Tuesday, October 28, 2008

उत्तराखण्ड के 17 विधायकों के बाद अब 11 और देंगे इस्तीफा

देहरादून,( राजेन्द्र जोशी)। उत्तराखण्ड भारतीय जनता पार्टी में सब कुछ सामान्य नहीं हैं। नेतृत्व परिवर्तन को लेकर इस बार मुख्यमंत्री विरोधी खेमा इस बार आर पार के मूड में है। भाजपा स़ूत्रों के अनुसार इस यदि केन्द्रीय नेतृत्व ने इनकी शिकायत को हल्के में लिया तो उत्तराखण्ड झारखण्ड तक बन सकता है। असंतुष्ट विधायकों का साफ कहना है कि वे इस मामले में अब ज्यादा लेट लतीफी के मूड में नहीं हैं और वे विधानसभा अध्यक्ष तक को इस्तीफा देने के बाद नया गुट तक बनाने की सीमा भी पार कर सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि बीते दिन भाजपा के तीन मंत्रियों सहित सत्रह विधायकों ने बीते दिन अपना इस्तीफा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को सौंप दिए जाने की खबर के बाद उत्तराखण्ड की राजनीति में एक बार फिर से भूचाल आ गया है। उत्तराखण्ड में द्वितीय लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 34 सीटें जीतकर जब सरकार बनाने की स्थिति में आई तो उस समय केन्द्रीय नेतृत्व ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री भुवनचन्द्र खण्डूड़ी को उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनाया। भुवनचन्द्र खण्डूड़ी के मुख्यमंत्री बनते ही फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर उठा-पटक शुरू हो गई है। इस आपातकालीन स्थिति को सहज करने के लिए बहुमत मिलने के बाद भी 6 दिन बाद मुख्यमंत्री का सेहरा श्री खण्डूड़ी के सिर बांधा गया। विधायकों के द्वंद के चलते मुख्यमंत्री सहित केवल एक मंत्री ने आठ मार्च को शपथ ग्रहण की। जब मंत्रियों के विभाग के बंटवारे की बात आई तो मंत्रिमण्डल गठन को लेकर ही भाजपा को 18 दिन लग गए। मंत्रियों को संतुष्ट करने के लिए उनके विभागों का बंटवारा एक हफ्ते के बाद एक अप्रैल को किया गया। इन परिस्थितियों के बाद नाराज पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी समय-समय पर अपनी नाराजगी केन्द्रीय नेतृत्व के सामने रखते रहे। विगत दिनों लगभग ढाई दर्जन विधायकों ने जब नेतृत्व के सामने खण्डूड़ी के कार्य को लेकर अपना विरोध दर्ज कराया तो नेतृत्व ने उन्हें पंचायत चुनाव तक की मोहलत दे डाली। इस दौरान केन्द्रीय नेतृत्व को ऐसा लगा यह मोहलत पंचायत चुनाव की जगह लोकसभा चुनाव तक खींची जा सकती है लेकिन मुख्यमंत्री के साथ केवल तीन विधायकों का होना श्री खण्डूड़ी को कमजोर करता गया। नाराज गुट को मनाने के लिए खण्डूड़ी ने इस समय की मोहलत के दौरान कई प्रयास किए, उसी कड़ी में कुछ दिन पूर्व शेष 24 विधायकों को लालबत्ती से नवाजने की भी तैयारी की गई, जिसके लिए 23 सरकारी पदों को लाभ के दायरे से कैबिनेट द्वारा बाहर भी किया गया, जिसे लेकर भी विधायकों व मुख्यमंत्री के बीच असमंजस की स्थिति लगातार बनी रही और विधायकों ने यह पद लेने से साफ इन्कार कर दिया और कहा कि उनकी लड़ाई पदो ंके लिए नहीं बल्कि नेतृत्व परिवर्तन के लिए है,और वह तब तक जारी रहेगी जब तक प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन न हो जाए। वहीं दो दिन पूर्व जब यह पता चला कि एक मंत्री ने अपना इस्तीफा सौंप दिया है तो उसके राजनीतिक गतिविधियां राज्य में फिर से तेज हो गई। श्री खण्डूड़ी लगातार विधायकों को अपने पाले में करने का प्रयास करते रहे। वहीं बीते दिन नाराज गुट के 17 विधायकों ने जिसमें तीन मंत्री भी शामिल हैं के इस्तीफे खबर आने के बाद प्रदेश की राजनीति एक बार फिर से गर्मा गयी हैं। बताया जाता है कि इस्तीफा देने वाले 14 विधायकों में 9 विधायक कुमाऊं से 5 विधायक गढ़वाल क्षेत्र के बताए जाते हैं। दूसरी ओर देर रात मुख्यमंत्री ने इस बात का खण्डन कर दिया कि किसी भी विधायक ने इस्तीफा राष्ट्रीय अध्यक्ष को नहीं सौंपा है। उन्होनें पत्रकारों से बातचीत में बताया कि उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष से बात हो गयी है राष्ट्रीय अध्यक्ष ने विधायकों के इस्तीफे मिलने की बात से साफ इंकार किया है। भाजपा प्रदेश सह प्रभारी अनिल जैन ने भी अपने राजनैतिक बयान में इस तरह की किसी खबर से साफ इंकार करते हुए कहा कि खण्डूरी सरकार पूरे पांच साल काम करेगी। लेकिन स्थिति अभी भी जस की तस है और आज फिर एक बार 11 और विधायकों के इस्तीफे देने जाने की खबर है। जबकि नाराज विधायकों का साफ कहना है कि इस बार वे आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार हैं। उन्होने कहा कि वे जनप्रतिनिधि हैं और मुख्यमंत्री का व्यवहार उनके प्रति ठीक नहीं है। उनका कहना है कि यदि भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने इस बीमारी का ईलाज समय रहते नहीं किया तो वे विधानसभा अध्यक्ष तक को इस्तीफा सौंप सकते हैं और इस पर भी बात नहीं बनी तो वे झारखण्ड की सी स्थिति यहां भी बना सकते हैं। उन्होने केन्द्रीय नेताओं पर आरोप भी लगाया कि वह इस मामले में टाल मटोल कर परिस्थितियों को और खराब कर रहा है।

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