Saturday, December 27, 2008

राजधानी में भी हुआ तेलगी प्रकरण, प्रशासन तथा पुलिस बनी मूक दर्शक फर्जी स्टाम्प पेपरों पर हो रहे हैं पंजीकरण

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उत्तराखण्ड में एक और तेलगी प्रकरण प्रकाश में तब आया जब एक कृषि भूमि के पजींकरण विवाद क ी अदालती सुनवाई हुई। पंजीकरण में प्रयोग हुए हजारों रूपए के स्टाम्प पेपर फर्जी पाए गए हैं। वहीं मामले की पुलिस जांच को एक भाजपा नेता द्वारा भी प्रभावित किए जाने की जानकारी अधिकारिक सूत्रों ने दी है। उल्लेखनीय है कि बीती 24 फरवरी 2004 को रेसकोर्स निवासी रवि मित्तल पुत्र गोवर्धन दत्त ने राजेन्द्र सिंह विष्टï,राहुल अहलुवालिया तथा चन्द्र शेखर ममगांई के नाम नवादा क्षेत्र में 0.4211 हेक्टेयर भूमि का पंजीकरण कराया गया। यह मामला तब प्रकाश में आया जब सूरजभान, निवासी लुनिया मोहल्ला ने भी इसी भूमि को 20 फरवरी 2004 को रवि मित्तल से पूर्व में ही खरीदने का दावा कर डाला। उन्होने अपनी शिकायत में यह कहा कि उपरोक्त तीनों खरीदार राजेन्द्र सिंह विष्टï,राहुल अहलुवालिया तथा चन्द्र शेखर ममगांई ने उक्त भूमि का पंजीकरण फर्जी तरीके से कराया है। इस सम्बध में सूरजभान ने मामले की तह तक जाने की मंशा से सूचना के अधिकार के तहत कोषागार से पंजीकरण में प्रयोग हुए स्टाम्प के बारे में जानकारी चाही। इस मामले में जिला मुख्य कोषाधिकारी द्वारा 4 अक्टूवर 2008 को दी अधिकृत जानकारी में सनसनीखेज खुलासा करते हुए बताया कि उक्त तीनों व्यक्तियों जोकि पेशे से प्रापर्टी का धंधा करते हैं, को कोषागार देहरादून से 12 फरवरी 2004 को पांच सौ रूपए के कोई भी स्टाम्प पेपर नहीं दिए गए। उन्होने यह भी बताया कि इस दिन कोषागार से सिर्फ अन्य व्यक्तियों को 20 -20 हजार रूपए मूल्य के स्टाम्प पेपर निर्गत किए गए थे। हैरानी की बात तो यह है कि इन प्रापर्टी डीलरों द्वारा पंजीकरण के निबंधन में प्रयोग किए गए पांच-पांच सौ रूपए के 35 हजार रूपए मूल्य के स्टाम्प पेपर के उपर 12 फरवरी 2004 की मुहर लगी पायी गयी। जोकि कहीं भी कोषागार के अभिलेखों से मेल नहीं खा रहे हैं। स्टेम्प पेपरों के मामले में हुए फर्जीवाड़े के प्रकाश में आने के बाद शिकायतकर्ता सूरजभान ने जिलाधिकारी देहरादून को इस प्रकरण की बारीकी से जांच तथा दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही की शिकायत की। मामले का संज्ञान लेने हुए जिलाधिकारी देहरादून ने इस समूचे प्रकरण की जांच अतिरिक्त जिलाधिकारी वित्त विनोद कुमार सुमन को सौंप दी। मामले की जांच के बाद अतिरिक्त जिलाधिकारी ने अपनी जांच रिपोर्ट में मामले की पुष्टिï करते हुए कहा कि 12 फरवरी 2004 को सीधे कोषागार से स्टाम्प पेपर विक्रय नहीं किए गए। उन्होने जिलाधिकारी को प्रेषित इस जांच रिपोर्ट में कहा कि इसके विपरीत उप निबंधक के समक्ष पंजीकरण हेतु स्टाम्प पेपर कोषागार से निर्गत् हुए दर्शाए गए हैं। यह फर्जीवाड़ा यहीं समाप्त नहीं होता। जांच रिपोर्ट में इन स्टाम्प पेपरों के अलावा पंजीकरण में लगाए गए 44 हजार रूपए मूल्य के अन्य स्टाम्प पेपर भी प्रश्र चिन्ह लगा है। रिपोर्ट के अनुसार चार स्टाम्प पेपर विके्रता रमेश्वर दास, विपुल रस्तोगी , हेमन्त कुमार तथा डी आर बजाज द्वारा क्रय किए इन स्टाम्प पेपरों का कोई रिकार्ड भी जांच अधिकारी को नहीं मिल पाया। यही कारण है कि अपर जिलाधिकारी को अपनी जांच रिपोर्ट में लिखना पड़ा कि पत्रावली के साथ उक्त स्टाम्प बेन्डरों द्वारा विक्रय की गई दिनांक की,स्टाम्प रजिस्टर की छाया प्रति नहीं है। जिससे उनका सत्यापन किया जा सके। उक्त रजिस्टर अनुपलव्ध है अथवा बेन्डर द्वारा नष्टï किए गए हैं। हैरानी की बात यह है कि इस मामले में 18 सितम्बर 2008 को कोतवाली देहरादून में प्राथमिकी दर्ज किए जाने के चार महीने बाद पुलिस जांच कछुआ रफ्तार से चल रही है। सूत्रों का कहना है कि इस प्रकरण में प्रदेश भाजपा के एक नेता जो एक निगम के अध्यक्ष भी हैं के प्रभाव के चलते जांच का यह हश्र हुआ है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पक्के साक्ष्यों के बावजूद पुलिस ने अभी तक जांंच के नाम पर महज खानी पूरी ही करती नजर आ रही है। कुछ समय पहले प्राथमिकी में दर्ज तीनों व्यक्तियों में से पुलिस ने दो व्यक्तियों को हिरासत में लिया लेकिन एक को कोतवाली से ही छोड़ दिया अन्य को मात्र धारा 420 के तहत गिरफ्तार दिखाकर उसी वक्त जमानत पर छोड़ दिया। पुलिस की इस कार्यवाही से क्षुव्ध शिकायतकर्ता सूरजभान ने पुलिस पर विश्वास न होने का आरोप लगाया तब कहीं जाकर पुलिस ने जांच अधिकारी को बदल डाला। पुलिस के जांच अधिकारी के बदले जाने के बाद भी मामला जस का तस है। उल्लेखनीय है कि यह तो एक प्रकरण मात्र है जो अभी प्रकाश में आया है और न जाने कितने तेलगी इस तरह के अन्य कई प्रकरणों में लिप्त होंगे यह कहा नहीं जा सकता लेकिन इस प्रकरण से तो यह साफ ही हो गया है कि उत्तराखण्ड में तेलगियों ने पांव पसार दिए हैं। जबकि अधिकारिक जानकारी के अनुसार तेलगी प्रकरण के बाद देश के अन्य राज्यों की तरह इस राज्य के तमाम पंजीकरण अधिकारियों को यह निर्देश दिए गए थे कि वे किसी भी पंजीकरण के समय स्टांम्प पेपरों की बारीकी से जांच करें लेकिन इस मामले में हुई लापरवाही ने प्रशासन की पोल खोल कर रख दी है कि वह सरकारी आदेशों के प्रति कितने सजग हैं।

लालबत्ती को लेकर भाजपा में घमासान के आसार

लालबत्ती इच्छाधारियों ने खण्डूड़ी पर दबाव बनाया

विपक्ष को किस मुंह से आईना दिखायेगी भाजपा

 भारतीय जनता पार्टी के अन्दर एक बार फिर से घमासान के आसार पैदा हो गये हैं। लालबत्ती की लाइन में खड़े विधायक व पार्टी नेता तुरंत दायित्व के बोझ तले दबाने को उतावले हैं तो पार्टी के पुराने निष्ठावान कार्यकर्ता लालबत्तियों के मामले में छत्तीसगढ़ फार्मूले को अपनाये जाने पर जोर दे रहे हैं। हालत की गम्भीरता का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दोनों ही पक्ष इस मामले में आलाकमान के दरवाजे पर गुहार भी लगा चुके हैं। असन्तुष्टों की हलचल के थमने के बाद इस प्रकरण में भाजपा में सियासी तूफान के से हालात बन गये हैं। 7 मार्च 2008 को सूबे की कमान संभालने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री व लोकसभा सांसद भुवन चन्द्र खण्डूड़ी के लिए पौने दो वर्ष में हालात कभी सामान्य नहीं रहे। मित्र विपक्ष से ग्रस्त विपक्ष बनी मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस कभी भी उन्हें परेशान नहीं कर पायी, किन्तु अपनी ार्टी के ही नेताओं और विधायकों ने उन्हें आराम ही नहीं करने दिया। मुख्यमंत्री पद की शपथ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रकाश पंत के साथ लेने के बाद विधायकों ने इतनी लाबिंग करी कि मंत्रीमण्डल के अन्य 10 सदस्यों को शपथ दिलाने में ही 20 दिन लग गये। यह खण्डूड़ी का ही कौशल था कि लगातार दूसरे वर्ष सरप्लस बजट विधानसभा में पेश किया गया। पार्टी के नेताओं और विधायकों ने मुख्यमंत्री के निकटवर्तियों को निशाने पर लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी किन्तु यह निकटवर्तियों की रणनीति व खण्डूड़ी का भाग्य ही था कि वे कठिन से कठिन परिस्थितियों से भी पार पा गये। खेमाबंदी कर रहे विधायक तो खण्डूड़ी को एक दिन भी मुख्यमंत्री नहीं रहने देना चाह रहे थे, किन्तु एक के बाद एक चुनाव में मिली जीत व आलाकमान की फटकार ने उन्हें चुप रहने पर तात्कालिक मौर पर विवश किया। असंतुष्ट विधायकों ने पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में दिल्ली दरबार में दस्तक दी, तो एक बार संख्या बल के हिसाब से लगा कि खण्डूड़ी को दिक्कत हो सकती है, किन्तु दिल्ली दरबार की घुडक़ी व कोश्यारी को वाया राज्यसभा से दिल्ली भेज असन्तुष्ट मुहिम को करारा झटका दिया गया। खण्डूड़ी ने पार्टी के लगभग 45 नेताओं नेताओं को दायित्व के बोझ से नवाजा, तो विधायकों की महत्वकांक्षा फिर हिलौरे मारने लगी। राजनीतिक मजबूरी भी थी कि किसी तरह असन्तुष्टों के पर कतरे जांय या दायित्व दिये जायं। दायित्व देने के लिए 28 पदों को लाभ के दायरे से बाहर लाया गया, किन्तु मलाईदार माल न मिलते देख विधायकों ने इस पैरवी ही नहीं की। लगातार आज कल होता देख असन्तुष्ट विधायकों ने नई खेमाबन्दी कर ली। प्रदेश भाजपा प्रभारी के बीते शनिवार को देहरादून दौरे के दौरान पद न मिलने का रोना भी रोया गया। पिछली कांग्रेस और अब मिलाकर लगभग 46 पद लाभ के दायरे से बाहर हैं। विधायक इन पदों पर अपना स्वाथाविक हक जता रहे हैं। विधानसभा में भाजपा के इस वक्त 36 विधायक हैं। कोश्यारी के विधानसभा से इस्तीफा देने के कारण कपकोट सीट खाली हो गयी है। तीन निर्दलीय व उक्रांद के तीन विधायकों को मिलाकर संख्या 42 हो जाती है, इनमें मनोनीत विधायक केरन हिल्टन भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री सहित 12 सदस्य मन्त्रिमण्डल में हैं, तो विधानसभाध्यक्ष हरबंस कपूर व उपाध्यक्ष विजय बड़थ्वाल भी संवैधानिक पदों पर आरूढ हैं। इस प्रकार विधानसभा में 22 विधायक ऐसे हैं। जिनके पास कोई पद नहीं है, किन्तु पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता यह साफ कहते हैं कि विधायक संवैधानिक व्यवस्था का प्रमुख अंग है। और विधायक का टिकट देते हुए पार्टी ने किसी विधायक से यह वादा नहीं किया गया था कि उन्हें पद से नवाजा जायेगा। पुराने व निष्ठावान कार्यकर्ता पार्टी के अन्दर छत्तीसगढ़ फार्मूले को अपनाने पर जोर दे रहे हैं, जहां पार्टी में जीते या हारे प्रत्याशियों को कोई दायित्व न दिया जाना तय किया गया है। इनका यह भी कहना है कि भाजपा ने पूरा चुनाव अभियान कांग्रेस द्वारा बांटी लालबत्तियों और भ्रष्टाचार के विरूद्ध चलाया और लालबत्तियां बांटने के मामले में कांग्रेस की राह चले, तो जनता के बीच क्या मुंह लेकर जायेगे। अगले कुछ माह में ही लोकसभा चुनाव के साथ प्रदेश सरकार भी दो वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लेगी, ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले लालबत्ती वितरण से जनता के बीच विपरीत संदेश जाना तय है। 

Monday, December 1, 2008

जल्द ही प्रदेश का अपना एटीस व आतंकवादी निरोधक कानून



राजेन्द्र जोशी
आगामी एक साल बाद आयोजित होने वाले महाकुंभ से पहले प्रदेश सरकार ने आतंकवादी गतिविधियों से लडऩे के लिए सख्त कानून बनाने की कवायद शुरू कर दी है। इसी क्रम में प्रदेश सरकार के आला अधिकारी तमाम राज्यों में बने इस कानून के अध्ययन के साथ ही केन्द्रीय गृह मंत्रालय से भी इस बावत जानकारी एकत्रित कर रहा है। देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमलों के बाद राज्य सरकार को भी आतंकवाद से निपटने के लिए एक अदद आतंवादी कानून की दरकार है। इसी क्रम में प्रदेश सरकार यह भी चाहती है अब जो कानून बने वह इतना कठोर हो कि आतंवादी किसी भी कीमत पर बच न पाए। सरकार का मानना है कि इस राज्य में हिन्दुओं के पवित्र स्थलों के साथ ही मुस्लिम समुदाय तथा सिक्खों के भी पवित्र स्थल तो हैं ही साथ ही यहां कई पर्यटन क्षेत्र भी है जंहां प्रत्येक साल करोड़ों तीर्थयात्री दर्शनों के लिए आते रहे हैं। जिन्हे आतंकवादी अपना निशाना बना सकते हैं। लिहाजा अब इन्हे ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता है। वैसे प्रदेश सरकार ने फौरी तौर पर इन स्थानों पर गुप्तचरों की व्यवस्था के साथ ही इन क्षेत्रो ंमें सशस्त्र बलों तक को निगरानी पर लगा दिया है। प्रदेश सरकार ने उम्मीद जताई है कि आगामी वर्ष 2010 में महाकुंभ के दौरान लगभग 10 करोड़ श्रद्घालुओं के आने की उम्मीद है। ऐसे में आतंकवादी घटनाओं को देखते हुए सरकार चुप नहीं बैठ सकती। हांलांकि प्रदेश सरकार का यह भी मानना है कि अभी तक राज्य में आतंवाद की जड़े नहीं हैं लेकिन सुरक्षा पहले ही कर दी जाए तो बेहतर होगा। राज्य सरकार चाहती है कि श्रद्घालुओ ंकी सुरक्षा और कड़ी होनी चाहिए। सरकार ने हरिद्वार के अलावा भारतीय सैन्य अकादमी, भारतीय प्रशासनिक अकादमी, सर्वे आफ इंडिया, सहित तेल एवं प्राकृतिक तेल एव गैस आयोग आदि की सुरक्षा और कड़ी करने का निर्णय भी लिया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार काफी पहले से ही आतंकवाद के खिलाफ क ठोर कानून बनाने पर विचार कर रही थी लेकिन केन्द्र सरकार की ओर से उसे हरी झंडी़ नही मिल पा रही हैँ मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले के बाद अब केन्द्र सरकार को भी कठोर कानून की याद आयी है तो राज्य सरकार ने भी इस पर होमवर्क शुरू कर दिया है। केन्द्र से हरी झंडी मिलने के बाद राज्य सरकार अपनी आतंकवादी निरोधक दस्ता एटीएस बनाने की ओर चल पड़ी है। जिसकी रूपरेखा े कुछ ही दिनों में तैयार होने की उम्मीद है। इस मामले पर मुख्यमंत्री भी काफी सक्रियता से होमवर्क में जुट गए हैं कि इसे जल्द से जल्द तैयार कराया जाय, और महांकुंभ से पहले राज्य सरकार इसका गठन करें।