Saturday, September 6, 2008

भारत सरकार तक के आदेश भी नहीं मानते भ्रष्ट अधिकारी

राजेन्द्र जोशी देहरादून : उत्तराखण्ड में तैनात प्रशासनिक अधिकारियों को भारत सरकार के आदेश कोई मायने नहीं रखते। ताजा मामला वेस्ट बंगाल प्रदेश से जुड़ा है जहां का एक आईएस अधिकारी वहां जाने को तैयार ही नहीं है जबकि इस मामले में वेस्ट बंगाल सरकार तथा केन्द्र ीय निदेशालय उत्तराखण्ड सरकार को यह साफ कह चुका है कि जितनी जल्दी हो उनके अधिकारी को तुरंत कार्यमुक्त करते हुए उनके मूल कैडर राज्य को वापस भेजा जाय। लेकिन अधिकारी है कि वह जाने का नाम ही नहीं ले रहा है। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि इस प्रशासनिक अधिकारी को जब यहां मलाई खाने को मिल रही है तो वह बंगाल मठ्ठा पीने को भला क्यों जाय। बात भी सही है 90 बैच के इस अधिकारी ने यहां पर प्रतिनियुक्ति के दौरान जितना माल काटा है उसे ठिकाने लगाने को भी तो समय चहिए, केन्द्र व बेस्ट बंगाल सरकार है जो उसे समय ही नहीं देना चाहते। बात इस अधिकारी के एमडीडीए में उपाध्यक्ष के कार्य से ही शुरू की जाए। आप लोगों ने देहरादून नगर क ी सडक़ों के बीच में डिवायडरों पर जो गमलों में पेड़ देखे होगें वे इन्ही अधिकारी के शासनकाल में खरीदे गए हैं। चर्चा तो यहां तक हक कि 100 -200 रूपयों में आमतौर पर निजी नर्सरियों में बिकने वाले ये पेड़ पौधे 1500 रूपए प्रति क ी दर पर खरीदे गए। इनमें कितना गोलमान हुआ है यह तो जांच का विषय हो सकता है लेकिन कितने नीचे गिर कर एक प्रशासनिक अधिकारी पैसा कमाना चाहता है यह इसका एक उदाहरण मात्र है। इतना ही नहीं इस अधिकारी पर दून विहार आवासीय कालोनी में एक मकान को हथियाने का आरोप भी है। जिसे इसने अपने किसी रिश्तेदार के नाम औने-पौने दामों में खरीदा है। जहां तक इनके दूसरे कार्यकाल वन सचिव के दौरान की बात की जाए तो आप लोगों को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विवादों में आने की बात जरूर आ गई होगी। कैसे सदस्य सचिव सीबीएस नेगी को हटाया गया। और कैसे पर्यावरण अधिकारी टीबी सिंह को सदस्य सचिव के साथ ही शक्तिशाली बनाया गया यह तो पुरानी बात है लेकिन उस अधिकारी को हटाने में एक सरकार को किस तरह नाकों चने चबाने पड़े यह किस्सा सत्ता के गलियारों में खासा चर्चा का विषय रहा है। इतना ही नहीं आजकल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सदस्य सचिव के लिए चयन प्रक्रिया जोरों पर है इसी अधिकारी ने एक बार फिर यहां आवेदन किया हुआ है क्योंकि उसे पता है कि उसके मदद करने वाले यहां बहुत है जिन्हे उसने सत्ता में रहते हुए रेवडिय़ा खिलाई हैं। जबकि ईधर इस चयन प्रक्रिया को लेकर भाजपा कार्यसमिति के सदस्य तथा पूर्व विधायक राजेन्द्र सिंह ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर इस प्रक्रिया पर ही सवालिया निशान लगा दिया है कि इस पर के लिए योग्यता तथा आयु में हेराफेरी की गयी है। उन्होने मुख्यमंत्री को दिए पत्र मे ंकहा है कि इसमें जल अधिनियम 1974 की धारा 4 (2) एफ ,तथा उच्चतम न्यायालय की मौनेटरिंग कमेटी के निर्देश 16 अगस्त 2005 तथा उत्तराखण्ड शासन की नियमावली 16 अगस्त2002 का उलंघन किया गया है। बहरहाल अब यह अधिकारी अपने मूल कैडर राज्य को नहीं जाना चाहता और आजकल अपने को यहां पर ही तैनात रखने के लिए मुख्यमंत्री सचिवालय में तैनात कर्मचारियों तथा अधिकारियों की गणेश परिक्रमा कर रहा है।

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