Tuesday, August 5, 2008

पूर्व आईटी सचिव की गले की फांस बना सीडी प्रकरण

राजेन्द्र जोशी
देहरादून :केन्द्रीय राजनीति में यूपीए तथा एनडीए के बीच सीडी को लेकर विवाद जारी है वहीं उत्तराखण्ड प्रदेश की राजनीति में भी एक सीडी ने तहलका मचाया हुआ है। इस सीडी के मामले में यदि गौर किया जाए तो प्रदेश में चर्चित इस सीडी प्रकरण को उछालने में एक आईएएस अधिकारी की भूमिका बताई जा रही है जो चन्द रूपयों में इसे खरीदकर लाखों में इसे बेचने का मंन्सूबा पाले हुए था। क्योंकि उसे पता है कि इस सीडी में इतनी जानकारियां है कि कोई भी सरकार इसे हाथों हाथ ले सकती है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इसी अधिकारी द्वारा पंडित तिवारी के शासन काल में इस सीडी को खरीदने की सहमति सरकार को दी थी और जब सीडी बनाने वाली कम्पनी के मालिक से सौदा नहीं पटा तो इसने अपनी ही रिपोर्ट को काटते हुए सीडी के खर ीद पर ही पंगा लगा दिया।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2004 में तत्कालीन प्रदेश सरकार के मुखिया नारायण दत्त तिवारी ने राज्य सरकार ने राज्य की बारीक से बारीक जानकारी के लिए एक सीडी (सॉफ्टवेयर) बनाने के लिए एक कंपनी न्यू इंक के साथ एमओयू किया था जिसके आधार पर उस कंपनी द्वारा जो सीडी तैयार की गयी है उसको लेकर इन दिनोंं कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने का जो प्रयास किया तो पता चला कि कांग्रेस सरकार के समय की ही बात सामने आयी ।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इस प्रकरण में उत्तराखंड सरकार के तत्कालीन आईटी सचिव अमरेन्द्र सिन्हा शामिल थे। जिन्होने सीडी के डेमोस्ट्रेशन के बाद 30 नवम्बर 2004 को इस सॉफ्टवेयर को खरीदने के लिए एक समिति बनाई, इन सारी औपचारिकताओं के बाद सचिव अमरेन्द्र सिन्हा और सचिव संजीव चोपड़ा ने 17 जून 2005 को मुख्यसचिव से वार्ता करने के बाद इस सीडी को खरीदने की बात कही गई थी। इस तरह उसी वर्ष नौ जुलाई को इसी समिति द्वारा इस सीडी को खरीदने की संस्तुति दी गई थी और तत्काल 25 सीडी खरीदने पर सहमति भी हो गयी थी। समिति के सदस्य आईटी सचिव संजीव चोपड़ा द्वारा इस सीडी को 50 हजार रूपये की दर से खरीदने का प्रस्ताव किया गया था जिसे समिति द्वारा सर्वसम्मति से पास भी कर लिया गया और आईटी सचिव ने यह सीडी खरीदने के लिए परिवहन आयुक्त को भी लिखा है। इस तरह इस सॉफ्टवेयर (सीडी) को खरीदने का 19 नवंम्बर 2005 को बीस लाख रूपये का बिल भी प्रस्तुत किया गया था जिसका भुगतान सरकार द्वारा कंपनी को किया गया। इसके बाद राजस्व विभाग ने 21 जनवरी 2006 को 80 सीडी (सॉफ्टवेयर) खरीदने के आदेश सरकार के माध्यम से कम्पनी को दिया था। सरकार द्वारा यह भी निश्चय किया गया कि इस सीडी के विक्रय के लिए हिल्ट्रान को अधिकृत किया जाए जिसको 20 फीसदी कमीशन लेने के अधिकार पर भी एक सहमति की गई।
वहीं सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार तत्कालीनप आई टी सचिव ने जब देखा कि यह सीडी सोने के अंडे देने वाली है तो उन्होने सीडभ् निर्माता कम्पनी से इस सीडी के सारे अधिकार खरीदने के एवज में उसे 12 से 15 लाख रूपए देने की बात कही जिसे कम्पनी ने अस्वीकार कर दिया क्योंकि इस सीडी के पीछे उसकी वर्षों की मेहनत तथा पैसा लगा बताया गया। प्राप्त जानकारी जब कम्पनी मालिक ने सीडी देने से मना किया तो सचिव ने सीडी की खरीद पर ही रोक लगाने की मुहिम तो छेड़ी ही साथ ही इसे भाजपा सरकार के सबसे बड़े घोटाले के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया। लेकिन जब सारे मामले का खुलासा हुआ तो मामले में अब पूर्ववर्ती सरकार के आदेश तथा इसी अधिकारी द्वारा कम्पनी सेे सीडी खरीदने का मामला प्रकाश में आया। इस गड़बड़ी को देखते हुए अब कांग्रेस ही स्वयं बचाव की मुद्रा में आ गयी है और वह सीडी पर कुछ भी बोलने को अब तैयार नहीं है। वहीं सूत्रों ने यह भी जानकारी दी है कि पूर्व आईटी सचिव इस सीडी को मात्र कुछ रूपयों में खरीद कर करोड़ों रूपया बनाने के चक्कर में था लेकिन बदले हालात में वह भी बचाव की हालात में है।

No comments: