Saturday, November 1, 2008

अनोखी परंपरा है अग्नि भेंट सेवा

दीपक फरस्वाण,
देहरादून:  जो धार्मिक ग्रंथ गुटका वृद्ध हो गया, उसका क्या किया जाए-यह ऐसा सवाल है, जो हर घर में कभी न कभी अवश्य उठता है। दुविधा यह रहती है कि जिन पुस्तकों ने ज्ञान और भक्ति का मार्ग दिखाया, उनके पन्नों के फटने, पुराने हो जाने पर उनका किया क्या जाए? रास्ता दिखाता है देहरादून का खुशहालपुर गांव। यहां एक ऐसा गुरुद्वारा है, जहां दुनिया भर से फटे- पुराने धार्मिक ग्रंथ लाकर उन्हें सम्मान पूर्वक अग्नि के हवाले किया जाता है। इस अग्नि भेंट सेवा का मकसद पवित्र ग्रंथों को बदहाली से बचाना और उनका सम्मान करना है। मनुष्य देह की तर्ज पर धार्मिक ग्रंथों का भी अंतिम संस्कार होता है। खुशहालपुर स्थित गुरुद्वारे को अंगीठा साहिब नाम से जाना जाता है। यहां गुरु के उस वचन को पूरा किया जाता है, जिसमें उन्होंने धार्मिक ग्रंथों व पुस्तकों को बदहाली से बचाने की बात कही थी। गुरुद्वारे के सेवक हर साल दुनिया घूम कर सभी धर्मो के फटे-पुराने ग्रंथों को एकत्र करके अंगीठा साहेब लाते हैं। गुरुद्वारे में इन ग्रंथों को मखमली कपड़े से साफ कर सफेद चादर में लपेटकर रखा जाता है और अग्नि भेंट सेवा का आयोजन होता है। गुरुद्वारे के एक हाल में 24 अंगीठे बनाए गए हैं। अग्नि भेंट सेवा में पीला चोला पहने पंच प्यारों की भूमिका अहम होती है। इस अनूठी सेवा की प्रक्रिया भी रोचक है। गुरु सेवक विधि-विधान के साथ एक-एक ग्रंथ को अपने सिर पर रखकर गुरुद्वारे से हाल तक पहुंचाते हैं। एक बार में सिर्फ छह अंगीठों को ही लकडि़यों से सजाते हैं। प्रत्येक अंगीठे के ऊपर 13-13 ग्रंथ, 13 चादरों और 13 रूमालों के बीच रखे जाते हैं। पंच प्यारे हर अंगीठे की 5-5 परिक्रमा करने के बाद अरदास के साथ अग्नि प्रज्वलित करते हैं। एकत्रित सभी ग्रंथों के संस्कार तक यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। दूसरे दिन कच्ची लस्सी का छींटा मारकर प्रत्येक अंगीठे से फूल (ग्रंथों की राख) चुने जाते हैं। अग्नि भेंट सेवा का अंतिम चरण हिमाचल प्रदेश के पांवटा साहिब में पूर्ण होता है। पंच प्यारों द्वारा अंगीठों से चुने गए फूलों को विधि-विधान से पांवटा साहिब स्थित गुरुद्वारे के पीछे यमुना नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।

1 comment:

Udan Tashtari said...

अच्छा लगा यह जानकारी प्राप्त करना. आभार.