ी कानाफूसी पर।
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