Thursday, November 27, 2008

आतंकवाद पर ओछी राजनीति निंदनीय

राजेन्द्र जोशी
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में बुधवार की रात आतंकवाद का जो तांडव देखने को मिला, उसके बाद तो राजनेताओं और नौकरशाहों के सिर शर्म से झुक जाने चाहिए। लेकिन आज फिर वही खोखली राजनीति से प्रेरित बयानबाजी ही सामने आई। देश में आतंकी हमले होते हैं हमले में कई बेगुनाह मारे जाते हैं । मरने वालों के परिजनों को मुआवजा देकर सरकार फोर्मेलिटी निभा देती है । विस्फोटों की जांच के लिए जांच एजेंसियां गठित कर दी जाती हैं और जब तक ये जांच एजेंसियां जांच करती है । कई और धमाके हो जाते हैं । सभी घटनाओं के बाद प्रारंभ की गईं जांचें या तो कभी पूरी नहीं हुईं या फिर वे असली अपराधियों की गर्दन तक पहुंचने के बजाए निरपराध लोगों की धरपकड़ करने, उन्हें कानूनी पेचीदिगियों में उलझाने या उन्हें परेशान करने तक सीमित होकर रह गईं। अगर कोई असली अपराधी पकडा भी गया तो बजाये उसे कड़ी से कड़ी सज़ा देने के उस पर राजनीती शुरू हो जाती है । जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण है अफज़़ल गुरू । इतने सालों की आतंकी यातनाओं के बाद भी केंद्र सरकार अपने खुफिया तंत्र भौतिक और तकनीकी रूप से मजबूत करने का काम तो कर ही सकती थी ताकि भले ही आतंकवादियों के नापाक मंसूबों को पूरी तरह रोका नहीं भी जा सके लेकिन कम से कम इन पर इतना अंकुश तो लगे के आम आदमी को इतना भरोसा हो कि सरकारें आतंकवाद के खिलाफ सक्रिय रूप से काम कर रहीं हैं । पिछले दो सालों में देश के अलग अलग शहरों में आतंकवादी एक के बाद एक विस्फोट कर रहे हैं और सैकड़ों लोगों की जानें बेवजह जा रही हैं कई घर उजड़ जाते हैं । कितनी गोदें सूनी हो जाती हैं पर किसी के पास इन्हें रोकने या कम करने का कोई उपाय नहीं है। हर हमले के बाद सता के गलियारों में बैठे नेता मीडिया के समक्ष मरने वालों के परिजनों के लिए अपनी सांत्वना व्यक्त करते हैं और खोखली राजनीती से प्रेरित मुआवजे की घोषणा करते हैं । घटना स्थल के दौरों और आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है केंद्र और राज्य सरकारें एक दूसरे की नाकामी पर बयानबाजी करते नजऱ आते हैं । लेकिन इन बयानों से आतंकवाद के खिलाफ कोई भी कार्यवाही कर पाने में नेता स्वयं को ही असमर्थ सिद्ध करते हैं । आतंकी वारदात के बाद विपक्ष केंद्र सरकार पर असमर्थता के आरोप लगाता है और केंद्र सरकार निराशा में पैर पटकती नजर आती है। इतना ही नहीं दोनों ही अपने मुह मियाँ मि_ू बनने की कोशित में लगे रहते हैं और यहाँ कहने में जऱा भी शर्म महसूस नहीं करते कि आतंकवाद के खिलाफ सफलतापूर्वक कार्रवाई उन्हीं के द्वारा की गई है। देश के हर नागरिक को हर तरह की हिंसा और अन्याय से संरक्षण मिलने का अधिकार है । लेकिन केंद्र और राज्य सरकारें आतंकवाद से निपटने में पूरी तरह से नपुंसक साबित हो रही हैं। आज आम आदमी की सबसे बड़ी चिंता स्वयं और अपने परिजनों की सुरक्षा को लेकर है। विकास तो दूर की बात है । आज कोई भी व्यक्ति विश्वास से यह कह पाने में कतराता है कि सुबह घर से निकलने के बाद शाम को वह सही सलामत घर पहुँच भी जायेगा या नहीं । आतंकवादी धर्म के नाम पर देश की फिजा बिगाडऩे को तुले हुए हैं दूसरी और हमारे देश के नेतागण धर्म और जात के नाम पर राजनीति करने ने नहीं चूक रहे। देश पहले ही धर्मवाद और क्षेत्रवाद के आतंरिक कलह से जूझ रहा है । ऐसे में अगर राजनेता अपनी खोखली राजनीति से बाज नहीं आते और इसी तरह से शासन चलाते हैं तो वे भारत को एक सूत्र में नहीं पिरो सकते । और उसे विकास की राह पर नहीं ले जा सकते । आज समय की जरूरत है कि सरकार और विपक्ष दोनों वक्त की नजाकत को समझें और राज्य सरकारों से बेहतर तालमेल बना राजनीति से परे कुशल शासन दे । जिसकी देश की जनता आशा रखती है

Tuesday, November 25, 2008

अभिनव भारत पर आरोप निराधार-हिमानी सावरकर

imageअभिनव भारत की अध्यक्ष हिमानी सावरकर

हिमानी सावरकर उस संस्था अभिनव भारत की अध्यक्ष हैं जिसके ऊपर मालेगांव विस्फोट की योजना बनाने का आरोप लग रहा है. वे वीर सावरकर के छोटे भाई नारायण दामोदर सावरकर की पुत्रबधू और नाथूराम गोड्से के छोटे भाई गोपाल गोड्से की पुत्री हैं. अभिनव भारत के साथ-साथ वे हिन्दू महासभा की अध्यक्ष भी हैं. वे दिल्ली आयीं थी, इसी यात्रा के दौरान हमने उनसे मिलकर मालेगांव विस्फोट के सिलसिले में लंबी बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश-

अभिनव भारत के बारे में बताईये?
अभिनव भारत की स्थापना स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने १९०४ में की थी. लेकिन १९५२ में उन्होंने खुद इस संस्था को विसर्जित कर दिया था. उनका कहना था कि स्वतंत्रता प्राप्ति का लक्ष्य पूरा हो गया अब इस संस्था की जरूरत नहीं है. लेकिन इधर पिछले कुछ सालों से जिस तरह से देश पर आतंकवादी हमले बढ़ रहे हैं उसने हिन्दू समाज के सामने एक नये तरह की चुनौती पेश कर दी है. इसको देखते हुए इस संस्था को २००६ में पुनः गठित किया गया. इसी साल अप्रैल में मैं इस संस्था की अध्यक्ष बनी.

और आपके आते ही धमाके शुरू हो गये?
हमारे ऊपर जो आरोप लगाये गये हैं उनमें कोई सच्चाई नहीं है. सरासर झूठ है. हकीकत में कहीं कुछ है ही नहीं. एक महीने से एटीएस तरह-तरह से जांच कर रही है, पकड़े गये लोगों का नार्को करके सच सामने लाने का दावा कर रही है. अब तक क्या निकला है? आज एटीएस एक दावा करती है और अगले ही दिन उसका खण्डन करना पड़ता है. पहली बात तो यह है कि नार्को टेस्ट प्रमाणित ही नहीं मानी जाती. अगर ऐसा होता तो तेलगी के नार्कों के आधार पर अब तक शरद पवार और भुजबल को अभियुक्त होना चाहिए था. 

लेकिन विस्फोट के सिलसिले में आप लोगों ने बैठक की या नहीं?
ऐसी कोई मीटिंग नहीं हुई है. अगर हम एटीएस के दावों को ही सही मान लें तो क्या मीटिंग करना कोई अपराध है? और मीटिंग हुई तो क्या लोगों ने वहां बम विस्फोट की प्लानिंग की? उनके सारे आरोपों का आधार नार्को टेस्ट है. बेहोश आदमी क्या बोलता है, इसको प्रमाण मानकर वे लगातार आरोप लगा रहे हैं. 

आपको समझना होगा कि यह सारा काम हिन्दू समाज को अंदर से तोड़ने के लिए किया जा रहा है. इसकी शुरूआत शंकराचार्य की गिरफ्तारी से होती है. आप देखिए उसके बाद कितने हिन्दू सन्तों को किस-किस तरह से परेशान किया जा रहा है. शंकराचार्य के बाद रामदेव बाबा, फिर तोड़कर महाराज, फिर संत आशाराम और अब श्री श्री रविशंकर पर भी आरोप लगाये जा रहे हैं. क्या यह सब देखकर भी समझ में नहीं आता कि ये सारे काम किसके इशारे पर और क्यों किये जा रहे हैं? हिन्दू संत अब शिविर नहीं ले सकते. श्री श्री रविशंकर के बारे में कहा जा रहा है वे दिन में शिविर लेते हैं और रात में दूसरे प्रकार का प्रशिक्षण देते हैं. जबकि इसी साल १५ अगस्त को बंगलौर में खुलेआम पाकिस्तान समर्थकों ने २५ हजार लोगों की फौज बनाकर परेड कराई लेकिन उसकी कहीं कोई चर्चा नहीं हुई.  

आपकी नजर में इसके लिए दोषी कौन है?
कांग्रेस ही एकमात्र दोषी है. वह नहीं चाहती कि इस देश के हिन्दू एक हों. वह सालों से बांटों और राज करो की नीति पर काम कर रही है. यह सब जो हो रहा है वह अपनी नाकामी को छिपाने के लिए इस तरह के षण्यंत्र को अंजाम दे रही है. 

साध्वी प्रज्ञा आपसे जुड़ी हुई हैं?
हां, एकाध सभाओं में वे शामिल हुई हैं. लेकिन इसका मतलब आप क्या निकालना चाहते हैं?

कर्नल पुरोहित, या समीर कुलकर्णी?
नहीं. कर्नल प्रसाद पुरोहित एक सरकारी अधिकारी हैं. वे सरकारी अधिकारी रहते हुए किसी संस्था के सदस्य कैसे हो सकते हैं? हां, वे सेना के खुफिया विभाग में है. वे हमसे संपर्क में थे तो क्या काम कर रहे थे यह एटीएस कैसे निर्धारित कर सकती है? हो सकता है वे अपनी सेवाओं के तहत ही हमसे संपर्क में आये हों. सारी दुनिया यह देख रही है और हंस रही है कि हम अपने ही सेना के साथ क्या कर रहे हैं. अगर सेना में इस बात को लेकर विद्रोह हो गया तो क्या होगा? 
कर्नल पुरोहित पर बम बनाने का आरोप लगा रहे हैं. क्या आपको पता है कि सेना में बम बनाने की शिक्षा ही नहीं दी जाती. कह रहे हैं कि पुरोहित ६० किलो आरडीएक्स लेकर गये सूटकेस में. क्या यह संभव है? वहां एक एक ग्राम का हिसाब होता है. ६० किलो आरडीएक्स उठाकर ले जाना कोई आलू प्याज उठाकर ले जाना नहीं है. ६० किलो आरडीएक्स को सुरक्षित रूप से एक से दूसरे जगह पहुंचाने के लिए रेलवे के दो वैगन जितनी जगह चाहिए.

मैं अभी समीर कुलकर्णी से मिली थी खिड़की न्यायालय में. मैं देखकर दंग रह गयी कि उनके साथ कितनी मारपीट की जा रही है. आठ दिन तक समीर कुलकर्णी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाया. कर्नल पुरोहित का १६ किलो और समीर कुलकर्णी का वजन २० किलो घट गया है. क्या इन बातों की जानकारी आपको है? आपको वही पता है जो एटीएस बता रही है. आखिर इतना जुल्म इन लोगों पर किस बात के लिए किया जा रहा है. इसीलिए न कि एटीएस जो कहती है वे इसे स्वीकार कर लें. और करकरे कहते हैं कि वहां पिटाई नहीं हो रही है. एटीएस औरंगजेब से ज्यादा क्रूर व्यवहार कर रही है.

एटीएस ने आपको भी संपर्क किया है?
अभी तक नहीं किया है. आगे करेगी तो पता नहीं. 

केन्द्र सरकार का हस्तक्षेप नहीं है?
केन्द्र में बैठी कांग्रेसी सरकार को इससे तो फायदा है. वह तो हिन्दू आतंकवाद के नये दर्शन से ही खुश है. वह क्यों हस्तक्षेप करेगी. 

आपकी किसी से मुलाकात हुई है?
हम केन्द्र सरकार में कुछ लोगों से मिलने की कोशिश कर रहे हैं और उनसे मिलकर सारी बातें साफ तौर पर उनके सामने रखेंगे. आगे वे जैसा करना चाहें. 

आपकी संस्था को प्रतिबंधित किया जा सकता है?
हमें इस बात की कोई चिंता नहीं है. सरकार को अगर यही उचित लगता है तो वह कर सकती है.

और हिन्दू धर्म में इस तरह हिंसा को स्थापित करना कहां तक जायज है?
हमारा हिंसा में कोई विश्वास नहीं है. हम निरपराध लोगों को नुकसान पहुंचाने के पक्ष में कतई नहीं हैं. लेकिन हम इतना जरूर कहते हैं कि अगर आप हमें नुकसान पहुंचाने की कोशिश करोगे तो हिन्दू समाज भी चुप नहीं बैठेगा. अगर हिन्दू समाज पर कोई अन्याय करेगा तो हम ईंट का जवाब पत्थर से भी देना जानते हैं. जो हमारे ऊपर मारने के लिए हाथ उठायेंगे तो हम उसका हाथ तो पकड़ेगें. 

क्या कुछ हिन्दूवादी नेताओं से आपकी बात हुई है?
हमारी जिनसे भी बात हुई है वे सब यही कह रहे हैं कि यह जो कुछ हो रहा है वह गलत है. सब एक पार्टी विशेष के इशारों पर हो रहा है और हम सब इस मामले एक होकर संघर्ष करेंगे.

संघर्ष से आपका आशय?
अहिंसक संघर्ष और क्या? और हम क्या कर सकते हैं. जो लोकतांत्रिक तरीके हैं हम उनके ही जरिए संघर्ष करेंगे.

आप भगवा राजनीति की बात कर रही हैं. लेकिन इसी भगवा राजनीति में राज ठाकरे भी हैं.
हम हिन्दवी राजनीति में जातिवाद, क्षेत्रवाद को समर्थन नहीं करते हैं.

आपके भगवा राजनीति में धार्मिक अल्पसंख्यकों की जगह कहां है?
वीर सावरकर ने कभी यह नहीं कहा था कि गैर-हिन्दुओं को मारो काटो या देश से निकाल दो. उन्होंने कहा था कि इस देश में जिनको रहना है वह हिन्दू राष्ट्र का अंग होकर रहेगा. यहां मैं हिन्दू को धर्मवाचक नहीं बल्कि राष्ट्रवाचक संज्ञा के रूप में रख रही हूं. कानून की नजर में सबको एक समान होना होगा, सबकी निष्ठा यहां होगी.

अभिनव भारत को लेकर क्या योजनाएं हैं?
अभिनव भारत राजनीति नहीं करेगा. हम तरूणों को अभिनव भारत में शािमल करेंगे. उनके जरिए यह संदेश लोगों तक ले जाएंगे कि यह देश हमारा है और हम इसपर होनेवाले किसी हमले को स्वीकार नहीं करेंगे और हर प्रकार के लोकतांत्रिक तरीके से इसका जवाब देंगे. वीर सावरकर का जो मंत्र है- राजनीति का हिन्दूकरण और हिन्दुओं का सैनिकीकरण. हम उस आदर्श को स्थापित करने के लिए काम करेंगे.

(विस्फोट डाट काम के सौजन्य से)

Wednesday, November 19, 2008

हिन्दू आतंकवाद का अस्तित्व साबित करने का अभियान

पटकथा जैसा परीक्षण: डा. दिलीप अग्निहोत्रीं  
मालेगांव बम विस्फोट की सच्चाई तक पहुंचने के लिए निष्पक्ष जाॅंच की आवष्यकता है, लेकिन आतंकी मसले पर सरकार की इतनी सक्रियता प्रथम दृष्टया संदेह उत्पन्न करती है। केन्द्र की संप्रग सरकार हो या महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार आतंकवाद के खिलाफ ऐसी तेजी तेजी दिखलाना तो इनकी फितरत नहीं थी। इनके कार्यकाल में आतंकी हमलों का अंतहीन सिलसिला चलता रहा, बार-बार दोहराने के बाद भी इसके कठोर कदमों को उठते कभी नहीं देखा गया। यहां तक कि संदिग्धों से ज्यादा पूॅछताछ भी इन्हें मंजूर नहीं थी, वर्ग विषेष पर कोई संदेह ना करे इसलिए संदिग्धों के प्रति बहुत उदारता का व्यवहार किया गया। जिसे सर्वाेच्च न्यायालय ने बेगुनाहों की हत्या में शामिल होने मौत की सजा दी, वह धर्मनिरपेक्षता की प्रतीक बनकर प्रतिष्ठित है, आसाम, बंगाल में विदेषी इस्लामी आतंकी गिरफ्तार किए गए, लेकिन पुलिस बलों ने पता नहीं किस दबाव में सामान्य तहकीकात भी नहीं की और वह मुक्त कर दिऐ गए। सैकड़ों विस्फोेट हजारों निदोष व्यक्तियों की मौत के बाद भी आज तक किसी संदिग्ध आरोपी का नार्को टेस्ट नहीं लिया गया। उनके लिए यह आष्वासन पूरी दृढ़ता से अमल में था कि पोटा नहीं लगाया जाऐगा। मालेगाॅव विस्फोट में साध्वी प्रज्ञा का नाम आने पर सरकार नींद से जागी, उसके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं था, लेकिन सरकार व जाॅच एजेन्सियो के अस्वभाविक तौर तरीकों से यह संदेष दिया गया कि देष हिन्दू आतंकवाद की चपेट में है। हिन्दू धर्म का उदय कब हुआ, इसका समय कोई नहीं बता सकता, लेकिन पहली बार हिन्दू आतंकवाद शब्द सुनाई पड़ा। जबकि विषाल हिन्दू मान्यताओं में जिहाद जैसी कोई कल्पना नहीं की गई। लेकिन बिडम्बना यह है कि हिन्दू आतंकवाद का अस्तित्व साबित करने का अभियान चलाया जा रहा है। अन्यथा साध्वी का नारको टेस्ट आदि कराने का फैसला क्यों लिया जाता। यह भी संयोग था कि जिस समय साध्वी और उनसे किसी भी रुप में परिचित लोगों के नारकोटेस्ट का सिलसिला चल रहा था, उसी समाय लखनऊ में आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यषाला में ओहियो (अमेरिका) में कार्यरत डा. आ.के.मिश्र ने दावे के साथ कह रहे थे कि नारको टेस्ट यातना और नाटक के अलावा कुछ नहीं है। यह वैज्ञानिक व कानूनी नहीं है। यदि परीक्षण सुनिष्चित विज्ञान पर आधारित नहीं हैं। यदि परीक्षण सुनिष्चित विज्ञान पर आधारित नहीं है, तब निष्कर्ष नहीं दिया जाना चाहिए। केवल अनुमान के के आधार पर चलने वाले नारकोटेस्ट से इस प्रकार निष्कर्ष निकाले व सार्वजनिक किये जाते है, जैसे यही पूर्ण व अंतिम सच है। यह कितना वैज्ञानिक है, वह साध्वी मामले में देखा जा सकता है, चार बार उनका नारकोटेस्ट हुआ, उसमें कोई भी तथ्य नहीं मिला। इसका वैज्ञानिक कारण यह बताया गया कि उनकी योगषक्ति के सामने यह तकनीक काम नहीं कर रही है। इस आधार पर तो योगषक्ति होने पर अलग-अलग परिणाम दिखाई देंगे। साध्वी प्रज्ञा के आवास में तलाषी के दौरान भी कुछ नहीं मिला था। केवल संदेह के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया कि वही मालेगांव विस्फोट की मास्टर माइंड थी। विस्फोट के लिए आर.डी.एक्स कहाॅं से मिला ? तब सैन्य अधिकारी पर संदेह हुआ, संदेह का आधार यह था कि वह साध्वी को जानता था। फिर क्या था यह श्रंृखला आगे बढ़ी यह सैन्य अधिकारी दूसरे पूर्व सैन्य अधिकारी से परिचित था, इस आधार पर यह भी संदिग्ध आतंकी बताया गया। सैन्य अधिकारी के तीन दिनों तक चले नारको व अन्य टेस्टो से कोई ठोस जानकारी नहीं मिला, लेकिन साध्वी की जगह ले. कर्नल पुरोहित को मालेगाॅंव विस्फोट का मास्टर माइंड घोषित कर दिया गया। फिर एक अन्य धर्मगुरु को मास्टर माइंड बताया गया। कहा गया कि उनका ‘सनसनीखेज’ वीडियो है, जिसमें वह देष को तोड़ने, नफरत फैलाने की बात कर रहे हैं। यदि जम्मू-कष्मीर के हिन्दुओं की त्रासदी बयान करने से ऐसे आरोप लगते हैं, तो यह मानना पड़ेगा कि वह पाकिस्तान के समर्थन में नारे बुलंद करने वाले देष की एकता-अखण्डता मजबूत करने और सौहार्द फैलाने का काम कर रहे हैं। आयुषी तलवार मामले में पुलिस और इलेक्ट्रानिक मीडिया की भूमिका को याद कीजिए, निष्कर्ष इनके पास पहले से मौजूद था, केवल फिल्मी अंदाज में कहानी व पटकथा का संयोजन किया जा रहा था। इलेक्ट्रानिक मीडिया के संवाददाता हवा में तीर चलाते जासूस की मानंद चीख-चीख कर खुलासा करने का दावा कर रहे थे। वहीं पुलिस ने इनकी मेहनत भी नहीं की, पुलिस महानिरीक्षक जैसा महत्वपूर्ण व वरिष्ठ अधिकारी इस प्रकार बयान दे रहा था, जैसे आॅंखों देखी तस्वीर सामने ला रहे हैं। गमो के बोझ में दबा वह पिता शायद कुछ कहने की स्थिति में नहीं था और जिस बच्ची पर आरोप लगाया गया वह अपनी बात कहने के लिए दुनिया में मौजूद नहीं थी। पता नहीं उक्त आई.जी. ने अपने लंबे कैरियर में कितनी घटनाओं की जाॅंच की होगी ? इस प्रकरण को साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी से जोड़कर देखिए। यहां भी केवल शक है कि मालेगांव बम बिस्फोट में उनका हाथ था। ये बात अलग है कि इस शक को को कोई आधार फिलहाल नहीं है। लेकिन महाराष्ट्र पुलिस और कई इलेक्ट्रानिक चैनल निष्कर्ष निकाल चुके है। कहाॅं-कब आतंकी प्रषिक्षण षिविर चला फिर कैसे बमविस्फोट को अंजाम दिया गया, इसकी पूरी कहानी तैयार है। साध्वी प्रज्ञा के आवास पर छापा मारा गया, प्रायः सभी सामान ऐसा ही था जो किसी हिन्दू साध्वी के पास हो सकता है, लेकिन आतंकी सरगना बताने के शक का क्या किया जाय ? एक इलेक्ट्रानिक चैनल ने आपत्तिजनक वस्तु बरामद होने का खुलासा किया, वह था कुछ समाचार पत्रों की कटिंग व जिसमें हिंसक घटनाओं की चर्चा थी। क्या यह बताने की कोषिष की जा रही थी कि अखबारों की चंद कतरनें उन्हें आतंकी साबित करने का पुख्ता आधार है। साध्वी प्रज्ञा पहले विद्यार्थी परिषद् की सदस्य थी, भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह व मध्य प्रदेष के भाजपा मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान के साथ वह फोटों में दिखाई दे रही है- यह आतंकी होने का प्रमाण है ? एक सैन्य अधिकारी को वह जानती थी, वह सैन्य अधिकारी दूसरे अवकाष प्राप्त सैन्य अधिकारी को पिछले दस वर्ष से जानता था, इसलिए मालेगांव विस्फोट में प्रज्ञा का हाथ था ? जाहिर है कि इस मामले में भी निष्कर्ष तैयार है, कथानक के सूत्र जोड़ने के प्रयास किये जा रहे हैं। वहीं अनेक नेता निष्कर्ष निकालने में ज्यादा आगे निकल गये, उन्होंने हिन्दुवादी संगठनों को आतंकी करार देते हुए उन पर प्रतिबंध लगाने की मांग शुरू की है। पुलिस के शक की सूई भी अपना काम कर रही है, पहले सैन्य अधिकारियों की तरफ घूमी फिर माले गांव में प्रयुक्त आर.डी.एक्स. की बात चली तो स्वभाविक रुप से शक की सूई सेना के आयुध भण्डार की तरफ घूम गई। जबकि विष्वस्त सूत्रों के अनुसार आर.डी.एक्स. सेना का ‘सर्विस गोला बारुद’ है ही नहीं ऐसे में सैन्य डिपो से आर.डी.एक्स. की बात में ज्यादा दम नहीं है। तहकीकात के नाम पर एटीएस के सभी कदम संदेह के आधार पर उठ रहे हैं। इस आधार पर हिन्दू आतंकवादी कल्पना करने वाले, संरक्षण देने वाले, टेªनिंग देने वाले तथा बम रखने वाले सभी पर एटीएस का संदेह दूर करने का दारोमदार है। बकौल पुलिस इतने सुनियोजित ढ़ंग से हिन्दुआतंकवाद ने मालेगांव को निषाना बनाया, जिससे छः लोग मारे गए थे। इस मामले पर महाराष्ट्र पुलिस की सक्रियता आष्चर्यजनक। अभी वह संदेह के आधार पर कहां-कहां पहुंचेगी, कहा नहीं जा सकता, लेकिन संदेह तो यह हो रहा है जैसे महाराष्ट्र सरकार ने हिन्दू आतंकवाद के मद्देनजर की ‘महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रक अधिनियम’ (मकोका) बनाया था। इसमें संदिग्ध आरोपी को छः महीने तक कैद में रखा जा सकता है। पोटा जैसे कानून को हटाने वाली सप्रंग सरकार ने महाराष्ट्र को मकोका लागू करने पर सहमति दी, और मालेगांव भी महाराष्ट्र में है, क्या यह केवल संयोग है।

Sunday, November 9, 2008

कोश्यारी को राज्यसभा भेज केन्द्र ने साधे कई निशाने एक साथ

भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को राज्य सभा में भेजे जाने के निर्णय से कोश्यारी तो कतई खुश नहीं हैं लेकिन इस फरमान से मुख्यमंत्री भुवनचन्द्र खंण्डूड़ी तथा प्रदेश अध्यक्ष बच्ची सिंह रावत भी खुश नहीं बताये जा रहे हैं। अब तक प्रदेश में काबिज अपनी ही सरकार के कार्यों से नाखुश विधायकों का नेतृत्व कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को अचानक राज्य सभा में भेजे जाने को भाजपा आला कमान द्वारा एक तीर से कई निशाने साधने के रूप में देखा जा रहा है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार केन्द्र ने यह फैसला बड़े ही सोच समझ कर लिया बताया जा रहा है। यही कारण है कि इस फैसले से कोई भी खुश नजर नहीं आ रहा है। राजनैतिक विश£ेषकों के अनुसार इस फैसले से कोश्यारी इस लिए खुश नहीं हैं कि उन्हे प्रदेश की राजनीति से केन्द्र ने जानबूझकर दूर करने का प्रयास किया। जबकि उनकी इच्छा कतई भी राज्यसभा में जाने की नहीं थी और केन्द्र ने उन्हे जबरन वहां जाने का फरमान सुना दिया। हालांकि सूत्र बताते हैं कि केन्द्र ने यह फैलसा इस लिए लिया कि सरकार की खिलाफत कर रहे विधायकों का नेता ही जब केन्द्र चला जाएगा तो प्रदेश में अब उनका नेतृत्व कौन करेगा लिहाजा सरकार के खिलाफ चल रहे शीत युद्घ में कुछ क मी तो जरूर आएगी और मुख्यमंत्री खंण्डूड़ी निर्बाध रूप से सरकार चला पाएंगे। लेकिन इधर खंण्डूड़ी विरोधी गुट का कहना है कि कोश्यारी के केन्द्र में जाने से कोई फर्क नहीं पडऩे वाला उनका आन्दोलन जारी रहेगा। कोश्यारी को राज्य सभा में भेजने के फैसले से मुख्यमंत्री तथा प्रदेश अध्यक्ष बच्ची सिंह रावत तक भी खुश नहीं बताए गए हैं। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि भगत सिंह कोश्यारी के राज्य सभा में भेजे जाने की घोषणा के तीन दिन बाद तक इन दोनों नेताओं में से किसी ने भी कोश्यारी को वहां जाने की बधाई तक नहीं दी। इस नाखुशी के पीछे के कारणों पर प्रकाश डालते हुए राजनैतिक विश£ेषकों का मानना है कि कोश्यारी के राजनीतिक कद व संघ तथा भारतीय जनता पार्टी को उनके द्वारा दिये गये अपने सम्पूर्ण जीवनकाल के कारण उनका भाजपा के केन्द्रीय नेताओं से सीधा सम्पर्क तो है ही साथ ही उनकी वरिष्ठïता को कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता इसलिए यहां के नेताओं को इस बात का खतरा है कि कोश्यारी के केन्द्र में जाने से प्रदेश की सभी कच्ची -पक्की बातें वहां तक पहुंच जाएंगी। जिससे इनकी पोल-पट्टïी जो अब तक छिपी हुई थी वह वहां भी सार्वजनिक होगी जिसका खामियाजा इन्हे भुगतना पड़ सकता है। राजनीतिक विश£ेषकों के अनुसार अभी तक प्रदेश में क्या कुछ भाजपा में चल रहा है अथवा क्या कुछ सरकार में चल रहा है उसकी सही तस्वीर केन्द्रीय नेताओं तक इसलिए नहीं पहुंच पा रही थी कि इन दोनों ने प्रदेश प्रभारियों को खरीद लिया था और जो कुछ ये प्रदेश प्रभारियों को फीड करते थे वह बात ही केन्द्र तक पहुंचती थी शेष बात बीच में ही गायब हो जाती थी। यही कारण है कि बीच में प्रदेश प्रभारियों क ी कार्यप्रणाली पर प्रदेश के विधायकों सहित मंत्रियों तक ने उंगुलियां उठाई थी और केन्द्र को प्रभारी बदलने पर सोचना पड़ रहा है। जहां तक प्रदेश अध्यक्ष बच्ची सिंह रावत की नाखुशी के बारे में राजनीतिक विश£ेषकों का कहना है कि भाजपा आलाकमान की इस घोषणा के बाद वे अब कहीं के नहीं रहे। या तो उन्हे भगत सिंह कोश्यारी के राज्य सभा में जाने के बाद उनकी खाली हो रही विधानसभा सीट कपकोट से विधानसभा चुनाव लडऩा होगा या फिर वे राजनीति के बियावान में यूं ही भटकते रहेंगे। सूत्रों के अनुसार उन्हे पूरी उम्मीद थी कि भाजपा आलाकमान उन्हे राज्य सभा की सीट से टिकट देकर राज्य सभा का पास जारी कर देगा लेकिन ऐन वक्त पर कोश्यारी को उनके न चाहने के बाद भी टिकट देने से बच्ची दा की आशाओं पर पानी फिर गया, और वे कहीं के नहीं रहे।

Saturday, November 1, 2008

अनोखी परंपरा है अग्नि भेंट सेवा

दीपक फरस्वाण,
देहरादून:  जो धार्मिक ग्रंथ गुटका वृद्ध हो गया, उसका क्या किया जाए-यह ऐसा सवाल है, जो हर घर में कभी न कभी अवश्य उठता है। दुविधा यह रहती है कि जिन पुस्तकों ने ज्ञान और भक्ति का मार्ग दिखाया, उनके पन्नों के फटने, पुराने हो जाने पर उनका किया क्या जाए? रास्ता दिखाता है देहरादून का खुशहालपुर गांव। यहां एक ऐसा गुरुद्वारा है, जहां दुनिया भर से फटे- पुराने धार्मिक ग्रंथ लाकर उन्हें सम्मान पूर्वक अग्नि के हवाले किया जाता है। इस अग्नि भेंट सेवा का मकसद पवित्र ग्रंथों को बदहाली से बचाना और उनका सम्मान करना है। मनुष्य देह की तर्ज पर धार्मिक ग्रंथों का भी अंतिम संस्कार होता है। खुशहालपुर स्थित गुरुद्वारे को अंगीठा साहिब नाम से जाना जाता है। यहां गुरु के उस वचन को पूरा किया जाता है, जिसमें उन्होंने धार्मिक ग्रंथों व पुस्तकों को बदहाली से बचाने की बात कही थी। गुरुद्वारे के सेवक हर साल दुनिया घूम कर सभी धर्मो के फटे-पुराने ग्रंथों को एकत्र करके अंगीठा साहेब लाते हैं। गुरुद्वारे में इन ग्रंथों को मखमली कपड़े से साफ कर सफेद चादर में लपेटकर रखा जाता है और अग्नि भेंट सेवा का आयोजन होता है। गुरुद्वारे के एक हाल में 24 अंगीठे बनाए गए हैं। अग्नि भेंट सेवा में पीला चोला पहने पंच प्यारों की भूमिका अहम होती है। इस अनूठी सेवा की प्रक्रिया भी रोचक है। गुरु सेवक विधि-विधान के साथ एक-एक ग्रंथ को अपने सिर पर रखकर गुरुद्वारे से हाल तक पहुंचाते हैं। एक बार में सिर्फ छह अंगीठों को ही लकडि़यों से सजाते हैं। प्रत्येक अंगीठे के ऊपर 13-13 ग्रंथ, 13 चादरों और 13 रूमालों के बीच रखे जाते हैं। पंच प्यारे हर अंगीठे की 5-5 परिक्रमा करने के बाद अरदास के साथ अग्नि प्रज्वलित करते हैं। एकत्रित सभी ग्रंथों के संस्कार तक यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। दूसरे दिन कच्ची लस्सी का छींटा मारकर प्रत्येक अंगीठे से फूल (ग्रंथों की राख) चुने जाते हैं। अग्नि भेंट सेवा का अंतिम चरण हिमाचल प्रदेश के पांवटा साहिब में पूर्ण होता है। पंच प्यारों द्वारा अंगीठों से चुने गए फूलों को विधि-विधान से पांवटा साहिब स्थित गुरुद्वारे के पीछे यमुना नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के बयान से बवाल, ठंडी हो रही आग में बयान बना घी

राजेन्द्र जोशी देहरादून : नौ नवम्बर को प्रदेश का स्थापना दिवस मनाया जाने वाला है लेकिन इस दिन से पहले प्रदेश भाजपा सरकार तथा संगठन में फेरबदल की पूरी संभावना है। जानकार सूत्र बताते हैं कि इस फेरबदल में कुछ विधायकों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी जा सकती हैं। इसके अलावा राज्य भाजपा में उत्पन्न संकट के लिए जवाबदेही भी तय की जा रही है। सूत्र बताते हैं कि केन्द्रीय नेतृत्च प्रदेश प्रभारी तथा सह प्रभारी की भूमिका को इस मामले को बढ़ाने में ज्यादा जवाबदेह मानता है। यहीं कारण है कि प्रदेश भाजपा में मचे घमासान की गाज प्रदेश सह प्रभारी अनिल जैन पर गिर सकती है। क्योंकि केन्द्रीय नेतृत्व असंतुष्टïों की बार-बार दिल्ली दौड़ को इन प्रदेश प्रभारियों की विफलता भी मानने लगा है। वहीं दूसरी ओर जहां केन्द्रीय नेतृत्व प्रदेश में उपजे असंतोष को दबाने का प्रयास कर रहा है वहीं दूसरी ओर ऐसे मौके पर प्रदेश अध्यक्ष बच्ची सिंह रावत के बयान ने एक बार फिर भाजपा में घमासान को हवा दे दी है। जिस पर भाजपा के वरिष्ठï नेताओं सहित कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत ने भी तीखी टिप्पण की है। उन्होने तथा भाजपा के वरिष्ठï नेता भगत सिंह कोश्यारी ने तो साफ कहा है कि अब प्रदेश अध्यक्ष को साफ करना होगा कि किस विधायक के माफियाओं तथा बिल्डरों से रिश्ते हैं। प्रदेश अध्यक्ष बच्ची सिंह रावत के बयान कि ''विपक्ष के कुछ नेताओं तथा कुछ माफियाओं व बिल्डरों के द्वारा भाजपा सरकार को अस्थिर करने के लिए भाजपा विधायकों को धन का प्रलोभन देकर इस्तीफा दिलवाने की खबरों पर पार्टी नेतृत्व गम्भीरता से विचार करेगा और यदि इस प्रकार की खबरों में कोई सच्चाई सामने आई तो किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा चाहे वह कितना ही बड़ा नेता क्यों न हो।ÓÓ पर भाजपा के वरिष्ठï नेता भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि सागर में लहरें उठती ही रहती हैं उन्हे थामा नहीं जा सकता है। उन्होने कहा कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने जो बयान दिया है वह जिम्मेदरी से दिया होगा ऐसे में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को साफ करना होगा कि किन-किन विधायकों के पीछे माफिया तथा बिल्डर हैं और प्रदेश में भाजपा की सरकार है और सरकार के पास तंत्र है उसके पास पूरी जानकारी होगी कि किस विधायक के संबध माफियाओं से हैं ऐसे में उनके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए। वहीं दूसरी ओर नेता प्रतिपक्ष ने भी टिप्पणी करते हुए कहा कि भाजपा सरकार तथा संगठन के बीच की लड़ाई और विधायकों पर भरोसा न करना इस बात का सबूत है कि भाजपा में कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है। उन्होने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष के बयान से साफ हो गया है कि भाजपा सरकार व माफियाओं में कहीं न कहीं गठजोड़ जरूर है। साथ ही उन्होने कहा कि इनके झगड़े से हमारा कोई लेना देना नहीं। उन्होने कहा कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने ठोस जानकारी के आधार पर ही अपने विधायको तथा माफियाओं के बीच गठजोड़ की बात कही होगी। लिहाजा उन्हे अब उनका खलासा जनता के सामने करना होगा ताकि जनता को भी तो पता चले कि किसका कहां समपर्क है। उन्हेाने कहा कि कांग्रेस पहले ही कह चुकी है कि भाजपा सरकार और माफियाओं में कहीं न कहीं कोई गठजोड़ जरूर है इसी बात को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने भी कहा है इसका साफ मतलब है कि हमारी जानकारी सही है। कुल मिलाकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के इस बयान ने विपक्ष को बैठे बिठाए एक मुद्दा और दे दिया है। वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के इस बयान के राजनैतिक निहितार्थ भी लगाये जाने शुरू हो गये हैं।