Friday, August 29, 2008

फूलों की घाटी का अस्तिव संकट में


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखण्ड की फूलों की घाटी में फूलों से ज्यादा ऐसी घास उग आयी है कि इसके कारण यहां उगने वाले फूलों के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है। वैसे तो पूरी की पूरी भ्यूंडार घाटी इस घास से परेशान है लेकिन फूलों की घाटी जिसका अंर्तराष्ट्रीय महत्व है को लेकर पर्यावरणविद से लेकर वन विभाग तक के आला अधिकारी इसके कारणों को खोजने में लगे हैं। पौलीगोनियम जिसे स्थानीय भाषा में अमेला अथवा नाट ग्रास कहा जाता है इस फूलों की घाटी को अपने चपेट में ले चुकी है। इसे जड़ से समाप्त करने के लिए अब प्रदेश के वन विभाग ने इसे उखाड़ने के लिए एक कार्ययोजना बनाई है, जिसपर कार्य आरम्भ भी हो चुका है।
प्रदेश के ऋषिकेश बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोविन्दघाट से सिक्खों के पवित्र तीर्थ हेमकुण्ड को जाने वाले मार्ग मेें घंघरिया से पांच किलोमीटर बायीं ओर लगभग 87.5 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस क्षेत्र में लगभग पांच सौ से ज्यादा फूलों की प्रजातियां कभी यहां पाई जाती थी। आज इस घाटी के अधिकांश भाग में इन मोहक फूलों की जगह पौलीगोनियम घास जिसे स्थानीय भाषा में अमेला कहा जाता है, फैल चुका है। यह घास घाटी में उगने वाले फूलों की अन्य प्रजातियों पर क ैंसर की तरह लग गया है। इसके क ारण फूलों की घाटी का अस्तित्व ही समाप्त होने को हैं। वहीं घाटी में इससे मिलती-जुलती पौलीस्टाइका (सरों) घास , पार्थीनियम (गाजर घास ) भी यहां उगने लगी है। फूलों की घाटी में बहने वाले बामनदौड़, स्विचंद आदि नालों तक में पौलीगोनियम घास फैल चुका है। इस क्षेत्र में कई प्रकार की जड़ी बूटियां भी अब देखने को मिलती थी जो इस तरह की घास के उग जाने के कारण अब नहीं दिखाई देती।
उल्लेखनीय है कि 6 नवम्बर 1982 में फूलों की घाटी को नन्दादेवी बायोस्फेयर रिजर्व (नन्दादेची जीवमंडल विशेष क्षेत्र) घोषित किया गया था और तभी से इस क्षेत्र मे पशुओं के चुगान तथा प्रवेश को प्रतिबंधित भी कर दिया गया था। यह इसलिये किया गया था ताकि पशुओं के पैरों से यहां मिलने वाले फू लों की विशेष प्रजातियां कहीं खत्म न हो जांए। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि पशुओं की आवातजाही न होने कारण भी इस क्षेत्र में फूलों की संख्या में कमी हुई है। इनका कहना है कि भेड़-बकरियों के आने जाने तथा उनके गोबर से यहां पैदा होने वाले फूलों को खाद तो मिलती ही थी साथ ही बकरियों के खुरों से बीज भी इधर से उधर होने पर अन्य प्रजातियां विकसित होती थी। इन्हीं लोगों का कहना है कि यहां उगने वाले विनाशकारी घास की जो प्रजातियां आज फूलों की घाटी में उग रही उन्हे उस दौरान यहां आने वाले जानवर ,भेड़-बकरियां चुग लेती थी।
वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार यहां उगने वाले नुकसान देह पौधे की लंबाई ज्यादा होने के कारण छोटी प्रजाति के पुष्प इनके नीचे नहीं पनप पाते हैं। नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के डीएफओ श्रवण कुमार ने माना कि पौलीगोनियम यहां पनप रहा है और इसके जल्दी बढने से छोटी प्रजाति के फूल नहीं खिल पा रहे। उन्होंने बताया कि पौलीगोनियम की करीब चार प्रजातियां फूलों की घाटी में विकसित हुई हैं। इनके अनुसार यदि इस तरह की घास को यथाशीघ्र इस क्षेत्र से उखाडा नहीं गया तो एक दिन यह फूलों की घाटी जहरीली घास की घाटी में बदल जाएगी।

Thursday, August 28, 2008

नेपाल के बदले हालातों से सुरक्षा एजेंसियां सतर्क

राजेन्द्र जोशी
देहरादून: माओवादी नेता प्रचंड के नेपाल की प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ताजपोशी के बाद देश की आंतरिक सुरक्षा को लेकर सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ गई है। खुफिया विभाग आईएसआई के नेपाल के रास्ते घुसपैठ की संभावना पहले ही जताता रहा है। लिहाजा भारत-नेपाल सीमा पर अब कड़ी चौकसी करने का निर्णय सीमा क्षेत्र का कार्य देख रहे अधिकारियों ने लिया है। इसके तहत सश सीमा बल (एसएसबी) को सीमा पर समन्वय का काम अधिक जिम्मेदारी से निभाने और बार्डर पर एसएसबी की महिला विंग को भी तैनात करने का निर्णय लिया गया है। नेपाल में हाल के दिनों में हालात तेजी से बदले हैं,भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले प्रचंड को वहां की जनता ने बागडोर सौंपी है। साथ ही उनकी पहली यात्रा भारत की आतंरिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाले चीन के लिए ही हुई है, वहीं नेपाल के प्रधानमंत्री के जल्द ही भारत की यात्रा पर आने की जानकारी नैपाली मीडिया से मिल रही है जिसमें उन्होने कहा है कि भारत की यात्रा उनकी पहली राजनीतिक यात्रा होगी। जबकि अब तक नेपाल के प्रधानमंत्री पहली यात्रा भारत की ही करते आये हैं। इसके अलावा नेपाल के अर्धसैनिक बलों में माओवादियों की तैनाती के फरमान ने भी भारत के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। सूत्रों के मुताबिक खुफिया तंत्र ने भी केन्द्र सरकार को नेपाल की बदली परिस्थितियों से देश में नेपाल सीमा से घुसपैठ तेज होने की संभावना जतायी है। इसे लेकर सरकार भी सक्रिय हो गयी है। सूत्रों के मुताबिक दोनों देशों के अधिकारियों की बैठकों के साथ ही बीते दिनों लखनऊ में उच्च स्तरीय बैठक आयोजित की गयी। इसमें नेपाल सीमा की परिस्थितियों को लेकर गंभीर मंथन किया गया। सुरक्षा के लिए खतरा होने के कारण एसएसबी अधिकारियों को सीमा पर कार्यरत विभागों के समन्वय के काम में गंभीरता बरतने का निर्णय लिया गया। उल्लेखनीय है कि नेपाल सीमा पर कार्यरत एसएसबी, खुफिया तंत्र, कस्टम, सिविल पुलिस व जिला प्रशासन के बीच एसएसबी ही समन्वय स्थापित करने का काम करती हैं। आमतौर पर इसकी सप्ताह भर के अंतराल में ही बैठक होती है। लेकिन अब जल्द बैठकें करने को कहा गया है। इसके अलावा नेपाल सीमा पर महिलाओं के माध्यम से तस्करी होने के मुद्दे पर भी गंभीर मंथन हुआ है। लिहाजा सीमा पर महिला विंग तैनात करने का निर्णय लिया गया। इस विंग की एक बटालियन वर्तमान में हिमांचल में प्रशिक्षण भी ले रही है। इसके अगले साल शुरुआत में ही उत्तराखंड से लगी नेपाल सीमा पर तैनात होने की संभावना है। इसके अलावा खुफिया तंत्र को और सक्रिय कर दिया है। एसएसबी के एक अधिकारी ने बताया कि प्रचंड माओवादी नेता हैं, भारत का माओवाद भी काफी हद तक नेपाली माओवाद की विचारधारा से प्रेरित है। प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने के बाद आईएसआई को देश में नेपाल के रास्ते घुसपैठ करने का अवसर मिल सकता है। जिस पर कड़ी नजर रखने की जरूरत होगी।

खुफिया तंत्र को पता ही नहीं

राजेन्द्र जोशी
देहरादून: प्रदेश सरकार का खुफिया तंत्र सोया है क्या? 44 चीनी सैनिक 25 घोड़ों के साथ अत्याधुनिक संचार उपकरणों तथा हथियारों सहित राज्य की भारत-चीन सीमा के छह किलोमीटर अंदर तक आ गए और खुफिया तंत्र कहता है कुछ नहीं हुआ। उत्तराखण्ड सरकार का गुप्तचर तंत्र कुछ भी कहता रहे लेकिन उत्तराखण्ड के चमोली जिले से लगी भारत चीन सीमा पर कुछ तो गड़बढ़ जरूर है। उल्लेखनीय है कि देश की अरूणाचल से लेकर कश्मीर क्षेत्र तक भारत की सीमाएं कहीं न कहीं चीन,पाकिस्तान अथवा नैपाल से मिलती ही है। अरूणाचल क्षेत्र में चीनी दखल तथा कारगिल क्षेत्र में पाक सेनाओं का भारत केी सीमा के भीतर तक आ जाने के कारण ही कारगिल युद्घ का होना देश की खुफिया एजेंन्सियों का नकारापन ही साबित करता है। यही कारण रहा कि भारत को कारगिल जैसा युद्घ झेलना पड़ा। इसी खुफिया तंत्र की एक और नाकामी उत्तराखण्ड के इस शांत क्षेत्र में भी देखने को मिली। खुफिया तंत्र इस मामले को पिछले कई दिनों से छिपाता फिर रहा था लेकिन गृह विभाग के केन्द्र से पूछने के बाद यह प्रकरण सुर्खियों में आ पहुंचा है। यहां बताया जा रहा है कि चीनी सैनिक पिछले कई दिनों से यहां घुसपैठ करने की तैयारी में हैं। खुफिया सूत्रों की मानें तो पिछले दिनों 44 सश चीनी सैनिकों के 25 घोड़ों के साथ जिला चमोली से लगी भारत-चीन सीमा से भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश की थी। लेकिन उस समय से वे वहां सफल नहीं हो पाए थे। कहा जा रहा है कि उस समय तो चीनी सैनिकों ने जीरो प्वाइंट पर रूक कर वहां भारत की फौज की गतिविधियों पर नजर रखने के उद्देश्य से संचार के लिए एंटीना तक खड़ा कर दिया। शेष सैनिकों ने भारतीय सीमा में चार सौ मीटर अंदर आकर टैंट भी गाढ़ दिए थे। कहा तो यहां तक जा रहा है कि ये सैनिक तीन दलों में बंटकर भारत की सीमा के भीतर होतीनाला तक आ गये थे जो कि भारतीय सीमा में जीरो प्वाइंट से करीब छह किलोमीटर अंदर है। यह भारतीय सीमा में सश चीनी सैनिकों की घुसपैठ की सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है। आश्चर्य की बात है सीमा पर भारतीय तिŽबत सीमा बल के जवान तैनात हैं। खुफिया विभाग को भी इस घुसपैठ की खबर कई दिनों बाद मिली। राज्य गृह विभाग ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को जानकारी देते हुए पूछा है कि वे रक्षा व विदेश मंत्रालय से दिशा निर्देश लेकर बताएं कि प्रदेश सरकार इस मामले में अब क्या कदम उठाए। राज्य खुफिया विभाग के सूत्रों ने बताया कि जनपद चमोली के अंतर्गत भारत-चीन की सीमा पर 44 सश चीनी सैनिकों के 25 घा़ेडों के साथ तुनजुनला पास व होतीनाला तक भारतीय सीमा में घुसपैठ की घटना अन्य घटनाओं के मुकाबले में सबसे बड़ी है। खुफिया विभाग की रिपोर्ट शासन को मिलने के बाद उसने केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिख कर अवगत कराया कि इस मामले में विदेश मंत्रालय व रक्षा मंत्रालय से दिशा निर्देश लेकर उन्हें निर्देशित करें कि प्रदेश सरकार इस मामले में क्या कदम उठाए। बताया जा रहा है कि इस घुसपैठ को अभी कुछ ही दिन हुए कि बीती रोज एक बार फिर से उसी सीमा पर चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश की है। इस मामले को अब खुफिया एजेंसियों ने गभ्भीरता से लिया है। इस समय राज्य सरकार व केन्द्र सरकार की खुफिया एजेंसियां लगातार सीमा पर नजर रखे हुए है। बताया जा रहा है कि रॉ के अधिकारियों का एक दल तो खास तौर पर जोशीमठ, माणा गांव तथा मलारी क्षेत्र में डेरा डाले हुए है।

Friday, August 22, 2008

जलविद्युत परियोजनाओं का सच

राजेन्द्र जोशी
उत्तराखण्ड की जलविद्युत परियोजनाओं को निजी हाथों में देने का राज्य के बिजली कर्मचारी संगठन भले ही विरोध कर रहे हैं लेकिन इसके लिए कौन दोषी है इन्होने कभी नहीं सोचा। प्रदेश के मुख्यमंत्री भले ही कर्मचारियों के दबाव के कारण इनको निजी हाथों में देने के फैसले पर अभी निर्णय न किए जाने की बात कर रहे हैं लेकिन वास्तविकता तो यह है कि इन सभी परियोजनाओं को यहां कार्यरत अधिकारियों सहित कर्मचारियों ने दुधारू गाय की तरह उपयोग किया। राज्य की 22 जलविद्युत परियोजनाओं में से 18 परियोजनांए वर्तमान में खराब हालात से गुजर रही है। इसके लिए यहां कार्यरत अधिकारी तथा कर्मचारी सभी दोषी है जिन्होने इनको इस स्थिति में पहुंचाया है। यदि जलविद्यूत परियोजनाओं का निर्माण से अस्तित्व में आने तक के इतिहास पर गौर किया जाए तो शायद ही ऐसा कोई दिन होगा जिस दिन इन परियोजनाओं में से किसी एक भी परियोजना ने अपनी क्षमता के बराबर विद्युत का उत्पादन किया हो। इन तीस -पैतीस सालों तक परियोजना के कार्य देख रहे अभियंताओं ने इन परियोजनाओं को दुधारू गाय की तरह प्रयोग किया। लालू के चारे घोटाले की तरह कभी इन्होने नहरों के मरम्मत के नाम पर पैसे की बंदरबांट की तो कभी टरबाइन के मरम्मत के नाम पर। जानकार तो यहां तक बताते हैं कि इन सभी परियोजनाओं की रिपोर्ट का अध्ययन किया जाय तो पता चलता है कि रोज किसी न किसी परियोजना की विद्युत टरबाइन खराब ही मिलेगी, तो कभी नहरों की मरम्मत के कारध पूरी की पूरी परियोजना बंद मिलेगी। परियोजनाओं में व्याप्त भ्रष्टïाचार का ताजा उदाहरण मनेरी भाली फेस दो में साफ है। तो यहां भी किसी बड़े घोटाले से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस परियोजना को बीते माह इसलिए बंद करना पड़ा था कि इसके चेनल में रेत इक ठ्ठïा हो गया था जिसके लिए अभी तक टेंडर नहीं हुए है जबकि आधिकारिक जानकारी के अनुसार यह प्रक्रिया में हैं। लेकिन अधिकारियों की जल्दबाजी का नमूना यहां तब देखने को मिला कि टेडर अभी हुए नहीं, यह भी पता नहीं कि कौन फर्म इस कार्य के लिए टेंडर डालेगी, किसके रेट न्यूनतम होंगे और किसे कार्य आबंटित ही किया जाएगा। लेकिन प्रक्रिया के पूरी होने से पहले ही दिल्ली की एक कम्पनी की मशीनें यहां तक पहुंच चुकी हैं। इसका साफ मतलब है कि विभागीय अधिकारी तथा कर्मचारियों की मिली भगत हो चुकी है तथा टेंडर डाले जाने से पहले ही तय हो चुका है कि किसे कार्य आवंटित किया जाना है। यह तो एक बानगी है राज्य की अन्य तमाम जलविद्युत परियोजनाओं के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। चीला जलविद्युत परियोजना का मामला एक बार सन् 1998 में तब उठा था जब इस परियोजना के बैराज पर लगने वाले वेयरिंग को बाजार भाव से हजारों रूपए ज्यादा में खरीद किया गया। इस मामले में जांच की गयी थी तो पता चला था कि जो वेयरिंग इन बैराज के गेटों को खोलने तथा बंद करने में प्रयोग किए जा रहे थे वे सामान्य एसकेफ कम्पनी के थे और जिनकी कीमत बाजार में मात्र 13 सौ रूपये प्रति नग थी लेकिन विभागीय अधिकारी तथा कर्मचारियों की मिलीभगत से ये बेयरिंग 13 हजार रूपए प्रति नग की दर से दिल्ली की किसी फर्म से खरीदे जा रहे थे। प्रदेश के बुद्घिजीवी लोगों का कहना है कि इसी तरह से जेब भरने की प्रवृति ने इन जल विद्युत परियोजनाओं का आज इस मुकाम तक पहुंचा दिया है कि सरकार को भी अब इन पर खर्च करने में सोचना पड़ रहा है। अधिकारी तथा कर्मचारी अपनी कमाई बंद होती देख सरकार के खिलाफ ही लामबंद होते नजर आ रहे हैं लेकिन वे इस पर जरा भी नहीं सोच रहे हैं कि आखिर इन परियोजनाओं को इस मुकाम तक पहुंचाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उन्हे आत्म चिंतन करने की जरूरत है कि आखिर सरकार अब यदि इन पर पैसा खर्च करेगी तो वह भी इन्ही की जेबों से ही जाएगा। समय पर यदि इन्होने इन परियोजनाओं के साथ ईमानदारी की होती तो आज इस तरह के कदम उठाने की जरूरत न होती। और राज्य वासियों को सस्ती बिजली मिलती।

Wednesday, August 20, 2008

हालात पर केन्द्र भेजेगा पर्यवेक्षक

राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखण्ड में मचे सत्ता संघर्ष को देखते हुए केन्द्रीय आलाकमान ने पंचायत चुनावों के बाद राज्य में पर्यवेक्षक भेज स्थिति का जायजा लेने का मन बना लिया है। जबकि बदले हालातों में राज्य में अभी नेतृत्व परिवर्तन की संभावना भी कहीं नजर नहीं आती। लेकिन इस घमासान से मुख्यमंत्री गुट ने जरूर सबक लिया है और वह अब अपनी गलतियों को सुधारने में जुट गया है। इसी क्रम में सरकार ने बीते रोज मुख्यमंत्री सचिवालय में एक और सचिव की नियुक्ति के साथ शिकायतों पर गौर करने का संकेत दिया है। वहीं दूसरी ओर विधायकों के आक्रोश को ठंडा करने के उद्देश्य से सरकार ने उन तमाम पदों की सूची बनाने के निर्देश सचिवों को दिए हैं जो लाभ की श्रेणी में नहीं आते हैं। वहीं एक ओर यह भी चर्चा है कि कुछ एक दायित्वधारियों से दायित्व वापस भी लिए जा सकते हैं।
प्रदेश में उपजे राजनीतिक घटनाक्रम से भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व भी सहमा हुआ है और राज्य के हित में वह इसे अच्छा नहीं मानता। यही कारण है कि केन्द्र ने इस समूचे मामले को बड़ी ही गंभीरता से लिया है। सूत्रों की मानें तो केन्द्र ने राज्य के दोनों ही गुटों को इसके लिए दोषी माना है। उसका मानना है कि मुख्यमंत्री की ओर से भी कुछ गलतियां हुई हैं तो इसके जवाब में दूसरी ओर से भी गलतियां की गयी हैं। मामले की नजाकत को भांपते हुए केन्द्र ने पंचायत चुनाव के बाद राज्य में केन्द्रीय पर्यवेक्षक भेजने की सोची है। जो राज्य में उपजी स्थिति का बारीकी से आकलन करेगा। इस बीच सूत्रों ने जानकारी दी है कि कुछ नेता केन्द्रीय नेताओं के सम्पर्क में अभी भी हैं और वे अपनी सफाई पेश करने दिल्ली भी जा चुके हैं।
वहीं दूसरी ओर केन्द्रीय नेतृत्व से निर्देश के बाद मुख्यमंत्री ने भी अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन करने की सोची है। प्राप्त जानकारी के अनुसारउन्होने विरोधियों द्वारा प्रचारित अपने तथाकथित किचन केबिनेट पर भी लगाम लगाने के क्रम में दो दायित्वधारियों से दायित्व वापस लिये जाने की भी चर्चा है।
भाजपा की प्रदेश सरकार के काम-काज को लेकर मन्त्रियों सहित लगभग दो दर्जन विधायकों की आलाकमान में दस्तक देने को लेकर सूबे की राजनीति गर्मा गयी थी। मीड़िया में आई रिपोर्टों के अनुसार विधायकों ने आलाकमान से मुख्यमंत्री सहित उनके सचिव एवं किचन केबिनेट की शिकायत की थी। हालांकि किसी ने भी इसकी पुष्टि नहीं की है। मामले में मुख्यमंत्री ने तो साफ कहा कि परिवार में मतभिन्नता हो सकती है, किन्तु शिकायत मिलने पर दूर करने का प्रयास किया जायेगा।
सूत्रों की माने तो सत्ता की समानान्तर चाबी रखने वाले मुख्यमंत्री के सचिव व उनकी किचन केबिनेट के प्रति जन प्रतिनिधियों में खासा नाराजगी थी। दिल्ली दरबार की ओर से मुख्यमंत्री को हालात सामान्य करने की हिदायत के बाद मुख्यमंत्री सचिवालय में एक अतिरिक्त सचिव की नियुक्ति की गयी है, जिनका कार्यकाल 31 अक्टूबर को समाप्त हो रहा है। जहां तक मुख्यमंत्री के सचिव प्रभात कुमार सारंगी के लम्बी छुट्टी पर जाने की बात हो रही थी तो इस पर प्रदेश के सूचना विभाग ने ही विवाद पैदा कर दिया सूचना विभाग ने बीेते दिन विज्ञप्ति जारी कहा था कि वे छुट़टी जा रहे हैं बाद में इसी विभाग ने दूसरे दिन एक और बयान जारी किया कि वे छुट़टी पर नहीं जा रहे हैं।
इस बीच अब विधायकों की मुख्यमंत्री के किचन केबिनेट के सदस्यों के प्रति नाराजगी को देखते हुए मुख्यमंत्री के निकट दो दायित्वधारियों से दायित्व वापस लिये जाने की खासी चर्चा है। चर्चा तो यह भी है कि इन दो दायित्वधारियों को दायित्व मुक्त करने का मामला सरकार के आपदा प्रबन्धन से जुड़़ा बताया जा रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने दिल्ली दरबार से वापस आने के बाद मीडियाकर्मियों से मिलने से परहेज किया है। स्थिति यह है कि यहां से मंत्रियों को दिल्ली दरबार तलब किया जा रहा है, किन्तु कोई भी दिल्ली से हुई चर्चा के सम्बन्ध में बताने को तैयार नहीं है। वहीं यह भी पता चला है कि बीते दिन प्रदेश अध्यक्ष बच्ची सिंह रावत अपनी प्रदेश कार्यकारिणी के साथ केन्द्र के निर्देश पर भगत सिंह कोश्यारी को मनाने उनके घर गए थे। इनमे कितनी सुलह सफाई हुई यह तो पता नहीं चल पाया है लेकिन इससे ण्क बात तो साफ ही हो गयी है कि प्रदेश भाजपा को अब भी भगतदा के कद को कम करके नहीं आंकना चाहिए। वहीं सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार केन्द्रीस नेताओं ने इस समूचे प्रकरण के लिए प्रदेश अध्यक्ष बच्ची सिंह रावत को भी जिम्मेदार बताते हुए उन्हे भी खासी लताड़ लगाई है और आलाकमान ने दिल्ली तलब किये गये सभी वरिष्ठ नेताओं को पंचायत चुनाव के दौरान असन्तुष्ट गतिविधियों में लिप्त रहने के बजाय पंचायत चुनाव में पूरी जी जान से जुटने का निर्देश दिया है।

किसी की आंखों के तारे तो किसी की किरकिरी

राजेन्द्र जोशी
देहरादून : राजधानी देहरादून का राजनैतिक तापमान जो क्या बढ़ा तीन विधायकों की तो मौज ही आ गयी। ये तीनों विधायक आजकल मुख्यमंत्री की आंखों के तारे बने हुए हैं। तो दूसरे गुट की आंखों की किकिरी। ये जिस पर हाथ रख देते हैं उन्हे वह सब कुछ मिल रहा है तो इन्हे भला असंतुष्टï गुट में जाने का क्या फायदा।
मुख्यमंत्री के राजनीतिक हलचल के बीच बीते दिनों दिल्ली से लौटने के बाद से राजपुर क्षेत्र के विधायक गणेश जोशी, धनोल्टी के विधायक खजान दास तथा बाजपुर के विधायक अरविंद पाण्डे उनके साथ खड़े दिखाई दिए थे। इन विधायकों में से दो लोग तो दोनों गुटों से सम्पर्क रखे हुए हैं। वह इसलिए कि कहीं पासा पलट गया तो वहां भी अपनी गोटी फिट रहे। सूत्रों की मानें तो ये तीनों ही विधायक आजकल मुख्यमंत्री की आंखों के तारे बने हुए हैं। जो काम ये पिछले सत्रह महीने को शासनकाल के दौरान मुख्यमंत्री से कराने की हिम्मत नहीं कर पाए थे ,इन्होने इन दिनों उन्हे करा दिया है या वे कार्य पाईपलाइन में हैं। जो सचिव कभी इनके आते ही कुर्सी छोडक़र दूसरे अधिकारियों के कमरों में जा इनसे पीछा छुड़ाने मे ही भलाई समझते थे वे भी आज इनकी बातों को बड़ी तल्लीनता से सुनने को मजबूर हैं। कुल मिलाकर राजनीति के बदले माहौल में इनकी तूती बोल रही है। लेकिन इसका एक पहलू और भी है दूसरे गुट की आंखों में ये खटकने लगे हैं। इनमे से दो विधायक तो दूसरे गुट से पहले गुट में रोज हाजिरी बजाने को अपनी मजबूरी बता कर सफाई देने पर लगे हैं,लेकिन वहां इनकी बातों पर कम ही भरोसा किया जा रहा हैं। क्योंकि इससे पहले भी कई बार ये अपने ही लोगों से वादाखिलाफी कर चुके हैं। तो ऐसे में भला इन पर अब कौन विश्वास करे। जबकि राजनीतिक हलकों में यह बात भी है कि इनमें से एक विधायक को राज्य आन्दोलनकारी का विधायकी का टिकट काट कर इन्हे दिया गया और दूसरे की मजबूरी यह है कि उसकी विधानसभा ही आगामी विधानसभा चुनावों में नए परिसीमन के बाद गायब होने वाली है ऐसे में यदि डूबता तिनके का सहारा न ले तो क्या करे। जहां तक तिसरे विधायक का सवाल है उस पर मुख्यमंत्री के कई अहसान हैं और वह इतना भी अहसान फरामोश नहीं कि डूबते जहाज के चूहों की तरह बचने का रास्ता खोजे वह जहाज के साथ ही डूबना चाहता है ताकि शहीदों की सूची में शामिल हो सके।
कुल मिलाकर एक गुट के विधायक जो किसी की आंखों के तारे बने हुए है तो वह दूसरे गुटब् क ी आंखों की किरकिरी ऐसे में वे राजनीतिक चालों पर भी नजर रखे हुए हैं, और अपना काम निकालने में दिन रात एक किए हुए हैं। शायद उन्हे यह पता है कि बदले परिदृश्य में उनकी चले या न चले।

Monday, August 18, 2008

तो क्या गैरसैंण होगी राजधानी?

राजेन्द्र जोशी
देहरादून: राजधानी चयन आयोग ने प्रदेश की स्थाई राजधानी के चयन को लेकर अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी है लेकिन राजधानी कहां हो यह सरकार पर छोड़ दिया है।
रिपोर्ट में गैरसैंण,रामनगर,ऋषिकेश तथा देहरादून का व्यापक अध्ययन के साथ ही स्कूल आफ प्लानिंग एण्ड अर्किटेक्चर की रिपोर्ट भी लगायी गयी है। राजधानी चयन को लेकर यह रिपोर्ट पूरे आठ साल में तैयार हो पाई है। राजधानी चयन आयोग का गठन राज्य की पहली भाजपा की अंतरिम सरकार के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री नित्यानन्द स्वामी ने किया था इसके बाद से लेकर अब तक 11 बार इस आयोग का कार्यकाल बढ़ाया जा चुका है। बीती 31 जुलाई को इसे अंतिम बार उच्चन्यायालय के निर्देश के बाद 17 दिनों के लिए बढ़ाया गया था जिसकी सीमा बीते दिन समाप्त हो गई। बीते दिन ही राजधानी चयन आयोग के अध्यक्ष जस्टिस वीरेन्द्र दीक्षित ने मुख्यमंत्री को रिपोर्ट सौंपी।
प्राप्त जानकारी के अनुसार जस्टिस वीरेन्द्र दीक्षित ने इस रिपोट्र को बनाने में बड़ी ही गोपनीयता रखी। उन्होने स्वयं ही रिपोर्ट को टाईप कर अपने सामने बाईंडिंग करवा कर लिफाफा तक अपने सामने सील कर स्वयं ही मुख्यमंत्री को सौंपा है। जबकि सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री को सौंपी गयी इस रिपोर्ट में किसी भी स्थान को निर्दिष्टï नहीं किया गया है। इस रिपोर्ट में राजधानी को लेकर जन सामान्य का तर्क, प्रस्तावित स्थलों की हवाई,सडक़,संचार उपलŽधता, निर्माण खर्च, प्रस्तावित स्थलों की भूगर्भीय,पर्यावर्णीय संरचना, जल तथा सीवेज की व्यवस्था आदि पर रिपोर्ट शामिल है। इतना ही नहीं इसमें राजधानी बनने के बाद सरकार पर आने वाले वित्तीय भार की भी इसमें रिपोर्ट दी गयी है।
अब जबकि राजधानी को लेकर देहरादून में कई स्थाई निर्माण कार्य सरकार द्वारा कराए जा चुके हैं और अन्य स्थानों की अपेक्षा देहरादून में वह सारी सुविधाएं जुटाई जा चुकी हैं ऐसे में राजधानी कहीं और बने यह सोचना नामुमकिन है। जबकि राज्य निर्माण में अपने प्राणों की आहुति देने वाले राज्य आन्दोलनकारी शहीदों की पहली प्राथमिकता गैरसैंण में राजधानी हो को लेक र आन्दोलन शुरू किया गया था। लेकिन बदले परिदृश्य में लखनऊ से यहां आए अफसरान तथा कुछ एक नेता गैरसैंण जाने को क्या तैयार होंगे यह विचारणीय है।

सत्तापक्ष ने शुरू किया क्राईसिस मेनेजमेंट

राजेन्द्र जोशी
देहरादून : पार्टी हाईकमान से रूठों को मनाने के लिए मिले संकेतों के बाद मुख्यमंत्री खंण्डूड़ी तथा उनके सिपहसालार असंतुष्टïों को अपने पक्ष में करने के लिए ऐड़ी से चोटी का जोर लगाने में जुट गए हैं। इस क्राईसिस मेंनेजमेंट में मुख्य मंत्री अब पार्टी के बुजुर्ग नेताओं का सहारा भी ले रहे हैं। पार्टी के प्रति प्रतिबद्घता और भावनात्मक संबधों के कारण ये वरिष्ठï नेता असंतुष्टïों को मुख्यमंत्री के पक्ष में करने के लिए प्रयासरत तो हैं लेकिन इससे समाधान हो जाएगा इसमें संदेह है। क्योंकि यही असंतुष्टï विधायक तथा मंत्री इन बुजुर्ग नेताओं की सक्रियता पर स्वार्थगत् राजनीति से घिरे होने का आरोप भी लगा रहे हैं।
गौरतलब हो कि आजकल उत्तराखण्ड की राजनीति में खामोशी सी छायी हुई है। लेकिन भीतरखाने पार्टी के भीतर ज्वार चल रहा है। जहां एक ओर 27 विधायक तथा पांच मंत्री अपने ही मुख्यमंत्री के खिलाफ झंण्डा बुलंद किए हुए हैं वहीं मुख्यमंत्री भी अब इस क्राइसिस से उबरने का रास्ता ढूंढऩे पर लगे हैं। अब वे भी मानने लगे है कि कहीं न कहीं चूक तो जरूर हुई है जो इतने विधायक तथा मंत्री उनके खिलाफ लामबंद जो हुए हैं। दोनों गुटों में देर रात्री तक बैठकों का दौर जारी है। कोई सरकार के खेल को बिगाडऩा चाहता है तो कोई विधायकों तथा मंत्रियों की एक जुटता को तोडऩे की रणनीति बना रहा है। प्रदेश भाजपा संगठन है कि वह चुपचाप तमाशबीन बना हुआ है।
राजनीतिक विश£ेषकों के अनुसार प्रदेश में उपजी इस स्थिति के लिए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सहित प्रदेश संगठन को ही दोषी माना जा सकता है जिसने समय पर न तो सरकार को सचेत किया तथा न ही विधायकों तथा मंत्रियों को ही कि पार्टी से बाहर इस तरह की बात न हो। अब मुख्यमंत्री खेमे के लोग भी इस घटनाक्रम पर पार्टी को ही खींचने लगे हैं जिनक ी नाक के नीचे सरकार की छिछालेदारी हुई है। वहीं अब केन्द्र तथा भाजपा के वरिष्ठï नेताओं के ईशारे पर प्रदेश सरकार तथा संगठन ने क्राइसिस मेनेजमेंट के लिए सभी असंतुष्टï विधायकों तथा मंत्रियों से एक-एक कर बात करने की योजना बनाई है। इसके लिए पार्टी संगठन के दो लोगों को कुमांयू क्षेत्र तथा दो को गढ़वाल क्षेत्र की जिम्मेदारी दी गई है। ये लोग असंतुष्टï विधायकों तथा मंत्रियों से उनकी नाराजगी का कारण पूछते हुए उनकी समस्याओं के निराकरण का प्रयास करने की कोशिश करेंगे। असंतुष्टï नेताओं को मनाने व समझाने के लिए उनके सजातीय व वरिष्ठï नेताओं का सहारा लिया जा रहा है।
जबकि सूत्रों का कहना है कि असंतुष्टïों के सामने अब करो या मरो की स्थिति है इसके पीछे का तर्क देते हुए राजनैतिक विश£ेषकों का कहना है कि इस वक्त इनके लिए भी विश्वास तथा राजनीतिक भविष्य का दांव पर लगना है ऐसे में ये अपने साथियों के साथ किसी भी तरह की गद्दारी नहीं कर सकते अन्यथा विधायकों तथा मंत्रियों में जहां इनका विश्वास समाप्त हो जाएगा वहीं आगे इनके राजनीतिक भविष्य पर भी सवालिया निशान लग सकता है इसलिए जहां सत्ता पक्ष इन्हे तोडऩे की जोर आजमाइश कर रहा है वहीं असंतुष्टï गुट भी एक जुटता दिखा रहा है। कुल मिला कर प्रदेश में इन दिनों शह व मात का खेल चल रहा है जिसमें बुजुर्ग नेता मोहरे बने हैं।

Thursday, August 14, 2008

उत्तराखंड में नेतृत्व बदलना लगभग तय


राजेन्द्र जोशी
देहरादून - उत्तराखंड भाजपा के असंतुष्ट विधायक लंबी जद््दोजहद के बाद मंगलवार को मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगवाने में कामयाब हो गए। असंतुष्ट विधायकों के मुखिया भगत सिंह कोश्यारी आडवाणी से यह आश्वासन लेने में कामयाब रहे कि नेतृत्व परिवर्तन के विकल्प पर भी पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व विचार करेगा। आडवाणी से मिले इस आश्वासन के बाद असंतुष्ट विधायक वापस लौटने की तैयारी में जुट गए हैं।

खंडूरी को सीएम पद से हटाने की मांग को लेकर कोश्यारी के नेतृत्व में कुछ मंत्रियों समेत 27 विधायक दिल्ली में कैंप कर रहे थे। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह समेत बागी विधायकों ने पार्टी के कई नेताओं से तीन दिनों के अंदर मुलाकात की। शुरू में पार्टी आलाकमान ने नेतृत्व परिवर्तन से साफ मना कर दिया था। असंतुष्टों को सिर्फ यह आश्वासन दिया गया था कि उनकी समस्याओं का समाधान बिना नेतृत्व परिवर्तन के हो जाएगा।

इसके बाद भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और आडवाणी ने खंडूरी को अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए कहा था। लेकिन, असंतुष्ट विधायक इससे संतुष्ट नहीं हुए और दिल्ली में डेरा जमाए रखा। इस दौरान असंतुष्ट विधायकों ने अलग-अलग टीम में बंटकर पार्टी के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह, सुषमा स्वराज, रामलाल और पूर्व उप राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत से मुलाकात की। लेकिन, आडवाणी से दो दिनों तक असंतुष्ट विधायक नहीं मिल सके।

आखिरकार, मंगलवार शाम कोश्यारी को आडवाणी ने मिलने का वक्त दे दिया। सूत्रों के मुताबिक कोश्यारी ने विस्तार से उन सभी मुद््दों का जिक्र किया जिस कारण खंडूरी से 35 में से 27 विधायक नाराज चल रहे हैं। आडवाणी को यह भी बताया गया कि यदि खंडूरी को नहीं हटाया गया तो विधायकों में असंतोष और बढ़ेगा तथा वे अपना इस्तीफा देने पर विचार करेंगे। आधे घंटे की मुलाकात के बाद आडवाणी ने पंचायत चुनाव तक इस प्रकरण को टालने के लिए कहा जिस पर कोश्यारी राजी हो गए। साथ ही आडवाणी ने इस बात के लिए कोश्यारी को आश्वस्त किया कि विधायकों की भावनाओं पर पूरी गंभीरता से पार्टी नेतृत्व विचार करेगा। विधायक ने जितने विकल्प बताएं हैं उन सभी पर गौर किया जाएगा, जिसमें नेतृत्व परिवर्तन का विकल्प भी शामिल है।

Monday, August 11, 2008

भाजपा में विद्रोह के लिए संगठन भी दोषी

राजेन्द्र जोशी
देहरादून : सरकार के मंत्रियों व विधायकों के दिल्ली कूच कर आलाकमान के सामने मुख्यमंत्री को हटाने का दुखड़ा रोने के मामले में भाजपा का प्रदेश नेतृत्व भी सवालों के घेरे में आ गया है। विद्रोही मंत्रीगण व विधायकों ने सारा मामला इतने गोपनीय तरीके से अंजाम दिया कि भाजपा संगठन व सरकार तक इस तूफान को दबाने में पूरी तरह असफल रहा। वर्तमान संकट से निपटने में प्रदेश आलाकमान अपने को असहाय महसूस कर रहा है। वहीं भाजपा के ही कुछ लोग इसे प्रदेश अध्यक्ष की असफलता भी करार दे रहे हैं।
गौरतलब हो कि बीते रोज सरकार के पांच मंत्रियों सहित 27 विधायकों की दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के साथ पूर्व प्रदेश प्रभारी रविशंकर प्रसाद की मौजूदगी में पिछले 16 महीने के दर्द के साथ मुख्यमंत्री के सचिव व एक दायित्वधारी की शिकायत के मामले में पार्टी का प्रदेश नेतृत्व पूरी तरह अंजान रहा। पूर्व मुख्यमंंत्री भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में जिस तरह असन्तुष्टों ने चुपचाप पूरी रणनीति का अन्जाम दिया, वह सरकार के पिछले 16 महीने के कार्यकाल की पोल खोलने के लिए काफी है। हालांकि मुख्यमंत्री के कुछ नजदीकी अधिकारियों को शनिवार को ही इसकी भनक लग गयी थी, किन्तु असन्तुष्टों ने कहीं से भी राज खुलने नहीं दिया।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने भी स्वीकार किया कि शनिवार को दोपहर उनकी पूर्व मुख्यमंत्री से फोन पर वार्ता भी हुई थी, किन्तु पूर्व मुख्यमंत्री ने नजदीकी केे बावजूद दिल्ली कूच की भनक तक लगने नहीं दी। इस पदाधिकारी ने खुले तौर पर स्वीकार किया कि विधायकों का मुख्यमंत्री के तौर तरीकों पर इस तरह राष्ट्रीय परिदृश्य में सवाल उठाना, पार्टी के लिए बड़ा संकट है।
यह भी ज्ञात हुआ है कि सरकार के गठन के बाद से ही प्रदेश अध्यक्ष सहित चारों महामंत्री लगातार मुख्यमंत्री के सम्पर्क में रहकर सभी विषयों पर विस्तृत चर्चा करते हैं। हाल के दिनों में ही पंचायत चुनावों की सूची को लेकर मुख्यमंत्री से लगातार दो दिन तक विचारविमर्श किया गया। इसके बावजूद विधायकों के असन्तुष्ट होने के मामले की मुख्यमंत्री को जानकारी न देना खुद संगठन के ऊपर सवालिया निशान लगा देता है।
यह तो सर्वविदित ही था कि पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी मुख्यमंंत्री पद पर खण्डूड़ी की ताजपोशी को पचा नहीं पाये थे और उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद से हटने के बावजूद जनता के बीच में अपनी सक्रियता लगातार बरकार रखी थी। कोश्यारी खेमे के विधायक भी उनके बल पर एकजुट रहे। कोश्यारी की इस मुहिम को एक और खण्डूड़ी विरोधी निशंक का साथ मिलने से बल मिल गया। देहरादून के राजनीतिक हलकों में तो दिन भर यह भी चर्चा रही कि खण्डूड़ी के साथ अब भाजपा के मात्र दो काबिना मंत्री बिशन सिंह चुफाल और मातबर सिंह कण्डारी ही रह गये हैं। कुछ विधायकों के दिल्ली से वापस आने के बावजूद उन्होंने इस सम्बन्ध में अपना मुंह बन्द रखना ही उचित समझा।
भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने भी स्वीकार किया कि उन्हें विधायकों के इस कदम की जानकारी नहीं थी। विधायकों के ऊपर अनुशासनहीनता के मामले में कार्यवाही किये जाने के सवाल पर प्रदेश अध्यक्ष भी असहाय नजर आये।

असंतुष्ट विधायकों पर विपक्षी दलों की नजर

राजेन्द्र जोशी
देहरादून : मुख्यमंत्री से नाराज भारतीय जनता पार्टी के असंतुष्ट विधायकों पर विपक्ष खासा मेहरबान दिखाई दे रहा है। भाजपा विधायक दल में टूट होने पर दलबदल कानून के साथ ही वैकल्पिक सरकार की दिशा में भी भीतर खाने तेजी से काम चल रहा है। इस पर भी गुणा भाग चल रहा है। भाजपा केन्द्रीय नेताओं के टालू रवैये से नाराज विधायक अब पार्टी छोडऩे तक की बात भी करने लगे हैं।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से लेकर आडवानी तक पांच मंत्रियों सहित 27 विधायकों की मुलाकात ने राज्य का राजनैतिक तापमान बढ़ा दिया है। पंचायत चुनाव की तैयारियों में लगे राजनीतिक दल अब भाजपा विधायकों की खोजखबर में लग गये हैं। कांग्रेस विधायक दल के नेता व नेता प्रतिपक्ष डॉ. हरक सिंह रावत पहले ही कह चुके हैं कि यदि भाजपा विधायक दल से बगावत कर सरकार बनाने का दावा करते हैं, तो कांग्रेस विधायक सरकार को बाहर से समर्थन दे सकती है।
भाजपा विधायक दल के सूत्रों की माने तो कुछ विधायक किसी भी हालत में अब मुख्यमंत्री के नेतृत्व में काम करने को तैयार नहीं हैं। ऐसे विधायकों पर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की नजरें टिक गयी हैं। विधायकों से बातचीत करने पर पता चला है कि उनकी नाराजगी मुख्यमंत्री से कम, किन्तु उनकी तिकड़ी से ज्यादा है। जिनके कारण मुख्यमंत्री उनसे दूर हुए है। जबकि इस तिकड़ी के खिलाफ लगातार मिल रही शिकायतों के चलते तथा उनसे अब तक किनारा न कर पाने के कारण वे मुख्यमंत्री से भी खफा हैं।
कांग्रेस भाजपा विधायक दल में उपजी इसी नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाना चाहती है। भाजपा के पास वर्तमान में 36 विधायक हैं और उन्हें तीन निर्दलीय विधायकों के साथ ही उक्रांद के तीनों विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है। विपक्ष के नाम पर कांग्रेस के 20 तथा बसपा के आठ विधायक राज्य विधानसभा में हैं। भाजपा विधायक दल में विघटन के दौरान दल-बदल कानून से बचने के लिए कम से कम 12 भाजपा विधायकों की आवश्यकता है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार भाजपा के सात विधायकों से विपक्ष के तार पूरी तरह जुड़ गये हैं। अब पांच अन्य और विधायकों से इस सम्बन्ध में अन्तिम दौर की बातचीत चल रही है। कांग्रेस को यह भी उम्मीद है कि यदि निर्दलीय व उक्रांद के विधायक भी साथ नहीं आते तो आने वाले साढ़े तीन साल के लिए बसपा भी सरकार का समर्थन कर सकती है, किन्तु कांग्रेस बसपा से भाजपा विधायक दल में दरार डालने के बाद ही बसपा से बातचीत करना चाहती है। भाजपा संगठन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने भी भाजपा विधायक दल के अन्दर चल रही इस तरह की गतिविधि की पुष्टि करते हुए बताया कि पार्टी संगठन इस विषय में भी गम्भीरतापूर्वक मन्थन कर रहा है।
वही दूसरी ओर एक और गणित बताया जा रहा है कि इन दिनों बसपा भी भाजपा के इन असंतुष्टï विधायकों के सम्पर्क में हैं और वह चाहती है कि ये पूरे के पूरे 32 लोग यदि भाजपा से हट कर नया गुट भी बना लें तो इन पर दलगदल कानून लागू नहीं होता लिहाजा ऐसी स्थिति में वे इस गुट को बाहर से समर्थन देकर नई सरकार बनाने में इनकी मदद कर सकते हैं। इसके पीछे यह तर्क भी दिया जा रहा है कि वर्तमान में बसपा के सदन में आठ विधायक हैं और इनको मिलाकर सदन में इनकी संख्या 40 हो जाएगी। ऐसे में यह गुट भी सरकार बना सकता है। जबकि सूत्रों की मानें तो बसपा ने भी इस दिशा में काम शुरू कर दिया है और वह चाहती है कि कांग्रेस के बजाय वह ही सबसे पहले इनपर हाथ रख ले तो उन्हे आने वाले लोकसभा चुनाव में भी लाभ मिल सकता है। बहरहाल दोनों प्रमुख विपक्षी दलों की नजरें इस घटनाक्रम पर लगी है।

Sunday, August 10, 2008

भाजपा उत्तराखण्ड में बगावत

पांच काबीना मंत्रियों सहित 27 विधायकों की पार्टी अध्यक्ष राजनाथ से मुलाकात
राजेन्द जोशी
देहरादून । सूबे में एक बार फिर मुख्यमंत्री को हटाने को लेकर सियासत गर्मा गयी है। इस बार खण्डूरी नेतृत्व के खिलाफ भाजपा के अधिकतर विधायक खुलकर सामने आ गये हैं। रविवार को उत्तराखण्ड सरकार के पांच काबिना मंत्री सहित 27 विधायकों ने पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से मुलाकात की। खण्डूरी की कार्यशैली से आहत भाजपा विधायकों के इस कदम को अब तक की सबसे प्रभावी कार्यवाही के रूप में देखा जा रहा है। राजनैतिक दृष्टिकोण से इस मुलाकात को सत्ता परिवर्तन होने की आंशका भी जतायी जा रही है।
कोश्यारी के नेतृत्व में भाजपा के रूठे आधे से ज्यादा विधायकों ने राजनाथ सिंह से लगभग एक घण्टे की मुलाकात के दौरान अपना दुखड़ा सुनाया। इस हाईकोर मीटिंग में पूर्व उत्तराखण्ड प्रभारी और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद भी मौजूद थे। बताया जाता है कि इस मुलाकात ने एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। कोश्यारी खेमे के विधायकों ने खण्डूरी के खिलाफ एक बार फिर ताल ठोक दी है।
स्मरण रहे कि पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा ने कोश्यारी के नेतृत्व में चुनाव जीतकर मैदान मारा था। इनमें ज्यादातर विधायक भी कोश्यारी खेमे के थे। लेकिन केन्द्र में अपनी मजबूत पकड़ के चलते व पूर्व प्रधानमंत्री बाजपेयी के करीबी माने जाने वाले खण्डूरी को मुख्यमंत्री पद पर आसीन कर दिया गया। इसके बाद कोश्यारी खेमे की खण्डूरी से और दुरियंा बढ़ती गयी। कई दफा तो यह दुरियां सार्वजनिक मंच पर भी दिखाई देने लगीं। बताते हैं कि कोश्यारी खेमे के सभी विधायक एक दफा पहले भी खण्डूरी नेतृत्व के खिलाफ खड़े हुए थे। लेकिन तब भाजपा आलाकमान ने उनको ज्यादा तवज्जो नहीं दी। सूत्रों के अनुसार इस बार स्तिथि और विस्फोटक हो गयी है। राज्य के पांच काबीना मंत्रियों का 27 विधायकों के साथ दिल्ली कूच करना किसी बड़ी राजनैतिक उठापटक का संकेत है। और फिर इस दफा पार्टी के चाणक्य कहलाये जाने वाले राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रमेश पोखरियाल ’निशंक’ भी खण्डूरी के खिलाफ खुलकर सामने आये हैं। बताया जा रहा है कि निशंक अपनी गैरमौजूदगी में श्रीनगर मेडिकल कालेज के लोकार्पण किये जाने को लेकर मुख्यमंत्री से काफी समय से नाराज चल रहे थे। भाजपा विधायकों का दिल्ली दौरा भी इसी नाराजगी का कारण माना जा रहा है। मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार माने जा रहे कोश्यारी को इस बार मुख्यमंत्री की दौड़ में षामिल काबीना मंत्री निशंक का पूरा सहयोग प्राप्त है। ऐसे में इस बार सीएम का ताज भगतदा को मिलता है तो कोई आष्चर्य की बात नहीं होगी।

Tuesday, August 5, 2008

सरकारी नौकरियां वोट की खातिर पूर्व सैनिकों को

राजेन्द्र जोशी

देहरादून : उत्तराखण्ड में सरकारी नौकरियां वोट की खातिर पूर्व सैनिकों को दी जा रही हैं। राज्य के लाखों बेरोजगार जहां नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैें वहीं खंण्डूरी सरकार पूर्व सैनिकों की संस्था उपसुल के माध्यम से पूर्व सैनिकों को नौकरी देने में प्राथमिकता दे रही है। खंण्डूरी की सरकारी नौकरियों में पहली पसंद राज्य के युवा बेरोजगार होकर रिटायर्ड फौजी हैं। विधानसभा चुनाव में बेराजगार और मंहगाई के मुददे पर सत्ता में आई भाजपा के लिए ये दोनों ही मुद्दे अब गौण हो गए हैं।
प्रदेश में सैनिकों और पूर्व सैनिकों की बड़ी सं ख्या है। जिसे जनरल खंण्डूरी वोट बैंक के रूप में देखते रहे हैं। इस वोट बैंक पर अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री ने विभिन्न सरकारी विभागों में राज्य गठन के बाद से अब तक संविदा अथवा दैनिक वेतन भोगी के रूप में काम कर रहे बेरोजगार युवाओं को हटा कर पूर्व सैनिकों को नौकरिंयां देनी शुरू कर दी है। फौज से रिटायरमेंट के बाद एक बड़ी धनराशि पाने के साथ ही इन्हे हर महीने अच्छी -खासी पेंशन भी मिलती है। जो इनके परिवार के गुजर बसर के लिए कम नहीं मानी जा सकती है। लेकिन वोट के कारण सरकार इन पर मेहरबान है। दूसरी ओर राज्य में पढ़े लिखे युवाओं की एक लम्बी जमात है जिनमें से कुछ को राज्य गठन के बाद सरकारी कामकाज कराने के लिए संविदा पर या दैनिक वेतनभोगी के रूप में पूर्व सरकारों ने नियुक्तियां दी थीं। ये युवा अपनी प्रतिभा और क्षमता से इन विभागों में कार्य कर रहे हैं। इनकी आंखों में यह ख्वाब था कि लगन और मेहनत से किये जा रहे काम के बदले उन्हे कभी तो स्थाई रोजगार मिलेगा। लेकिन वोट के चक्कर में आज उनकी सेवा समाप्त कर उपसुल के जरिए पूर्व सैनिकों को रोजगार देने के काम हो रहे हैं। प्रदेश में सचिवालय के अलावा कई अन्य विभागों में संविदा पर कार्य कर रहे बेरोजगार युवक इतने अनुभवी हो गए हैं कि वे अकेले ही कई सारे काम करते हुए राज्य के विकास को आगे बढ़ा रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से खंण्डूरी सरकार के सत्ता में आने के बाद इन युवाओं की संविदा की अवधि खत्म होने पर उनकी संविदा बढ़ाए जाने के लिए मुख्यमंत्री को प्रस्ताव भेजे गए जिस पर मुख्यमंत्री ने प्रस्ताव में संविदा की अवधि बढाने के बजाए उसे अस्वीकार कर दिया और इन पदों पर नियुक्ति के लिए पूर्व सैनिकों के निर्देश दिए। जिससे संविदा पर कार्य कर रहे युवाओं में हताशा है। इनमे से कई ने अपने परिवार तक बसा लिए हैं। लेकिन आज उनके सामने रोटी की समस्या पैदा हो गई है। क्योंकि स्थाई होने की जगह इनकी संविदा पर नियुक्ति ही रदद हो गई है। उधर विभिन्न सरकारी विभागों के अधिकारी भी सरकार के निर्देशों से परेशान है। क्योंकि एक अर्से से संविदा पर काम कर रहे लोग अनुभवी और काम में दक्ष हो गए थे। उनकी परेशानी यह भी है कि संविदा पर आने वाले पूर्व सेैनिकों को नए सिरे के कामकाज के तौर तरीकों से वाकिफ कराना पड़ेगा। ऐसे में लगभग तीन महीने तक विभिन्न सरकारी विभागों में कामकाज प्रभावित होने की आशंका है। इस बीच प्रतिपक्ष का आरोप है कि उपसुल के जरिए होने वाली नियुक्तियों में सरकार में बैठे लोगों को व्यक्तिगत रूप से आर्थिक लाभ भी पहुंचेगा। जैसा कि आम तौर पर आउटसोर्सिगं के मामले में सेवा प्रदाता कम्पनियां नियुक्ति अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से आर्थिक लाभ पहुंचाती हैं। राज्य में सेवाप्रदाता कम्पनियां सर्विस टैक्स के रूप में दस फीसदी कमीशन लेेती हैं। साथ ही नियुक्त कर्मचारी को सरकार से मिलने वाले वेतन में कटौती करके उन्हे प्रतिमाह कम धनराशि देती हैं। एक सरकारी अधिकारी के अनुसार उनके विभाग में अगर 100 रूपए प्रति दिन के रूप में संविदा पर काम करने वाले कर्मचारी को एक माह में तीन हजार रूपए दिए जाते हैं तो सेवा प्रदाता कम्पनी उसे मात्र दो हजार रूपए देती हैं। यह आर्थिक शोषण की एक बानगी है। इस तरह कई उदाहरण पावर कारपोरेशन सहित कई अन्य विभागों में देखने को मिलते हैं। जहां भूतपूर्व सैनिकों का शोषण किया जा रहा है।
सवाल यह है कि राज्य सरकार आउटसोर्सिगं की तर्ज पर उपसुल (पूर्व सैनिकों के कल्याण के लिए बनाई गई स्ंास्था) के रिटायर्ड फौजियों को नौकरी दे रही है ऐसे में राज्य के पढ़े लिखे बेराजगार युवा अखिर जांए तो जांए कहां ?