Sunday, September 13, 2009

कहीं खंण्डूड़ी बागी तो नहीं !

कहीं खंण्डूड़ी बागी तो नहीं !
राजेन्द्र जोशी
देहरादून । फैसले चाहें कितने ही बुरे क्यों न हो अगर वह अपने पक्ष में होते हैं तो अच्छे ही लगते हैं। आंकडे चाहे जितने भी रूखे क्यों न हों लेकिन वे सदा सच को ही बयां करते हैं। यह बात उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी पर इन दिनों सटीक बैठ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री इन दिनों खाली पड़े विशालकाय मुख्यमंत्री आवास में पसरे सन्नाटे के बीच छटपटा रहे हैं। इसी छटपटाहट का दर्द है कि उन्होंने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को पत्र लिखकर उन्हें मुख्यमंत्री के पद पर से हटाऐ जाने का कारण पूछा। अपने पत्र में जनरल ने लिखा कि 24 विधायकों का समर्थन होने के बावजूद उन्हें क्यों हटाया गया? लेकिन जनरल ने इस पत्र में पार्टी आलाकमान से यह नहीं पूछा कि जब 2007 में विधानसभा का चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में कड़ी मेहनत से जीता गया था और जीतने के बाद उनके पास उस समय मुख्यमंत्री बनने के लिए 35 विधायकों का खुला समर्थन पत्र भी था और वे ही सर्वसम्मत मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी थे तो फिर भी उन्हें दरकिनार करते हुए मुझे मुख्यमंत्री क्यों बनाया गया? जबकि उस समय मैं स्वयं न तो विधायक था ना ही किसी किसी विधायक का मुझे समर्थन प्राप्त था। उन्होने भले ही अपने पत्र में इस बात का जिक्र न किया हो लेकिन पार्टी नेतृत्व यदि उनसे पलटकर कोश्यारी के सर्वसम्मत नेता होने पर सवाल पूछ ले तो क्या खण्डूड़ी के पास उस सवाल का कोई जवाब होगा?
गौरतलब है कि 2007 में जब खंडूड़ी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया था तो उस समय उन्होंने कोश्यारी के बागी होने से जुड़ा बयान भी दिया था। अब समय ने पलटी खाई है और कोश्यारी की जगह स्वंय बीसी खंडूड़ी हैं । खंडूड़ी आलाकमान द्वारा हटाए जाने का विरोध कर रहे हैं। जबकि पार्टी के अनुशासित नेता होने के नाते उन्हें यह अधिकार नहीं है। पार्टी से जुडे उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि 2007 में जनता और विधायकों की पसंद नहीं होने के बावजूद उन्हें राष्ट्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी थी। तब खंडूड़ी ने इसे पार्टी का आदेश कह कर स्वीकार किया था। अब जब उनसे यह जिम्मेदारी शीर्ष नेतृत्व द्वारा वापस ली गई है तो ऐसे में वह पार्टी के इस आदेश को उतनी ही आसानी से क्यों नहीं ले रहे हैं ? जितनी आसानी से उन्होने कुर्सी सम्भालते हुए पार्टी आलाकमान का यह निर्णय स्वीकारा था। पार्टी आलाकमान के फैसले के खिलाफ खंडूड़ी का पत्र लिखना क्या अनुशासनहीनता के दायरे में नहीं आता है? जबकि खंडूड़ी ने ही मौजूदा मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को अपनी पहली पसंद बताकर उनकी ताजपोशी का श्रेय भी लिया था।
राजनीतिक विश£ेषक बताते हैं कि अब जब मुख्यमंत्री बनने के बाद निशंक जनता से अपने व्यवहार के चलते तेजी से लोकप्रिय होते जा रहे हैं ऐसे में खंण्डूड़ी की चिंता है कि कैसे अपने वर्चस्व को कायम रखा जा सके ताकि मुख्यधारा की राजनीति से उन्हे नजरअंदाज न किया जा सके। विश£ेषक खंण्डूड़ी के इस पत्र को उनकी इसी चिंता से जोड़ रहे हैं।

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

विधानसभा का चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में कड़ी मेहनत से जीता गया था और जीतने के बाद उनके पास उस समय मुख्यमंत्री बनने के लिए 35 विधायकों का खुला समर्थन पत्र भी था और वे ही सर्वसम्मत मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी थे तो फिर भी उन्हें दरकिनार करते हुए मुझे मुख्यमंत्री क्यों बनाया गया? जबकि उस समय मैं स्वयं न तो विधायक था ना ही किसी किसी विधायक का मुझे समर्थन प्राप्त था।

वाह...।
धीरे-धीरे बोल कोई......
हिन्दी-दिवस की शुभकामनाएँ!