राजेन्द्र जोशी
देहरादून : राजधानी देहरादून का राजनैतिक तापमान जो क्या बढ़ा तीन विधायकों की तो मौज ही आ गयी। ये तीनों विधायक आजकल मुख्यमंत्री की आंखों के तारे बने हुए हैं। तो दूसरे गुट की आंखों की किकिरी। ये जिस पर हाथ रख देते हैं उन्हे वह सब कुछ मिल रहा है तो इन्हे भला असंतुष्टï गुट में जाने का क्या फायदा।
मुख्यमंत्री के राजनीतिक हलचल के बीच बीते दिनों दिल्ली से लौटने के बाद से राजपुर क्षेत्र के विधायक गणेश जोशी, धनोल्टी के विधायक खजान दास तथा बाजपुर के विधायक अरविंद पाण्डे उनके साथ खड़े दिखाई दिए थे। इन विधायकों में से दो लोग तो दोनों गुटों से सम्पर्क रखे हुए हैं। वह इसलिए कि कहीं पासा पलट गया तो वहां भी अपनी गोटी फिट रहे। सूत्रों की मानें तो ये तीनों ही विधायक आजकल मुख्यमंत्री की आंखों के तारे बने हुए हैं। जो काम ये पिछले सत्रह महीने को शासनकाल के दौरान मुख्यमंत्री से कराने की हिम्मत नहीं कर पाए थे ,इन्होने इन दिनों उन्हे करा दिया है या वे कार्य पाईपलाइन में हैं। जो सचिव कभी इनके आते ही कुर्सी छोडक़र दूसरे अधिकारियों के कमरों में जा इनसे पीछा छुड़ाने मे ही भलाई समझते थे वे भी आज इनकी बातों को बड़ी तल्लीनता से सुनने को मजबूर हैं। कुल मिलाकर राजनीति के बदले माहौल में इनकी तूती बोल रही है। लेकिन इसका एक पहलू और भी है दूसरे गुट की आंखों में ये खटकने लगे हैं। इनमे से दो विधायक तो दूसरे गुट से पहले गुट में रोज हाजिरी बजाने को अपनी मजबूरी बता कर सफाई देने पर लगे हैं,लेकिन वहां इनकी बातों पर कम ही भरोसा किया जा रहा हैं। क्योंकि इससे पहले भी कई बार ये अपने ही लोगों से वादाखिलाफी कर चुके हैं। तो ऐसे में भला इन पर अब कौन विश्वास करे। जबकि राजनीतिक हलकों में यह बात भी है कि इनमें से एक विधायक को राज्य आन्दोलनकारी का विधायकी का टिकट काट कर इन्हे दिया गया और दूसरे की मजबूरी यह है कि उसकी विधानसभा ही आगामी विधानसभा चुनावों में नए परिसीमन के बाद गायब होने वाली है ऐसे में यदि डूबता तिनके का सहारा न ले तो क्या करे। जहां तक तिसरे विधायक का सवाल है उस पर मुख्यमंत्री के कई अहसान हैं और वह इतना भी अहसान फरामोश नहीं कि डूबते जहाज के चूहों की तरह बचने का रास्ता खोजे वह जहाज के साथ ही डूबना चाहता है ताकि शहीदों की सूची में शामिल हो सके।
कुल मिलाकर एक गुट के विधायक जो किसी की आंखों के तारे बने हुए है तो वह दूसरे गुटब् क ी आंखों की किरकिरी ऐसे में वे राजनीतिक चालों पर भी नजर रखे हुए हैं, और अपना काम निकालने में दिन रात एक किए हुए हैं। शायद उन्हे यह पता है कि बदले परिदृश्य में उनकी चले या न चले।
1 comment:
अच्छा लगा आपको पढ़ना..
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