Sunday, July 27, 2008

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पंचायत चुनावों आधिसूचनां जारी





राजेन्द्र जोशी
देहरादून : राज्य चुनाव आयोग ने राज्य में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। हरिद्वार जनपद को छोड़ राज्य के शेष बारह जनपदों के लिए चुनाव आचार संहिता घोषित हो गयी है। आयोग ने राज्य के इन जिलों में तीन चरणों में चुनाव की तारीख भी घोषित कर दी है। इन चुनावों में 7239 ग्राम पंचायत प्रधान, 46551 ग्राम पंचायत सदस्य के चुनावों के साथ ही 89 क्षेत्र पंचायतों के 3071 बीडीसी सदस्य, तथा बारहों जिलों के जिला पंचायत हेतु 371 सदस्यों का निर्वाचन होगा। इन चुनावों के लिए एक सिंतम्बर, पांच सितम्बर और 10 सितम्बर की तिथि नियत की गई है और परिणाम 13 सितम्बर को घोषित किए जाएगें। राज्य चुनाव आयोग के आयुक्त बी सी चन्दोला के अनुसार राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू को चुकी है। इस दौरान कोई भी राजनैतिक दल प्रदेश की जनता को रिझाने के लिए भोज तथा घोषणाएं नहीं कर पाएंगे। केवल नगरीय क्षेत्र इससे मुक्त होंगे। क्योंकि यहां नगर पालिका तथा नगर पंचायतों के चुनाव हो चुके हैं। उन्होने बताया कि जिलाधिकारियों को सूचना दी जा चुकी है कि वे भी अपने जनपदों में स्थानीय स्तर पर त्रिस्तरीय चुनाव की अधिसूचना जारी कर चुनाव की तैयारी में लग जांए। उन्होने बताया कि मतदान के दिन जिन-जिन क्षेत्रों में चक्रानुसार चुनाव होंगे वहां सार्वजनिक छुट्टïी रहेगी। उल्लेखनीय है कि इन इन त्रिस्तरीय पंचायतों के सामान्य निर्वाचन के माध्यम से 7239 ग्राम पंचायतों के प्रधान, 46551 सदस्य ग्राम पंचायत, 89 क्षेत्र पंचायतों के 3071 सदस्य तथा 12 जिला पंचायतों के 371 सदस्यों के निर्वाचन कराये जायेंगे। राज्य निर्वाचन आयुक्त ने बताया कि त्रिस्तरीय पंचायतों के सामान्य निर्वाचन का कार्यक्रम जारी कर दिया गया है। जिसके अनुसार सामान्य निर्वाचन तीन चक्रों में कराया जायेगा। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार नामांक न पांच अगस्त से आठ अगस्त तक, नाम निर्देशन पत्रों की जांच नौ अगस्त से 12 अगस्त तक, तथा नाम वापसी 13 अगस्त, को सुबह आठ बजे से शाम तीन बजे तक की जायेगी। पहले चरण में मतदान उत्तरकाशी के मोरी, पुरोला क्षेत्र पंचायत, टिहरी के भिलंगना,जाखणीधार,चम्बा क्षेत्र पंचायत, रूद्रप्रयाग जिले उखीमठ, चमोली के देवाल, थराली तथा नारायणबगड़, पिथौरागढ़ के धारचूला ,मुनस्यारी,डीडीहाट, उधमसिंह नगर के खटीमा, सितारगंज, बागेश्वर जिले के कपकोट, चम्पावत जिले के पाटी, अल्मोड़ा जिले के सल्ट, स्याल्दे, भिकियासैंण , देहरादून जिले के चकराता, कालसी, नैनीताल जिले के ओखलकांड़ा रामगढ़ में तथा पौड़ी जिले के नैनीड़ाडा, बीरोंखाल,रिखणीखाल,पोखड़ा तथा थैलीसैंण क्षेत्र पंचायत के लिए होंगे। जबकि इन के लिए प्रतीक चिन्हों का आवंटन 14 अगस्त को तथा मतदान एक सितम्बर को सुबह सात बजे से शाम पांच बजे तक किया जायेगा। दूसरे चरण के मतदान उत्तरकाशी के नौगंाव, चिन्यालीसौड़, टिहरी के कीर्तिनगर,जौनपुर देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग जिले के जखोली, चमोली के गैरसैंण,कर्णप्रयाग,पोखरी, पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट, बेरीनाग, उधमसिंह नगर जिले के जसपुर,काशीपुर, बाजपुर, बागेश्वर जिले के गरूड़,चम्पावत जिले के लोहाघाट, ताड़ीखेत, देहरादून जिले के विकासनगर सहसपुर,नैनाताल जिले के रामनगर ,कोटाबाग तथा बेतालघाट में जबकि पौड़ी जिले के यमकेश्वर, दुगड्डïा, द्वारीखाल, एकेश्वर तथा जहरीखाल में होंगे वहीं यहां प्रतीक चिन्हों का आवंटन 18 अगस्त को तथा मतदान पंाच सितम्बर को सुबह सात बजे से शाम पांच बजे तक किया जायेगा। तीसरे चरण के मतदान उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी, डुंडा, टिहरी, टिहरी जिले के प्रतापनगर,नरेंन्द्र नगर तथा थौलधार में, रूद्रप्रयाग जिले के अगस्तमुनि, चमोली के घाट,दशोली तथा जोशीमठ, पिथौरागढ़ जिले के कनालीछीना, मूनाकोट तथा पिथौरागढ़, उधमसिंह नगर जिले के रू द्रपुर तथा गदरपुर, बागेश्वार जिले के बागेश्वर क्षेत्र पंचायत, चंम्पावत के चम्पावत क्षेत्र पंचायत, अल्मोड़ा के लमगड़ा, धौलादेवी, ताकुला,भैंसियाछाला तथा हवलबाग, देहरादून के रायपुर तथा डोईवाला, नैनीताल के भीमताल तथा हलद्वानी, पौड़ी जिले के पौड़ी,पावौ,कोट,खिर्सू तथा कल्जाखाल में होंगे। वहीं प्रतीक चिन्हों का आवंटन 22 अगस्त को तथा मतदान 10 सितम्बर सुबह सात बजे से शाम पांच बजे तक किया जायेगा। जबकि त्रिस्तरीय पंचायतों के सामान्य निर्वाचनों के परिणामों की गणना 13 सितम्बर को होगी।

Friday, July 25, 2008

जलविद्युत परियोजनाओं के निजीकरण का विरोध शुरू


राजेन्द्र जोशी
देहरादून: प्रदेश सरकार द्वारा राज्य को पिछले 30-35 सालों से सस्ती बिजली दे रही 18 जलविद्युत परियोजनाओं को निजी हाथों में देने के निर्णय का चौतरफा विरोध शुरू हो गया है। ऊर्जा क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि इससे प्रदेश को सस्ते दरों पर मिलने वाली बिजली से राज्य वासियों को मंहगी दरों पर खरीदनी पड़ेगी। अखिल भारतीय अभियंता महासंघ ने भी इस फैसले का विरोध करते हुए सरकार को पत्र लिखा है जबकि वहीं कांग्रेस ने सरकार पर इसके जरिए मोटी डील किए जाने का आरोप लगाया है।
राज्य मंत्रिमंडल ने की बैठक में बीते दिन सबसे प्रमुख मुद्दा ऊर्जा क्षेत्र में प्राईवेट पŽिलक पार्टनरशिप का रहा। इसके तहत राज्य सरकार ने यह निर्णय किया कि राज्य को बीते तीस-पैंतीस सालों से बिजली दे रहे जल विद्युत परियोजनाओं को ''टिृपल पीÓÓ के तहत देने का। इसके अलावा कुछ बंद पड़ी जलविद्य़त परियोजनाओं को भी निजी हाथों में सौपनें का फैसला लिया गया। ऊर्जा सचिव शत्रुघन सिंह का मानना है कि निजी हाथों में इन परियोजनाओं को देकर सरकार बिना धन खर्च किए अच्छा खासा मुनाफा कमाएगी और ऊर्जा विभाग पूरी ऊर्जा बड़ी परियोजनाओं में लगाएगी। सवाल यह है कि करोड़ों रूपए निवेश करने वाली यह निजी कम्पनियां इन परियोजनाओं के जरिए अपना हित साधेगी या फिर जनता का हित देखेगी? भारत के कल्याणकारी राज्य के एक प्रदेश उत्तराखण्ड में आज जनकल्याण गौण नजर आता है। क्योंकि इन परियोजनाओं के निजी हाथों में जाने से वहां काम कर रहे कर्मचारियों,अधिकारियों तथा अभियंताओं का क्या होगा? क्या वे पूर्व की सेवा शर्तों के आधार पर ही कार्य करते रहेंगे? इस बारे में ऊर्जा सचिव का कहना है कि पुरानी पड़ चुकी इन जल विद्युत परियोजनाओं के कर्मचारियों,अधिकारियों तथा अभियंताओं को प्रतिनियुक्ति पर इन निजी कम्पनियों में तथा राज्य सरकार की अन्य परियोजनाओं में समायोजित किया जाएगा। एक सवाल और खड़ा होता है कि करोड़ों रूपया निवेश करने वाला उद्योगपति इन परियोजनाओं से ज्यादातर थके, हारे कर्मचारियों तथा अधिकारियों व अभियंताओं को काम पर रखेगा? क्येांकि इन परियोजनाओं की बुरी गति के लिए इन कर्मचारियों,अधिकारियों तथा अभियंताओं की कार्यप्रणाली को भी नकारा नहीं जा सकता। ऐसे में वहां तैनात कर्मचारियों तथा निवेशकों के बीच होने वाले संघर्ष से इन्कार नहीं किया जा सकता है। वहीं निजी निवेशक एक बड़ी धनराशि खर्च करके विद्युत दरों में मुनाफे की राशि जोड़ेगी जिससे राज्य को वर्तमान में सस्ती दरों पर मिल रही बिजली अवश्य ही महंगी हो जाएगी।
उल्लेखनीय है कि राज्य कैबिनेट ने बीते दिन राज्यभर में बीते तीस-पैतीस सालों से कार्यरत् 14 जलविद्युत परियोजनाएं छिबरो, खोदरी, ढकरानी, कुल्हाल, ढालीपुर, तिलोथ-1, धरासू-2, चीला, पथरी,मोहम्मदपुर, खटीमा,रामगंगा तथा गलोगी हैं। राज्य जल विद्युत निगम के अनुसार इन परियोजनाओं से वर्तमान में छिबरों से 240 मेगावाट, खोदरी से 120 मेगावाट, ढकरानी से 33.75मेगावाट, कुल्हाल से 30 मेगावाट, ढालीपुर से 51 मेगावाट, तिलोथ-1 से 90 मेगावाट, धरासू-2 से 304 मेगावाट, चीला से 144 मेगावाट, पथरी से 20.04 मेगावाट, मोहम्मदपुर से 9.03 मेगावाट,खटीमा से 41.4 मेगावाट, रामगंगा से 198 मेगावाट तथा गलोगी से तीन मेगावाट बिजली उत्पादित की जा रही है।
जबकि एक जानकारी के अनुसार इन जलविद्युत परियाजनाओं में सुधार को लेकर राज्य सरकार के इस उपक्रम उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम पहले ही कुछ कम्पनियों से समझौता कर चुका है जिसका उल्लेख राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में ऊर्जां सचिव द्वारा नहीं किया। जबकि जल विद्युत निगम ने इन परियोजनाओं में खर्च के लिए कई वित्तीय संस्थानों से लगभग एक हजार करोड़ रूपये का समझौता तक कर दिया था। जिसमें छिबरों के लिए 142 करोड़, ढकरानी के लिए 54 करोड़, ढालीपुर के लिए 78 करोड़, चीला के लिए 372 करोड़, पथरी के लिए 59 करोड, मोहम्मदपुर के लिए 28 करोड़, रामगंगा के लिए 37 करोड़, खटीमा के लिए 91 करोड़, गलोगी के लिए पांच करोड़ खर्च किए जाने हैं। ऊर्जा सचिव ने पत्रकार वार्ता में इसका भी उल्लेख नहीं किया कि जिन वित्तीय कम्पनियों से उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम ने इन परियोजनाओं के आधुनिकीकरण तथा उच्चीकरण के लिए समझौता किया था अब उनका क्या होगा? इन्हीं सब मामलों पर प्रदेश की जनता को अंधेरे में रखने को लेकर सवाल खड़े होने शुरू हो गए है कि अखिर ऐसी क्या जल्दी थी जो सरकार को इस तरह का निर्णय लेना पड़ा? यही कारण है कि कांग्रेस ने इस मामले पर भाजपा पर वार शुरू कर दिये हैं। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष तथा राज्यसभा में सांसद हरीश रावत ने कहा कि कांग्रेस इसका घोर विरोध करती है। उन्होने दिल्ली से बताया कि राज्य में स्थापित जलविद्युत परियोजनाओं को निजि हाथों में देने के फैसले से यह साफ हो गया है कि सरकार ने कुछ डील जरूर की है। उन्होने कहा कि यह जलविद्युत परियोजनांए राज्य का आत्म विश्वास है क्योंकि इन्हीं से राज्य को सस्ते दरों पर बिजली मिल रही थी जिनके निजि हाथों में चले जाने से राज्यवासियों को मंहगी दरों पर बिजली खरीदने को बाध्य होना पड़ेगा। उन्हेाने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार पहले ही विश्व हिन्दु परिषद के दबाव में आकर राज्य की परियोजनाओं को बंद करने का ऐलान कर चुकी है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होने साथ ही यह भी कहा कि इससे इन परियोजनाओं में काम करने वाले हाथ बेकार हो जाएंगे। उन्हेाने कहा कि राज्य सरकार को इन परियोजनाओं को निजी हाथों में देने से पहले राज्य के लोगों तथा विधानसभा में इस पर चर्चा करानी चाहिए थी।
वहीं पूर्व मंत्री तिलक राज बेहड़ का कहना है कि राज्य सरकार ने आगामी लोकसभा चुनावों के देखते हुए निजी कम्पनियों से इस तरह की डील की है उन्हेाने राज्य सरकार पर खुली लूट करने का आरोप भी लगाया। जबकि विधायक तथा पूर्व राज्य मंत्री किशोर उपाध्याय ने भी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि केन्द्र में आउटसोसिंग का विरोध करने वाली भाजपा राज्य में आउट सोर्सिंग पर उतारू है। उन्हेाने भी निजीकरण के द्वारा सरकार पर चुनाव के लिए पैसा इकठ्ठा करने का आरोप लगाया है।
ईधर अखिल भारतीय बिजली अभियंता महासंघ तथा उत्तराखंड विद्युत अभियंता संघ के शैलेन्द्र दूबे ने कहा कि सरकार प्राकृतिक संसाधनों को निजि हाथों बेचने का जो प्रयास कर रही है हम उसका विरोध करते हैं। उनका कहना है कि जल विद्युत सबसे कम दर पर मिलती है सरकार द्वारा निजिकरण किए जाने के बाद यह और मंहगी हो जाऐगी। उन्होने इस संबध में प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर विरोध भी जता दिया है कि अखिल भारतीय बिजली अभियंता महासंघ इसका पुरजोर विरोध करता है।

Sunday, July 20, 2008

पंचायत चुनाव में तीस फीसदी सीटें ही सामान्य पुरूषों को

पंचायत चुनाव में तीस फीसदी सीटें ही सामान्य पुरूषों को
देहादून, (राजेन्द्र जोशी): आरक्षण केवल 50 फीसदी तक ही दिया जा सकता है लेकिन प्रदेश सरकार ने न्यायालय के आदेशों तक को ताक पर रखते हुए राज्य में लगभग 70 फीसदी तक आरक्षण पंचायती चुनाव के लिए जारी कर दिया है। इससे प्रदेश के सामान्य जाति के लोगों में रोष व्याप्त है। यही कारण है कि मात्र देहरादून जिले में ही लोगों ने इस पर रिकार्ड आपत्तियां दर्ज की है।
पंचायती राज चुनाव में सरकार ने पूरे प्रदेश में 70 प्रतिशत आरक्षण के नाम प्रदेश की सीटों को घोषित तो कर दिया है लेकिन सरकार ने अनारक्षित 30 प्रतिशत रख कर प्रदेश के सामान्य जाति के लोगों को अब सोचने के लिए मजबूर कर दिया है वे आखिर अब कहां जाएें। न्यायलय के आदेशों को भी सरकार ने ताक में रख दिया है। न्यायलय के अनुसार 50 प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए लेकिन लगता है प्रदेश सरकार को न्यायालय का भी डर नहीं रह गया है। पूरे राज्य के लिये 33 प्रतिशत महिला आरक्षण व ओबीसी के आरक्षण को माना गया है जो पूरे प्रदेश को 50 प्रतिशत तक आरक्षण होना चाहिए लेकिन जन सामान्य के लिये अब पूरे प्रदेश में मात्र 30 फीसदी सीट ही रह गयी है। इन्हे मात्र इन 30 प्रतिशत में ही संतोष करना होगा।
उच्चतम न्यायालय ने 1992 में इन्द्रा साहनी केस में 50 प्रतिशत आरक्षण की बात मानी गयी थी। लेकिन राज्य सरकार ने न्यायालय तक को ताक पर रख कर 70 प्रतिशत आरक्षण करके जनसामान्य तक को भी आरक्षण की मांग लेने क ी सोचने पर मजबूर कर दिया है। हर जगह से युवाओं ने इनके प्रति आपत्ति दर्ज करानी शुरू कर दी है। । प्रदेश सरकार इस कृत्य से अब कहीं ऐसा न हो कि प्रदेश सरकार के पंचायती चुनाव में 70 फीसदी आरक्षण के चलते एक और नये आरक्षण आन्दोलन की मांग को जन्म देने का काम कर रही हो। सरकार ने अब युवाओं को भी आरक्षण के लिये सोचने पर मजबूर कर दिया है। जनसामान्य इसका जिस तरह से विरोध कर रहा है उसकी चर्चा पूरे प्रदेश में आग का काम कर रही है। खासकर युवाओं में अब इस समस्या को विधान सभा में पूरे जोश के साथ उठाने की चर्चा हो रही है। लेकिन सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है। इससे जनसामान्य के प्रतिनिधियों में से इन सीटों पर कोई भी 10 सालों तक पंचायतों में नहीं आ सकता है।
वहीं दूसरी ओर त्रिस्तरीय पंचायतों में आरक्षण के संबंध में लोगों ने मुख्य विकास अधिकारी डा. बी.वी.आर.सी. पुरूषोत्तम के पास विकास भवन आपत्तियों को दर्ज करायी है। जिसमें देहरादून जिले के सदस्य ग्राम पंचायत, ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य, प्रमुख, जिला पंचायत सदस्यों हेतु आपत्तियों को प्राप्त किया गया। उनके अनुसार इनका गहन परीक्षण करने के बाद ही अंतिम सूची का प्रकाशन किया जायेगा तथा 22 जुलाई 2008 तक इसकी सूचना प्रदेश शासन का भेजी जायेगी।
उन्होंने बताया है कि जिला पंचायत सदस्य के लिए विकास खण्ड चकराता में सात, विकास खण्ड कालसी में दो , विकासनगर में एक, विकासखण्ड सहसपुर में नौ, विकासखण्ड रायपुर में 14 तथा विकासखण्ड डोईवाला में एक , आपत्ति दर्ज की गई है। सदस्य क्षेत्र पंचायत तथा प्रमुख के लिए विकासखण्ड चकराता में 16, विकासखण्ड कालसी में छह, विकासनगर में तीन, विकासखण्ड सहसपुर में तीन, विकासखण्ड रायपुर में 22 तथा विकासखण्ड डोईवाला में पांच आपत्तियां दर्ज की गई है। ग्राम प्रधानों हेतु प्राप्त आपत्तियां विकासखण्ड चकराता में 14, विकासखण्ड कालसी में आठ, विकासनगर में नौ, विकासखण्ड सहसपुर में 47, विकासखण्ड रायपुर में 34, विकासखण्ड डोईवाला में 21 आपत्तियां दर्ज की गयी है। सदस्य ग्राम पंचायतों हेतु विकासनगर में आठ, सहसपुर में छह, डोईवाला में पांच, रायपुर में दो आपत्तियां दर्ज की गई हैं। शेष राज्य का भी यही हाल है जहां इन चुनावों में भारी सरकार द्वारा भारी आरक्षण दिए जाने पर आपत्तियों का सिलसिला जारी है।

वृद्घावस्था पेंशन में हरिद्वार आगे चम्पावत पीछे

राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखण्ड राजधानी बनने से पूर्व देहरादून को 'रिटायर्ड मैन सिटीÓ कहा जाता रहा है। अपने जीवन के यौवन को सरकारी नौकरियों में खपा लेने के बाद देश के अधिकांश अभिजात्य वर्ग की दिली ख्वाईश होती थी कि अब जिन्दगी के बाक ी बचे क्षणों को वे देहरादून की सुरम्य वादियों में अपने परिवार के साथ गुजारें । लेकिन ताजा आंकड़े कुछ और ही बयां करते हैं कि बुजुर्ग लोगों की पहली पसंद अब देहरादून के बजाय हरिद्वार हो गया है। इसके पीछे हरिद्वार का धार्मिक वातावरण हो सकता है। ताजा आंकड़ों के अनुसार हरिद्वार जनपद में सर्वाधिक वृद्ध मध्यमवर्ग तथा निम्रवर्ग के व्यक्तियों ने जहां वृद्घावस्था पेंशन के लिए आवेदन किया है वहीं इसी जिले के वृद्घों को सबसे ज्यादा पेंशन भी दी जा चुकी है जबकि कुमांयूं क्षेत्र के चम्पावत जिले में सबसे कम वृद्ध व्यक्तियों ने आवेदन किया और यहीं सबसे कम पेंशन की रकम का भुगतान किया गया है।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने वृद्धावस्था पेंशन के पात्र के लिए कुछ नियमों में बदलाव कर दिया गया था। इसके परिणामस्वरूप समाज कल्याण विभाग के पास ऐसी पेंशन पाने के लिए आवेदन पत्रों का तांता लग गया। वित्तीय वर्ष 2008-09 में ही अब तक हजारों की संख्या में विभाग को वृद्धावस्था पेंशन के लिए आवेदन पत्र विभागीय अधिकारी प्राप्त कर चुके हैं। अब विभागीय अधिकारी प्राप्त इन आवेदन पत्रों की सत्यता की करने जांच में जुटे हैं। विभागीय अधिकारियों ने बताया कि पहले ही राज्यभर के एक लाख से अधिक वृद्ध व्यक्ति वृद्धावस्था पेंशन का लाभ उठा रहे हैं। वृद्धावस्था पेंशन का लाभ सार्वधिक हरिद्वार जनपद के बुजुर्गो को मिल रहा है। हरिद्वार जनपद के 11899 वृद्ध व्यक्तियों को अल्मा़ेडा जनपद के 7334 वृद्धों को, उत्तरकाशी जनपद के 11827, चमोली जनपद के 7140, चम्पावत जनपद के 2974, टिहरी गढ़वाल के 11229, देहरादून जनपद के 10991, नैनीताल जनपद के 6884, पिथौरागढ़ जनपद के 3750 पौड़ी जनपद के 7885, बागेश्वर जनपद के 3182 और रूद्रप्रयाग जनपद के 3099 वृद्ध व्यक्तियों को वृद्धावस्था पेंशन का लाभ दिया जा रहा है।
लेकिन अब इस पेंशन को पाने के लिए मिल रहे आवेदनों की संख्या को देखते हुए सरकार के माथे पर बल पड़ गये हैं। उधर दूसरी तरफ समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव मनीषा पंवार ने कहा कि वृद्ध जनों के कल्याण हेतु जल्द ही नई योजना क ो लागू किया जायेगा। उन्होंने कहा कि विभाग का हरसंभव प्रयास है कि प्रदेश के सभी वृद्धों को वृद्धाव्स्था पेंशन का लाभ दिया जाय। लेकिन वहीं दूसरी ओर आम जनता में मौजूद एक वृद्ध को अपनी पेंशन लगाने के लिये सैकड़ों चक्कर इनके सरकारी दफ्तरों के लगाने पड़ते हैं और तब कहीं जाकर यदि सरकारी बाबू को रहम आ जाये तो उनको उनका हक मिल जाता है। कुल मिलाकर राज्य में वृद्घवस्था पेंशन अधिकारियों के हाथ में न होकर सरकारी कार्यालयों में दिनभर कुर्सी तोडऩे वाले बाबुओं के ही हाथों की बनकर रह गयी है।

Saturday, July 19, 2008

राजधानी देहरादून बनी अपराधियों व भू-माफियाओं की शरणस्थली

राजेन्द्र जोशी

देहरादून : राजधानी देहरादून राज्य बनने के बाद से अब तक कुख्यात अपराधियों, भू-माफियाओं तथा पुलिस के कुछ आलाअधिकारियों व सफेदपोशों के गठबंधन से बाहर नहीं निकल पायी है। यही कारण है कि राजधानी देहरादून सहित समीपवर्ती क्षेत्रों में इस गठबंधन ने कई नामी-बेनामी सम्पत्तियों पर अपना क?जा जमा रखा है और आए दिन सम्पत्ति विवाद को लेकर किसी न किसी की हत्या भी होती रही है। मामले में पुलिस जांच भी होती है लेकिन इसका परिणाम सिफर ही मिलता है।

उल्लेखनीय है कि राजधानी देहरादून तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुख्यात बदमाशों का राज्य निर्माण से पहले भी चोली दामन का साथ रहा है। यहां तैनात पुलिस तथा भू माफियाओं से इनसे सबंध भी जगजाहिर हैं। लेकिन राज्य पुलिस इनके खिलाफ कार्यवाही करने से बचती रही है। राज्य बनने के बाद भी प्रदेश पुलिस के कई आला अधिकारियों पर आरोप था कि उनके ऐसे लोगों से संबध भी रहे हैं और यह कई बार की खुफिया जांच के बाद यह बात पुख्ता होकर निकली भी है। लेकिन अब तो उत्तराखण्ड में कार्यरत् कई उत्तरप्रदेश के कई पुलिसकर्मी अपने राज्य को जा चुके हें लेकिन अब कैसे और किनसे इनका यहां संबध है किसी को नहीं पता। वहीं पुलिस सूत्रों का कहना है कि ऐसे अपराधी जिन्होने अपने ठौर-ठिकाने यहां बना लिए हैं, वह पश्चिमी उत्तरप्रदेश में वारदात करने के बाद देहरादून क्षेत्र में ही छिपने के लिए मुफीद मानते हैं।

पश्चिमी उत्तरप्रदेश के कुख्यात अपराधी जितेन्द्र सिरोही, सुशील मूंछ, सुनील राठी, लक्क ड़पाला,यशपाल राठी तथा धर्मेन्द्र आदि जैसे कई नाम हैं जो पश्चिम यूपी के हार्ड कोर िमिनलों में शुमार किये जाते हैं। सूत्रों के अनुसार इन बदमाशों ने अपनी दहशत का नजारा दिखाकर तथा यहां के भू माफियाओं से मिलकर देहरादून तथा आसपास के कस्बों तक में करोड़ाें की सम्पत्ति भू-माफियाओं से साथ मिलकर इकठ्ठी कर ली है। सूत्रों ने बताया है कि इसमें सीएमआई हास्पीटल के साथ लगे एक होटल का स्वामी जो कभी ऋषिकेश के क्षेत्र रोड़ पर मामूली जूते की दुकान चलाता था,भी शामिल बताया गया है। लोगों का कहना है कि मात्र दस साल के भीतर यह मामूली दुकानदार एकाएक कैसे अरबपति हो गया जांच का विषय है। जिसने इन बदमाशों की आड़ में देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई और शहरों से लेकर दिल्ली तक में अरबों रूपए की भू-सम्पत्ति तथा आलीशान मकान तक क ौडियों के भाव खरीदे हैं।

सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि बीते तीन साल पहले ऋषिकेश का ही एक मिर्गीरोग विशेषज्ञ बताने वाला डाक्टर जब प्रतिबंधित दवाओं को रखने के आरोप में तीन साल पहले जेल की सलाखों के डाला गया था और जिसका तमाम पैसा इसी भू-माफिया के द्वारा ऋषिकेश नगर क्षेत्र सहित देहरादून में लगा था, ने अपने गर्दिश के दिनों में जब इससे पैसा वापस लौटाने को कहा तो इस भू माफिया ने इसके पीछे जेल में ही अपराधी लगा दिये। सूत्रों ने बताया है कि इतना ही जहां जेल में बंद डाक्टर के परिजन जब डाक्टर को जेल से बाहर निकालने के लिए ऐड़ी से चोटी का जोर लगाए हुए थे वहीं उसी दौरान यह भू-माफिया उसे से बाहर न निकलने देने का तानाबाना बुन रहा था। इसकी पुष्टि डाक्टर के परिजनों तथा मित्रों ने भी उस समय की थी।

उत्राखण्ड बनने के बाद राजधानी सहित आरसपास के क्षेत्रों में जमीन के रेटों में आये उछाल के बाद पश्चिमी यूपी के बदमाशों इस भू-माफिया के साथ मिलकर देहरादून व आसपास के क्षेत्रों की तमाम विवादित जमीनों पर कही जबरन क?जे तथा कहीं परिजनों के विवाद का फायदा उठाते हुए औने-पौने दामों पर खरीद कर ऐसी सम्पत्तियों पर अपने क?जे करने शुरू कर दिये। सूत्रों के अनुसार इनके इस खेल में इनके साथ कुछ राजनीतिज्ञों और आलाधिकारियों ने भी मदद की है। अब तो वेस्टर्न यूपी के बदमाशों ने दून में अपने आशियाने तक बनाने शुरू कर दिये हैं। बताया जाता है कि कुख्यात बदमाश सुशील मूंछ, जितेन्द्र सिराही समेत कई बदमाशों की देहरादून में करोड़ों की सम्पत्ति है। जिनकी देखरेख ये भू माफिया ही करते हैं। वहीं बीते कुछ सालों के भीतर देहरादून, हरिद्वार तथा ऋषिकेश आदि स्थानों पर आपसी रंजिश के चलते तथा भूमि विवादों को लेकर कई हत्याएं भी हो चुकी हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार बदमाशों ने अब राजधानी के बीचोंबीच अब बगंले बना लिए हैं। लेकिन पुलिस सब कुछ जानते हुए भी खामोश बैठी है और इनके इस तरह के कारनामों से देहरादून का ंफिजा खराब हो रही है ।

Wednesday, July 16, 2008

निजी शिक्षण संस्थान बने शिक्षा की दुकानें व शोरूम

निजी शिक्षण संस्थान बने शिक्षा की दुकानें व शोरूम

राजेन्द्र जोशी

देहरादून,  : उत्तराखण्ड में स्थापित निजी शिक्षण संस्थान भी देश के अन्य निजी संस्थानों की ही तर्ज पर शिक्षा की दुकान बन चुके हैं। यही कारण है कि आज यह स्थिति यहां तक आ पहुंची है कि इन उच्च तथा व्यवसायिक शिक्षण संस्थानों में यहां के गरीब तथा मध्यम वर्ग आय के छात्रों की जगह करोड़ पतियों तथा अरबपतियों की संतानें ही शिक्षा प्राप्त करने का माद्दा रखते हैं। शेष अन्य के लिए यहां कोई जगह नहीं है।

  आपके पास करोड़ों अथवा अरबों रूपया है तो अपने लाडले को किसी भी स्ट्रीम में व्यसायिक शिक्षा दिलाने के लिए चले आइये उत्तराखण्ड। यहां शिक्षा की दुकानें सजी हैं। जो किसी पंच सितारा होटल से कम नहीं है, ये वो शिक्षण संस्थान हैं जहां गरीब अथवा मध्यम वर्ग के छात्रों का प्रवेश तो सोचना दूर की कौंड़ी के समान है साथ ही ऐसे छात्रों के अविभावकों की इस ओर देखने तक की हिम्मत नहीं है। आपको याद होगा या आप लोगों ने कहीं पढ़ा होगा कि एक समय था जब गुरूकुल ही शिक्षा का मुख्य के ्रन्द्र हुआ करते थे। यहां राजा, महाराजाओं से लेकर रंक तक के बच्चे शिक्षा ग्रहण करने चले आया करते थे। यहां प्रवेश के लिए कोई मोटी फीस नहीं बल्कि उनका उद्देश्य बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ संस्कारों तक को देने का होता था। लेकिन उस समय भी एकलव्य एक अपवाद स्वरूप था। जिसने इन आश्रमों में ज्ञान अर्जित कर रहे छात्रों को पढ़ाने वाले शिक्षकों से चोरी छिपे शिक्षा ग्रहण की थी और वह अर्जुन से बड़ा धनुरधर बन गया था लेकिन अपने गुरू को गुरू दक्षिणा में उसने वह अगूंठा ही दे दिया जिससे वह बाण को प्रत्यचां पर चढ़ाता था। यह तो महाभारत काल की कहानी है।

 लेकिन आजकल उत्तराखण्ड में ऐसे शिक्षण संस्थानों की बाढ़ सी दिखाई दे रही है जो दान के नाम पर मोटी-मोटी रकमें एेंठ कर छात्रों को दिक्षा देने का दम्भ भरते हैं। लेकिन इस तरह की शिक्षा ग्रहण करने के बाद क्या वे इन छात्रों को वह नैतिकता का पाठ पढ़ाने में कामयाब हुए हैं जिसकी आज समाज को जरूरत हैं। कदापि नहीं बल्कि लाखों रूपये की रकम खर्च कर शिक्षण प्राप्त करने वाले इन छात्रों अथवा शिक्षा देने वाले इन शिक्षण संस्थानों ने ही जब नैतिकता को उखाड़ फेंक दिया हो तो यहां शिक्षा प्राप्त कर समाज की सेवा करने वालों से नैतिकतापूर्ण व्यवहार की सोचना अपने को ही बरगलाना है। क्योंकि इतने रूपये उन्होने नैतिकता अथवा सेवाभाव के लिए तो खर्च नहीं किए ये रूपए तो उनकी फिक्स डिपाजिट स्कीम के तहत जमा कराए गए रूपयों की तरह है। जिसका ?याज तो उन्हे ताउम्र खाना है, और  ?याजखोर की मानसिकता से तो हमारा समाज पहले से ही परिचित हैं उसके बारे में ज्यादा लिखना ठीक नहीं। 

   चलो यह तो था पुराना नया समाज का वह चेहरा जिसके अंग अब हम भी शायद बन चुके हैं। लेकिन उत्तराखण्ड में शिक्षा की खुल रही दुकानों में ही होड़ मची है। यहां इंजिनेयरिंग से लेकर मेडिकल तक की पढ़ाई की दुकानों तक में आजकल शिक्षा प्राप्त करने वाले ग्राहकों की भीड़ सजी है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए बोलियां लग रहीं है। ऐसे में ऐसे संस्थानों की चांदी ही नहीं कट रही बल्कि हीरा कट रहा है।  जेब में कितने रूपये हैं वैसी ही शिक्षा मिल सकती है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार  बीटेक कम्प्यूटर साइंस से  करना है तो पांच से छह लाख, बीबीए करना है तो 50 हजार से एक लाख। इसी तरह एलएलबी, एमएल, बीसीए बीजे आदि के लिए भी अलग-अलग दरे निर्धारित हैं इस दर में सरकार द्वारा नियत की गई वार्षिक फीस शामिल नहीं है। जहां तक मेडिकल शिक्षा का मामला है यहां का ही सबसे ज्यादा बाजार भाव है और उस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। प्रदेश में दो मेडिकल कालेज है। जिनमें एमबीबीएस में प्रवेश के लिए 25 से 30 लाख रूपए का रेट चल रहा है जबकि एक मेडिकल कालेज में स्नातकोत्तर पाठयक्रम में सबसे ज्यादा बाजार भाव रेडियोलांजी का 50 से 60 लाख रूपया प्रवेश के लिए है। आर्थोपेडिक तथा गायनोकालाजी में विशेषज्ञता के लिए भी लगभग यही दर है। मेडिसिन तथा शल्य चिकित्सा में स्नातकोत्तर पाठयक्रम के लिए 45 से 55 लाख, आंख कान नाक व गले में विशेषज्ञता स्नातकोत्तर पाठयक्रम के लिए 40 से 45 लाख रूपए, नेत्र विज्ञान तथा बच्चा रोग विशेषज्ञता में स्नातकोत्तर पाठयक्रम के लिए  भी 40 से 50 लाख का बाजार भाव है।

  उच्च शिक्षा तथा व्यवसायिक शिक्षा के दिन ब दिन बढ़ते बाजार भाव से प्रदेश सरकार अनभिज्ञ नजर आ रही है  लेकिन देशभर में चल रहे इस शिक्षा के इस गोरख धन्घे पर  केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह जरूर चिंतित है। उनका भी मानना है कि देश के कुछ उच्च शिक्षा संस्थान शिक्षा की दुकानों में परिवर्तित हो चुके हैं और ये छात्रों को तो गुमराह कर ही रहे हैं ये अविभावकों की जेबों पर भी डाका डाल रहे हैं। उन्होने देश में शिक्षा के बिगड़ते वातावरण को बचाने की अपील की है।

 

 

Monday, July 14, 2008

उत्तराखण्ड में सरकारी नौकरियां पूर्व सैनिकों को

राजेन्द्र जोशी
DEहरादून, : उत्तराखण्ड में सरकारी नौकरियां वोट की खातिर पूर्व सैनिकों को दी जा रही हैं। राज्य के लाखों बेरोजगार जहां नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैें वहीं खंण्डूरी सरकार पूर्व सैनिकों की संस्था उपसुल के माध्यम से पूर्व सैनिकों को नौकरी देने में प्राथमिकता दे रही है। खंण्डूरी की सरकारी नौकरियों में पहली पसंद राज्य के युवा बेरोजगार न होकर रिटायर्ड फौजी हैं। विधानसभा चुनाव में बेराजगार और मंहगाई के मुददे पर सत्ता में आई भाजपा के लिए ये दोनों ही मुद्दे अब गौण हो गए हैं। 
प्रदेश में सैनिकों और पूर्व सैनिकों की बड़ी सं ख्या है। जिसे जनरल खंण्डूरी वोट बैंक के रूप में देखते रहे हैं। इस वोट बैंक पर अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री ने विभिन्न सरकारी विभागों में राज्य गठन के बाद से अब तक संविदा अथवा दैनिक वेतन भोगी के रूप में काम कर रहे बेरोजगार युवाओं को हटा कर पूर्व सैनिकों को नौकरिंयां देनी शुरू कर दी है। फौज से रिटायरमेंट के बाद एक बड़ी धनराशि पाने के साथ ही इन्हे हर महीने अच्छी -खासी पेंशन भी मिलती है। जो इनके परिवार के गुजर बसर के लिए कम नहीं मानी जा सकती है। लेकिन वोट के कारण सरकार इन पर मेहरबान है। दूसरी ओर राज्य में पढ़े लिखे युवाओं की एक लम्बी जमात है जिनमें से कुछ को राज्य गठन के बाद सरकारी कामकाज कराने के लिए संविदा पर या दैनिक वेतनभोगी के रूप में पूर्व सरकारों ने नियुक्तियां दी थीं। ये युवा अपनी प्रतिभा और क्षमता से इन विभागों में कार्य कर रहे हैं। इनकी आंखों में यह ख्वाब था कि लगन और मेहनत से किये जा रहे काम के बदले उन्हे कभी तो स्थाई रोजगार मिलेगा। लेकिन वोट के चक्कर में आज उनकी सेवा समाप्त कर उपसुल के जरिए पूर्व सैनिकों को रोजगार देने के काम हो रहे हैं। प्रदेश में सचिवालय के अलावा कई अन्य विभागों में संविदा पर कार्य कर रहे बेरोजगार युवक इतने अनुभवी हो गए हैं कि वे अकेले ही कई सारे काम करते हुए राज्य के विकास को आगे बढ़ा रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से खंण्डूरी सरकार के सत्ता में आने के बाद इन युवाओं की संविदा की अवधि खत्म होने पर उनकी संविदा बढ़ाए जाने के लिए मुख्यमंत्री को प्रस्ताव भेजे गए जिस पर मुख्यमंत्री ने प्रस्ताव में संविदा की अवधि बढाने के बजाए उसे अस्वीकार कर दिया और इन पदों पर नियुक्ति के लिए पूर्व सैनिकों के निर्देश दिए। जिससे संविदा पर कार्य कर रहे युवाओं में हताशा है। इनमे से कई ने अपने परिवार तक बसा लिए हैं। लेकिन आज उनके सामने रोटी की समस्या पैदा हो गई है। क्योंकि स्थाई होने की जगह इनकी संविदा पर नियुक्ति ही रदद हो गई है। उधर विभिन्न सरकारी विभागों के अधिकारी भी सरकार के निर्देशों से परेशान है। क्योंकि एक अर्से से संविदा पर काम कर रहे लोग अनुभवी और काम में दक्ष हो गए थे। उनकी परेशानी यह भी है कि संविदा पर आने वाले पूर्व सेैनिकों को नए सिरे के कामकाज के तौर तरीकों से वाकिफ कराना पड़ेगा। ऐसे में लगभग तीन महीने तक विभिन्न सरकारी विभागों में कामकाज प्रभावित होने की आशंका है। इस बीच प्रतिपक्ष का आरोप है कि उपसुल के जरिए होने वाली नियुक्तियों में सरकार में बैठे लोगों को व्यक्तिगत रूप से आर्थिक लाभ भी पहुंचेगा। जैसा कि आम तौर पर आउटसोर्सिगं के मामले में सेवा प्रदाता कम्पनियां नियुक्ति अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से आर्थिक लाभ पहुंचाती हैं। राज्य में सेवाप्रदाता कम्पनियां सर्विस टैक्स के रूप में दस फीसदी कमीशन लेेती हैं। साथ ही नियुक्त कर्मचारी को सरकार से मिलने वाले वेतन में कटौती करके उन्हे प्रतिमाह कम धनराशि देती हैं। एक सरकारी अधिकारी के अनुसार उनके विभाग में अगर 100 रूपए प्रति दिन के रूप में संविदा पर काम करने वाले कर्मचारी को एक माह में तीन हजार रूपए दिए जाते हैं तो सेवा प्रदाता कम्पनी उसे मात्र दो हजार रूपए देती हैं। यह आर्थिक शोषण की एक बानगी है। इस तरह कई उदाहरण पावर कारपोरेशन सहित कई अन्य विभागों में देखने को मिलते हैं। जहां भूतपूर्व सैनिकों का शोषण किया जा रहा है। 
सवाल यह है कि राज्य सरकार आउटसोर्सिगं की तर्ज पर उपसुल (पूर्व सैनिकों के कल्याण के लिए बनाई गई स्ंास्था) के रिटायर्ड फौजियों को नौकरी दे रही है ऐसे में राज्य के पढ़े लिखे बेराजगार युवा अखिर जांए तो जांए कहां ?

उत्तराखंड में मार्शल लॉ

उत्तराखंड में मार्शल लॉ

राजेन्द्र जोशी
देहरादून,  उत्ताराखण्ड में सैनिक शासन होने का एक और सबूत। अगर आपको आपके वोटों के द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री से मिलना है तो पहले सारंगी बजाईये यानी मुख्यमंत्री के गेटकीपर सारंगी साहब से मिलिए, वे अगर आपको एक रैड कार्ड जारी कर देते हैं तभी आप आपके ही पैसे से बने शानदार सचिवालय में ऊपर की मंजिलों तक जा पाएंगे और मुख्यमंत्री महोदय के दर्शन कर पाएंगे।
पूरे देश में यह सेना वाला नियम सिर्फ उत्तराखंड में ही लागू है। जनता के मतों के आधार पर भाजपा ने चुनाव जीतने के बाद जिसे मुख्यमंत्री बनाया अब वही जनता से दूरियां बनाए रखने के लिए हर संभव कदम उठा रहा है। लोकशाही में लोक (जनता) से दूर रहकर शासन चलाने का उदाहरण उत्ताराखण्ड में ही दिखाई देता है। यहां के मुखिया को जनता से ''एलर्जी'' है।
मुगलकाल की एक बात मशहूर है कि मुगल शासक जहांगीर ने जनता से मिलने तथा उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए शाही महल के बाहर साठ घंटियों से जुड़ी एक जंजीर को लटकाया गया था, जिसे ''चेन आफ जस्टिस'' कहा जाता था। जिसे फरियादी किसी भी वक्त बजा सकते थे और जहांगीर फौरन हाजिर होकर उनकी समस्याओं का वहीं से निराकरण करते थे। बात मुगल काल की है लेकिन इसके बाद देश अंग्रेजों के गुलाम हुआ। अंग्रेजों के शासनकाल में भी ठीक ऐसा ही होता था कि जहां से जनता गुजरती थी वहां से अंग्रेज शासक गुजरना अपनी शान के खिलाफ समझते थे यही कारण था कि उन्होने राज्य के हिल स्टेशनों मसूरी तथा नैनीताल की माल सड़कों पर यह बोर्ड लगाए थे कि भारतीयों तथा कुत्ताों का प्रवेश वर्जित है।


दोनों में ही काफी अन्तर है मुगल काल में जनता सीधे बादशाह से मिल सकती थी तो ब्रि्र्रटिशकाल में जनता का शासक से मिलना नामुमकिन था। ब्रिटिशकाल की तरह की कार्यप्रणाली अब उत्ताराखण्ड में दोहराई जा रही है। मुखिया से जनता को मिलने के लिए ''रेड कार्ड'' जारी किया जाता है तभी वह मुखिया से मिल सकता है। इससे पहले मुखिया से मिलने के लिए प्रदेश की जनता सचिवालय स्थित चतुर्थ तल पर जाया करती थी लेकिन वहां जनता से मिलना उन्हे गवारा नहीं लगा परिणामस्वरूप उनके सिपहसलारों ने सुझाव दिया कि अब उनके ओएसडी तथा जनसम्पर्क अधिकारियों को इसी भवन के भूतल स्थित बरामदे में बड़ा कमरा बनवाकर एक-एक घंटे के लिए बैठाया जाय। जनता में जिसे वे मुख्यमंत्री से मिलने के काबिल समझेंगे उसे ही ''रेडकार्ड' थमा कर चतुर्थ तल पर भेजा जाएगा। मुख्यमंत्री को जब जनता से मिलने की इच्छा होगी तो उन्हे सचिवालय से साथ ही अभी-अभी 74 लाख की लागत से बनाए गए बहुउद्देश्यीय सभागार में मिलवाया जाएगा। वह भी नियत समय के लिए। सिपहसलारों के सुझाव पर अमल हुआ और मुख्यमंत्री कार्यालय के नजदीक रहे ओएसडी के कमरों को वहां से हटाया गया। उन्हे इसी तल पर दाहिनी ओर बैठाया गया। ठीक इसी तरह मुख्यमंत्री आवास पर भी किया गया ओएसडी को वहां से हटाकर सचिवालय के भवन में बैठने का फरमान सुनाया गया। आवास तथा मुख्यमंत्री के कार्यालय के पास बैठे तो केवल एक प्रभात कुमार सारंगी। जिनकी कार्यप्रणाली को लेकर राजधानी में तरह -तरह की चर्चाएं आम हैं। जनता की बात छोडिये यहां तो अधिकारियों ,मंत्रियों तथा विधायकों तक को मुख्यमंत्री से सीधे मिलने की इजाजत नहीं है अगर इजाजत है तो सिंर्फ मुख्यमंत्री के लाडले उनकें सचिव सारंगी को जिनके कारण ही वे सबसे ज्यादा बदनाम हो रहे हैं। सूत्र बताते है कि सारंगी सहित उनके एक और ओएसडी चौहान के काले कारनामों के कारण भाजपा सरकार की छीछालेदारी हो रही है। मुख्यमंत्री से ये लोग उन्ही को मिलाते हैं जिनसे इन्हे कुछ मिलता है। प्रदेश के रहने वाले ये लोग नहीं हैं लिहाजा प्रदेश की जनता से इनका कोई लेना देना नहीं और नहीं किसी को ही यह पहचानते हैं। जो लोग प्रदेश के अधिकंाश लोगों को भाषा,बोली के आधार पर पहचानने की क्षमता रखते हैं उन्हे इन्होने किनारे किया हुआ है।

शक्ति प्रदर्शनों का दौर शुरू निशाने पर मुख्यमंत्री



राजेन्द्र जोशी

प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री के एक सप्ताह के विदेश दौरे से लौटने के बाद जौलीग्रान्ट हवाई अड्डïे पर उनके स्वागत के लिये विधायकों और अन्य पार्टी नेताओं की भारी तादाद ने मुख्यंत्री भुवन चन्द्र खण्डूड़ी के कान खड़े कर दिए हैं कि वे उन्हे हल्के में न लें। जबकि इससे पहले बीते साल भगत सिंह कोश्यारी ने भी इसी तरह का शक्ति प्रदर्शन कर पार्टी तथा सरकार को चेताया था कि अभी उनकी राजनीतिक धार कुंद नहीं हुई है। इन प्रदर्शनों के शुरू हुए दौर के निशाने पर मुख्यमंत्री ही रहे हैं यह जन सैलाब इन नेताओं के समर्थकों द्वारा केन्द्रीय नेताओं क ो यह बताने का प्रयास था कि जनता जिसके साथ होती है वही नेता होता है सरकार में बैठने से कोई जननायक नहीं हो जाता। उत्तराखण्ड के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का बीते सप्ताह जर्मनी, हालैण्ड, नार्वे एवं फ्रांस की हफ्ते की यात्रा से लौटने के बाद यहां जौलीग्रांट हवाई पट्टी पर उनके समर्थकों ने जिस तरह स्वागत किया उससे प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा के अन्दर एक और सत्ता संघर्ष की शुरुआत माना जा रहा है। निशंक समर्थकों द्वारा किया गया यह शक्ति प्रदर्शन इस लिये भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि उनकी अनुपस्थिति में मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खण्डूड़ी ने बीती सात जुलाई को श्रीनगर गढ़वाल में सरकारी मेडिकल कालेज का उदघाटन कर दिया था। जबकि निशंक तथा मुख्यमंत्री के सचिव प्रभात कुमार सारंगी व चिकित्सा शिक्षा सचिव विजेन्द्र पाल के बीच बैठक में इसके उदघाटन पर 10 जुलाई की सहमति बनी थी। यही कारण था कि निशंक ने विदेश यात्रा से 12 जुलाई को वापस आने के कार्यक्रम में परिवर्तन कर अपनी टिकट 9 जुलाई की करवाई थी ताकि वे 10 जुलाई की मध्य रात्रि दिल्ली पहुंचने के बाद सीधे श्रीनगर पहुंच सकते थे। उत्तराखण्ड तथा उत्तरप्रदेश तक में आज तक विदेश यात्रा से लौटने पर प्रदेश के किसी भी मंत्री का इस तरह स्वागत नहीं हुआ। यहां तक कि वरिष्ठ राजनेताओं को किसी मंत्री का स्वदेश वापसी पर इस तरह स्वागत होना याद नहीं है। इसलिये निशंक के लिए हवाई अड्डïे से लेकर देहरादून के यमुना कालोनी तक के इस स्वागत यात्रा को मुख्यमंत्री खण्डूड़ी तथा निशंक के बीच सीधे-सीधे शक्ति प्रदर्शन के रूप में माना जा रहा है। मुख्यमंत्री खेेमे के लिये चिन्ता का विषय यह है कि निशंक का स्वागत करने पार्टी के ड़ेढ दर्जन विधायक तथा कई वरिष्ठ भाजपा नेता तक हवाई पट्टी पर गये थे। इनमें शिक्षा मंत्री मदन कौशिक भी थे। भाजपा के साथ ही सहयोगी दल उक्रांद का एक विधायक भी जौलीग्रांट पहुंचा हुआ था। निशंक के स्वागत के लिये पंहुंचे भाजपा विधायकों में विजयसिंह पंवार,गोपाल सिंह रावत, बृजमोहन कोटवाल,श्रीमती आशा नौटियाल, गणेश जोशी, राजकुमार एवं सुरेशचन्द जैन के अलावा कोटद्वार के शेलेन्द्र रावत और कर्णप्रयाग के अनिल नौटियाल हवाई पट्टी पर स्वागत के बाद तत्काल लौट गये थे। तीन घण्टे बाद निशंक जब यमुना कालोनी स्थित अपने सरकारी आवास पहुंचे तो वहां प्रदेश अध्यक्ष बच्ची सिंह रावत, प्रदेश संगठन महामंत्री नरेश बंसल, महामंत्री तीरथसिंह रावत और अजय भट्ट संगठन मंत्री धनसिंह रावत पूर्व प्रवक्ता बृजभूषण गैरोला आदि हाथों में गुलदस्ता लिए उनके स्वागत के लिये खडे ़थे। इस शक्ति प्रर्दशन को पार्टी के अन्दर नये समीकरणें की शुरुआत के तौर पर भी माना जा रहा है। इस कार्यक्रम में कोश्यारी समर्थकों की भी अच्छी खासी भीड़ देखी गयी। जिससे अब अनुमान लगाया जा रहा है कि खण्डूड़ी के खिलाफ ये दोनो अब मिल कर मोर्चा खोलेंगे। भाजपा सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री की फौजी शैली पार्टी को काफी मंहंगी पड़ रही है। जनता तो रही दूर मुख्यमंत्री से पार्टी के प्रदेश स्तर के नेताओं का मिलना भी कठिन हो गया है तथा उनके आस पास की अफसरों की चौकड़ी ने सरकार की छवि को धूमिल कर दिया है। सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि मुख्यमंत्री को बरगलाने में 2002 में चुनाव के लिए आए 54 लाख रूपए पुराने भाजपा कार्यालय राजपुर रोड़ से गायब करने वाले एक दायित्वधारी की ही प्रमुख भूमिका है। भाजपा के सूत्रों के अनुसार जब मुख्यमंत्री के मुंह लगे एक अधिकारी ने निशंक के विभाग की उपलŽिधयों की प्रेस विज्ञप्ति जारी की तो निशंक ने इस हस्तक्षेप की जानकारी हाइकमान को देकर चुप्पी साध ली थी लेकिन उनके लिये हालात तब असहनीय हो गये जब मुख्यमंत्री ने निशंक की अनुपस्थिति का लाभ उठाते हुय बीती सात जुलाई को ही मेडिकल कालेज का उदघाटन कर दिया। उनके विभाग की गति विधियों की की प्रेस विज्ञप्ति जारी करना तथा उसी विभाग के अंतर्गत आने वाले मेडिकल कालेज के उदघाटन से भी निशंक को दूर रखने को निशंक ने अपने पर खण्डूड़ी का सीधा हमला माना। वहीं भाजपा के ही कुछ नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री के कुछ चाटुकार सलाहकार ही मुख्यमंत्री को गुमराह करने पर लगे हैं, अन्यथा मेडिकल कालेज का उदघाटन तीन दिन बाद भी तो किया जा सकता था। उल्लेखनीय है कि बीते साल खण्डूड़ी की कार्यश्षैली से क्षुŽध पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी विरोध स्वरूप पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भाग लेने मध्य प्रदेश जाने के बजाय हिमालय पर चले गये थे और उन्होंने भी देहरादून वापसी पर कुछ इसी तरह का जबरदस्त कार्यक्रम करा कर खण्डूड़ी अपनी ताकत का अहसास करा दिया था। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार पहले ही प्रतिपक्ष के नेता के हमलों से चोट खाये हुए मुख्यमंत्री खण्डूड़ी के गले एक और मुसीबत पडऩे जा रही है, जबकि सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द मंडराने वाले उनके चाटूकार सलाहकार उन्हे उन्ही के पार्टी के नेताओं तथा हितचिन्तकों से दूर करने पर लगे हैं।

Sunday, July 13, 2008

रूपकुण्ड से गायब हो रहे हैं कंकाल




राजेन्द्र जोशी

रूपकुण्ड के रहस्य को भेदने के दावे तो बहुत होते हैं लेकिन आज भी रूपकुण्ड के नरकंकाल रहस्य ही बने हुए हैं. लेकिन दुर्भाग्य से अब ये कंकाल कम हो रहे हैं.

रूपकुण्ड में मिलने वाले मानव कंकाल पर्वतारोहियों तथा मनुष्य के अत्यधिक आवागमन के कारण खतरे में हैं। यहां पाए जाने वाले विलक्षण तथा रहस्यमय मानव कंकाल धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं। सरकार इस ऐतिहासिक तथा रहस्यों से भरी धरोहर को संजोए रख पाने में असफल ही साबित हुई है। यही कारण है कि नौवीं सदी के ये अस्थि अवशेष समाप्त होने के कगार पर हैं। इस बात की प्रबल संभावना है कि रूपकुण्ड के अस्थि अवशेषों की तस्करी हो रही है और दुनियाभर से आनेवाले ट्रैकर इन अस्थियों को यहां से बाहर ले जा रहे हैं.

उत्तराखण्ड का हिमालयी क्षेत्र अपने आप में कई रहस्यों तथा चमत्कारों से भरा पड़ा है। इन्हीं में से एक रहस्यमयी झील जिसे `रूपकुण्ड´ कहा जाता है इसी हिमालय की पर्वत श्रृंखला त्रिशूल तथा नन्दाघाटी के नीचे स्थित है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई लगभग 16499 फीट है। यह स्थान चमोली जनपद के देवाल क्षेत्र में आता है। यह वही पवित्र स्थान है जहां हर बारह साल में नन्दा देवी राजजात की यात्रा का यह अंतिम पड़ाव है यहां के बाद यह कहा जाता है कि सीधे स्वर्ग का मार्ग जाता है। एक कहावत यह भी है कि यहां से ही भगवान शिव पार्वती को कैलाश की ओर ले गए थे। जब रास्ते में पार्वती को प्यास लगी तो भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से इस पर्वत पर एक झील बना डाली थी जिसका पानी पीकर पार्वती ने अपनी प्यास तो बुझाई थी वही इस झील में अपने प्रतिविंब को देखकर पार्वती ने इसे ही रूपकुण्ड का नाम दिया था।

इसी झील में तथा इसके आसपास सैकडों मानवों के अस्थिकंकाल बिखरे पड़े थे, जिनका लंदन तथा हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने रेडियोकार्बन टेस्ट कर उम्र पता लगाने की कोशिश की तो पता चला कि ये सभी नौंवीं सदी के लोगों के अस्थि कंकाल थे। इतिहासकारों के अनुसार कन्नौज के राजा यशोधवन भगवान शंकर को प्रसन्न करने इसी हिमालय क्षेत्र की ओर अपनी फौज के साथ आये थे. साथ में उनकी गर्भवती पत्नी तथा दासिंयां भी आयीं थीं. यहां से पहले बलुआ कुनड़ के पास रानी को प्रसव हो गया और राजा अपनी सेना को लेकर आगे रूपकुण्ड की ओर बढ़ते चले गए लेकिन वे प्रसव के कारण अपवित्र हो चुके थे लिहाजा प्रकृति के नाराज होने के फलस्वरूप उनके ठिकाने के पास भारी ओले गिरने के साथ ही बर्फीले तूफान चलने लगे जिससे कन्नोज के राजा सहित उसकी फौज तथा रानी तथा दासिंया वहीं दफन होकर रह गए।

आज यहां जो अस्थिकंकाल मिलते हे वे आज के मानवों से काफी बड़े हैं जिनकी लम्बाई लगभग दस से बारह फीट है। वहीं यह कहा जाता है कि इतनी संख्या में या तो ये लोग किसी संक्रामक बीमारी से मरे होंगे या फिर ठंड के कारण। इतना ही नहीं कहा तो यह तक जाता है कि ये लोग तिब्बती व्यापारी रहे होगें जो अपना रास्ता भटक गए थे। क्योंकि इसी जिले के हिमालयी क्षेत्र में सन् 1962 से पूर्व तक भारत व चीन के मध्य व्यापार हुआ करता था। वहीं वैज्ञानिकों का मानना है कि इनकी मृत्यु भारी ओलों (क्रिकेट की बाल के जितने) के गिरने से ही हुई होगी। उनका यह भी मानना है कि भारी ठंड तथा बर्फ के कारण ही इनके शरीर प्रीजर्ब रह पाए। वैज्ञानिकों का मानना है कि पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण यहां यदा-कदा भू-स्खलन होता रहता है इसी कारण ये मानव शरीर धीरे-धीरे रूपकुण्ड में आ पहुंचे होंगे।

स्थानीय बुजुर्गों ने मुझे कई साल पहले बताया था कि इन नरकंकालों के शरीर पर उस दौरान तक उनके पहने कपड़े जैसे कि कश्मीरी लवादा जैसा लोग सर्दी बचाने को पहना करते थे इनके शरीर पर थे लेकिन वे इतना गल चुके थे कि हाथ लगाते ही मात्र राख सी ही हाथ में आती और इनकी हड्डियों से मांस धीरे-धीरे गल चुका था। ऐसा बतानेवालों में मेरे एक रिश्तेदार भी थे जो वहां फारेस्ट आफिसर के तौर पर काम कर चुके थे।

सरकार ने आज से कई साल पहले लोहा जंग नामक स्थान पर एक चेक पोस्ट स्थापित किया थी लेकिन इस ओर जाने तथा यहां से निकलने के कई और रास्ते हैं जिसपर अबाध रूप से आवाजाही होती है. जिलाधिकारी चमोली डीएस गर्ब्याल के अनुसार रूपकुण्ड मार्ग तथा जिले के अंतिम गांव वाण के लोगों ने एक समिति का गठन किया हुआ है जो इस तरह की तस्करी पर वन विभाग के साथ मिलकर रोक लगाने का प्रयास करती है साथ ही जिलाधिकारी ने यह स्वीकार किया कि इस क्षेत्र में आने तथा जाने के कई और मार्ग हैं इन पर चैकिंग की व्यवस्था के लिए प्रदेश सरकार को प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है, ताकि हर मार्ग पर इन कंकालों के साथ ही वन्य उपज की तस्करी को रोका जा सकेगा।

दरक रहा है पहाड़


राजेन्द्र जोशी

बिजली मुफ्त नहीं आती. इसकी कीमत चुकानी पड़ती है. आप जो कीमत चुकाते हैं उससे ज्यादा वे गांव इसकी कीमत अदा कर रहे हैं जहां बिजली पैदा होती है.

आप भले ही कुछ रूपया देकर उपभोक्ता होने का अहंकार पाल लें लेकिन वे गांववाले क्या करें जिनके घर ही टूटकर बिजली की खेती के कारण अपना अस्तित्व ही खो रहे हैं. टिहरी की बिजली में दिल्ली के माल भले ही रोशन हो रहे हों लेकिन यहां के 24 गांव पानी में समा गये. उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले का एक और गांव चांई भी ऊर्जा राज्य बनाने की चाह की भेंट चढ़ गया। चाईं अकेला गांव नहीं है. बिजली उत्पादन के लिये प्रमुख नदियों को पहाड़ों के अन्दर सैकड़ों किमी लम्बी सुरंगों के अन्दर डालने की योजना के चलते दर्जनों गांवों के अस्तित्व पर सवालिया निशान लग गया है।

चमोली जिले के भारत-तिब्बत सीमा से जुड़े सीमान्त ब्लाक जोशीमठ के चांई गांव में शुरू हुए भूस्खलन के कारण 28 मकान पूरी तरह नष्ट हो गये हैं, जबकि लगभग 100 मकानों पर दरारों के कारण समूचा चाईं गांव खेती की जमीन सहित अलकनंदा की ओर खिसक रहा है। जोशीमठ की एसडीएम निधि यादव के अनुसार इस भूस्खलन से अब तक तीन मकान पूरी तरह जमींदोज़ हो चुके हैं, जबकि 25 से 30 मकान क्षतिग्रस्त हैं। निधि यादव के अनुसार इस भूस्खलन के कारण मकानों की 89 लाख रुपये तथा जमीन की 4.75 करोड़ रुपये की क्षति का आंकलन हुआ है और जिलाधिकारी चमोली ने यह रिपोर्ट प्रदेश सरकार को भेज दी है। उन्होंने बताया कि ये सभी परिवार गांव छोड़ चुके हैं। इनके लिये जोशीमठ और मारवाड़ी में रहने की अस्थाई व्यवस्था की गयी है। भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग के निदेशक डा. पी.सी. नवानी के अनुसार चाईं गांव के निचले हिस्से के लिये भी खतरा उत्पन्न हो गया है और जान माल की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रशासन को गांव को अन्यत्र बसाना पड़ेगा।

जिन लोगों के मकान ध्वस्त हुए हैं उनके नाम हैं- थैबाड़ी में भूपाल सिंह पंवार, देवनारायण महाराज, गीता देवी, दीपक पंवार, यशपाल पंवार, कपिलदेव पंवार, महेंद्र पंवार, शैलेंद्र पंवार, पुष्कर लाल, जोत सिंह, प्रेम सिंह, दुलप सिंह, उछव सिंह, राम सिंह पंवार तथा रघुबीर सिंह. इसी गांव के ब्यूरा नामक स्थान पर लम्बे आकार में करीब एक मीटर गहरी दरार जमीन पर उभर आयी है. यह करीब 500 मीटर लम्बी है। गांव के ऊपरी हिस्से में आ रही आबादी भी कैसे सुरक्षित रहेगी जब उसके नीचे कब्रगाह तैयार हो चुका है। ब्यूरा में अखिलेश कठिहार, दिगम्बर चौहान, नरेन्द्र बिष्ट, सरस्वती राणा, जानकी देवी, पुष्कर सिंह चौहान, भगवती देवी, दलबीर सिंह पंवार, इन्द्र सिंह बिष्ट, सतेंद्र सिंह, बांके लाल, रूपा देवी, मदन सिंह एवं गोपाल सिंह के मकान भी इस धंसाव की चपेट में आने के कारण चिंता का सबब बन गये हैं। उनका आशियाना कभी भी लुढ़क सकता है।

मुसीबत इन्हीं लोगों पर नहीं, बल्कि उनके मवेशियों पर भी टूटती दिखाई दे रही है। परियोजना स्थल के ऊपरी हिस्से पर टिन शेड्स पर इनके रहने की व्यवस्था न हो पाने और विस्थापित किये गये लोगों को करीब 10-12 किमी दूर जोशीमठ में रखने के कारण यह व्यवस्था और भी विकराल रूप में सामने आ रही है। 110 परिवारों के इस गांव की आबादी करीब 630 है। इनमें से 25 घरों के लोग तो सड़क पर आ चुके हैं और शेष ग्रामीणों के सामने बेघरबार होने की समस्या खड़ी हो गयी है।

भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग के निदेशक डॉ पीसी नवानी के अनुसार उन्होंने आपदा प्रबंधन विभाग एवं वाडिया इंस्टीट्यूट के भूवैज्ञानिकों के सहयोग से चाईं गांव का प्राथमिक सर्वेक्षण कर रिपोर्ट उत्तराखण्ड सरकार को सौंप दी है। उन्होंने बताया कि यह भूस्खलन चांई गांव के दोनों ओर के नालों के कारण हो रहा है। उन्होंने आशंका जतायी कि यह विष्णु प्रयाग जल विद्युत परियोजना की 12 किलोमीटर लम्बी सुरंग के लीकेज के कारण भी हो सकता है। नवानी ने बताया कि अभी इस मामले में विस्तृत सर्वेक्षण किये जाने की जरूरत है,ताकि इस भूस्खलन के असली कारण सामने आ सकें। इस संबंध में इस परियोजना का संचालन करने वाली जयप्रकाश कम्पनी से कुछ विवरण मांगे गये हैं। उन्होंने बताया कि यह भूस्खलन नाले की दिशा बदलने के कारण भी हो सकता है। अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर एक भूवैज्ञानिक का कहना था कि यद्यपि इस सुरंग का निर्माण करने वाली जयप्रकाश कम्पनी के पास सुरंग निर्माण की विशेषज्ञता हासिल है और उनकी बनायी हुई सुरंगों में अब तक इस तरह की कोई शिकायतें नहीं आयी हैं, फिर भी यहां इस आपदा का कारण सरसरी तौर पर सुरंग का रिसना प्रतीत हो रहा है।

प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं चिपको आंदोलन के प्रणेता चण्डी प्रसाद भट्ट ने चांई गांव का दौरा करने के बाद बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में जल विद्युत क्षमता का अविवेकपूर्ण दोहन का पहला दुष्परिणाम सामने आ गया है और भविष्य में इस प्रकार की आपदायें आम हो सकती हैं। उन्होंने बताया कि वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री को पहले ही आगाह कर चुके हैं कि इस तरह प्रकृति के साथ बेतहाशा छेड़छाड़ कर विकास के सपने देखना मानवता के साथ खिलवाड़ करना है। उच्च हिमालयी क्षेत्र में जहां यह परियोजनायें बन रही हैं, वहां का पारिस्थितिकीय तंत्र बेहद संवेदनशील है और कुदरत किसी भी रूप में अपना गुस्सा प्रकट कर सकती है।

बिजली आयी बत्ती गुल

राजेन्द्र जोशी

उत्तराखण्ड उर्जा प्रदेश बनना चाहता है. बड़ी सोच विचार के बाद सरकार ने तय किया कि वह रन द रिवर की मानसिकता से बिजली पैदा करेगी. लेकिन इस रन द रिवर को मानने के लिए

सरकार को सुरंगों के रास्ते पानी गुजारना होगा. हो सकता है इससे नदियों के भक्तों को यह कहने का मौका मिल जाए कि नदी अबाध है, लेकिन इसके नुकसान तो और भी भयावह होनेवाले हैं. सरकार पहाड़ों के बीच सुरंगों की जैसी जाल फैलाने की योजना बना रही है उससे तो पूरा पहाड़ ही भूस्खलन और भ्रंस का तांडव बनकर रह जाएगा. बिजली किसे मिलेगी, पैसा कहां जाएगा यह खेल तो अलग लेकिन इसकी कीमत कौन चुकाएगा?

उत्तराखण्ड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद 1000 मेगावाट क्षमता की टिहरी बांध परियोजना प्रथम चरण, 400 मेगावाट की विष्णुप्रयाग तथा 180 मेगावाट की धौलीगंगा परियोजना पूरी हुई है और इनमें से अब तक ऐतिहासिक टिहरी नगर के अलावा टिहरी जिले के 24 गांव पूर्ण रूप से तथा 127 गांव आंशिक तौर से विशाल कृत्रिम जलाशय में समा चुके हैं. इस परियोजना से लगभग 10 हजार परिवार प्रभावित हुए हैं। अब विष्णु प्रयाग परियोजना से उत्पन्न इस आपदा के कारण प्रदेश के भविष्य की परियोजनाओं के कारण पहाड़ी जनजीवन पर पर्यावरणविदों को स्पष्ट खतरा नजर आने लगा है। टिहरी बांध के कारण हुई विस्थापन की विकराल समस्या को ध्यान में रखते हुए उत्तराखण्ड सरकार ने अब भविष्य में बांधों के बजाये रन ऑफ द रिवर परियोजनायें चलाने का निश्चय किया है, मगर इस तरह की परियोजनाओं में भी पहाड़ों पर छेद कर सुरंगों की जरूरत पड़ेगी।

एक अनुमान के अनुसार उत्तराखण्ड में जल विद्युत परियोजनाओं के लिये लगभग 750 किलोमीटर लम्बी सुरंगे खुदेंगी, जिससे उच्च हिमालयी क्षेत्र में लगभग हर पहाड़ के अंदर कोई न कोई छेद बनाना पड़ेगा। उत्तरकाशी के जल संस्कृति आंदोलन से जुड़े नागेंद्र दत्त तथा गंगोत्री ग्लेशियर बचाओं अभियान की प्रमुख शांति ठाकुर के निर्माणाधीन 480 मेगावाट क्षमता की लोहारी नागपाला तथा मनेरी भाली परियोजना के कारण पाला गांव का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इन नेताओं का कहना है कि इस गांव के बुराड़ी तथा गुलाणी तोकों के चारों ओर 150 स्थानों पर छोटे-बड़े भूस्खलन हो रहे हैं। इस गांव के प्राइमरी स्कूल भवन में दरारें पड़ गयी है।

जगह-जगह भूस्खलन के पीछे मनेरी भाली परियोजना के लिये बनायी गयी सुरंग की सही तरीके से पैकिंग न होना और अत्यधिक विस्फोटकों का प्रयोग बताया जा रहा है। प्रदेश की वर्तमान जल विद्युत उत्पादन की चिन्हित क्षमता 15109 मेगावाट है, जिसमें लगभग छोटी बड़ी 122 परियोजनायें शामिल हैं। इसके अलावा एक ताजा अनुमान के अनुसार प्रदेश में लगभग 20 हजार मेगावाट की परियोजनाओं को चिन्हित करने का काम पूरा हो चुका है। जबकि भाजपा की मौजूदा सरकार 40 हजार मेगावाट तक की परियोजनाओं की संभावनायें तलाश रही है। पूर्व में चिन्हित परियोजनाओं के लिये ही लगभग 200 किलोमीटर लम्बी सुरंगों का प्रस्ताव है।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियालॉजी के पूर्व निदेशक एनएस विरदी और एक अन्य भू-वैज्ञानिक ए के महाजन के एक शोध पत्र के मुताबिक अकेले गंगा बेसिन की प्रस्तावित और निर्माणाधीन परियोजनाओं के लिये 150 किमी लम्बी सुरंगे खुद रही हैं या खोदी जानी हैं। इनके अलावा शारदा और यमुना घाटियों की परियोजनाओं के लिये भी पहाड़ों के अंदर सैकड़ों किमी लम्बी सुरंग खोदी जानी है। अलकनंदा और भागीरथी घाटियों में 3414 मेगावाट, यमुना घाटी 420 और शारदा, सरयू और कोसी घाटियों में 480 मेगावाट की परियोजनायें निर्माणाधीन हैं। गंगा घाटियों में 5215 मेगावाट, यमुना घाटियों में 14645 मेगावाट और शारदा व सहायक नदियों की घाटियों में 3905 मेगावाट की परियोजनायें चिन्हित की गयी हैं। भूवैज्ञनिक डा0 विरदी व ए के महाजन के शोध पत्र के मुताबिक अलकनंदा व सहायक नदियों पर निर्माणाधीन या प्रस्तावित परियोजनाओं में से विष्णु प्रयाग प्रोजेक्ट पर 12 कि.मी. सुरंग खुद गयी है। भागीरथी पर बनने वाली परियोजनाओं में लोहारी नागपाला 13.6 किमी, पाला मनेरी में 8.7 किमी व मनेरी भाली द्वितीय में 16 किमी लंबी सुरंग खुद चुकी है। मनेरी भाली प्रथम में पहले ही 9 किमी लंबी सुरंग काम कर रही है।

प्रदेश के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री दिवाकर भट्ट के अनुसार प्रदेश के 13 में से 8 जिलों के लगभग 97 गांवों के अस्तित्व पर भूस्खलन का खतरा मण्डरा रहा है, इनमें चमोली के 28, पिथौरागढ़ के 19, टिहरी के 11, उत्तरकाशी के 10, पौड़ी के 5, बागेश्वर के 2 तथा अल्मोड़ा और नैनीताल जिलों के एक-एक गांव शामिल हैं। लेकिन चांई गांव की तरह बिजली परियोजना के कारण बनने वाली सुरंगों से अगर नये भूस्खलन शुरू हो गये तो प्रदेश में भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है। टिहरी बांध की परिधि के चारों ओर पहले ही भूस्खलन शुरू हो चुका है, और इन भूस्खलनों की चपेट में लगभग आधे दर्जन गांव बताये जाते हैं। चूंकि ये गांव बांध के जल स्तर से काफी ऊपर हैं। इसलिये इन्हें पूर्व में सुरक्षित मान लिया गया था मगर अब बांध के चारों ओर होने वाले भूस्खलनों ने नयी समस्या खड़ी कर दी है।

उर्जा प्रदेश बनने की चाह में उत्तराखण्ड हो सकता है अपनी इन क्रांतिकारी परियोजनाओं की बदौलत देश के कुछ बड़े महानगरों को भले ही रोशन कर दे लेकिन यहां के गावों की बत्ती सदा-सदा के लिए बुझ जाएगी.

बांध के विरोध का सच



राजेन्द्र जोशी

जीडी अग्रवाल के आमरण अनशन का यूं अचानक टूट जाना कई तरह के सवाल पैदा करता है. ऐसा नहीं है कि गंगा पर आया संकट टल गया हो लेकिन श्री अग्रवाल

का अनशन जरूर खत्म हो गया है. पहले वे दिल्ली गये. उनसे कहा गया कि उत्तराखण्ड सरकार फिलहाल अपनी परियोजनाओं पर काम रोक रही है. यह मात्र आश्वासन था. फिर दिल्ली पहुंचने के साथ ही उनका अचानक 30 जून को आमरण अनशन समाप्त कर देने की घोषणा कर देना कई तरह के सवाल पैदा करता है. क्या उत्तराखण्ड के लोग विकास में मोहरे हैं तो विकास के विरोध में भी मोहरे ही रहेंगे. उनकी अपनी कोई निर्णायक सोच-समझ का आदर नहीं होगा. उत्तराखण्ड में निर्माणधीन सभी जल विद्युत परियोजनाओं पर काम से ज्यादा ऐसी राजनीति हो रही है जिसमें नेताओं के अलावा तथाकथित पर्यावरणवादी भी शामिल हैं. इसे अब यहां के लोग भी समझने लगे हैं कि इन सभी जल विद्युत परियोजनाओं पर जनता के हित का कार्य कम और राजनीति अधिक हो रही है। इसमें राजनेता ही नहीं तथाकथित पर्यावरणविद भी शामिल हैं। तब आन्दोलन करने वाले ये लोग कहाँ सो जाते हैं जब परियोजना की डीपीआर बन रही होती है अथवा इसके लिए स्थान के चयन की प्रक्रिया चल रही होती है। यह तभी सक्रिय होते हैं जब काम या तो आधा या पूरा हो चुका होता है, आम आदमी की मानें तो वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि तब तक ये ठेकेदारों और निर्माण कंपनी से रकम ऐंठ चुके होते हैं। फिऱ इनको अपने जनता के प्रति दायित्व का बोध होता है और ये आमरण अनशन या ऐसा ही कोई ढोंग शुरू कर देते हैं। तब ऐसे ढोंग-ढकोसले के आंदोलन अन्तराष्ट्र्रीय या राष्ट्रीय पुरस्कार पाने का एक अच्छा प्लेटफोर्म बन जाता है।

आप ऐसे कितने पर्यावरणविदों का नाम ले सकते हैं जिनके कार्यों से जनता का सचमुच भला हुआ हो. आम जनता जो इनके पीछे खड़ी होकर इनको प्रसिद्धि दिलाती हैं बेचारी जनता वहीं की वहीं रहती है। राजनेताओं के चरित्र के बारे में कुछ कहना व्यर्थ है आम जनता सब कुछ जानती है पर मजबूर है कि निजी स्वार्थ वश इनको फिऱ भी झेल रही है, दूसरा कोई विकल्प जो नहीं है। टिहरी बाँध इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है जो खरबों रुपया खर्च होने, लाखों लोगों के विस्थापित होने और कई आन्दोलनों को झेलने के बावजूद आज तक अपनी पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पाया है। निर्माण कार्य लटकने से परियोजना की लागत बढ़ तो रही है जिससे जनता के अलावा किसी का नुकसान नहीं होता. आप ने डॉ गुरूदास अग्रवाल जी के अनशन का परिणाम तो देख ही लिया कि किस प्रकार जो जनता उनके समर्थन में साथ बैठी थी वह पाला बदल कर उनके विरोध में ऐसे खड़ी हो गयी कि डॉ. साहब को उत्तरकाशी में अपना बोरिया बिस्तर तथा अनशन छोडक़र भागना पड़ा। यह सब ठेकेदारों और निर्माण कंपनियों के धन बल का ही परिणाम था या सचमुच जनता का विरोध इसका उत्तर तो शायद वहां पर मौजूद लोग ही दे सकते हैं।

ऐसा लगता है पर्यावरण पहाड़ की राजनीति में नयी धुरी बन रहा है. इसमें पैसा, पुरस्कार और प्रसिद्धि तीनों है. पहाड़ बांधों के संकट से तो जूझ ही रहा है, ऐसे पर्यावरणवादियों की बाढ़ से पहाड़ कैसे बचेगा यह सोचनेवाली बात होगी. वहीं दूसरी ओर हमारे सामने पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा का उदाहरण है. वे आज भी टिहरी बांध के जलाशय के पास बार-बार आते रहते हैं। उन्हें आज भी उस आनंद की अनुभूति है जो खत्म हो चुके टिहरी कस्बे में भागीरथी घाट पर नहाने से मिलती थी। उत्तराखंड के इस ऐतिहासिक कस्बे के नष्ट हो जाने के बाद भी बहुगुणा इससे बहुत दूर जाना नहीं चाहते हैं। उन्हें टिहरी अक्सर अपनी याद दिलाता रहता है। बांध बन चुका है, वे जानते हैं कि अब वे घड़ी की सूई पीछे नहीं मोड़ सकते लेकिन वे अपनी माटी से दूर जाएं भी तो कहां? पर्यावरण के नाम पर विरोधों का राष्ट्रीयकरण करनेवाले पर्यावरणविद हर जगह एक चतुर राजनीतिज्ञ की तरह उपस्थित होने लगे हैं. विरोधों की यह सार्वभौमिकता स्थानीय आवाजों को उठाने की बजाय उनका उपयोग अपने नाम-काम और धाम बनाने के लिए करती है. उत्तरकाशी में जो कुछ हुआ वह इसी का उदाहरण है.

उत्तराखंड में टिहरी ही एक अकेला मामला हो ऐसा नहीं है। धौलीगंगा में दो साल पहले एनएचपीसी की 280 मेगावाट क्षमता वाली परियोजना के लिए ऐलागढ़ गांव को डूबना पड़ा और 24 परिवार विस्थापित हुए। ऐलागढ़ से 50 किलोमीटर दूर केन्द्र सरकार 6000 मेगावाट की पंचेश्वर जलविद्युत परियोजना का निर्माण करने की योजना बना रही है। भारत-नेपाल सीमा पर काली नदी पर बनने वाली यह परियोजना टिहरी के मुकाबले तीन गुनी है। पंचेश्वर के करीब रहने वाले लोग परियोजना का विरोध कर रहे हैं। पंचेश्वर बांध के बनने से करीब 80,000 लोगों के विस्थापित होने की आशंका है। इस बांधों का निर्माण समय की मांग है लेकिन यह भी विडंबना ही कही जाएगी कि उत्तराखंड के लोगों को विकास की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। जलविद्युत परियोजनओं को लेकरआंदोलन तो कोई और करता है और श्रेय किसी और को मिलता है। प्रो0 अग्रवाल को लाहोरी नागा प्रोजेक्ट से गंगा को मुक्त करने की तो फिक्र है, लेकिन कानपुर, इलाहाबाद में जो फैक्टरी का कूड़ा और सीवर इस नदी में पड़ रहा है, उसकी चिन्ता उन्हें क्यों नहीं होती?

इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम श्री अग्रवाल पर निजी तौर पर कुछ आक्षेप लगा रहे हैं. आम उत्तराखण्डी मानता है कि बड़े बांध हमारे लिए ठीक नहीं है. जहां तक विकास के लिये कस्बों की कुर्बानी की बात है तो यह विकास तो कुर्बानी मांगता ही है। लेकिन उत्तराखण्ड, जिसकी भूगर्भीय संरचना काफी कमजोर है, वहां पर इतने बड़े बांध विकास नहीं कर सकते, वह केवल विनास ही कर सकते हैं। इसका उदाहरण आप लोग प्रतापनगर और चिन्यालीसौंड़ में देख सकते हैं, जहां पर बांध से कहीं ऊपर की बस्तियों के मकानों में 4-4 इंच की दरारें आ गईं हैं और सरकारी मानकों के आधार पर उनका विस्थापन भी नहीं किया जा सकता। सरकार को चाहिये कि अपनी नदियों को केन्द्र के पास गिरवी रखने की बजाय छोटे-छोटे पावर प्रोजेक्ट बनाये और इससे पहले अपने प्रदेश को पारेषित करे। टिहरी बांध से नुकसान उत्तराखण्ड में हुआ, लोगों के पैतृक आवास भी झील में समा गये और हमें मिली मात्र 12 फीसदी बिजली. यदि प्रदेश सरकार यहां पर छोटी-छोटी योजनायें बनाती तो निश्चित ही हमें बिजली मिलती। दुर्भाग्यपूर्ण और वास्तविक बात यह है कि हमारे प्रदेश में इतनी योजनायें काम कर रहीं हैं और दूसरे कई राज्यों को इन योजनाओं से बिजली दी जा रही है लेकिन उत्तराखण्ड को आज भी दूसरे प्रदेशों से बिजली खरीदनी पड़ रही है।

Tuesday, July 1, 2008

मुख्यमंत्री के सचिव के बयान से बवाल

मुख्यमंत्री के सचिव के बयान से बवाल
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, (राजेन्द्र जोशी): मुख्यमंत्री के सचिव के स्वास्थ्य विभाग की उपलŽिधयों के सम्बध में दिए गए बयान को लेकर राजनैतिक गलियारों में इसके कई अर्थ लगाए जाने शुरू हो गए हैं। कुछ का कहना है कि यह बयान जानबूझकर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री की छवि को खराब करने की कोशिश है तो कई नेताओं का कहना है कि इसमें कोई बड़ी राजनीतिक चाल हो सकती है। कुल मिलाकर यह चर्चा का विषय अवश्य हो गया है कि यह बयान यदि बतौर महानिदेशक सूचना अथवा सचिव सूचना द्वारा जारी होता तो इसे सरकार की छवि निखारने के प्रयास के तहत माना जा सकता था, लेकिन बयान के बतौर सचिव मुख्यमंत्री जारी किए जाने के पीछे इसके कई निहितार्थ लगाए जाने लाजमी हैं। कि आखिर कबीना मंत्री के होते हुए मुख्यमंत्री के सचिव को ऐसा बयान देने की क्यों जरूरत आन पड़ी? बीती शुक्रवार को सचिव मुख्यमंत्री प्रभात कुमार सारंगी के टिकट फोटो के साथ प्रदेश के सूचना निदेशालय ने राज्य के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की अब तक की उपलŽिधयों सम्बधी एक बयान समूचे मीडिया जगत को मेल किया गया। जिसे स्थानीय समाचार पत्रों ने प्रमुखता से प्रकाशित भी किया। दो पेज के इस बयान में यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया कि इस प्रदेश में चिकित्सा के क्षेत्र में जितने भी सुधार किए गए हैं वे सभी मुख्यमंत्री द्वारा ही किए गए। जिसमें राज्य के स्वास्थ्य मंत्री को एक तरह से नकारा करार दिए जाने का प्रयास किया गया। मुख्यमंत्री के सचिव के द्वारा दिए गए इस बयान की भाजपा खेमें में तो तीखी प्रतिक्रिया हो ही रही है इसे विरोधी दल भी मुद्दा बनाने की फिराक में हैं। विरोधी दलों के नेताओं का कहना है कि इस बयान से तो यह लगता है कि प्रदेश भाजपा में जो कुछ अंदरखाने चल रहा है उसे कतई ठीक नहीं कहा जा सकता। मुख्यमंत्री के सचिव ने स्वास्थ्य मंत्री की अब तक की सारी उपलबधियां को अपने खाते में डालने को प्रयास तो किया ही है साथ ही मुख्यमंत्री के विभागों को लेकर वे चुप क्यों रहे। इनका कहना है कि प्रदेश में स्नातकोत्तर महा विद्यालयों में प्रवक्ताओं की कमी है, प्रदेश में उच्चशिक्षा की दुर्गति हो रही है,प्रदेश के विश्वविद्यालयों में स्थाई कुलपति की नियुक्ति नहीं हो पा रही है वहीं तकनीकी विश्वविद्यालय विवादों में घिरा है इस पर उन्हे बयान देना चाहिए था। इनका कहना है कि इस पर वे इसलिए नहीं बोल रहे हैं क्योंकि इन विभागों के मुख्यमंत्री के साथ ही वे भी कर्ता-धर्ता हैं। उनके अनुसार भाजपा में अंदरूनी गुटबंदी तथा टांग खिंचाई चरम पर है यह बयान इसी का परिणाम है। उन्होने कहा जब प्रदेश में कैबिनेट मंत्री कुछ नहीं कर रहा है तो अभी हाल ही में मंत्रिमंडल में विभागों के बंटवारे में उसे और विभाग क्यों दिए गए। उसे तो हटा ही देना चाहिए था। इससे यह साफ लगता है कि मुख्यमंत्री मंत्रियों के दबाव में हैं और निर्णय लेने तक को स्वतंत्र नहीं हैं। वहीं दूसरी ओर भाजपा नेताओं तथा स्थानीय लोगों का कहना है कि जब प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री चिकित्सा क्षेत्र में की जा रही उपललŽिधयों को लेकर 20 दिन पहले 11 जून को पत्रकारवार्ता कर चुके हैं जिसमें उन्होने बताया था कि 32 हजार लोगों ने आपातकालीन एम्बूलेन्य सेवा 108 को काल किया तथा उससे 490 लोगों को चिकित्सा लाभ मिला। अब जबकि 27 जून को सचिव मुख्यमंत्री ने जारी बयान मे बताया कि 15 मई से शुरू इस सेवा में 33 हजार लोगों ने काल किया और इस दौरान पांच सौ लोगों को इसका चिकित्सा लाभ मिला। जबकि आज तक की जानकारी देते हुए ईएमआर आई सेवा देने वाले अखिलेश वर्मा तथा मुनीश के अनुसार 28 जून तक 67हजार 207 लोगों ने इस सेवा के लिए काल की तथा 1127 लोगों को इस दौरान उपचार दिया गया। इससे तो केवल यह ही प्रतीत होता है कि सचिव द्वारा केवल बयानबाजी क ी गई है जबकि यथार्थ में आंकड़े कुछ और ही बयां कर रहे हैं। प्रशासनिक तथा राजनीतिक लोगों का कहना है कि वैसे तो मुख्यमंत्री के सचिव को इस मामले में नहीं पडऩा चाहिए था और जब बयान देना इतना जरूरी हो गया था तो उन्हे कम से कम अपनी जानकारी पुष्टï तो रखनी चाहिए थी। इस मामले में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डा0 निशंक से बात करने की कोशिश की गयी लेकिन वे दौरे पर होने के कारण उपलŽध नहीं हो पाए। बहरहाल मुख्यमंत्री के सचिव के बयान को लेकर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर गर्मा गयी है। राजनैतिक क्षेत्र में दखलंदाजी रखने वाले लोगों का कहना है कि नेताओं के मामले में किसी प्रशासनिक अधिकारी को नहीं पडऩा चाहिए। वहीं प्रदेश के कई आला प्रशासनिक अधिकारी भी इन विचारों से इत्तफाक रखते हैं।