Thursday, September 4, 2008

56 घोटाले और जांच आयोग का सच

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी राजेन्द्र जोशी देहरादून: कांग्रेस शासन में हुए 56 घोटालों के लिए बनाए गए जस्टिस एएन वर्मा ने इस्तीफा तो दे दिया लेकिन वे इस इस्तीफे के पीछे कई ऐसे सवाल छोड़ गए है जिनका जवाब अब सरकार को देना होगा है कि आखिर ऐसे कौन से कारण थे जो वर्मा को यह पद छोडऩा पड़ा। भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता हथियाने में उनके शासन काल के दौरान 56 घोटालों की बात उठायी थी और जनता से चीख-चीख कर यह कहा था कि सत्ता में काबिज होते ही वह इन 56 घोटालों के प्रकरण पर दूध का दूध और पानी का पानी कर घोटालों मे लिप्त लोगों को जेल के भीतर पहुंचा कर ही दम लेंगे। विधान सभा चुनाव भी हुए सरकार भी भाजपा की बनी लेकिन सरकार ने जिस जस्टिस एएन वर्मा को इन 56 घोटालों की जांच की कमान सौंपी वे साल भर बाद ही स्वास्थ खराब होने की बात कहकर इस आयोग से अपना पिंड छुड़ाकर चल निकले। कहा जाता है हमाम में सब नंगे हैं। यह कहावत जस्टिस वर्मा के सामने तो सच ही निकली। जब घोटालों में सब के सब ही लिप्त हों तो बेचारा जांच आयोग तो खुद ही अपाहिज होगा, और हुआ भी यही। सूत्रों के अनुसार जस्टिस वर्मा ने जब इन घोटालों की जांच के लिए तमाम विभागों से पत्राचार शुरू किया तो उन्हे यह आभास तक नहीं था राज्य की नौकरशाही इतनी बेलगाम हो चुकी है कि उसके सामने जब मुख्यमंत्री के आदेश ही कोई मायने नहीं रखते तो बिना नाखून तथा दांत वाले आयोग की उनके सामने क्या बिसात। हुआ भी यही सैकड़ों बार पत्राचार करने के बाद भी विभागीय अधिकारियों से लेकर सचिवों तक ने उनके पत्रों का जवाब देना गवारा नहीं समझा, तो ऐसे में वे यहां अकेले बैठकर करते तो क्या करते। इतना ही तीन दशक से ज्यादा न्यायिक सेवा में रहकर नाम कमाने वाले जस्टिस वर्मा ने जब इन विभागीय अधिकारियों तथा सचिवों को इन घोटालों से सम्बधित जानकारियों के लिए पत्रों के बाद इनक े उत्तर पाने के स्मरण पत्र तक भेजे तो उनका भी वही हश्र हुआ तो पूर्व में भेजे गए पत्रों का हुआ शायद वे भी रद्दी की टोकरी की भेंट चढ़ गए। ऐसे में एक जांच अधिकारी वह भी न्यायिक सेवा का कैसे इस आयोग का अध्यक्ष रहता सो उसने कोई न कोई बहाना तो बनाना ही था तो उन्हेाने स्वास्थ्य का बहाना बनाकर यहां से अपना पिंड छुड़ा दिया। जस्टिस वर्मा तो गए लेकिन अब जो नए साहब आएंगें जैसा कि मुख्यमंत्री कहते है कि नए अध्यक्ष बनाए जाएंगे ऐसे में जब उनके साथ भी ऐसा होगा तो इस बात की क्या गारंटी है कि वे भी यहां टिक कर इस मामले की जांच को अंजाम तक पहुंचा पाएंगे। जिन घोटालों की बैसाखियों के सहारे भाजपा सत्ता तक पहुंची। ऐसे में अब एक बात औ उठ रही है कि सरकार इसी आयोग में नए अध्यक्ष का चुनाव कर इस आयोग का कार्यकाल बढ़ाएगी। और वहीं यह बात भी सत्ता के गलियारों में तैर रही है कि हो सकता है सरकार अब कोई नया आयोग ही बना डाले। लेकिन जिन परिस्थितियों में जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा दिया उससे तो यह साफ ही लगता है कि जिन 56 घोटालों की बात भाजपा ने की थी वह सही थी और उसमें वे सभी अधिकारी तथा सचिव तक लिप्त थे जिन्होने जस्टिस वर्मा का जांच में असहयोग किया था। कहा जाता है राजनीति में कोई स्थाई मित्र अथवा स्थाई दुश्मन नही होता । इन 56 घोटालों में से एक तिवारी सरकार का आबकारी घोटाला। तत्कालीन आबकारी मंत्री जब कांगेस में थे तो भाजपाईयों को वे सबसे ज्यादा भ्रष्टï तथा चर्चित आबकारी घोटाले का सूत्रधार लगते थे लेकिन राजनीतिक मजबूरीवश जब उन्हेाने भाजपा का दामन सभांलना पड़ा तो वे ही भाजपाईयों की नजर में सबसे ज्यादा ईमानदार बन गए। तो ऐसे में जांच आयोग के अध्यक्ष के सामने तो परेशानी होनी ही थी। जिनके खिलाफ वे सबूत ढूंढ रहे थे अब उन्हे ही बचाने की जिम्मा उनके कंधों पर आ गया ऐसे में इस्तीफा नहीं देते तो क्या करते?

3 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

बहुत अच्छा और भाव पूर्ण लिखा है
जारी रखें

Anonymous said...

sab ek hi thaili ke chatte batte hai.

Unknown said...

excellent article. keep it up