Monday, September 15, 2008

मुख्यमंत्री की आंखों में झोंकी धूल

राजेन्द्र जोशी
देहरादून : प्रदेश के काबिल प्रशासनिक अधिकारियों तथा भाजपा के ही कुछ एक दायित्वधारियों द्वारा मुख्यमंत्री की आंखों में धूल झोंकने का मामला प्रकाश में आया है। चर्चा है कि इस घोटाले में करोड़ों रूपयों की डील बताई जाती है। बीते कई दशकों से कुंभ मेले के दौरान श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए उनके वाहनों की पार्किंग के लिए ऋषिकेश नगर के बीचोंबीच भरत मंदिर के मैदान से लगे लगभग पांच हेक्टेयर भूमि को पार्किंग से छोड़ने का इन अधिकारियों ने फरमान जारी किया ही था कि विभागीय प्रमुख सचिव ने इस डील पर ब्रेक लगा दिया और मामले की जांच मुख्यमंत्री से करने के आदेश दे डाले। इस मामले में उन्होने टिप्पणी की है कि मुख्यमंत्री को इस मामले में गुमराह किया गया है।
उल्लेखनीय है कि कुंभ मेले के दौरान लक्ष्मण झूला,ऋषिकेश, स्वर्गाश्रम, हरिद्वार आदि क्षेत्रों को प्रशासनिक आधार पर मिलाकर कुंभ क्षेत्र बनाया जाता रहा है। वहीं इस क्षेत्र के विकास के लिए हरिद्वार-ऋषिकेश विकास प्राधिकरण भी बनाया गया है जिसके उपाध्यक्ष तथा कुंभ मेलाअधिकारी एक ही हैं। इस लगभग पांच हैक्टेयर भूमि पर बीते कई दशकों से कुंभ मेले के दौरान आने वाले यात्रियों के वाहनों की पार्किंग तथा अस्थायी पुलिस चौकी व अस्थायी शौचालयों का निर्माण किया जाता रहा है। जिससे ऋषिकेश नगर सहित आसपास के क्षेत्रों पर यातायात का दबाव कम किया जाता है। इसे हीरालाल पार्किंग क्षेत्र भी कहा जाता है, और मास्टर प्लान में इस भूमि को पार्किंग के लिए आरक्षित भी किया गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार बीते कुछ दिन पूर्व देहरादून निवासी अतुल गोयल पुत्र मित्रसेन गोयल निवासी 55,गांधी रोड़ ने सचिव शहरी विकास को एक पत्र लिख कर मांग की कि उसकी भूमि खाता संख्या 338 जिसका क्षेत्रफल 4.856 हेक्टेयर है को कुंभ मेला हेतु पार्किंग के लिए पिछले कई सालों से आरक्षित किया गया है,को अवमुक्त करने की प्रक्रिया शुरू की जाय। जबकि सूत्रों ने बताया है कि यह भूमि अतुल गोयल की है ही नहीं यह भूमि वन विभाग की थी जिसे कई दशकों पूर्व कालीकमली ट्रस्ट को लीज पर दी गयी थी जिसक ी लीज अवधि समाप्त होने में अब कुल 17 साल शेष हैं। यह भूमि वर्ष 1935 में वन विभाग ने कालीकमली ट्रस्ट को 90 साल की लीज पर दी थी।
बताया जाता है कि इस बार प्रदेश के इन प्रशासनिक अधिकारियों ने इस भूमि को पार्किग से मुक्त करने के लिए व्यूह रचना की और मास्टर प्लान में पार्किंग के लिए नियत इस भूमि को डी नोटिफाईड करने के आदेश दे डाले। सूत्रों के अनुसार जिलाधिकारी हरिद्वार की आख्या 8832 पी08 एवं 4070 म 08247 दिनांक 23 मई 2008 ने अपने पत्र में कहा कि उक्त भूमि से दो- तीन किलोमीटर दूर वन विभाग तथा राजस्व विभाग की 6 हैक्टेयर भूमि वैकल्पिक व्यवस्था के लिए खाली है। जिसे कुंभ मेला के दौरान पार्किंग के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार जिलाधिकारी तथा सचिव द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित इस पत्र पर प्रमुख सचिव शहरी विकास ने कुछ स्पष्टीकरण मांगे और इसके बाद वे छुट्टी चली गयी। उन्होने वापस छुट्टी से आने के बाद देखा कि उक्त भूमि को सामान्य आधार बनाकर आवास सचिव ने इस भूमि को डी नोटीफाइड किए जाने के लिए मुख्यमंत्री को पत्रावली बनाकर पेश किया जिसे मुख्यमंत्री ने भी सचिव की अनुशंसा के आधार पर बीती 31 अगस्त 2008 को पार्किं ग से हटाने के आदेश दे डाले। सूत्रों के अनुसार इस मामले में एक सचिव तथा प्रमुख्य सचिव आवास में काफी नोंक झोंक भी हुई। जिसके बाद आवास सचिव फिर एक बार छुट्टी लेकर चली गयी है। यहां सूत्रों ने यह भी जानकारी दी है कि इस मामले में मुख्यमंत्री द्वारा नामित एक दायित्वधारी व्यक्ति भी शामिल है। जो शासन प्रशासन पर अपने मुख्यमंत्री के करीबी होने की बात कह कर इस मामले की फाईल को पंख लगा कर उड़ा रहा है। इस प्रकरण को लेकर आजकल सत्ता के गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है कि इस प्रकरण में जिलाधिकारी हरिद्वार से लेकर सचिव तथा भाजपा के कुछ नेताओं ने मोटी रकम वसूली है। अब इस मामले में मुख्यमंत्री के बेंगलुरू से लौटने की प्रतीक्षा की जा रही है।
वहीं इस मामले में प्रमुख सचिव शहरी विकास ने 2 सितम्बर को मुख्यमंत्री को दी गयी अपनी टिप्पणी में साफ-साफ कह दिया है कि प्रश्गत भूमि के स्थान पर जिस दूसरी भूमि की बात की जा रही है वह भौतिक रूप में शासन को उपलब्ध नहीं है। वहीं उन्होने कहा है कि वन विभाग की भूमि हेतु सुप्रीमकोर्ट की कमेटी की क्लीयरेंस चाहिए होती है। उन्होने कहा कि ऐसी स्थिति में प्रश्नगत भूमि डि नोटिफाईड करके वैकल्पिक व्यवस्था हेतु उपलब्ध न होने पर कुंभ 2010 में कितनी कठिनाई होगी अनुमान लगाना मुश्किल है भाजपा राज्य में।
मामले में कांग्रेस के आला नेताओं का कहना हैे कि सरकार आए दिन घोटालों में फंसती जा रही है। मुख्यमंत्री को गुमराह कर सचिव अपनी इच्छानुसार डीलों में लगे हैं। यही कारण है कि हम हमेशा प्रशासन के अनियंत्रित होने की बात कह रहे हैं। उन्होने कहा कि यह तो एक उदाहरण मात्र है और भी कई डील यहां तैनात सचिव कर रहे हैं।

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