उत्तराखंड में मार्शल लॉ
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, उत्ताराखण्ड में सैनिक शासन होने का एक और सबूत। अगर आपको आपके वोटों के द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री से मिलना है तो पहले सारंगी बजाईये यानी मुख्यमंत्री के गेटकीपर सारंगी साहब से मिलिए, वे अगर आपको एक रैड कार्ड जारी कर देते हैं तभी आप आपके ही पैसे से बने शानदार सचिवालय में ऊपर की मंजिलों तक जा पाएंगे और मुख्यमंत्री महोदय के दर्शन कर पाएंगे।
पूरे देश में यह सेना वाला नियम सिर्फ उत्तराखंड में ही लागू है। जनता के मतों के आधार पर भाजपा ने चुनाव जीतने के बाद जिसे मुख्यमंत्री बनाया अब वही जनता से दूरियां बनाए रखने के लिए हर संभव कदम उठा रहा है। लोकशाही में लोक (जनता) से दूर रहकर शासन चलाने का उदाहरण उत्ताराखण्ड में ही दिखाई देता है। यहां के मुखिया को जनता से ''एलर्जी'' है।
मुगलकाल की एक बात मशहूर है कि मुगल शासक जहांगीर ने जनता से मिलने तथा उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए शाही महल के बाहर साठ घंटियों से जुड़ी एक जंजीर को लटकाया गया था, जिसे ''चेन आफ जस्टिस'' कहा जाता था। जिसे फरियादी किसी भी वक्त बजा सकते थे और जहांगीर फौरन हाजिर होकर उनकी समस्याओं का वहीं से निराकरण करते थे। बात मुगल काल की है लेकिन इसके बाद देश अंग्रेजों के गुलाम हुआ। अंग्रेजों के शासनकाल में भी ठीक ऐसा ही होता था कि जहां से जनता गुजरती थी वहां से अंग्रेज शासक गुजरना अपनी शान के खिलाफ समझते थे यही कारण था कि उन्होने राज्य के हिल स्टेशनों मसूरी तथा नैनीताल की माल सड़कों पर यह बोर्ड लगाए थे कि भारतीयों तथा कुत्ताों का प्रवेश वर्जित है।
दोनों में ही काफी अन्तर है मुगल काल में जनता सीधे बादशाह से मिल सकती थी तो ब्रि्र्रटिशकाल में जनता का शासक से मिलना नामुमकिन था। ब्रिटिशकाल की तरह की कार्यप्रणाली अब उत्ताराखण्ड में दोहराई जा रही है। मुखिया से जनता को मिलने के लिए ''रेड कार्ड'' जारी किया जाता है तभी वह मुखिया से मिल सकता है। इससे पहले मुखिया से मिलने के लिए प्रदेश की जनता सचिवालय स्थित चतुर्थ तल पर जाया करती थी लेकिन वहां जनता से मिलना उन्हे गवारा नहीं लगा परिणामस्वरूप उनके सिपहसलारों ने सुझाव दिया कि अब उनके ओएसडी तथा जनसम्पर्क अधिकारियों को इसी भवन के भूतल स्थित बरामदे में बड़ा कमरा बनवाकर एक-एक घंटे के लिए बैठाया जाय। जनता में जिसे वे मुख्यमंत्री से मिलने के काबिल समझेंगे उसे ही ''रेडकार्ड' थमा कर चतुर्थ तल पर भेजा जाएगा। मुख्यमंत्री को जब जनता से मिलने की इच्छा होगी तो उन्हे सचिवालय से साथ ही अभी-अभी 74 लाख की लागत से बनाए गए बहुउद्देश्यीय सभागार में मिलवाया जाएगा। वह भी नियत समय के लिए। सिपहसलारों के सुझाव पर अमल हुआ और मुख्यमंत्री कार्यालय के नजदीक रहे ओएसडी के कमरों को वहां से हटाया गया। उन्हे इसी तल पर दाहिनी ओर बैठाया गया। ठीक इसी तरह मुख्यमंत्री आवास पर भी किया गया ओएसडी को वहां से हटाकर सचिवालय के भवन में बैठने का फरमान सुनाया गया। आवास तथा मुख्यमंत्री के कार्यालय के पास बैठे तो केवल एक प्रभात कुमार सारंगी। जिनकी कार्यप्रणाली को लेकर राजधानी में तरह -तरह की चर्चाएं आम हैं। जनता की बात छोडिये यहां तो अधिकारियों ,मंत्रियों तथा विधायकों तक को मुख्यमंत्री से सीधे मिलने की इजाजत नहीं है अगर इजाजत है तो सिंर्फ मुख्यमंत्री के लाडले उनकें सचिव सारंगी को जिनके कारण ही वे सबसे ज्यादा बदनाम हो रहे हैं। सूत्र बताते है कि सारंगी सहित उनके एक और ओएसडी चौहान के काले कारनामों के कारण भाजपा सरकार की छीछालेदारी हो रही है। मुख्यमंत्री से ये लोग उन्ही को मिलाते हैं जिनसे इन्हे कुछ मिलता है। प्रदेश के रहने वाले ये लोग नहीं हैं लिहाजा प्रदेश की जनता से इनका कोई लेना देना नहीं और नहीं किसी को ही यह पहचानते हैं। जो लोग प्रदेश के अधिकंाश लोगों को भाषा,बोली के आधार पर पहचानने की क्षमता रखते हैं उन्हे इन्होने किनारे किया हुआ है।
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