Wednesday, November 19, 2008

हिन्दू आतंकवाद का अस्तित्व साबित करने का अभियान

पटकथा जैसा परीक्षण: डा. दिलीप अग्निहोत्रीं  
मालेगांव बम विस्फोट की सच्चाई तक पहुंचने के लिए निष्पक्ष जाॅंच की आवष्यकता है, लेकिन आतंकी मसले पर सरकार की इतनी सक्रियता प्रथम दृष्टया संदेह उत्पन्न करती है। केन्द्र की संप्रग सरकार हो या महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार आतंकवाद के खिलाफ ऐसी तेजी तेजी दिखलाना तो इनकी फितरत नहीं थी। इनके कार्यकाल में आतंकी हमलों का अंतहीन सिलसिला चलता रहा, बार-बार दोहराने के बाद भी इसके कठोर कदमों को उठते कभी नहीं देखा गया। यहां तक कि संदिग्धों से ज्यादा पूॅछताछ भी इन्हें मंजूर नहीं थी, वर्ग विषेष पर कोई संदेह ना करे इसलिए संदिग्धों के प्रति बहुत उदारता का व्यवहार किया गया। जिसे सर्वाेच्च न्यायालय ने बेगुनाहों की हत्या में शामिल होने मौत की सजा दी, वह धर्मनिरपेक्षता की प्रतीक बनकर प्रतिष्ठित है, आसाम, बंगाल में विदेषी इस्लामी आतंकी गिरफ्तार किए गए, लेकिन पुलिस बलों ने पता नहीं किस दबाव में सामान्य तहकीकात भी नहीं की और वह मुक्त कर दिऐ गए। सैकड़ों विस्फोेट हजारों निदोष व्यक्तियों की मौत के बाद भी आज तक किसी संदिग्ध आरोपी का नार्को टेस्ट नहीं लिया गया। उनके लिए यह आष्वासन पूरी दृढ़ता से अमल में था कि पोटा नहीं लगाया जाऐगा। मालेगाॅव विस्फोट में साध्वी प्रज्ञा का नाम आने पर सरकार नींद से जागी, उसके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं था, लेकिन सरकार व जाॅच एजेन्सियो के अस्वभाविक तौर तरीकों से यह संदेष दिया गया कि देष हिन्दू आतंकवाद की चपेट में है। हिन्दू धर्म का उदय कब हुआ, इसका समय कोई नहीं बता सकता, लेकिन पहली बार हिन्दू आतंकवाद शब्द सुनाई पड़ा। जबकि विषाल हिन्दू मान्यताओं में जिहाद जैसी कोई कल्पना नहीं की गई। लेकिन बिडम्बना यह है कि हिन्दू आतंकवाद का अस्तित्व साबित करने का अभियान चलाया जा रहा है। अन्यथा साध्वी का नारको टेस्ट आदि कराने का फैसला क्यों लिया जाता। यह भी संयोग था कि जिस समय साध्वी और उनसे किसी भी रुप में परिचित लोगों के नारकोटेस्ट का सिलसिला चल रहा था, उसी समाय लखनऊ में आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यषाला में ओहियो (अमेरिका) में कार्यरत डा. आ.के.मिश्र ने दावे के साथ कह रहे थे कि नारको टेस्ट यातना और नाटक के अलावा कुछ नहीं है। यह वैज्ञानिक व कानूनी नहीं है। यदि परीक्षण सुनिष्चित विज्ञान पर आधारित नहीं हैं। यदि परीक्षण सुनिष्चित विज्ञान पर आधारित नहीं है, तब निष्कर्ष नहीं दिया जाना चाहिए। केवल अनुमान के के आधार पर चलने वाले नारकोटेस्ट से इस प्रकार निष्कर्ष निकाले व सार्वजनिक किये जाते है, जैसे यही पूर्ण व अंतिम सच है। यह कितना वैज्ञानिक है, वह साध्वी मामले में देखा जा सकता है, चार बार उनका नारकोटेस्ट हुआ, उसमें कोई भी तथ्य नहीं मिला। इसका वैज्ञानिक कारण यह बताया गया कि उनकी योगषक्ति के सामने यह तकनीक काम नहीं कर रही है। इस आधार पर तो योगषक्ति होने पर अलग-अलग परिणाम दिखाई देंगे। साध्वी प्रज्ञा के आवास में तलाषी के दौरान भी कुछ नहीं मिला था। केवल संदेह के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया कि वही मालेगांव विस्फोट की मास्टर माइंड थी। विस्फोट के लिए आर.डी.एक्स कहाॅं से मिला ? तब सैन्य अधिकारी पर संदेह हुआ, संदेह का आधार यह था कि वह साध्वी को जानता था। फिर क्या था यह श्रंृखला आगे बढ़ी यह सैन्य अधिकारी दूसरे पूर्व सैन्य अधिकारी से परिचित था, इस आधार पर यह भी संदिग्ध आतंकी बताया गया। सैन्य अधिकारी के तीन दिनों तक चले नारको व अन्य टेस्टो से कोई ठोस जानकारी नहीं मिला, लेकिन साध्वी की जगह ले. कर्नल पुरोहित को मालेगाॅंव विस्फोट का मास्टर माइंड घोषित कर दिया गया। फिर एक अन्य धर्मगुरु को मास्टर माइंड बताया गया। कहा गया कि उनका ‘सनसनीखेज’ वीडियो है, जिसमें वह देष को तोड़ने, नफरत फैलाने की बात कर रहे हैं। यदि जम्मू-कष्मीर के हिन्दुओं की त्रासदी बयान करने से ऐसे आरोप लगते हैं, तो यह मानना पड़ेगा कि वह पाकिस्तान के समर्थन में नारे बुलंद करने वाले देष की एकता-अखण्डता मजबूत करने और सौहार्द फैलाने का काम कर रहे हैं। आयुषी तलवार मामले में पुलिस और इलेक्ट्रानिक मीडिया की भूमिका को याद कीजिए, निष्कर्ष इनके पास पहले से मौजूद था, केवल फिल्मी अंदाज में कहानी व पटकथा का संयोजन किया जा रहा था। इलेक्ट्रानिक मीडिया के संवाददाता हवा में तीर चलाते जासूस की मानंद चीख-चीख कर खुलासा करने का दावा कर रहे थे। वहीं पुलिस ने इनकी मेहनत भी नहीं की, पुलिस महानिरीक्षक जैसा महत्वपूर्ण व वरिष्ठ अधिकारी इस प्रकार बयान दे रहा था, जैसे आॅंखों देखी तस्वीर सामने ला रहे हैं। गमो के बोझ में दबा वह पिता शायद कुछ कहने की स्थिति में नहीं था और जिस बच्ची पर आरोप लगाया गया वह अपनी बात कहने के लिए दुनिया में मौजूद नहीं थी। पता नहीं उक्त आई.जी. ने अपने लंबे कैरियर में कितनी घटनाओं की जाॅंच की होगी ? इस प्रकरण को साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी से जोड़कर देखिए। यहां भी केवल शक है कि मालेगांव बम बिस्फोट में उनका हाथ था। ये बात अलग है कि इस शक को को कोई आधार फिलहाल नहीं है। लेकिन महाराष्ट्र पुलिस और कई इलेक्ट्रानिक चैनल निष्कर्ष निकाल चुके है। कहाॅं-कब आतंकी प्रषिक्षण षिविर चला फिर कैसे बमविस्फोट को अंजाम दिया गया, इसकी पूरी कहानी तैयार है। साध्वी प्रज्ञा के आवास पर छापा मारा गया, प्रायः सभी सामान ऐसा ही था जो किसी हिन्दू साध्वी के पास हो सकता है, लेकिन आतंकी सरगना बताने के शक का क्या किया जाय ? एक इलेक्ट्रानिक चैनल ने आपत्तिजनक वस्तु बरामद होने का खुलासा किया, वह था कुछ समाचार पत्रों की कटिंग व जिसमें हिंसक घटनाओं की चर्चा थी। क्या यह बताने की कोषिष की जा रही थी कि अखबारों की चंद कतरनें उन्हें आतंकी साबित करने का पुख्ता आधार है। साध्वी प्रज्ञा पहले विद्यार्थी परिषद् की सदस्य थी, भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह व मध्य प्रदेष के भाजपा मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान के साथ वह फोटों में दिखाई दे रही है- यह आतंकी होने का प्रमाण है ? एक सैन्य अधिकारी को वह जानती थी, वह सैन्य अधिकारी दूसरे अवकाष प्राप्त सैन्य अधिकारी को पिछले दस वर्ष से जानता था, इसलिए मालेगांव विस्फोट में प्रज्ञा का हाथ था ? जाहिर है कि इस मामले में भी निष्कर्ष तैयार है, कथानक के सूत्र जोड़ने के प्रयास किये जा रहे हैं। वहीं अनेक नेता निष्कर्ष निकालने में ज्यादा आगे निकल गये, उन्होंने हिन्दुवादी संगठनों को आतंकी करार देते हुए उन पर प्रतिबंध लगाने की मांग शुरू की है। पुलिस के शक की सूई भी अपना काम कर रही है, पहले सैन्य अधिकारियों की तरफ घूमी फिर माले गांव में प्रयुक्त आर.डी.एक्स. की बात चली तो स्वभाविक रुप से शक की सूई सेना के आयुध भण्डार की तरफ घूम गई। जबकि विष्वस्त सूत्रों के अनुसार आर.डी.एक्स. सेना का ‘सर्विस गोला बारुद’ है ही नहीं ऐसे में सैन्य डिपो से आर.डी.एक्स. की बात में ज्यादा दम नहीं है। तहकीकात के नाम पर एटीएस के सभी कदम संदेह के आधार पर उठ रहे हैं। इस आधार पर हिन्दू आतंकवादी कल्पना करने वाले, संरक्षण देने वाले, टेªनिंग देने वाले तथा बम रखने वाले सभी पर एटीएस का संदेह दूर करने का दारोमदार है। बकौल पुलिस इतने सुनियोजित ढ़ंग से हिन्दुआतंकवाद ने मालेगांव को निषाना बनाया, जिससे छः लोग मारे गए थे। इस मामले पर महाराष्ट्र पुलिस की सक्रियता आष्चर्यजनक। अभी वह संदेह के आधार पर कहां-कहां पहुंचेगी, कहा नहीं जा सकता, लेकिन संदेह तो यह हो रहा है जैसे महाराष्ट्र सरकार ने हिन्दू आतंकवाद के मद्देनजर की ‘महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रक अधिनियम’ (मकोका) बनाया था। इसमें संदिग्ध आरोपी को छः महीने तक कैद में रखा जा सकता है। पोटा जैसे कानून को हटाने वाली सप्रंग सरकार ने महाराष्ट्र को मकोका लागू करने पर सहमति दी, और मालेगांव भी महाराष्ट्र में है, क्या यह केवल संयोग है।

4 comments:

Bhushan said...

aapke vishleshan ka bahot abhaar, ye kalushit vichaardhara ke log itne gair zimmedaar hain ki sena ka manobal todne mein inhein lesh matr bhi sankoch nahi hai, jai bharat !!!!

Unknown said...

यह तो पहले से ही लग रहा था, असल में कांग्रेस अपने सबसे भीषण समय से गुजर रही है, अपना अस्तित्व बचाने के लिये उसे ऐसे ही "मास्टर स्ट्रोक" की जरुरत थी, अब देखिये एक ही स्ट्रोक में सारे हिन्दू संगठन बैकफ़ुट पर चले गये, यहाँ तक कि अब तो बुखारी भी कहने लगे कि मुम्बई के विस्फ़ोट भी "हिन्दू आतंकवादियों" ने किये होंगे… यानी सूप बोले तो बोले, छलनी भी बोले जिसमें हजार छेद…

Unknown said...

यह सब एक षड़यंत्र का हिस्सा है - हिन्दुओं को यह बताया जा रहा है कि हम जब चाहें, कुछ हिंदू जयचंदों की मदद से, तुम्हें आतंकवादी साबित कर सकते हैं.

Gyan Darpan said...

यह सब एक षड़यंत्र का हिस्सा है