राजेन्द्र जोशी
धारचूला -गंूजी मार्ग के बंद हो जाने बाद अब कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए प्रदेश के ही जोशीमठ- मलारी मार्ग से भी यात्रा शुरू करने को लेकर बहस शुरू हो गई है। जिसे उत्तरपथ कहा जाता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग को मोक्ष का रास्ता भी कहा जाता रहा है। स्कंध पुराण में भी इस यात्रा का वर्णन मिलता है। धारचूला से कैलाश मानसरोवर तथा मलारी से कैलाश मानसरोवर मार्ग का प्रयोग आजादी के 15 सालों तक हुआ करता था। 1962 में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के बाद ये दोनों मार्ग बंद कर दिये गये थे । जिन पर पुन: 1981 में चीन की रजामंदी के बाद यात्रा शुरू हो पायी। जबकि मलारी से तिबत के तुंन जेन ला तक इस उत्तरपथ से भी व्यापार होता रहा था, और यह मार्ग भी कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सबसे सुगम बताया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस उत्तरपथ से भारत तथा तिबत के बीच व्यापारिक रिश्ते काफी पुराने थे लेकिन तिबबत में अशांति के बाद यह मार्ग लगभग बंद सा हो गया है। हालांकि अभी भी भारत तथा तिबत के बीच धारचूला के लिप्पूलेख दर्रे से व्यापार की अनुमति है लेकिन यह अनुमति केवल 18 चीजों के लिए ही है। जिसमें ऊन तथा भेड़ का व्यापार प्रमुख है। जबकि आजादी के 15 सालों तक मलारी मार्ग से तिबत के लिए भेड़ो तथा याक से नमक,तेल तथा ऊन सोना आदि का व्यापार हुआ करता था। जिससे क्षेत्र के लोगों की आर्थिकी मजबूत तो थी ही साथ ही उन्हे रोजगार भी मिलता रहा था। इतना ही नहीं इन दोनों देशों के बीच इतनी व्यापारिक प्रगाढ़ता थी कि कभी उत्तराखण्ड के सीमावर्ती गमशाली तो कभी तुन जेन ला में व्यापारिक मेले आयोजित किये जाते थे जिसमें वे एक दूसरे के यहां की वस्तुओं की खरीद फरोख्त किया करते थे। गमशाली गांव में रह रहे 87 वर्षीय मोहन सिंह के अनुसार वे कई बार अपने पिता व अन्य रिश्तेदारों के साथ तिबत की यात्रा अपनी जवानी के दिनों में कर चुके हैं। उस समय को याद कर उनकी अंश्रुपूरित आंखों में यह साफ दिखाई देता है कि उस समय यह क्षेत्र धन-धान्य से कितना परिपूर्ण रहा होगा। उनके अनुसार आज उनका गांव वीरान हो चुका है गांव के कई परिवार मलारी,जोशीमठ तथा देहरादून तक जा बसे हैं। उनके अनुसार इस क्षेत्र में विकास कार्य तो हुए हैं लेंकिन लोगों में वो सौहार्द अब नहीं दिखाई देता। वहीं इसी क्षेत्र के रहने वाले उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड के पूर्व पर्यटन मंत्री व वर्तमान में बदरीनाथ क्षेत्र के विधायक केदार सिंह फोनिया के अनुसार जोशीमठ से मलारी होते हुए सुमना तक अब सडक़ मार्ग 86 किमी का बन चुका है यहां से पैदल बाड़ाहोती होते हुए तुन जेन ला पहुंचा जा सकता है जो कि प्राचीन भारत तथा तिबत का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र रहा था। यहां से लगभग 60 किमी पर मानसरोवर तथा कैलाश परिक्रमा पथ है। उनके अनुसार इस मार्ग को एक बार फिर विकसित कर इससे भी यात्रा शुरू किये जाने की योजना थी लेकिन यह कार्यरूप में परिणित नहीं हो पाई। जबकि प्रदेश के पर्यटन मंत्री प्रकाश पंत के अनुसार इन दोनों मार्गो से दोनों देशों के बीच व्यापारिक संम्बध एक बार फिर मजबूत किए जा सकते हैं। जबकि उनका कहना है कि अभी केवल धारचूला मार्ग से ही यात्रा की स्वीकृति चीन द्वारा दी गयी है। उनके अनुसार अभी भीे केवल 18 चीजों पर ही व्यापार की अनुमति है जो दोनों देशों के व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नाकाफी है उनके अनुसार इस नियंत्रण से दोनों देशों का व्यापार चौपट हो गया है। उल्लेखनीय है कि समुद्र तल से लगभग 22 हजार 28 फीट की ऊंचाई पर स्थित कैलाश पर्वत क ा परिक्रमा पथ 32 मील है। हिन्दु आस्था के प्रतीक कैलाश को मोक्ष का मार्ग मानते हैं वहीं जैन इसे अष्टïपाद मेरू तथा बौद्घ इसे पवित्र कांग रिन पोचे के रूप में मानते हैं । यहीं से सिंधु, सतलज तथा ब्रह्मïपुत्र जैसी पवित्र नदियों का उद्गगम भी बताया गया है। वर्तमान में यहां तक पहुंचने के लिए तिबत के ल्हासा के अलावा नैपाल तथा उत्तराखण्ड के धारचूला के मार्ग जो अब चीन क्षेत्र से होकर गुजरते हैं से पहुंचा जा सकता है। वर्तमान में धारचूला के पास के कई गांवों के भूस्खलन तथा इसके बाद काली नदी में इसका मलवा आ जाने के बाद प्राचान इस मार्ग से एक बार फिर यात्रा शुरू करने को लेकर बहस शुरू हो गयी है। यह तो समय ही बताएगा कि इस मार्ग से यात्रा शुरू हो भी पाती है या नहीं लेकिन इस बहस ने इस मार्ग को जरूर चर्चा में ला दिया है।
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