राजेन्द्र जोशी
DEहरादून, : उत्तराखण्ड में सरकारी नौकरियां वोट की खातिर पूर्व सैनिकों को दी जा रही हैं। राज्य के लाखों बेरोजगार जहां नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैें वहीं खंण्डूरी सरकार पूर्व सैनिकों की संस्था उपसुल के माध्यम से पूर्व सैनिकों को नौकरी देने में प्राथमिकता दे रही है। खंण्डूरी की सरकारी नौकरियों में पहली पसंद राज्य के युवा बेरोजगार न होकर रिटायर्ड फौजी हैं। विधानसभा चुनाव में बेराजगार और मंहगाई के मुददे पर सत्ता में आई भाजपा के लिए ये दोनों ही मुद्दे अब गौण हो गए हैं।
प्रदेश में सैनिकों और पूर्व सैनिकों की बड़ी सं ख्या है। जिसे जनरल खंण्डूरी वोट बैंक के रूप में देखते रहे हैं। इस वोट बैंक पर अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री ने विभिन्न सरकारी विभागों में राज्य गठन के बाद से अब तक संविदा अथवा दैनिक वेतन भोगी के रूप में काम कर रहे बेरोजगार युवाओं को हटा कर पूर्व सैनिकों को नौकरिंयां देनी शुरू कर दी है। फौज से रिटायरमेंट के बाद एक बड़ी धनराशि पाने के साथ ही इन्हे हर महीने अच्छी -खासी पेंशन भी मिलती है। जो इनके परिवार के गुजर बसर के लिए कम नहीं मानी जा सकती है। लेकिन वोट के कारण सरकार इन पर मेहरबान है। दूसरी ओर राज्य में पढ़े लिखे युवाओं की एक लम्बी जमात है जिनमें से कुछ को राज्य गठन के बाद सरकारी कामकाज कराने के लिए संविदा पर या दैनिक वेतनभोगी के रूप में पूर्व सरकारों ने नियुक्तियां दी थीं। ये युवा अपनी प्रतिभा और क्षमता से इन विभागों में कार्य कर रहे हैं। इनकी आंखों में यह ख्वाब था कि लगन और मेहनत से किये जा रहे काम के बदले उन्हे कभी तो स्थाई रोजगार मिलेगा। लेकिन वोट के चक्कर में आज उनकी सेवा समाप्त कर उपसुल के जरिए पूर्व सैनिकों को रोजगार देने के काम हो रहे हैं। प्रदेश में सचिवालय के अलावा कई अन्य विभागों में संविदा पर कार्य कर रहे बेरोजगार युवक इतने अनुभवी हो गए हैं कि वे अकेले ही कई सारे काम करते हुए राज्य के विकास को आगे बढ़ा रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से खंण्डूरी सरकार के सत्ता में आने के बाद इन युवाओं की संविदा की अवधि खत्म होने पर उनकी संविदा बढ़ाए जाने के लिए मुख्यमंत्री को प्रस्ताव भेजे गए जिस पर मुख्यमंत्री ने प्रस्ताव में संविदा की अवधि बढाने के बजाए उसे अस्वीकार कर दिया और इन पदों पर नियुक्ति के लिए पूर्व सैनिकों के निर्देश दिए। जिससे संविदा पर कार्य कर रहे युवाओं में हताशा है। इनमे से कई ने अपने परिवार तक बसा लिए हैं। लेकिन आज उनके सामने रोटी की समस्या पैदा हो गई है। क्योंकि स्थाई होने की जगह इनकी संविदा पर नियुक्ति ही रदद हो गई है। उधर विभिन्न सरकारी विभागों के अधिकारी भी सरकार के निर्देशों से परेशान है। क्योंकि एक अर्से से संविदा पर काम कर रहे लोग अनुभवी और काम में दक्ष हो गए थे। उनकी परेशानी यह भी है कि संविदा पर आने वाले पूर्व सेैनिकों को नए सिरे के कामकाज के तौर तरीकों से वाकिफ कराना पड़ेगा। ऐसे में लगभग तीन महीने तक विभिन्न सरकारी विभागों में कामकाज प्रभावित होने की आशंका है। इस बीच प्रतिपक्ष का आरोप है कि उपसुल के जरिए होने वाली नियुक्तियों में सरकार में बैठे लोगों को व्यक्तिगत रूप से आर्थिक लाभ भी पहुंचेगा। जैसा कि आम तौर पर आउटसोर्सिगं के मामले में सेवा प्रदाता कम्पनियां नियुक्ति अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से आर्थिक लाभ पहुंचाती हैं। राज्य में सेवाप्रदाता कम्पनियां सर्विस टैक्स के रूप में दस फीसदी कमीशन लेेती हैं। साथ ही नियुक्त कर्मचारी को सरकार से मिलने वाले वेतन में कटौती करके उन्हे प्रतिमाह कम धनराशि देती हैं। एक सरकारी अधिकारी के अनुसार उनके विभाग में अगर 100 रूपए प्रति दिन के रूप में संविदा पर काम करने वाले कर्मचारी को एक माह में तीन हजार रूपए दिए जाते हैं तो सेवा प्रदाता कम्पनी उसे मात्र दो हजार रूपए देती हैं। यह आर्थिक शोषण की एक बानगी है। इस तरह कई उदाहरण पावर कारपोरेशन सहित कई अन्य विभागों में देखने को मिलते हैं। जहां भूतपूर्व सैनिकों का शोषण किया जा रहा है। सवाल यह है कि राज्य सरकार आउटसोर्सिगं की तर्ज पर उपसुल (पूर्व सैनिकों के कल्याण के लिए बनाई गई स्ंास्था) के रिटायर्ड फौजियों को नौकरी दे रही है ऐसे में राज्य के पढ़े लिखे बेराजगार युवा अखिर जांए तो जांए कहां ?
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