Friday, August 29, 2008

फूलों की घाटी का अस्तिव संकट में


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखण्ड की फूलों की घाटी में फूलों से ज्यादा ऐसी घास उग आयी है कि इसके कारण यहां उगने वाले फूलों के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है। वैसे तो पूरी की पूरी भ्यूंडार घाटी इस घास से परेशान है लेकिन फूलों की घाटी जिसका अंर्तराष्ट्रीय महत्व है को लेकर पर्यावरणविद से लेकर वन विभाग तक के आला अधिकारी इसके कारणों को खोजने में लगे हैं। पौलीगोनियम जिसे स्थानीय भाषा में अमेला अथवा नाट ग्रास कहा जाता है इस फूलों की घाटी को अपने चपेट में ले चुकी है। इसे जड़ से समाप्त करने के लिए अब प्रदेश के वन विभाग ने इसे उखाड़ने के लिए एक कार्ययोजना बनाई है, जिसपर कार्य आरम्भ भी हो चुका है।
प्रदेश के ऋषिकेश बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोविन्दघाट से सिक्खों के पवित्र तीर्थ हेमकुण्ड को जाने वाले मार्ग मेें घंघरिया से पांच किलोमीटर बायीं ओर लगभग 87.5 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस क्षेत्र में लगभग पांच सौ से ज्यादा फूलों की प्रजातियां कभी यहां पाई जाती थी। आज इस घाटी के अधिकांश भाग में इन मोहक फूलों की जगह पौलीगोनियम घास जिसे स्थानीय भाषा में अमेला कहा जाता है, फैल चुका है। यह घास घाटी में उगने वाले फूलों की अन्य प्रजातियों पर क ैंसर की तरह लग गया है। इसके क ारण फूलों की घाटी का अस्तित्व ही समाप्त होने को हैं। वहीं घाटी में इससे मिलती-जुलती पौलीस्टाइका (सरों) घास , पार्थीनियम (गाजर घास ) भी यहां उगने लगी है। फूलों की घाटी में बहने वाले बामनदौड़, स्विचंद आदि नालों तक में पौलीगोनियम घास फैल चुका है। इस क्षेत्र में कई प्रकार की जड़ी बूटियां भी अब देखने को मिलती थी जो इस तरह की घास के उग जाने के कारण अब नहीं दिखाई देती।
उल्लेखनीय है कि 6 नवम्बर 1982 में फूलों की घाटी को नन्दादेवी बायोस्फेयर रिजर्व (नन्दादेची जीवमंडल विशेष क्षेत्र) घोषित किया गया था और तभी से इस क्षेत्र मे पशुओं के चुगान तथा प्रवेश को प्रतिबंधित भी कर दिया गया था। यह इसलिये किया गया था ताकि पशुओं के पैरों से यहां मिलने वाले फू लों की विशेष प्रजातियां कहीं खत्म न हो जांए। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि पशुओं की आवातजाही न होने कारण भी इस क्षेत्र में फूलों की संख्या में कमी हुई है। इनका कहना है कि भेड़-बकरियों के आने जाने तथा उनके गोबर से यहां पैदा होने वाले फूलों को खाद तो मिलती ही थी साथ ही बकरियों के खुरों से बीज भी इधर से उधर होने पर अन्य प्रजातियां विकसित होती थी। इन्हीं लोगों का कहना है कि यहां उगने वाले विनाशकारी घास की जो प्रजातियां आज फूलों की घाटी में उग रही उन्हे उस दौरान यहां आने वाले जानवर ,भेड़-बकरियां चुग लेती थी।
वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार यहां उगने वाले नुकसान देह पौधे की लंबाई ज्यादा होने के कारण छोटी प्रजाति के पुष्प इनके नीचे नहीं पनप पाते हैं। नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के डीएफओ श्रवण कुमार ने माना कि पौलीगोनियम यहां पनप रहा है और इसके जल्दी बढने से छोटी प्रजाति के फूल नहीं खिल पा रहे। उन्होंने बताया कि पौलीगोनियम की करीब चार प्रजातियां फूलों की घाटी में विकसित हुई हैं। इनके अनुसार यदि इस तरह की घास को यथाशीघ्र इस क्षेत्र से उखाडा नहीं गया तो एक दिन यह फूलों की घाटी जहरीली घास की घाटी में बदल जाएगी।

3 comments:

Manish Kumar said...

nischay hi ye chinta ka vishay hai. Asha hai van vibhag apne prayason mein safal hoga.

Udan Tashtari said...

अफसोसजनक स्थितियाँ....अच्छा लेख है.

L.Goswami said...

kafi chintajanak baat hai..manaw ki laparwahi ka nayab namuna