राजेन्द्र जोशी
देहरादून : मुख्यमंत्री से नाराज भारतीय जनता पार्टी के असंतुष्ट विधायकों पर विपक्ष खासा मेहरबान दिखाई दे रहा है। भाजपा विधायक दल में टूट होने पर दलबदल कानून के साथ ही वैकल्पिक सरकार की दिशा में भी भीतर खाने तेजी से काम चल रहा है। इस पर भी गुणा भाग चल रहा है। भाजपा केन्द्रीय नेताओं के टालू रवैये से नाराज विधायक अब पार्टी छोडऩे तक की बात भी करने लगे हैं।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से लेकर आडवानी तक पांच मंत्रियों सहित 27 विधायकों की मुलाकात ने राज्य का राजनैतिक तापमान बढ़ा दिया है। पंचायत चुनाव की तैयारियों में लगे राजनीतिक दल अब भाजपा विधायकों की खोजखबर में लग गये हैं। कांग्रेस विधायक दल के नेता व नेता प्रतिपक्ष डॉ. हरक सिंह रावत पहले ही कह चुके हैं कि यदि भाजपा विधायक दल से बगावत कर सरकार बनाने का दावा करते हैं, तो कांग्रेस विधायक सरकार को बाहर से समर्थन दे सकती है।
भाजपा विधायक दल के सूत्रों की माने तो कुछ विधायक किसी भी हालत में अब मुख्यमंत्री के नेतृत्व में काम करने को तैयार नहीं हैं। ऐसे विधायकों पर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की नजरें टिक गयी हैं। विधायकों से बातचीत करने पर पता चला है कि उनकी नाराजगी मुख्यमंत्री से कम, किन्तु उनकी तिकड़ी से ज्यादा है। जिनके कारण मुख्यमंत्री उनसे दूर हुए है। जबकि इस तिकड़ी के खिलाफ लगातार मिल रही शिकायतों के चलते तथा उनसे अब तक किनारा न कर पाने के कारण वे मुख्यमंत्री से भी खफा हैं।
कांग्रेस भाजपा विधायक दल में उपजी इसी नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाना चाहती है। भाजपा के पास वर्तमान में 36 विधायक हैं और उन्हें तीन निर्दलीय विधायकों के साथ ही उक्रांद के तीनों विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है। विपक्ष के नाम पर कांग्रेस के 20 तथा बसपा के आठ विधायक राज्य विधानसभा में हैं। भाजपा विधायक दल में विघटन के दौरान दल-बदल कानून से बचने के लिए कम से कम 12 भाजपा विधायकों की आवश्यकता है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार भाजपा के सात विधायकों से विपक्ष के तार पूरी तरह जुड़ गये हैं। अब पांच अन्य और विधायकों से इस सम्बन्ध में अन्तिम दौर की बातचीत चल रही है। कांग्रेस को यह भी उम्मीद है कि यदि निर्दलीय व उक्रांद के विधायक भी साथ नहीं आते तो आने वाले साढ़े तीन साल के लिए बसपा भी सरकार का समर्थन कर सकती है, किन्तु कांग्रेस बसपा से भाजपा विधायक दल में दरार डालने के बाद ही बसपा से बातचीत करना चाहती है। भाजपा संगठन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने भी भाजपा विधायक दल के अन्दर चल रही इस तरह की गतिविधि की पुष्टि करते हुए बताया कि पार्टी संगठन इस विषय में भी गम्भीरतापूर्वक मन्थन कर रहा है।
वही दूसरी ओर एक और गणित बताया जा रहा है कि इन दिनों बसपा भी भाजपा के इन असंतुष्टï विधायकों के सम्पर्क में हैं और वह चाहती है कि ये पूरे के पूरे 32 लोग यदि भाजपा से हट कर नया गुट भी बना लें तो इन पर दलगदल कानून लागू नहीं होता लिहाजा ऐसी स्थिति में वे इस गुट को बाहर से समर्थन देकर नई सरकार बनाने में इनकी मदद कर सकते हैं। इसके पीछे यह तर्क भी दिया जा रहा है कि वर्तमान में बसपा के सदन में आठ विधायक हैं और इनको मिलाकर सदन में इनकी संख्या 40 हो जाएगी। ऐसे में यह गुट भी सरकार बना सकता है। जबकि सूत्रों की मानें तो बसपा ने भी इस दिशा में काम शुरू कर दिया है और वह चाहती है कि कांग्रेस के बजाय वह ही सबसे पहले इनपर हाथ रख ले तो उन्हे आने वाले लोकसभा चुनाव में भी लाभ मिल सकता है। बहरहाल दोनों प्रमुख विपक्षी दलों की नजरें इस घटनाक्रम पर लगी है।
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