राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखण्ड में मचे सत्ता संघर्ष को देखते हुए केन्द्रीय आलाकमान ने पंचायत चुनावों के बाद राज्य में पर्यवेक्षक भेज स्थिति का जायजा लेने का मन बना लिया है। जबकि बदले हालातों में राज्य में अभी नेतृत्व परिवर्तन की संभावना भी कहीं नजर नहीं आती। लेकिन इस घमासान से मुख्यमंत्री गुट ने जरूर सबक लिया है और वह अब अपनी गलतियों को सुधारने में जुट गया है। इसी क्रम में सरकार ने बीते रोज मुख्यमंत्री सचिवालय में एक और सचिव की नियुक्ति के साथ शिकायतों पर गौर करने का संकेत दिया है। वहीं दूसरी ओर विधायकों के आक्रोश को ठंडा करने के उद्देश्य से सरकार ने उन तमाम पदों की सूची बनाने के निर्देश सचिवों को दिए हैं जो लाभ की श्रेणी में नहीं आते हैं। वहीं एक ओर यह भी चर्चा है कि कुछ एक दायित्वधारियों से दायित्व वापस भी लिए जा सकते हैं।
प्रदेश में उपजे राजनीतिक घटनाक्रम से भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व भी सहमा हुआ है और राज्य के हित में वह इसे अच्छा नहीं मानता। यही कारण है कि केन्द्र ने इस समूचे मामले को बड़ी ही गंभीरता से लिया है। सूत्रों की मानें तो केन्द्र ने राज्य के दोनों ही गुटों को इसके लिए दोषी माना है। उसका मानना है कि मुख्यमंत्री की ओर से भी कुछ गलतियां हुई हैं तो इसके जवाब में दूसरी ओर से भी गलतियां की गयी हैं। मामले की नजाकत को भांपते हुए केन्द्र ने पंचायत चुनाव के बाद राज्य में केन्द्रीय पर्यवेक्षक भेजने की सोची है। जो राज्य में उपजी स्थिति का बारीकी से आकलन करेगा। इस बीच सूत्रों ने जानकारी दी है कि कुछ नेता केन्द्रीय नेताओं के सम्पर्क में अभी भी हैं और वे अपनी सफाई पेश करने दिल्ली भी जा चुके हैं।
वहीं दूसरी ओर केन्द्रीय नेतृत्व से निर्देश के बाद मुख्यमंत्री ने भी अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन करने की सोची है। प्राप्त जानकारी के अनुसारउन्होने विरोधियों द्वारा प्रचारित अपने तथाकथित किचन केबिनेट पर भी लगाम लगाने के क्रम में दो दायित्वधारियों से दायित्व वापस लिये जाने की भी चर्चा है।
भाजपा की प्रदेश सरकार के काम-काज को लेकर मन्त्रियों सहित लगभग दो दर्जन विधायकों की आलाकमान में दस्तक देने को लेकर सूबे की राजनीति गर्मा गयी थी। मीड़िया में आई रिपोर्टों के अनुसार विधायकों ने आलाकमान से मुख्यमंत्री सहित उनके सचिव एवं किचन केबिनेट की शिकायत की थी। हालांकि किसी ने भी इसकी पुष्टि नहीं की है। मामले में मुख्यमंत्री ने तो साफ कहा कि परिवार में मतभिन्नता हो सकती है, किन्तु शिकायत मिलने पर दूर करने का प्रयास किया जायेगा।
सूत्रों की माने तो सत्ता की समानान्तर चाबी रखने वाले मुख्यमंत्री के सचिव व उनकी किचन केबिनेट के प्रति जन प्रतिनिधियों में खासा नाराजगी थी। दिल्ली दरबार की ओर से मुख्यमंत्री को हालात सामान्य करने की हिदायत के बाद मुख्यमंत्री सचिवालय में एक अतिरिक्त सचिव की नियुक्ति की गयी है, जिनका कार्यकाल 31 अक्टूबर को समाप्त हो रहा है। जहां तक मुख्यमंत्री के सचिव प्रभात कुमार सारंगी के लम्बी छुट्टी पर जाने की बात हो रही थी तो इस पर प्रदेश के सूचना विभाग ने ही विवाद पैदा कर दिया सूचना विभाग ने बीेते दिन विज्ञप्ति जारी कहा था कि वे छुट़टी जा रहे हैं बाद में इसी विभाग ने दूसरे दिन एक और बयान जारी किया कि वे छुट़टी पर नहीं जा रहे हैं।
इस बीच अब विधायकों की मुख्यमंत्री के किचन केबिनेट के सदस्यों के प्रति नाराजगी को देखते हुए मुख्यमंत्री के निकट दो दायित्वधारियों से दायित्व वापस लिये जाने की खासी चर्चा है। चर्चा तो यह भी है कि इन दो दायित्वधारियों को दायित्व मुक्त करने का मामला सरकार के आपदा प्रबन्धन से जुड़़ा बताया जा रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने दिल्ली दरबार से वापस आने के बाद मीडियाकर्मियों से मिलने से परहेज किया है। स्थिति यह है कि यहां से मंत्रियों को दिल्ली दरबार तलब किया जा रहा है, किन्तु कोई भी दिल्ली से हुई चर्चा के सम्बन्ध में बताने को तैयार नहीं है। वहीं यह भी पता चला है कि बीते दिन प्रदेश अध्यक्ष बच्ची सिंह रावत अपनी प्रदेश कार्यकारिणी के साथ केन्द्र के निर्देश पर भगत सिंह कोश्यारी को मनाने उनके घर गए थे। इनमे कितनी सुलह सफाई हुई यह तो पता नहीं चल पाया है लेकिन इससे ण्क बात तो साफ ही हो गयी है कि प्रदेश भाजपा को अब भी भगतदा के कद को कम करके नहीं आंकना चाहिए। वहीं सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार केन्द्रीस नेताओं ने इस समूचे प्रकरण के लिए प्रदेश अध्यक्ष बच्ची सिंह रावत को भी जिम्मेदार बताते हुए उन्हे भी खासी लताड़ लगाई है और आलाकमान ने दिल्ली तलब किये गये सभी वरिष्ठ नेताओं को पंचायत चुनाव के दौरान असन्तुष्ट गतिविधियों में लिप्त रहने के बजाय पंचायत चुनाव में पूरी जी जान से जुटने का निर्देश दिया है।
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