Sunday, July 13, 2008

दरक रहा है पहाड़


राजेन्द्र जोशी

बिजली मुफ्त नहीं आती. इसकी कीमत चुकानी पड़ती है. आप जो कीमत चुकाते हैं उससे ज्यादा वे गांव इसकी कीमत अदा कर रहे हैं जहां बिजली पैदा होती है.

आप भले ही कुछ रूपया देकर उपभोक्ता होने का अहंकार पाल लें लेकिन वे गांववाले क्या करें जिनके घर ही टूटकर बिजली की खेती के कारण अपना अस्तित्व ही खो रहे हैं. टिहरी की बिजली में दिल्ली के माल भले ही रोशन हो रहे हों लेकिन यहां के 24 गांव पानी में समा गये. उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले का एक और गांव चांई भी ऊर्जा राज्य बनाने की चाह की भेंट चढ़ गया। चाईं अकेला गांव नहीं है. बिजली उत्पादन के लिये प्रमुख नदियों को पहाड़ों के अन्दर सैकड़ों किमी लम्बी सुरंगों के अन्दर डालने की योजना के चलते दर्जनों गांवों के अस्तित्व पर सवालिया निशान लग गया है।

चमोली जिले के भारत-तिब्बत सीमा से जुड़े सीमान्त ब्लाक जोशीमठ के चांई गांव में शुरू हुए भूस्खलन के कारण 28 मकान पूरी तरह नष्ट हो गये हैं, जबकि लगभग 100 मकानों पर दरारों के कारण समूचा चाईं गांव खेती की जमीन सहित अलकनंदा की ओर खिसक रहा है। जोशीमठ की एसडीएम निधि यादव के अनुसार इस भूस्खलन से अब तक तीन मकान पूरी तरह जमींदोज़ हो चुके हैं, जबकि 25 से 30 मकान क्षतिग्रस्त हैं। निधि यादव के अनुसार इस भूस्खलन के कारण मकानों की 89 लाख रुपये तथा जमीन की 4.75 करोड़ रुपये की क्षति का आंकलन हुआ है और जिलाधिकारी चमोली ने यह रिपोर्ट प्रदेश सरकार को भेज दी है। उन्होंने बताया कि ये सभी परिवार गांव छोड़ चुके हैं। इनके लिये जोशीमठ और मारवाड़ी में रहने की अस्थाई व्यवस्था की गयी है। भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग के निदेशक डा. पी.सी. नवानी के अनुसार चाईं गांव के निचले हिस्से के लिये भी खतरा उत्पन्न हो गया है और जान माल की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रशासन को गांव को अन्यत्र बसाना पड़ेगा।

जिन लोगों के मकान ध्वस्त हुए हैं उनके नाम हैं- थैबाड़ी में भूपाल सिंह पंवार, देवनारायण महाराज, गीता देवी, दीपक पंवार, यशपाल पंवार, कपिलदेव पंवार, महेंद्र पंवार, शैलेंद्र पंवार, पुष्कर लाल, जोत सिंह, प्रेम सिंह, दुलप सिंह, उछव सिंह, राम सिंह पंवार तथा रघुबीर सिंह. इसी गांव के ब्यूरा नामक स्थान पर लम्बे आकार में करीब एक मीटर गहरी दरार जमीन पर उभर आयी है. यह करीब 500 मीटर लम्बी है। गांव के ऊपरी हिस्से में आ रही आबादी भी कैसे सुरक्षित रहेगी जब उसके नीचे कब्रगाह तैयार हो चुका है। ब्यूरा में अखिलेश कठिहार, दिगम्बर चौहान, नरेन्द्र बिष्ट, सरस्वती राणा, जानकी देवी, पुष्कर सिंह चौहान, भगवती देवी, दलबीर सिंह पंवार, इन्द्र सिंह बिष्ट, सतेंद्र सिंह, बांके लाल, रूपा देवी, मदन सिंह एवं गोपाल सिंह के मकान भी इस धंसाव की चपेट में आने के कारण चिंता का सबब बन गये हैं। उनका आशियाना कभी भी लुढ़क सकता है।

मुसीबत इन्हीं लोगों पर नहीं, बल्कि उनके मवेशियों पर भी टूटती दिखाई दे रही है। परियोजना स्थल के ऊपरी हिस्से पर टिन शेड्स पर इनके रहने की व्यवस्था न हो पाने और विस्थापित किये गये लोगों को करीब 10-12 किमी दूर जोशीमठ में रखने के कारण यह व्यवस्था और भी विकराल रूप में सामने आ रही है। 110 परिवारों के इस गांव की आबादी करीब 630 है। इनमें से 25 घरों के लोग तो सड़क पर आ चुके हैं और शेष ग्रामीणों के सामने बेघरबार होने की समस्या खड़ी हो गयी है।

भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग के निदेशक डॉ पीसी नवानी के अनुसार उन्होंने आपदा प्रबंधन विभाग एवं वाडिया इंस्टीट्यूट के भूवैज्ञानिकों के सहयोग से चाईं गांव का प्राथमिक सर्वेक्षण कर रिपोर्ट उत्तराखण्ड सरकार को सौंप दी है। उन्होंने बताया कि यह भूस्खलन चांई गांव के दोनों ओर के नालों के कारण हो रहा है। उन्होंने आशंका जतायी कि यह विष्णु प्रयाग जल विद्युत परियोजना की 12 किलोमीटर लम्बी सुरंग के लीकेज के कारण भी हो सकता है। नवानी ने बताया कि अभी इस मामले में विस्तृत सर्वेक्षण किये जाने की जरूरत है,ताकि इस भूस्खलन के असली कारण सामने आ सकें। इस संबंध में इस परियोजना का संचालन करने वाली जयप्रकाश कम्पनी से कुछ विवरण मांगे गये हैं। उन्होंने बताया कि यह भूस्खलन नाले की दिशा बदलने के कारण भी हो सकता है। अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर एक भूवैज्ञानिक का कहना था कि यद्यपि इस सुरंग का निर्माण करने वाली जयप्रकाश कम्पनी के पास सुरंग निर्माण की विशेषज्ञता हासिल है और उनकी बनायी हुई सुरंगों में अब तक इस तरह की कोई शिकायतें नहीं आयी हैं, फिर भी यहां इस आपदा का कारण सरसरी तौर पर सुरंग का रिसना प्रतीत हो रहा है।

प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं चिपको आंदोलन के प्रणेता चण्डी प्रसाद भट्ट ने चांई गांव का दौरा करने के बाद बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में जल विद्युत क्षमता का अविवेकपूर्ण दोहन का पहला दुष्परिणाम सामने आ गया है और भविष्य में इस प्रकार की आपदायें आम हो सकती हैं। उन्होंने बताया कि वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री को पहले ही आगाह कर चुके हैं कि इस तरह प्रकृति के साथ बेतहाशा छेड़छाड़ कर विकास के सपने देखना मानवता के साथ खिलवाड़ करना है। उच्च हिमालयी क्षेत्र में जहां यह परियोजनायें बन रही हैं, वहां का पारिस्थितिकीय तंत्र बेहद संवेदनशील है और कुदरत किसी भी रूप में अपना गुस्सा प्रकट कर सकती है।

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