उत्तराखण्ड उर्जा प्रदेश बनना चाहता है. बड़ी सोच विचार के बाद सरकार ने तय किया कि वह रन द रिवर की मानसिकता से बिजली पैदा करेगी. लेकिन इस रन द रिवर को मानने के लिए
सरकार को सुरंगों के रास्ते पानी गुजारना होगा. हो सकता है इससे नदियों के भक्तों को यह कहने का मौका मिल जाए कि नदी अबाध है, लेकिन इसके नुकसान तो और भी भयावह होनेवाले हैं. सरकार पहाड़ों के बीच सुरंगों की जैसी जाल फैलाने की योजना बना रही है उससे तो पूरा पहाड़ ही भूस्खलन और भ्रंस का तांडव बनकर रह जाएगा. बिजली किसे मिलेगी, पैसा कहां जाएगा यह खेल तो अलग लेकिन इसकी कीमत कौन चुकाएगा?
उत्तराखण्ड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद 1000 मेगावाट क्षमता की टिहरी बांध परियोजना प्रथम चरण, 400 मेगावाट की विष्णुप्रयाग तथा 180 मेगावाट की धौलीगंगा परियोजना पूरी हुई है और इनमें से अब तक ऐतिहासिक टिहरी नगर के अलावा टिहरी जिले के 24 गांव पूर्ण रूप से तथा 127 गांव आंशिक तौर से विशाल कृत्रिम जलाशय में समा चुके हैं. इस परियोजना से लगभग 10 हजार परिवार प्रभावित हुए हैं। अब विष्णु प्रयाग परियोजना से उत्पन्न इस आपदा के कारण प्रदेश के भविष्य की परियोजनाओं के कारण पहाड़ी जनजीवन पर पर्यावरणविदों को स्पष्ट खतरा नजर आने लगा है। टिहरी बांध के कारण हुई विस्थापन की विकराल समस्या को ध्यान में रखते हुए उत्तराखण्ड सरकार ने अब भविष्य में बांधों के बजाये रन ऑफ द रिवर परियोजनायें चलाने का निश्चय किया है, मगर इस तरह की परियोजनाओं में भी पहाड़ों पर छेद कर सुरंगों की जरूरत पड़ेगी।
एक अनुमान के अनुसार उत्तराखण्ड में जल विद्युत परियोजनाओं के लिये लगभग 750 किलोमीटर लम्बी सुरंगे खुदेंगी, जिससे उच्च हिमालयी क्षेत्र में लगभग हर पहाड़ के अंदर कोई न कोई छेद बनाना पड़ेगा। उत्तरकाशी के जल संस्कृति आंदोलन से जुड़े नागेंद्र दत्त तथा गंगोत्री ग्लेशियर बचाओं अभियान की प्रमुख शांति ठाकुर के निर्माणाधीन 480 मेगावाट क्षमता की लोहारी नागपाला तथा मनेरी भाली परियोजना के कारण पाला गांव का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इन नेताओं का कहना है कि इस गांव के बुराड़ी तथा गुलाणी तोकों के चारों ओर 150 स्थानों पर छोटे-बड़े भूस्खलन हो रहे हैं। इस गांव के प्राइमरी स्कूल भवन में दरारें पड़ गयी है।
जगह-जगह भूस्खलन के पीछे मनेरी भाली परियोजना के लिये बनायी गयी सुरंग की सही तरीके से पैकिंग न होना और अत्यधिक विस्फोटकों का प्रयोग बताया जा रहा है। प्रदेश की वर्तमान जल विद्युत उत्पादन की चिन्हित क्षमता 15109 मेगावाट है, जिसमें लगभग छोटी बड़ी 122 परियोजनायें शामिल हैं। इसके अलावा एक ताजा अनुमान के अनुसार प्रदेश में लगभग 20 हजार मेगावाट की परियोजनाओं को चिन्हित करने का काम पूरा हो चुका है। जबकि भाजपा की मौजूदा सरकार 40 हजार मेगावाट तक की परियोजनाओं की संभावनायें तलाश रही है। पूर्व में चिन्हित परियोजनाओं के लिये ही लगभग 200 किलोमीटर लम्बी सुरंगों का प्रस्ताव है।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियालॉजी के पूर्व निदेशक एनएस विरदी और एक अन्य भू-वैज्ञानिक ए के महाजन के एक शोध पत्र के मुताबिक अकेले गंगा बेसिन की प्रस्तावित और निर्माणाधीन परियोजनाओं के लिये 150 किमी लम्बी सुरंगे खुद रही हैं या खोदी जानी हैं। इनके अलावा शारदा और यमुना घाटियों की परियोजनाओं के लिये भी पहाड़ों के अंदर सैकड़ों किमी लम्बी सुरंग खोदी जानी है। अलकनंदा और भागीरथी घाटियों में 3414 मेगावाट, यमुना घाटी 420 और शारदा, सरयू और कोसी घाटियों में 480 मेगावाट की परियोजनायें निर्माणाधीन हैं। गंगा घाटियों में 5215 मेगावाट, यमुना घाटियों में 14645 मेगावाट और शारदा व सहायक नदियों की घाटियों में 3905 मेगावाट की परियोजनायें चिन्हित की गयी हैं। भूवैज्ञनिक डा0 विरदी व ए के महाजन के शोध पत्र के मुताबिक अलकनंदा व सहायक नदियों पर निर्माणाधीन या प्रस्तावित परियोजनाओं में से विष्णु प्रयाग प्रोजेक्ट पर 12 कि.मी. सुरंग खुद गयी है। भागीरथी पर बनने वाली परियोजनाओं में लोहारी नागपाला 13.6 किमी, पाला मनेरी में 8.7 किमी व मनेरी भाली द्वितीय में 16 किमी लंबी सुरंग खुद चुकी है। मनेरी भाली प्रथम में पहले ही 9 किमी लंबी सुरंग काम कर रही है।
प्रदेश के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री दिवाकर भट्ट के अनुसार प्रदेश के 13 में से 8 जिलों के लगभग 97 गांवों के अस्तित्व पर भूस्खलन का खतरा मण्डरा रहा है, इनमें चमोली के 28, पिथौरागढ़ के 19, टिहरी के 11, उत्तरकाशी के 10, पौड़ी के 5, बागेश्वर के 2 तथा अल्मोड़ा और नैनीताल जिलों के एक-एक गांव शामिल हैं। लेकिन चांई गांव की तरह बिजली परियोजना के कारण बनने वाली सुरंगों से अगर नये भूस्खलन शुरू हो गये तो प्रदेश में भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है। टिहरी बांध की परिधि के चारों ओर पहले ही भूस्खलन शुरू हो चुका है, और इन भूस्खलनों की चपेट में लगभग आधे दर्जन गांव बताये जाते हैं। चूंकि ये गांव बांध के जल स्तर से काफी ऊपर हैं। इसलिये इन्हें पूर्व में सुरक्षित मान लिया गया था मगर अब बांध के चारों ओर होने वाले भूस्खलनों ने नयी समस्या खड़ी कर दी है।
उर्जा प्रदेश बनने की चाह में उत्तराखण्ड हो सकता है अपनी इन क्रांतिकारी परियोजनाओं की बदौलत देश के कुछ बड़े महानगरों को भले ही रोशन कर दे लेकिन यहां के गावों की बत्ती सदा-सदा के लिए बुझ जाएगी.
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