राजेन्द्र जोशी
देहरादून: उत्तराखण्ड के मंदिर,मस्जिद सहित गिरिजाघरों तक की सम्पत्तियों पर अब यहां के भू माफियाओं की नजर लग चुकी है। जबकि संविधान के अनुसार इस तरह की सम्पत्तियों की कोई खरीद-फरोख्त ही नहीं कर सकता है। लेकिन भूमाफिया हैं जो कानून को जेबों में रख इस तरह की सम्पत्तियों की खरीद-फरोख्त ही नहीं कर रहे हैं बल्कि इनकी जमीनों पर बड़े-बड़े ब्व्यवसायिक भवनों का निर्माण कर कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं। इनमें कई सफेदपोश नेता तक भी शामिल हैं। जो या तो प्रदेश में काबिज सत्ता से सम्बध रखते हैं या फिर इनकी अफसरशाही में पकड़ है।
अस्थाई राजधानी देहरादून के राजपुर मुख्यमार्ग पर दिलाराम बाजार के पास स्थित अंग्रेजों के जमाने से बने गिरिजाघर की सम्पत्ति पर जहां भाजपा के एक पूंजीपति नेता के परिजनों ने कŽजा ठोंका है। यह मामला न्यायालय में सरकार बनाम श्यामसुन्दर गोयल के नाम बीते कुछ सालों से चल रहा है। वहीं ईसी रोड़ पर मस्जिद की जमीन पर कांग्रेस के एक नेता ने कŽजा ही नही की बल्कि इस पर एक व्यवसायिक भवन तक बना डाला है।
उत्तराखण्ड वक्फ बोर्ड के रिकार्ड के अनुसार देहरादून शहर सहित समूचे जिले में 119 कब्रिस्तान थे, जिनमें 169 एकड़ जमीन उपलŽध थी, मगर आज लगभग आधे कब्रिस्तान अतिक्रमण के कारण गायब हो गये हैं। जो कब्रिस्तान बचे हुए हैं वे भी तेजी से सिमट रहे हैं। मुस्लिम वक्फ बोर्ड के एक अधिकारी के अनुसार सबसे गंभीर समस्या देहरादून में खड़ी हो गई है। यहां दिन प्रतिदिन आबादी बढऩे के साथ ही मरने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। मगर कब्रस्तान एक-एक कर इमारतों के जंगलों में खोते जा रहे हैं। वक्फ बोर्ड के रिकार्ड के अनुसार देहरादून शहर के अन्दर कभी 5.2 एकड़ का अधोईवाला कब्रिस्तान, 4 एकड़ का खुड़बुड़ा, 2 एकड़ का मुस्लिम कालोनी कब्रिस्तान था। इनमें से आज एक भी कब्रिस्तान मौजूद नहीं है और इन पर इमारतों के जंगल उग आये हैं। आज हालात यह हैं कि इतने बड़े शहर के मुसलमानों के लिये धर्मपुर तथा चन्द्रनगर में ही सुपुर्देखाक होने के लिये थोड़ी सी जमीन रह गई है। धर्मपुर में भी अब वक्फ बोर्ड के हस्तक्षेप के बाद लोगों को दफनाने के लिये जगह मिल पा रही है।
शहर के दक्षिण में स्थित एकमात्र सबसे बड़ी कब्रगाह की हालत भी नाजुक हो चुकी है। वक्फ बोर्ड के रिकार्ड में चन्दरनगर क्षेत्र में तीन कब्रिस्तान दर्ज हैं। इनमें से केवल एक कब्रिस्तान के नाम ही 25 बीघा जमीन दर्ज है, मगर धरातल पर वहां केवल एक ही कब्रगाह मौजूद है और इसमें भी 4-5 बीघा से अधिक जमीन नहीं रह गई है।
मौलवी अŽदुल समद का कहना है कि शहर के चन्द्रनगर स्थित कब्रिस्तान की स्थिति नाजुक हो गई है। अतिक्रमण के बाद एक सीमित स्थान पर कब्रों के ऊपर कब्रें बनानी पड़ रही हैं। कब्र खोदते समय कंकाल निकलना तो सामान्य बात है, मगर अब तो नई कब्र खोदते समय साबुत मुर्दे भी निकलने लग गये हैं, जिन्हें दुबारा दफनाना पड़ रहा है।
मुस्लिम नेता कमर सिद्दकी का कहना है कि इस एक मात्र कब्रिस्तान में बार-बार कब्रें खोदने से मिट्टी इतनी पोली हो गई है कि कब्र ही धंसने लगती है। इस तरह की मिट्टी में जानवरों द्वारा मुर्दों को निकालने का भी भय रहता है। मौलवी अŽदुल समद के अनुसार चन्द्रनगर कब्रिस्तान को कम से कम 10 वर्ष के लिये आराम की जरूरत है। उन्होंने बताया कि मुस्लिम समुदाय को समझाया बुझाया जा रहा है कि वे कुछ वर्षों तक शवों को धर्मपुर कब्रिस्तान में दफनाएं।
देहरादून शहर से अधिक गंभीर स्थिति मसूरी की हो गई है। जहां कब्रिस्तान सहित वक्फ की 60 प्रतिशत सम्पत्ति पर भू माफियाओं का अवैध कŽजा हो गया है। मुर्दों को दफन करने के लिये देहरादून शहर के आस-पास के कब्रिस्तान भी तंग होते जा रहे हैं। कई कब्रिस्तान तो गायब हो गये मगर जो मौके पर मौजूद हैं वे भी सिमटते जा रहे हैं। तेलीवाला, माजरा, मेहूंवाला, नवादा, चानचक, कारगी ग्रांट, आमवाला, मोहबेवाला, शाहनगर, अजबपुर खुर्द एवं ब्राह्मणवाला के कब्रिस्तान अतिक्रमण के कारण बहुत तंग हो गये हैं।
मुर्दों को दफनाने के मामले में मुसलमानों से अधिक गंभीर संकट देहरादून के ईसाइयों के सम्मुख खड़ा हो गयी है। देहरादून शहर में ईसाइयों के केवल 2 कब्रिस्तान हैं । इन पर भी अवैध कŽजों के बाद जो थोड़ी बहुत जमीन बची हुई है, उनमें पक्की सीमेंट की कब्रें बनने के कारण नई कब्रों के लिये एक-एक इंच जमीन जुटाना मुश्किल हो गया है। सी.एन.आई. चर्च के रिवर्ड सुनील ल्यूक के अनुसार ईसाइयों को इन कब्रस्तानों में पक्की कब्रें न बनाने की सलाह दी जा रही है। पादरी जे.पी. ग्रीन का कहना है कि पक्की कब्रों के निर्माण को हतोत्साहित करने के लिये कब्र बनाने का शुल्क बढ़ाने का निर्णय लिया गया है।
उत्तराखण्ड मुस्लिम वक्फ बोर्ड से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश की पूर्व समाज कल्याण सचिव एवं वक्फ सर्वे कमिश्नर राधा रतूड़ी ने 7 दिसम्बर 2005 को सभी जिला कलक्टरों को पत्र लिख कर वक्फ सम्पत्तियों का सर्वेक्षण कराने के निर्देश दिये थे। मगर उस पत्र पर कोई कार्यवाही नहीं हुई।
उत्तराखण्ड में कब्रिस्तानों सहित वक्फ की सम्पत्तियों पर भारी कŽजों की शिकायतें मिलने पर तत्कालीन मुख्य सचिव एम. रामचन्द्रन ने 25 जनवरी 2006 को सभी जिला कलक्टरों को पत्र लिख कर उन्हें याद दिलाया था कि वक्फ समपत्तियों का 20 साल में एक बार सर्वेक्षण कराया जाना अनिवार्य है। मुख्य सचिव ने पत्र में यह भी कहा था कि 1984 के बाद इन सम्पत्तियों का सर्वेक्षण नहीं हुआ। उन्होंने तत्काल अवैध कŽजे हटाने के भी आदेश दिये थे, मगर उन आदेशों का भी पालन नहीं हुआ। जिला प्रशासनों की ढील के कारण देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल एवं उधमसिंहनगर जिलों में कब्रस्तानों की अधिकांश जमीनें भूमाफियाओं द्वारा अभी तक कŽजाई जा चुकी हैं।
सन् 2001 की जनगणना के अनुसार उत्तराखण्ड में मुसलमानों की जनसंख्या 1012141 तथा देहरादून में 139197 है। प्रदेश में ईसाइयों की आबादी 27116 तथा देहरादून में 10322 है। इनमें 7681 की आबादी देहरादून शहर में रहती है। इसी प्रकार 2001 में देहरादून शहर की मुस्लिम आबादी 54543 थe
2 comments:
देहरादून की वे खबरें जो सामान्यतः देहरादून के स्थानीय अखबारों में भी कहीं गुम हो गयी होती है, आपके ब्लाग में मिल जाती है. आपके ब्लाग की यह खूबी आकर्षित करती है.
बहुत-बहुत धन्यवाद भाई विजय गौड़ जी
आपके द्वारा की गई टिप्पणी ही मेरा संबल है, यही मेरा आत्मबल भी बढ़ाता है।मेरा प्रयास है कि समाज में आज जो कुछ हो रहा है उसे मैं अपने ब्लाक पर देने का प्रयास करूं। समाचार पत्रों की बहुत सारी सीमाएं हैं, ऐसा नहीं कि इनमें काम करने वाले पत्रकार नहीं लिखना चाहते वे लिखना तो चाहते हैं लेकिन व्यवस्था की बेड़ियों से वे बंधे होते हैं। इसलिए उन्हे दोष देना कतई ठीक नहीं हां लेेकिन समाज में कुछ ऐसे लोग तो होते ही हैं जो कभी भी सत्ता के खिलाफ आवाज नहीं उठाते और सत्तापक्ष की चाटुकारिता करते हुए आपनी अंर्तआत्मा तक को गिरवी रख देते हैं। लेकिन उनकी आत्मा उन्हे ही ऐसे कार्य के बाद परेषान तो जरूर करती होगी। खैर, मेरी कोषिष होगी कि मैं आपके सामने ऐसे तत्थ्य रखूं जो समाचार पत्रों में आपको खोजने से भी नहीं मिलेंगे। बस आपसे एक अपेक्षा है कि आप जरूर अपनी टिप्पणी देते हुए मेरे उत्साह को बरकरार रखें। धन्यवाद
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