मुख्यमंत्री के सचिव के बयान से बवाल
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, (राजेन्द्र जोशी): मुख्यमंत्री के सचिव के स्वास्थ्य विभाग की उपलिधयों के सम्बध में दिए गए बयान को लेकर राजनैतिक गलियारों में इसके कई अर्थ लगाए जाने शुरू हो गए हैं। कुछ का कहना है कि यह बयान जानबूझकर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री की छवि को खराब करने की कोशिश है तो कई नेताओं का कहना है कि इसमें कोई बड़ी राजनीतिक चाल हो सकती है। कुल मिलाकर यह चर्चा का विषय अवश्य हो गया है कि यह बयान यदि बतौर महानिदेशक सूचना अथवा सचिव सूचना द्वारा जारी होता तो इसे सरकार की छवि निखारने के प्रयास के तहत माना जा सकता था, लेकिन बयान के बतौर सचिव मुख्यमंत्री जारी किए जाने के पीछे इसके कई निहितार्थ लगाए जाने लाजमी हैं। कि आखिर कबीना मंत्री के होते हुए मुख्यमंत्री के सचिव को ऐसा बयान देने की क्यों जरूरत आन पड़ी? बीती शुक्रवार को सचिव मुख्यमंत्री प्रभात कुमार सारंगी के टिकट फोटो के साथ प्रदेश के सूचना निदेशालय ने राज्य के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की अब तक की उपलिधयों सम्बधी एक बयान समूचे मीडिया जगत को मेल किया गया। जिसे स्थानीय समाचार पत्रों ने प्रमुखता से प्रकाशित भी किया। दो पेज के इस बयान में यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया कि इस प्रदेश में चिकित्सा के क्षेत्र में जितने भी सुधार किए गए हैं वे सभी मुख्यमंत्री द्वारा ही किए गए। जिसमें राज्य के स्वास्थ्य मंत्री को एक तरह से नकारा करार दिए जाने का प्रयास किया गया। मुख्यमंत्री के सचिव के द्वारा दिए गए इस बयान की भाजपा खेमें में तो तीखी प्रतिक्रिया हो ही रही है इसे विरोधी दल भी मुद्दा बनाने की फिराक में हैं। विरोधी दलों के नेताओं का कहना है कि इस बयान से तो यह लगता है कि प्रदेश भाजपा में जो कुछ अंदरखाने चल रहा है उसे कतई ठीक नहीं कहा जा सकता। मुख्यमंत्री के सचिव ने स्वास्थ्य मंत्री की अब तक की सारी उपलबधियां को अपने खाते में डालने को प्रयास तो किया ही है साथ ही मुख्यमंत्री के विभागों को लेकर वे चुप क्यों रहे। इनका कहना है कि प्रदेश में स्नातकोत्तर महा विद्यालयों में प्रवक्ताओं की कमी है, प्रदेश में उच्चशिक्षा की दुर्गति हो रही है,प्रदेश के विश्वविद्यालयों में स्थाई कुलपति की नियुक्ति नहीं हो पा रही है वहीं तकनीकी विश्वविद्यालय विवादों में घिरा है इस पर उन्हे बयान देना चाहिए था। इनका कहना है कि इस पर वे इसलिए नहीं बोल रहे हैं क्योंकि इन विभागों के मुख्यमंत्री के साथ ही वे भी कर्ता-धर्ता हैं। उनके अनुसार भाजपा में अंदरूनी गुटबंदी तथा टांग खिंचाई चरम पर है यह बयान इसी का परिणाम है। उन्होने कहा जब प्रदेश में कैबिनेट मंत्री कुछ नहीं कर रहा है तो अभी हाल ही में मंत्रिमंडल में विभागों के बंटवारे में उसे और विभाग क्यों दिए गए। उसे तो हटा ही देना चाहिए था। इससे यह साफ लगता है कि मुख्यमंत्री मंत्रियों के दबाव में हैं और निर्णय लेने तक को स्वतंत्र नहीं हैं। वहीं दूसरी ओर भाजपा नेताओं तथा स्थानीय लोगों का कहना है कि जब प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री चिकित्सा क्षेत्र में की जा रही उपललिधयों को लेकर 20 दिन पहले 11 जून को पत्रकारवार्ता कर चुके हैं जिसमें उन्होने बताया था कि 32 हजार लोगों ने आपातकालीन एम्बूलेन्य सेवा 108 को काल किया तथा उससे 490 लोगों को चिकित्सा लाभ मिला। अब जबकि 27 जून को सचिव मुख्यमंत्री ने जारी बयान मे बताया कि 15 मई से शुरू इस सेवा में 33 हजार लोगों ने काल किया और इस दौरान पांच सौ लोगों को इसका चिकित्सा लाभ मिला। जबकि आज तक की जानकारी देते हुए ईएमआर आई सेवा देने वाले अखिलेश वर्मा तथा मुनीश के अनुसार 28 जून तक 67हजार 207 लोगों ने इस सेवा के लिए काल की तथा 1127 लोगों को इस दौरान उपचार दिया गया। इससे तो केवल यह ही प्रतीत होता है कि सचिव द्वारा केवल बयानबाजी क ी गई है जबकि यथार्थ में आंकड़े कुछ और ही बयां कर रहे हैं। प्रशासनिक तथा राजनीतिक लोगों का कहना है कि वैसे तो मुख्यमंत्री के सचिव को इस मामले में नहीं पडऩा चाहिए था और जब बयान देना इतना जरूरी हो गया था तो उन्हे कम से कम अपनी जानकारी पुष्टï तो रखनी चाहिए थी। इस मामले में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डा0 निशंक से बात करने की कोशिश की गयी लेकिन वे दौरे पर होने के कारण उपलध नहीं हो पाए। बहरहाल मुख्यमंत्री के सचिव के बयान को लेकर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर गर्मा गयी है। राजनैतिक क्षेत्र में दखलंदाजी रखने वाले लोगों का कहना है कि नेताओं के मामले में किसी प्रशासनिक अधिकारी को नहीं पडऩा चाहिए। वहीं प्रदेश के कई आला प्रशासनिक अधिकारी भी इन विचारों से इत्तफाक रखते हैं।
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