Thursday, November 27, 2008

आतंकवाद पर ओछी राजनीति निंदनीय

राजेन्द्र जोशी
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में बुधवार की रात आतंकवाद का जो तांडव देखने को मिला, उसके बाद तो राजनेताओं और नौकरशाहों के सिर शर्म से झुक जाने चाहिए। लेकिन आज फिर वही खोखली राजनीति से प्रेरित बयानबाजी ही सामने आई। देश में आतंकी हमले होते हैं हमले में कई बेगुनाह मारे जाते हैं । मरने वालों के परिजनों को मुआवजा देकर सरकार फोर्मेलिटी निभा देती है । विस्फोटों की जांच के लिए जांच एजेंसियां गठित कर दी जाती हैं और जब तक ये जांच एजेंसियां जांच करती है । कई और धमाके हो जाते हैं । सभी घटनाओं के बाद प्रारंभ की गईं जांचें या तो कभी पूरी नहीं हुईं या फिर वे असली अपराधियों की गर्दन तक पहुंचने के बजाए निरपराध लोगों की धरपकड़ करने, उन्हें कानूनी पेचीदिगियों में उलझाने या उन्हें परेशान करने तक सीमित होकर रह गईं। अगर कोई असली अपराधी पकडा भी गया तो बजाये उसे कड़ी से कड़ी सज़ा देने के उस पर राजनीती शुरू हो जाती है । जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण है अफज़़ल गुरू । इतने सालों की आतंकी यातनाओं के बाद भी केंद्र सरकार अपने खुफिया तंत्र भौतिक और तकनीकी रूप से मजबूत करने का काम तो कर ही सकती थी ताकि भले ही आतंकवादियों के नापाक मंसूबों को पूरी तरह रोका नहीं भी जा सके लेकिन कम से कम इन पर इतना अंकुश तो लगे के आम आदमी को इतना भरोसा हो कि सरकारें आतंकवाद के खिलाफ सक्रिय रूप से काम कर रहीं हैं । पिछले दो सालों में देश के अलग अलग शहरों में आतंकवादी एक के बाद एक विस्फोट कर रहे हैं और सैकड़ों लोगों की जानें बेवजह जा रही हैं कई घर उजड़ जाते हैं । कितनी गोदें सूनी हो जाती हैं पर किसी के पास इन्हें रोकने या कम करने का कोई उपाय नहीं है। हर हमले के बाद सता के गलियारों में बैठे नेता मीडिया के समक्ष मरने वालों के परिजनों के लिए अपनी सांत्वना व्यक्त करते हैं और खोखली राजनीती से प्रेरित मुआवजे की घोषणा करते हैं । घटना स्थल के दौरों और आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है केंद्र और राज्य सरकारें एक दूसरे की नाकामी पर बयानबाजी करते नजऱ आते हैं । लेकिन इन बयानों से आतंकवाद के खिलाफ कोई भी कार्यवाही कर पाने में नेता स्वयं को ही असमर्थ सिद्ध करते हैं । आतंकी वारदात के बाद विपक्ष केंद्र सरकार पर असमर्थता के आरोप लगाता है और केंद्र सरकार निराशा में पैर पटकती नजर आती है। इतना ही नहीं दोनों ही अपने मुह मियाँ मि_ू बनने की कोशित में लगे रहते हैं और यहाँ कहने में जऱा भी शर्म महसूस नहीं करते कि आतंकवाद के खिलाफ सफलतापूर्वक कार्रवाई उन्हीं के द्वारा की गई है। देश के हर नागरिक को हर तरह की हिंसा और अन्याय से संरक्षण मिलने का अधिकार है । लेकिन केंद्र और राज्य सरकारें आतंकवाद से निपटने में पूरी तरह से नपुंसक साबित हो रही हैं। आज आम आदमी की सबसे बड़ी चिंता स्वयं और अपने परिजनों की सुरक्षा को लेकर है। विकास तो दूर की बात है । आज कोई भी व्यक्ति विश्वास से यह कह पाने में कतराता है कि सुबह घर से निकलने के बाद शाम को वह सही सलामत घर पहुँच भी जायेगा या नहीं । आतंकवादी धर्म के नाम पर देश की फिजा बिगाडऩे को तुले हुए हैं दूसरी और हमारे देश के नेतागण धर्म और जात के नाम पर राजनीति करने ने नहीं चूक रहे। देश पहले ही धर्मवाद और क्षेत्रवाद के आतंरिक कलह से जूझ रहा है । ऐसे में अगर राजनेता अपनी खोखली राजनीति से बाज नहीं आते और इसी तरह से शासन चलाते हैं तो वे भारत को एक सूत्र में नहीं पिरो सकते । और उसे विकास की राह पर नहीं ले जा सकते । आज समय की जरूरत है कि सरकार और विपक्ष दोनों वक्त की नजाकत को समझें और राज्य सरकारों से बेहतर तालमेल बना राजनीति से परे कुशल शासन दे । जिसकी देश की जनता आशा रखती है

2 comments:

Anonymous said...

kitni sach baat kahi aapne ki ham apne ghar se nikalte hai to wapsi ki koi garanti nahi. vote parast sarkaar se ham kyaa ummid kare

कामोद Kaamod said...

yahi to rajniti hai janab. dore dore aur dore. sok samvedna aur fir rajnitik dosaropan ka kaam ...