Thursday, March 5, 2009

नये परिसीमन ने बदला उत्तराखण्ड में लोकसभा चुनाव का नक्शा

राजेन्द्र जोशी
पर्वतीय ईलाकों में मूलभूत सुखसुविधाओं के अभाव के कारण हुए पलायन ने लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या को लेकर चुनावी नक्शा ही बदल कर रख दिया है। मतदाता सूची में संशोधन के बाद आये ताजे आंकड़े तो कम से कम यह ही बयंा कर रहे हैं। नये परिसीमन के बाद उभरी लोकसभा क्षेत्रों की तस्वीर में पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन किये ये लोग निर्णायक भूमिका में दिखायी दे रहे हैं।
पिछली बार वर्ष 2004 में हुये लोकसभा चुनाव में जहां टिहरी लोकसभा क्षेत्र में जहां 12 लाख 81 हजार 509 मतदाता थे वहीं इस बार होने वाले लोकसभा चुनाव में यहां से एक लाख 48 हजार 788 मतदाता कम हो गये हैं। इसी तरह पौड़ी गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में जहां पिछली बार 10 लाख 66 हजार 840 मतदाता थे वहीं यहां इस बार 19 हजार 929 मतदाता कम हुए हैं। नैनीताल लोकसभा क्षेत्र में पिछली बार 12 लाख 50 हजार 345 मतदाता थे इस बार इस क्षेत्र में 9 हजार 937 मतदाता कम हुये हैं। जबकि हरिद्वार लोकसभा सीट पर पूर्व हुए चुनाव में 9 लाख 9 हजार 738 मतदाता थे यहां इस बार बढ़ कर यह संख्या 12 लाख 78 हजार 262 हो गयी है। जबकि अल्मोड़ा लोकसभा क्षेत्र में पूर्व में 10 लाख 9 हजार 457 मतदाता थे इस बार यहां भी यह संख्या बढ़ कर 10 लाख 16 हजार 301 हो गयी है। आंकड़ों के अनुसार इन चुनावों में राज्य के मैदानी ईलाकों में जहां मतदाताओं की संख्या में बढ़ोत्तरी साफ दिखायी दे रही है वहीं इस संख्या में पर्वतीय ईलाकों में कमी झलक रही है। मतदाताओं की इसी बेरूखी के कारण उम्मीदवारों को मैदानी क्षेत्रों को अब ज्यादा तवज्जों देनी होगी।
विकास योजनाओं को लेकर यदि मतदाताओं की पर्वतीय क्षेत्रों के प्रति उपेक्षा को देखा जाये तो इसका प्रभाव अब राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में भी देखा जाएगा। क्योंकि विकास योजनाओं के लिये धनराशि का आवंटन जहां जनसंख्या के आधार पर होता है वहीं राजनीतिक दल भी अपने उम्मीदवारों की जीत के लिए अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र में ही विकास योजनाओं के लिए जोर लगाते हैं। साथ ही उनकी विकास की प्राथमिकताओं में ईलाके पहले आते हैं जहां मतदाताओं का घनत्व ज्यादा होता है। ऐसे में पहले से ही विकसित देहरादून,हरिद्वार उधमसिंह नगर जैसे तराई के ईलाकों में ही विकास बढ़ेगा, और विकास की बाट जोह रहे पर्वतीय ईलाके पहले की ही तरह उपेक्षा का शिकार बने रहेंगे। इस बदलाव का राजनीतिक समीकरणों पर भी प्रभाव पडऩा लाजमी है। खासकर हरिद्वार संसदीय सीट पर जहां मुसलमानों तथा दलितों और पिछड़ा वर्ग का बाहूल्य था वहीं बाहर से आकर हरिद्वार के विभिन्न क्षेत्रों में बसे पर्वतीय मूल के मतदाता भी चुनावी नतीजों को प्रभावित करेंगे। परिसीमन के बाद हरिद्वार लोकसभा में शामिल हुई ऋषिकेश, डोईवाला तथा धरमपुर विधानसभा क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। क्षेत्रीय आधार पर जहां इन सीटों पर पर्वतीय लोगों की बहुतायत है वहीं जातीय आधार पर सवर्णो ंका भी भारी बाहुल्य है। ऐसे में जातीय और क्षेत्रीय आधार पर चुनाव लडऩे वाले दलों को परिसीमन और पहाड़ से पलायन का असर चुनौती बनेगा। यही हाल टिहरी, पौड़ी तथा उधमसिंह नगर नैनीताल लोकसभा क्षेत्रों में भी देखने को मिलेगा। पौड़ी लोकसभा सीट अब से पहले देहरादून शहर के बूते चुनाव जीतने वाले को नरेन्द्र नगर तथा देवप्रयाग विधानसभा क्षेत्रों का रूख करना पड़ेगा जबकि टिहरी के उम्मीदवारों के लिए अब देहरादून शहर ही असली रणभूमि बनेगा। जहां कि परिसीमन के बाद तीन शहरी सीटें टिहरी लोकसभा क्षेत्र में शामिल हो गयी हैं। इसी तरह उधमसिंह नगर नैनीताल लोकसभा सीट के बूते चुनाव में दखल रखने वालों को रामनगर जैसे पर्वतीय अंचल में घुसपैठ बनानी होगी। जबकि अल्मोड़ा आरक्षित लोकसभा सीट पर सवर्ण जातियों का एक बार फिर निर्णायक रोल होगा।

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